जन संपर्क और प्रबंधन
कार्य निर्बाध गति से चलता रहे, इसके लिए किसी भी संस्थान के अंदर अलग विशेष विभागों की आवश्यकता होती है। विभिन्न विभागों की भूमिका और कार्यों के आधार पर उनके काम को लाइन या स्टाफ के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। अभियांत्रिकी, असेंबली, उत्पादन और विपणन लाइन कार्य के अंतर्गत आते हैं। वित्त, मानव संसाधन विकास, कंपनी सचिवालय और जन-संपर्क स्टाफ कार्यों में आते हैं। लाइन विभाग मूल व्यवसाय जैसे उत्पादन, असेम्बली, विकास और वितरण स्टाफ अधिकारियों की आवश्यकता और सहयोग, योजना, सलाह और सुझाव के लिए होती है। सेना के संदर्भ में स्टाफ अधिकारी विभिन्न संभावनाओं पर विचार करते हैं, और उनके आधार पर लाइन अधिकारी कार्यवाही करते हैं। सेना में लाइन और स्टाफ कार्य पूरी तरह अलग होते हैं जबकि कॉरपोरेट जगत के विशेषकर समस्या सुलझाने वाले क्षेत्रों में स्टाफ अधिकारी और लाइन प्रबंधन आपस में सलाह कर कोई निर्णय लेते हैं।प्रबंधन में जन-संपर्क का स्थान कहां है? यह बताने के लिए कोई मॉडल विशेष नहीं है। विभिन्न संगठनों का अपना अलग जन-संपर्क ढांचा होता है, जो उनकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। यह उन परिस्थितयों द्वारा तय होता है जिसमें संस्थान को जन-संपर्क ढांचा बनाना पड़ा। कुछ संस्थानों में जन-संपर्क विभाग संकट आने पर खड़ा किया जाता है। विभाग इसलिए चलता रहता है क्योंकि प्रबंधन को लगता है उसने अच्छा काम किया। दूसरे संस्थान में, जन-संपर्क विभाग एक सोची समझी नीति के तहत बनाया जाता है और उददेश्य स्पष्ट होता है। ऐसी स्थिति में, जन-संपर्क अधिकारी का प्रबंधन में स्थान कारपोरेट उददेश्यों और जन-संपर्क विभाग से उम्मीदों के आधार पर तय किया जाता है। प्रबंधन के विभिन्न अंगों के साथ जन-संपर्क विभाग के संबंधों में जाने से पहले उससे क्या आशा की जाती है समझा जाए।
संस्थान को समझना
जन-संपर्क किसी भी संस्थान की समझ को विकसित करने से शुरू होता है, जिससे उससे जुड़ी संवाद नीतियां बनाने और अन्य निर्णय लेने में मदद मिल सके। सही मायनों में जन-संपर्क अधिकारी को संस्थान पर बीट की तरह काम करना चाहिए, कुछ उसी तरह जैसे किसी समाचार पत्र में कार्यरत पत्रकार अपनी बीट पर काम करता है। जन-संपर्क को व्यवहार में लेने वालों से संवाद में कुशल होने की अपेक्षा की जाती है, बहरहाल वह विभिन्न तरह के विशिष्ट उद्योगों के लिए काम करते हैं जिनमें अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर थर्मल परियोजनाएं आदि सब आते हैं। कंपनी उपभोक्ता उत्पाद बनाने से लेकर ढांचागत विकास विकास किसी में लगी हो सकती है। इसलिए, उन्हें अपने संस्थान की विशेषता समझना बेहद आवश्यक है। इसके अलावा चूंकि कंपनी से सूचना को विभिन्न जनों तक पहुंचाना होता है जो हमेशा तकनीकी विवरण में रूचि नहीं रखते, जन-संपर्क पेशेवरों को न केवल तकनीकी शब्दावली को समझना बल्कि उसका आम आदमी को समझ आने योग्य भाषा में प्रस्तुत भी करना होता है, विशेषकर तब, जब जानकारी को मीडिया की सहायता से अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाना होता है।कारपोरेट दृष्टिकोण
