राष्ट्रीय शर्मिन्दगी के पल
पिछले काफी दिनों से उन्नाव के बाहुबली विधायक कुलदीप सेंगर द्वारा एक युवती से बलात्कार का मामला चर्चा का विषय बना हुआ था। युवती ने शासन प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर इंसाफ की गुहार लगायी थी, परन्तु किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। बाहुबली विधायक शासक वर्ग के हैं और उनके विरूद्घ कार्रवाई नहीं हो पायी थी। मामला संगीन तब हुआ जब पीडि़ता के पिता को पुलिस अभिरक्षा में इतना पीटा गया कि उसकी मृत्यु हो गई। उन्नाव पुलिस पर लगा यह धब्बा बहुत दिनों तक नहीं धुल सकेगा। जेल के डॉक्टर और अस्पताल के चिकित्सकों की भूमिका भी बहुत निन्दनीय रही है। लोगों को डॉक्टरों से यह उम्मीद रहती है कि वह निष्पक्ष सेवा देंगे। इस मामले में दोनों जगह के चिकित्सकों ने अपना फर्ज नहीं निभाया और परिणामस्वरूप पीडि़ता का पिता इंसाफ की गुहार लगाने के जुृर्म में मारा गया। अब भी बाहुबली विधायक के विरूद्घ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उनका भाई अवश्य गिरफ्तार हुआ है, परन्तु यदि लोगों में कानून के राज में विश्वास कायम रखना है तो आरोपियों की गिरफ्तारी होनी चाहिये। निन्दनीय यह भी है कि जब पुलिस आलाकमान द्वारा गठित एसआईटी के लोग मौके पर पहुंचे तो बाहुबली विधायक के समर्थकों ने उनका घेराव किया। इस जघन्य अपराध से शर्मिन्दा होने के बजाये लोग कानून को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं। अगर यही हाल रहा तो जल्दी कोई बाहुबली जनप्रतिनिधियों के विरूद्घ रिपोर्ट लिखाने की हिम्मत नहीं करेगा।दूसरी घटना जम्मू के पास गुज्जर बकड़वाल जाति की एक आठ वर्षीय बच्ची के बलात्कार और हत्या का है। गुज्जर बकरवाल बहुत गरीब और पशुपालन के पेशे से लगे हुए लोग हैं, जो सर्दी के दिनों में पंजाब आ जाते हैं और गर्मी में जम्मू के उत्तरी क्षेत्रों में अपने जानवरों के साथ चले जाते हैं। पंजाब के दसूया, पठानकोट और कपूरथला आदि जगहों में इनके बच्चों के लिए हास्टल स्थापित किये। यह हमेशा भारतीय सेना का मदद करते रहते हैं और 1965 तथा 71 के दोनों युद्घों में इन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं दी थी। आमतौर से स्थानीय आबादी संरक्षण करती है।
इस बच्ची की बलात्कार और हत्या से जम्मू-कश्मीर में एक विरोध का वातावरण पैदा हो गया। स्थानीय पुलिस ने मेहनत से तफ्तीश की और चार्जशीट तैयार किया, परन्तु जब चार्जशीट अदालत में दाखिल करने का मौका आया तो कुछ स्थानीय वकीलों तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने चार्जशीट दाखिल करने का विरोध किया और पुलिस को अदालत में जाने से रोक दिया। यह देश की पहली इस तरह की घटना थी। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की संयुक्त सरकार है और इस मामले में दोनों दलों ने अलग-अलग बातें की। इससे राज्य का वातावरण विषाक्त हुआ। अफसोस की बात यह है कि केन्द्रीय नेतृत्व ने और मामले की तरह इस पर भी खामोश रहना बेहतर समझा, जबकि कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने सरकार को आड़े हाथों लिया। वकीलों को इंसाफ के काम में सहयोग करने के लिए लाइसेंस दिया जाता है, जहां वह नितांत अवैधानिक कार्य में लिप्त थे।
इन दोनों घटनाओं से स्पष्ट है कि हमारी बच्चियों को बलात्कारियों से मुनासिब संरक्षण नहीं मिल रहा है। यह बहुत चिन्ता का विषय है।
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