पुलिस और पीएसी द्वारा नागरिकों के उत्पीडऩ और नृशंस हिरासती हत्या नई बात नहीं है, परंतु 22 मई 1987 की हाशिमपुरा मेरठ की घटना ने एक नया अध्याय जोड़ा। 1987 में पुलिस ने मेरठ के हाशिमपुरा मोहल्ले में तलाशी ली के दौरान 15 से 50 साल तक की उम्र के 48 मुसलमानों को जमा कर ट्रकों में भरा और उन्हें गंगा नहर तथा हिन्डन नदी पर ले जाकर गोली मार दी और लाशें नहर में फेंक दी। तीन लोग जिन्हें गोलियां लगी थी, किसी तरह बच गये थे और इसमें 42 मुसलमान मारे गये थे। इन लोगों का कोई कसूर नहीं था और यह एक समुदाय के लोगों को चुनकर हत्या का मामला था। चूंकि हत्याएं गाजियाबाद जिले में की गई थी, अत: तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विभूति नारायण राय ने मुकदमा दर्ज कराया। विभूति नरायण राय का यह मजबूत कदम इंसाफ की तरफ था। मुकदमें की जांच उत्तर प्रदेश की सीआईडी ने बहुत जमाने तक की और पीएसी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरूद्घ मुकदमा चलाने की सिफारिश भी की, परन्तु आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बीच कई पार्टियों की सरकारें आयी, परन्तु किसी दल ने कार्रवाई नहीं की। क्राइम ब्रांच द्वारा बनाया गया आरोप पत्र वर्षों सरकारी आदेश की प्रतीक्षा करता रहा और बहुत बाद में इन अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने का आदेश प्राप्त हुआ। गाजियाबाद कोर्ट में यह मुकदमा 15 साल तक बिना किसी उल्लेखनीय प्रगति के चलता रहा था और ऐसा लगता था कि यहां राज्य पुलिस के दबाव के कारण इंसाफ नहीं मिल सकेगा। अत: कुछ मानवाधिकार संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर कराने की प्रार्थना की और सुप्रीम कोर्ट ने सन 2002 में इसकी सुनवाई दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया, जहां 13 वर्षों तक मुकदमा चलता रहा। वहां भी इंसाफ नहीं मिला। तीस हजारी कोर्ट में जज ने आरोपियों को संदेह का फायदा देते हुए बरी कर दिया।
मृतकों के परिवारों तथा नासिर जुल्फिकार नामक व्यक्ति जो पीएसी की फायरिंग में मरने से बच गया था, ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस फैसले के विरूद्घ अपील की। तीस हजारी कोर्ट में प्रदेश की पुलिस ने पुलिस जनरल डायरी की वह इंट्री छिपा ली थी, जिसमें आरोपियों का स्पष्टï नाम लिखे थे कि यह लोग मृतकों को ट्रक में ले गये थे। इससे स्पष्टï है कि आखिरी वक्त तक सरकारी अधिवक्ता आरोपियों की मदद कर रहे थे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में तीस हजारी कोर्ट द्वारा बरी किये गये सभी आरोपियों को उम्र कैद की सजा दी है और यह भी कहा है कि अपनी बची-खुची उम्र जेल में ही गुजारेंगे। हाईकोर्ट ने सरकारों पर इस बात की ताकीद भी की है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए ठोस कदम उठाये, यद्यपि कुछ वर्षों से कस्टोडियल डेथ की घटनाएं बढ़ रही हैं।
मृतकों के परिवारों तथा नासिर जुल्फिकार नामक व्यक्ति जो पीएसी की फायरिंग में मरने से बच गया था, ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस फैसले के विरूद्घ अपील की। तीस हजारी कोर्ट में प्रदेश की पुलिस ने पुलिस जनरल डायरी की वह इंट्री छिपा ली थी, जिसमें आरोपियों का स्पष्टï नाम लिखे थे कि यह लोग मृतकों को ट्रक में ले गये थे। इससे स्पष्टï है कि आखिरी वक्त तक सरकारी अधिवक्ता आरोपियों की मदद कर रहे थे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में तीस हजारी कोर्ट द्वारा बरी किये गये सभी आरोपियों को उम्र कैद की सजा दी है और यह भी कहा है कि अपनी बची-खुची उम्र जेल में ही गुजारेंगे। हाईकोर्ट ने सरकारों पर इस बात की ताकीद भी की है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए ठोस कदम उठाये, यद्यपि कुछ वर्षों से कस्टोडियल डेथ की घटनाएं बढ़ रही हैं।
No comments:
Post a Comment
Please share your views