कल से ईरान पुन: अमेरिकी प्रतिबंधों की जद में आ जायेगा। इसके लिए अमेरिकी राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्प करीब छ: माह पहले से ही ईरान को चेतावनी दे रहे थे, परन्तु ईरान पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इससे राष्टï्रपति ट्रम्प ने मजबूरन अपने कहे अनुसार ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का लागू कर देगा।
ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्टï्रपति ट्रम्प का अंतर्राष्टï्रीय और घरेलू दोनों स्तरों पर हर दांव फेल हो रहा है। उन्होंने लम्बे समय तक शत्रुता के बाद उत्तर कोरिया के साथ भी समझौते का प्रयास किया था, बात बन भी रही थी, परन्तु आर्थिक पाबंदियां नहीं हटने के कारण उत्तर कोरिया ने कल धमकी दी कि यदि उस पर समझौते के अनुरूप पाबंदियों को नहीं हटाया गया तो वह पुन: परमाणु परीक्षण शुरू कर देगा। उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच दोस्ती से जापान भी घिरता नजर आ रहा है।
रही बात ईरान की तो वह 1979 से ही अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहा है। 1979 से पहले से अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति और 1990 के बाद अमेरिका अकेला सुपर पॉवर था। तभी से ईरान ने उसके द्वारा लगाये प्रतिबंधों को आसानी से झेला। इसका एक प्रभाव यह हुआ कि ईरानी अपने पैरों पर खड़े हो गये और हर तरह के उद्योग धंधे अपने यहां स्थापित कर लिया। परिणाम यह हुआ है कि उसकी औद्योगिक क्रांति रोकने के लिए अमेरिका और यूरोप को उसके साथ परमाणु संधि करनी पड़ी। अब दौर बदल चुका है। स्थितियां अमेरिका के लिए पहले जैसी नहीं रही। इस समय वह न तो अकेला सुपर पॉवर है और न ही सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति। अब चीन, रूस और यूरोपीय संघ भी उसके मुकाबले में खड़े हैं। ईरान जो एक बड़ी पुरानी सभ्यता का वारिस है, वह भी गर्व से अपना सिर उठाये खड़ा है, और गल्फ की राजशाहियों की तरह अमेरिका के सामने नतमस्तक नहीं है, जबकि गल्फ से अब ट्रम्प के रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। अमेरिका का सबसे भरोसेमंद मित्र सऊदी अरब से अमेरिका का तनाव जगजाहिर हो चुका है और ट्रम्प ने एक सप्ताह में सरकार गिराने तक की धमकी दे चुके हैं।
इन कॉलमों में हमने पहले भी लिखा था कि अमेरिकी पाबंदियों का नुकसान अमेरिका और उसके दोस्तों को ही अधिक होगा। ट्रम्प को यह एहसास बाद में हुआ कि अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में ईरान के आने से उसके मित्र देश जापान, दक्षिण कोरिया, भारत आदि आठ देश ज्यादा नुकसान उठाएंगे। अत: उन्होंने इन देशों को ईरान से तेल खरीदने की इजाजत दे दी। ईरान पर तेल बेचने की पाबंदी के परिणाम से बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में जबर्दस्त उछाल था, जिससे सभी लोग परेशान थे। अब कम से कम कुछ समय के लिए यह स्थिति बदल जायेगी।
एक नयी बात सिरदर्दी बन गई कि ईरान के कुछ व्यापारिक मित्र देशों ने अपनी स्थानीय मुद्राओं में आपसी व्यापार शुरू करने का निश्चय किया है। इससे अमेरिकी डालर की अंतर्राष्टï्रीय स्थिति कमजोर हो जायेगी। दरअसल पहले ट्रम्प ने सोचा था कि केवल धमकी से काम चल जायेगा, परन्तु बाद में उन्हें एहसास हुआ होगा कि ऐसा संभव नहीं है। शायद इसी कारण कल उन्होंने ईरान से प्रतिबंधों के सापेक्ष दोस्ती का भी प्रस्ताव दिया है। उनका कहना है कि यदि ईरान परमाणु हथियारों के निर्माण का कार्य बन्द कर दे तो वह उसके साथ नया और अधिक व्यापक समझौता करने को तैयार हैं। यह महज एक बहाना है क्योंकि सभी जांच एजेंसियों ने बताया है कि ईरान ने परमाणु समझौते का पूरी तरह से पालन किया है।
अमेरिका का रूस और चीन से भी रिश्ते इन दिनों बदतर हुए हैं। दुनिया में ही नहीं बल्कि ट्रम्प की देश में भी उनकी स्थिति खराब हो रही है। अमेरिकी मध्यावधि चुनाव में सर्वेक्षण से पता चलता है कि उनकी रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हार रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो संसद में ट्रम्प का बहुमत समाप्त हो जायेगा और फिर उन्हें अपनी नीतियों को लागू करने में और मुश्किलें आएंगी। इस समय ट्रम्प इससे उलझे हुए है। इसी बीच दक्षिण अमेरिका से पांच हजार से अधिक लोगों का एक कारवां अमेरिकी सीमा की ओर बढ़ रहा है। पहले ट्रम्प ने यह घोषणा कर रखी थी कि इन प्रदर्शनकारियों के सीमा के अन्दर आने पर फायरिंग करेंगे, परन्तु अब उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया है।