जन-संपर्क विभाग को संस्थान की कॉरपोरेट दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता करनी चाहिए। नई सदी में सिर्फ वही संस्थान विकास और प्रगति करेंगे जिनका अपने प्रति दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट होगा। कॉरपोरेट क्या उत्पादन करते हैं इसके लिए बल्कि अपनी छवि के लिए अधिक जाने जाएंगे। इसलिए जन-संपर्क विभाग की संस्थान के भीतर प्रबंधन के नवीनतम विचारों से अवगत रहने के अलावा इस दिशा में भविष्य में आने वाली संभावनाओं के प्रति जागरूक रहना होगा। इसलिए हर कहीं से जानकारी आने देनी चाहिए और उसे आवश्यकतानुसार प्रबंधन के विभिन्न स्तरों तक पहुंचाना चाहिए। जन-संपर्क विभाग का काम संस्थान के लिए एंटीने के समान होता है। संस्थान के लिए आवश्यक जानकारी जुटाना और उसमें जिनका हिस्सा है उन तक आवश्यक जानकारी पहुंचाना। यह दोतरफा प्रक्रिया निरंतर जारी रहनी चाहिए।जनों को परिभाषित करना
संस्थान के विभिन्न जनों को समझना जन-संपर्क विभाग की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। प्रत्येक संबंधित समूह की अपनी संवाद आवश्यकताएं हो सकती हैं जिन्हे समझा जाना आवश्यक है। अध्याय छह, त्रिकोण-संदेश, माध्यम और श्रोता में इस विषय सहित उनकी एक दूसरे पर निर्भरता पर विस्तार से चर्चा की गई है।कारपोरेट पहचान बनाना
संस्थान की एक अलग पहचान बनाना और उसकी कारपोरेट छवि का निर्माण जन-संपर्क के दायरे में आता है। यह एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया है जिसे जल्दबाजी में दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। संस्थान की कारपोरेट छवि निर्माण के लिए कारपोरेट पहचान कार्यक्रमों में विशेषज्ञता रखने वाली विज्ञान कंपनियों की सहायता ली जा सकती है। कारपोरेट छवि में अन्य चीजों के अलावा लोगो, मास्टहेड, अक्षरों की स्टाइल, रंग, घोषित लक्ष्य आदि हैं। संस्थान सही छवि निर्माण के लिए भारी मात्रा में धन खर्च करते हैं क्योंकि उनके अनुसार पुरानी छवि या तो अनुपयोगी हो गई है अथवा कंपनी की विशिष्टता और दर्शन को सही तरह से अभिव्यक्त नहीं करती है।एक दशक पूर्व एयर इंडिया ने अपनी छवि बदलने के लिए कदम उठाए। लोगो हाथ में लिए व्यक्ति से बदलकर सूर्य हो गया और परिवर्तित रंग संयोजन अस्तित्व में आया। इस कारणवश पूरे बेड़े को नए रंग में रंगा गया। हालांकि कुछ ही समय बाद उन्हें अहसास हुआ कि परिवर्तित छवि को अपेक्षित सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है और वह पुराने पर लौट गए। उसके पीछे विभिन्न कारणों में से संस्थान के भीतर और बाहर जिस लंबे समय तक काम किया गया का गलत निर्णय, अनुसंधान की कमी हो सकता है। दूसरी तरफ ब्रिटैनिया, कंपनी जिसे लंबे समय तक बेकरी उद्योग की मान्यता मिली हुई थी, कुछ समय पूर्व अपनी कारपोरेट पहचान को बदलने में कामयाब रही। सिर्फ रंग संयोजन और घोषित लक्ष्य नहीं बदले बल्कि परिवर्तित छवि को लोगों के दिमाग में बैठाने के लिए व्यापक विज्ञापन अभियान का सहारा लिया गया। स्वस्थ खाओ, तन मन जगाओ ने कंपनी को नई पहचान दी। विशेषज्ञों की नजर में परिवर्तित छवि ने ब्रिटैनिया के उत्पादों को ‘युवा उत्पादों’ की श्रृंखला में ला खड़ा किया है।
संस्थान के भीतर समझ विकसित करना
प्रबंधन का ही अंग होने के बाद भी जन-संपर्क को प्रबंधन के विभिन्न स्तरों और कर्मियों के संदर्भ में तटस्थ और अलग रहना चाहिए। यह कार्य कठिन हो सकता है लेकिन असंभव नहीं। प्रत्येक संस्थान में संस्थागत संवाद होता है। जन-संपर्क संवाद उसके प्रतियोगी नहीं बल्कि सहायक की भूमिका में होना चाहिए। जन-संपर्क को व्यवहार में लाने वाले पेशेवर लोग विभिन्न प्रबंधन क्षेत्रों के मध्य तालमेल बैठाने के लिए विभिन्न उपायों का सहारा लेते हैं। अध्याय सात में जन-संपर्क के लिए उपलब्ध विभिन्न माध्यमों की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है।मीडिया संबंध
