Thursday, November 1, 2018

राष्ट्रीय शिक्षा में बढ़ता अवैज्ञानिक दृष्टिकोण

 संसार के शिक्षण संस्थानों विशेषकर व्यवसायिक शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती। प्रथम श्रेणी के 250 शिक्षण संस्थाओं में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय शामिल नहीं हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि हमारे शिक्षण संस्थाओं में जान बूझकर अंधविश्वास और अवैज्ञानिक चीजें जोड़ी जा रही हैं। अभी हाल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षण संस्थाओं को आदेश दिया है कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में इतिहास पूर्व के भारतीय चिंतकों की उपलब्धियां पढ़ाई जायें। इस संबंध में विज्ञान सार के नाम से एक नया विषय जोड़ा गया है, जिसमें विद्यार्थियों के लिए पास होना आवश्यक है और जिसके अंक उनके अंकतालिका में जोड़े जाएंगे। यद्यपि अभी तक इस संबंध में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिली है, फिर भी जो थोड़ा-बहुत पढऩे को मिला है, उससे लगता है कि कवियों की कल्पना की उड़ान को वैज्ञानिक उपलब्धि मान लिया गया है। उदाहरण के तौर पर कहा गया है कि महर्षि भारद्वाज ने आज से 5000 वर्ष पहले यंत्र सर्वस्व नामक एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें वायुयानों का विज्ञान था। महर्षि भारद्वाज की यह पुस्तक कहीं मिलती नहीं है, परन्तु यह विश्वास करना कि राइट बंधुओं द्वारा हवाई जहाज उड़ाने के 5000 साल पहले भारत में वायुयान बनते थे, मुश्किल है।
गांधारी 100 बच्चों को जन्म नहीं दे सकती थी, अत: महाभारत में कहा गया कि दो साल गर्भवती रहने के बाद उन्होंने जिसे जन्म दिया, उसे 100 टुकड़ों में बांटकर घी के घड़ों में दो वर्षों तक रखा गया, जिनसे 100 पुत्र पैदा हुए। यह विचार बच्चों में फैलाना किसी तरह लाभप्रद नहीं है।
सन् 2014 में गुजरात सरकार ने देश के विश्वविद्यालयों के 100 कुलपतियों को अहमदाबाद में उच्च शिक्षा पर बात करने के लिए बुलाया था।  उच्च शिक्षा की संभावनाओं की समस्याओं पर कई दिन माथापच्ची करने के बाद कुलपतियों में से चार लोग चुने गए, जिन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उच्च शिक्षा के अधिकारियों के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करने थे।  एक प्रस्तोता मध्यप्रदेश के एक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ0 वाजपेयी थे। जिन्होंने अपनी बात की शुरूआत ही इससे की कि प्राचीन भारत में सभी विज्ञान विकसित थे और राकेट आदि भी बनाने में हम सक्षम थे, इस पर मोदी जी ने उनकी बात काटते हुए कहा 'विज्ञान बहुत आगे बढ़ चुका है और हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि जहां कहीं से भी कोई ज्ञान मिले, उसे ग्रहण करना चाहिये।Óइस घटना से दो बाते पता चलती हैं,  एक तो यह कि मोदी जी की सोच वैज्ञानिक है और दूसरी यह कि चुनौतीपूर्ण चुनाव के माहौल में उन्होंने उच्च शिक्षा पर बात करने के लिए समय निकाला। परन्तु अक्टूबर 2016 में प्रधानमंत्री की हैसियत से श्री मोदी ने एक मेडिकल कालेज में संबोधन में कहा कि प्राचीन समय में हमारे यहां प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान था और लार्ड गनेशा की गर्दन पर हाथी के बच्चे का सर लगा दिया जाना इसका प्रमाण है। उन्होंले राकेट आदि के बारे में भी ऐसे प्रमाण दिये। इससे लगा कि मार्च 2014 में अहमदाबाद में मोदी जी ने जो कहा था कि यह उसके विपरीत है। राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे अंधविश्वासों को संरक्षण देना मुनासिब नहीं है।
वैज्ञानिक चिंतन देश की आर्थिक और सामाजिक तरक्की के लिए जरूरी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा उठाये गये कदम देश को उल्टी तरफ ले जा रहे है। इस पर समय रहते एक बड़ी बहस की जरूरत है। 

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