Tuesday, October 30, 2018

गैस चैम्बर बनती राष्ट्रीय राजधानी

 देश की राजधानी दिल्ली के लोग आजकल जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। ठंड शुरू होने से पहले ही दिल्ली- एनसीआर की हवा देश भर में सबसे ज्यादा खराब हो गई है। दिल्ली के अलावा गुजरात में अहमदाबाद ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां हवा की गुणवत्ता बेहद खराब स्थिति तक पहुंची है। यह कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली गैस चेम्बर का रूप अख्तियार कर चुकी है और इसमें राजनीतिक दलों को बयानबाजी और सियासत करने का एक सुनहरा मौका दिख रहा है। राजनीतिक दल इसकी जिम्मेदारी के लिए एक-दूसरे पर लानत-मलामत करने में जुट गये हैं। यह भी बहुत आश्चर्य की बात है कि राजनीतिक दल और सरकारें अपने फायदे के लिए असल मुद्दों की तरफ ध्यान ही नहीं देना चाहती हैं। सारा दोष अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों पर मढ़ दिया जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि किसानों की पराली का टाईम मात्र 10 से 15 दिनों का ही रहता है। इसे वे अगर नहीं जलाये तो उन्हें अगली फसल लेने में दिक्कत होगी। किसानों के इस समस्या के बारे में पंजाब को छोड़कर किसी सरकार ने सोचने की जहमत नहीं उठाई। केवल पंजाब सरकार ने पुवाल प्रबंधन मशीनों के माध्यम से कम्पोस्ट की खाद बनाने का कार्यक्रम शुरू किया है। अन्य राज्य इस बारे में कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
ऐसा लगता है कि सरकार के पास वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कोई उपाय नहीं है। जो उपाय है, वह कोई कारगर या स्थायी नहीं कहा जा सकता। इसमें दिल्ली सरकार का ऑड-इवन फार्मूला भी है, जिससे आम लोगों की रोजमर्रा वाली जिन्दगी में खलल तो पड़ती ही है, प्रदूषण से निपटने के हालात में कोई खास फायदा नहीं होता।
हालत यह है कि हमारे यहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सांस संबंधी बीमारियों से मरने वालों की संख्या एक लाख पर 84 है, जबकि पड़ोसी देश चीन में यह संख्या मात्र 14 है। जबकि चीन की जनसंख्या हमारे देश कहीं अधिक है और वह भी हमारे देश से कहीं ज्यादा औद्योगीकरण की राह पर है। फिर भी उसने अपने यहां वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में से सफलता प्राप्त की है। यदि हमारी सरकारें भी दृढ़ इच्छाशक्ति रखें तो यहां भी प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण का 300 प्वाइंट या इससे अधिक सूचनांक हमारे जीवन के लिए बहुत खतरनाक होता है, जबकि पूरे दिल्ली में यह आंकड़ा 300 से ऊपर ही है। कहीं-कहीं तो यह सूचनांक 400 से 500 प्वाइंट तक पहुंच गया है, जो कि न सिर्फ हमारे लिए शर्म की बात है, बल्कि चिन्तित भी करता है।
ऐसा नहीं है कि जहरीली होती गैस से निपटने का कोई समाधान मौजूद नहीं है। यदि सरकार इसे गंभीरता से ले तो वायु प्रदूषण से काफी हद तक निजात मिल सकती है, परन्तु सरकार ने कभी इस तरफ ध्यान देने की जहमत ही नहीं उठायी। दरअसल जहरीली गैसों की मुख्य जड़ डीजल और पेट्रोल वाहनों से निकलने वाले धुंवे है। इससे निजात मिल सकता है यदि दिल्ली की सड़कों पर सीएनजी या बिजली की कारें चले। यह मुश्किल कार्य भी नहीं है। यदि सरकार डीजल-पेट्रोल की तरह सीएनजी का इंपोर्ट करे। अभी हालात इसलिए नहीं सुधर रहे हैं, क्योंकि देश में सीएनजी के वितरण का कांट्रैक्ट रिलायंस कंपनी के पास है, परन्तु कीमतों के कम होने कीवजह से रिलायंस प्राकृतिक गैस का वितरण शुरू ही नहीं कर रहा है। ईरान समेत कई देश सीएनजी बेचते है। एक जमाने में ईरान-भारत सीएनजी पाइपलाइन शुरू करने का प्रस्ताव भी था, परन्तु अमेरिकी दबाव में हमने इसे रद कर दिया। अच्छा तो यह होगा कि केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि देश भर के सभी शहरों में सीएनजी पंप लगाये जाये। साथ ही उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों का संचालन बन्द किया जाना चाहिये। शहरों में इलेक्ट्रिक वाली बैटरी की गाडिय़ों को चलाया जाने का निर्देश दिया जाना चाहिये, क्योंकि ऐसे वाहन एक बार चार्ज होने पर 180 किलोमीटर चल सकते हैं, जो शहरी दिनचर्या के लिए अनुकूल है। यदि ऐसा हो जाये तो डीजल और पेट्रोल वाले वाहन काफी कम हो जाएंगे तथा प्रदूषण का सूचकांक भी सामान्य हो जायेगा। परंतु दुर्भाग्य से हमारा औद्योगिक जगत इसके लिए तैयार नहीं हो रहा है और उसके दबाव में सीएनजी व इलेक्ट्रिक गाडिय़ों को आगे बढ़ाने में सरकार द्वारा कोताही बरती जा रही है। यह भविष्य के लिए दुखद है। 

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