आमतौर पर मीडिया संबंध बनाने में जन संपर्क का बड़ा समय जाता है। मीडिया संस्थान और उसके विभिन्न जनों के मध्य कड़ी का काम करता है। मीडिया समाज को भी प्रभावित करता है। इसीलिए मीडिया, उसकी आवश्यकताओं, आशंकाओं को समझने के साथ उसका सामना पेशेवर तरीके से किस तरह किया जाना चाहिए समझना जरूरी है।इस सबसे यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जन-संपर्क किसी खाली जगह में नहीं हो सकता। कारपोरेट लक्ष्यों को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि जन-संपर्क संस्थान के भीतर विभिन्न प्रबंधन स्तरों के साथ मिलकर काम करे। आगे हम जन-संपर्क और विभिन्न प्रबंधन स्तरों के साथ उसके तालमेल पर चर्चा करेगें।
जन-संपर्क और अन्य प्रबंधन स्तर
संवाद करने वाले की भूमिका को दुर्भाग्यवश अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। अधिकतर समय ज्यादातर विभाग चाहते हैं कि किसी भी सूचना का उपयोग करने से पहले जन-संपर्क उन्हें सूचित करे और उनकी अनुमति ले।हालांकि ऊपर बताए गए कार्यों के संदर्भ में जन-संपर्क प्रबंधक सिर्फ शीर्ष प्रबंधन को सूचित करना उचित समझते हैं। इस वजह से कई बार जन-संपर्क और प्रबंधन के मध्य तनाव भी उत्पन्न होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, चूंकि प्रत्येक कार्य को कुशलतापूर्वक संपादित करने के लिए जन-संपर्क को अन्य विभागों के सहयोग की आवश्यकता होती है। इस पृष्ठभूमि में, प्रमुख लाइन और स्टाफ विभागों और जन-संपर्क के बीच संबंधों को देखना होगा।
विपणन
विपणन का संबंध उत्पाद और लोगो से है। उपभोक्ता के पास जाने पर विपणन में लगे लोगों को लगता है वह जन-संपर्क के भी काम में लगे हैं। विवाद विज्ञापन और प्रचार के क्षेत्र में उभरता है, विशेषकर उत्पादन विज्ञापन और संस्थागत विज्ञापन के मामले में। गैर लाभ के संस्थानों में विवाद संसाधनों के वितरण, फंड जुटाने और विभिन्न जनों तक शैक्षिक संदेशों को पहुंचाने को लेकर होता है।विज्ञापन जगत से एक उदाहरण लेते हैं। किसी भी कारपोरेट क्षेत्र की कंपनी को अपनी साख बढ़ाने के लिए विज्ञापन अभियान हेतु किसी न किसी विज्ञापन एजेंसी की सहायता लेनी होगी।
यहां मुख्य ध्येय उत्पाद नहीं बल्कि कंपनी की छवि बनाना है इसलिए यह जन-संपर्क के दायरे में आयेगा। उसके विपरीत, उत्पाद की बिक्री या उपयोग बढ़ाने के लिए प्रयार अभियान, विपणन कार्य का अंग है, बहरहाल जन-संपर्क से जुड़े लोगों के इस क्षेत्र में प्रशिक्षित होने और प्रचार सामग्री लिखने और उसे उचित स्थान दिलवाने का कौशल रखने के कारण, यह काम भी जन-संपर्क के दायरे में आ जाता है। संवाद में किसी तरह का समन्वय न होने पर उनका अलग दिशा में जाना निश्चित है। इससे कई बार उपभोक्ता जिसे लक्ष्य बनाया जा रहा है, तक गलत संदेश जाता है। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है, ऐसी कंपनी की कल्पना कीजिए जिसने हाल ही में अपना उत्पाद बाजार में उतारा है और उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए व्यापक विज्ञापन अभियान चलाया हुआ है। दूसरी ओर जन-संपर्क विभाग एक ऐसी दुर्घटना के बारे में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर रहा है जो प्लांट में हुई होगी और समाचार पत्र में छप जाती है जिसमें उत्पादन का विज्ञापन भी है। उत्पाद का विज्ञापन जिसमें मुस्कराते हुए चेहरे होंगे कुछ समय के लिए रोका जा सकता था। दोनों ही संवाद पाठकों को एक-दूसरे से द्वंद्व करते नजर आयेगी। दोनों के बीच समन्वय स्थापित करना होगा क्योंकि बृहद अर्थ में विज्ञापन और जन-संपर्क दोनों का ही उददेश्य संस्थान और उसके उत्पादों की बाजार में स्वीकार्यता सुनिश्चित करना है।
