Wednesday, August 29, 2018

बेरोजगारी

रोजगार की नई राहें खोलें... 

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने देश की जनता से वादा किया था कि यदि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो वह प्रति वर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे। उनका यह वादा आज उनके गले की फांस बन गया है। सच्चाई तो यह है कि रोजगार के अवसर काफी सीमित हो गये हैं। नतीजतन बीए, एमए करने के बाद युवाओं के सामने रोजगार के सभी दरवाजे बंद दिखते हैं। तथाकथित रोजगारपरक शिक्षा भी खस्ताहाल है। हालत यह है कि तकनीकी संस्थानों में ज्यादातर सीटें खाली ही रह जा रही हैं। इसके भी पीछे वजह स्पष्ट है कि महंगी शिक्षा लेने के बावजूद रोजगार मिलने की कोई गारंटी नहीं होती है। प्रतियोगी परीक्षाओं में अभ्यर्थियों की इतनी बड़ी तादात होती है, जिसे देखकर 'ऊंट के मुंह में जीरा' जैसी कहावत चरितार्थ होती है। सरकारी नौकरियां इतनी संकुचित होती जा रही हैं कि वहां भी प्रवेश मिलना कठिन हो गया है। प्राइवेट सेक्टर में भी वर्तमान में रोजगार कम ही बन रहे हैं। उद्योग करना भी कठिन हो गया है, क्योंकि बाजार में पूंजी नहीं है। वापस गांव भी जाना असम्भव हो जाता है, क्योंकि कृषि में कठिन श्रम करने की आदत अब छूट चुकी है। ऐसे में पढ़े-लिखे युवा क्या करें?
   इस परिस्थिति का मूल कारण तकनीकी है। निर्माण क्षेत्र में अब तक कॉफी रोजगार बन रहे थे, लेकिन अब ज्यादातर काम मशीनों से लिये जाते हैं। इससे रोजगार की एंट्री निर्माण क्षेत्र में काफी सीमित हो गई हैं। ऐसी फैक्टरियां बनी हैं, जिसमें एक भी श्रमिक को रोजगार नहीं मिलता। कच्चे माल को मशीन में डालना, मशीन में उसका माल बनाना, उसे मशीन से निकालकर पैकिंग करना और स्टोर में डालना सब मशीनों द्वारा ही किया जा रहा है।
इन पंक्तियों का लेखक १९९२ में अमेरिका के श्रम मंत्रालय के आमंत्रण पर प्रोडक्टीविटी के अध्ययन के लिए वहां वाशिंगटन गया था, जहां डेढ़ माह तक इस विषय पर बहस होती रही। मुख्य मुद्दा यह था कि कैसे एक मजदूर से अधिक से अधिक उत्पादन लिया जाये। जब मैने एक सेमिनार में यह मुद्दा भी उठाया कि हमारे लिए मुख्य समस्या बढ़े हुए उत्पादन की जगह अधिक हाथों को काम देने की है तो अमेरिकी प्रतिभागियों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि उनके लिए यह मुद्दा ही नहीं था। यह दूसरी बात है कि उसी वर्ष के अन्त में अमेरिका में बेरोजगारों की संख्या बढ़ी और इसी कारण तत्कालीन राष्टï्रपति जार्ज बुश बेकार (चुनाव हार गये) हो गये।
 निर्माण, सेवा और कृषि, सभी जगह रोजगार की कमी हो रही है। हमारे आर्थिक विकास की इस स्थिति में फिर भी कुछ सेवाएं ऐसी हैं जो कंप्यूटर द्वारा नहीं की जा सकतीं जैसे माल की बिक्री करने के सेल्समैन, बीमारों की सेवा करने के लिए नर्स, बच्चों को शिक्षा देने के लिए टीचर, संगीत सिखाने के लिए संगीतज्ञ। इस प्रकार की सेवाएं जो कि मनुष्य द्वारा ही की जाती है, में आगे रोजगार बनने की असीम सम्भावनाएं है। आज केरल की नर्सें सम्पूर्ण पश्चिम एशिया में कार्य कर रही हैं। हमें चाहिए कि अपने युवाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की शिक्षक ट्रेनिंग दें, जिससे वे इस प्रकार के रोजगार हासिल कर सकें।
यह सही है कि वर्तमान युग में हम तकनीकी से मुंह नहीं मोड़ सकते, लेकिन हम उन संभावनाओं को तो टटोल ही सकते हैं, जहां तकनीक का उपयोग संभव नहीं हो सकता है। इसी तरह की विश्वस्तरीय शिक्षा व्यवस्था को भी हमारी सरकारों को प्रोत्साहित करना चाहिये, जिससे हमारे लोगों की दुनिया भर में मांग हो और रोजगार की समस्या के समाधान के साथ सुख और समृद्घि का द्वार भी खुल जाये।

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