कानून
संकट के समय विशेषकर मानहानि के मामलों में शीर्ष प्रबंधन कानूनी सहायता लेता है। ऐसे समय में वह आमतौर पर मीडिया से बात करने से इंकार कर देता है क्योंकि संभव है उनके कानूनी सलाहकारों ने उनसे ऐसा करने से मना किया हुआ हो।जन-संपर्क के संस्थापकों में से एक माने जाने वाले आईवी ली की इस पर बेहद कड़ी प्रतिक्रिया है। उनकी टिप्पणी है, ‘मैंने ऐसी बहुत सी स्थितियां देखी है जहां जनता समझती थी और वह सहानुभूति रखती, मगर उससे पहले वकीलों के हस्तक्षेप ने सारे पर पानी फेर दिया। कोई वकील जनता से बात शुरू करने से पहले बत्तियां बुझा देता है।’
परिस्थितियां जटिल होती जाने पर जन-संपर्क और कानून के बीच निकट का सहयोग आवश्यक है। सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और पुनर्वास जैसे कुछ विषय हमेशा कारपोरेट प्रबंधकों के मस्तिष्क पर हावी रहते हैं। कर्मचारियों, विशेष समूहों और लॉबियों के बीच बढ़ती उम्मीदों और जागरूकता के चलते, जन-संपर्क को मीडिया हस्तक्षेप के जरिए उनकी शंकाओं का निवारण करना पड़ सकता है। प्रिंट और संवाद के अन्य माध्यमों का उपयोग करते समय, यह बेहद आवश्यक है कि कानूनी पहलुओं का ध्यान रखते समय, संवाद से मानवीय पहलू नजरअंदाज न हो जाए।
कार्मिक, मानव संसाधन, औद्योगिक संबंध
जन-संपर्क और मानव संसाधन दोनों का सामना कर्मचारियों से होता है इसलिए उनके बीच तनाव की आशंका भी अधिक होती है। कर्मचारियों को कुछ नीतियों और प्रक्रियाओं का पालन करना होता है और वह कुछ कार्मिक नियमों से बंधे होते हैं। समय पर पहुंचना, दिए गए कार्य को करना और वेतन लेना- क्या कर्मचारी और प्रबंधन एक दूसरे से सिर्फ यही अपेक्षा करते हैं? समय के साथ प्रबंधन और कर्मचारियों की भूमिका और आशएं पुनर्परिभाषित हुई है। प्रबंधन इस बात के प्रति जागरूक हो चला है कि प्रेरित कर्मचारी संपत्ति की तरह है। कर्मचारी साख का प्रतिनिधि है। अगर संस्थान के भीतर संबंध रूकावट वाले हैं, उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यह बात कर्मचारियों तक कौन ले जाएगा? जवाब है, कार्मिक और जन-संपर्क दोनों का कार्यक्षेत्र पहले से स्पष्ट होता है। नीतियों, प्रक्रियाएं, कल्याण, गतिविधियों और ट्रेड यूनियन वार्तालाप जन-संपर्क का काम है। यथार्थ में, अगर निकट सहयोग हो तो दोनों ही कार्य इस तरह से किए जा सकते हैं जिनसे बेहतर समझ और उत्साह बढ़े।वित्त
अधिकतर संस्थानों के सार्वजनिक होते चले जाने से अंशधारियों की भी संख्या उसी अनुपात में बढ़ रही है। अंशधारियों के अलावा, वित्तीय समुदाय, स्टाक एक्सचेंज और फाइनेंसियल प्रेस जन-संपर्क विभाग के लिए महत्वपूर्ण ‘जनों’ की श्रेणी में आते हैं। इन सभी जनों की आवश्यकताएं विशिष्ट होती हैं, इसीलिए उनके लिए बनाए जाने वाले संवाद पैकेजों में वित्त विभाग की विशेषज्ञता और जन-संपर्क विभाग की भाषा और प्रस्तुतीकरण कौशल का समावेश होना चाहिए।वित्त विभाग को भी जन-संपर्क विभाग की गतिविधियों के मूल्यों और उददेश्यों के बारे में बताया जाना चाहिए। अधिकतर वित्त विशेषज्ञ अभी भी जन-संपर्क, विज्ञापन और प्रचार पर होने वाले व्यय को इस रूप में देखते हैं, जिससे बचा जा सकता है। जब भी कोई वित्तीय संकट आता है अधिकतर मामलों में शिकार जन-संपर्क और विज्ञापन विभाग बनते हैं। वित्त अधिकारी बजट घटाने के लिए प्रशिक्षित होते हैं।
यहां एक उदाहरण दिया जा रहा है, एक जन-संपर्क प्रबंधक ने किसी वर्ष के लिए वार्षिक जन-संपर्क बजट बनाते समय, विभिन्न मीडिया मदों का उल्लेख किया जिनके लिए फंड की आवश्यकता थी। वैयक्तिक आकलन प्रबंधन के क्षेत्र के विशद अनुभव पर आधारित था। कॉरपोरेट फिल्म 12-15 मिनट के वृतचित्र के लिए उसने 2,25000 रूपए की मांग की। जब उसे स्वीकृत बजट की प्रति मिली तो उसमें अन्य मदों में कमी के अलावा कॉरपोरेट फिल्म के लिए 1,91,275 रूपए का प्रावधान किया गया। वह चकित थी, वित्त विभाग जिसमें संभवत: कोई भी फिल्म माध्यम से परिचित नहीं था, उस राशि तक पहुंचा कैसे। काफी खोजबीन के बाद उसे पता चला जन-संपर्क के प्रस्ताव में दिए कुछ मीडिया मदों में 15 प्रतिशत की कटौती की गई है। इस घटना ने उसे थोड़ा और बुद्धिमान बना दिया। आगे से वह विभिन्न मदों में होने वाले खर्च की गणना के बाद उसे थोड़ा सा बढ़ा देती, इस उम्मीद में कि वित्त विभाग से वापस आते-जाते उसमें थोड़ी कटौती स्वाभाविक है। अगली बार उसके पास कहीं अधिक फंड थे, हालांकि विभाग ने विभिन्न मदों में प्रस्तावित खर्च जिसमें उसने 20 प्रतिशत की वृद्धि की थी आवश्यक कटौती की हुई थी बिना उसकी रणनीति जाने हुए।
उत्पादन
जन-संपर्क को उत्पादन और संस्थान के बारे में बोलना होता है। कर्मचारियों के इन हाउस जर्नल में स्टोरी लिखने और अन्य माध्यमों द्वारा संवाद के लिए जन-संपर्क से जड़े व्यक्ति के लिए कारखाने और दुकान में जाकर यह देखना आवश्यक है कि उत्पादन को किस तरह प्रसंस्कृत, एसेंबल और उत्पादन किया जा रहा है। उसे पूरी प्रक्रिया में मानव प्रयासों, नाटकीयता, खतरों, प्रसन्नता, लगभग सभी कुछ देखना चाहिए। जन-संपर्क के लिए कच्चा माल असल जीवन में होने वाली घटनाएं हैं। जन-संपर्क से जुड़े व्यकित को हमेशा यह देखना चाहिए जनता की दृष्टिकोण से रोचक समाचार क्या होगा और रोजमर्रा की घटनाओं को मानवीय कोण कैसे दें। उसे विपरीत परिस्थितियों से जूझकर बाहर निकलने की मानवीय-इच्छाशक्ति की घटनाओं को सामने लाना चाहिए। जन-संपर्क व्यकित को किसी अन्य को प्रेरित और प्रभावित करने के लिए पहले स्वयं प्रेरित होना चाहिए। उसे अपने संस्थागत के गुणों के बारे में जानने के अलावा प्रतिद्वंदियों के उत्पाद और गतिविधियों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए। इससे माहौल को समझने और विभिन्न विषयों के प्रति दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता मिलती है।बेहतर यह होता है कि संस्थान में विभिन्न स्टॉफ और लाइन कार्यों के विभाग प्रमुखों की एक जन-संपर्क कमेटी हो, जिसका सदस्य जन-संपर्क विभाग का कोई व्यक्ति हो। कमेटी की साप्ताहिक या पाक्षिक बैठक होनी चाहिए जिसमें उन क्षेत्रों की चर्चा की जा सके जिनमें जन-संपर्क का उपयोग किया जाना चाहिए। जन-संपर्क प्रबंधक प्रस्ताव लाने, प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा करने और विभिन्न जनों पर केन्द्रित कार्यक्रम तैयार करने का काम कर सकता है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी को भी कम से कम एक बार बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए जिससे चर्चा को अपेक्षाकृत गंभीरता मिल सके।
वार्षिक कार्यक्रमों को वृहद और सूक्ष्म दोनों ही स्तरों पर निदेशक मंडल के सामने लिखित प्रस्ताव व स्लाइडों, चार्टों और पायलट फिल्म (यदि संभव हो) के जरिए पेश किया जाना चाहिए, जिससे शीर्ष प्रबंधन को न केवल मुख्य विषयों के बारे में जानकारी मिले बल्कि संस्थान को निश्चित कॉरपोरेट पहचान देने के लिए जन-संपर्क द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना कर सके।
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