यदि नीतियां भावनात्मक तौर पर बनायी जाएंगी तो उनका यही हश्र होगा। इन स्थितियों को देखते हुए स्पष्टï कहा जा सकता है कि अमेरिकी राष्टï्रपति ट्रम्प को अन्तर्राष्टï्रीय कानून के अन्दर रहकर अन्तर्राष्टï्रीय मानवाधिकारों को देखते हुए निर्णय लेने चाहिये।
ऐसा लगता है कि अमेरिकी राष्टï्रपति ट्रम्प का अंतर्राष्टï्रीय और घरेलू दोनों स्तरों पर हर दांव फेल हो रहा है। उन्होंने लम्बे समय तक शत्रुता के बाद उत्तर कोरिया के साथ भी समझौते का प्रयास किया था, बात बन भी रही थी, परन्तु आर्थिक पाबंदियां नहीं हटने के कारण उत्तर कोरिया ने कल धमकी दी कि यदि उस पर समझौते के अनुरूप पाबंदियों को नहीं हटाया गया तो वह पुन: परमाणु परीक्षण शुरू कर देगा। उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच दोस्ती से जापान भी घिरता नजर आ रहा है।
रही बात ईरान की तो वह 1979 से ही अमेरिकी प्रतिबंध झेल रहा है। 1979 से पहले से अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति और 1990 के बाद अमेरिका अकेला सुपर पॉवर था। तभी से ईरान ने उसके द्वारा लगाये प्रतिबंधों को आसानी से झेला। इसका एक प्रभाव यह हुआ कि ईरानी अपने पैरों पर खड़े हो गये और हर तरह के उद्योग धंधे अपने यहां स्थापित कर लिया। परिणाम यह हुआ है कि उसकी औद्योगिक क्रांति रोकने के लिए अमेरिका और यूरोप को उसके साथ परमाणु संधि करनी पड़ी। अब दौर बदल चुका है। स्थितियां अमेरिका के लिए पहले जैसी नहीं रही। इस समय वह न तो अकेला सुपर पॉवर है और न ही सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति। अब चीन, रूस और यूरोपीय संघ भी उसके मुकाबले में खड़े हैं। ईरान जो एक बड़ी पुरानी सभ्यता का वारिस है, वह भी गर्व से अपना सिर उठाये खड़ा है, और गल्फ की राजशाहियों की तरह अमेरिका के सामने नतमस्तक नहीं है, जबकि गल्फ से अब ट्रम्प के रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। अमेरिका का सबसे भरोसेमंद मित्र सऊदी अरब से अमेरिका का तनाव जगजाहिर हो चुका है और ट्रम्प ने एक सप्ताह में सरकार गिराने तक की धमकी दे चुके हैं।
इन कॉलमों में हमने पहले भी लिखा था कि अमेरिकी पाबंदियों का नुकसान अमेरिका और उसके दोस्तों को ही अधिक होगा। ट्रम्प को यह एहसास बाद में हुआ कि अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में ईरान के आने से उसके मित्र देश जापान, दक्षिण कोरिया, भारत आदि आठ देश ज्यादा नुकसान उठाएंगे। अत: उन्होंने इन देशों को ईरान से तेल खरीदने की इजाजत दे दी। ईरान पर तेल बेचने की पाबंदी के परिणाम से बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में जबर्दस्त उछाल था, जिससे सभी लोग परेशान थे। अब कम से कम कुछ समय के लिए यह स्थिति बदल जायेगी।
एक नयी बात सिरदर्दी बन गई कि ईरान के कुछ व्यापारिक मित्र देशों ने अपनी स्थानीय मुद्राओं में आपसी व्यापार शुरू करने का निश्चय किया है। इससे अमेरिकी डालर की अंतर्राष्टï्रीय स्थिति कमजोर हो जायेगी। दरअसल पहले ट्रम्प ने सोचा था कि केवल धमकी से काम चल जायेगा, परन्तु बाद में उन्हें एहसास हुआ होगा कि ऐसा संभव नहीं है। शायद इसी कारण कल उन्होंने ईरान से प्रतिबंधों के सापेक्ष दोस्ती का भी प्रस्ताव दिया है। उनका कहना है कि यदि ईरान परमाणु हथियारों के निर्माण का कार्य बन्द कर दे तो वह उसके साथ नया और अधिक व्यापक समझौता करने को तैयार हैं। यह महज एक बहाना है क्योंकि सभी जांच एजेंसियों ने बताया है कि ईरान ने परमाणु समझौते का पूरी तरह से पालन किया है।
अमेरिका का रूस और चीन से भी रिश्ते इन दिनों बदतर हुए हैं। दुनिया में ही नहीं बल्कि ट्रम्प की देश में भी उनकी स्थिति खराब हो रही है। अमेरिकी मध्यावधि चुनाव में सर्वेक्षण से पता चलता है कि उनकी रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हार रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो संसद में ट्रम्प का बहुमत समाप्त हो जायेगा और फिर उन्हें अपनी नीतियों को लागू करने में और मुश्किलें आएंगी। इस समय ट्रम्प इससे उलझे हुए है। इसी बीच दक्षिण अमेरिका से पांच हजार से अधिक लोगों का एक कारवां अमेरिकी सीमा की ओर बढ़ रहा है। पहले ट्रम्प ने यह घोषणा कर रखी थी कि इन प्रदर्शनकारियों के सीमा के अन्दर आने पर फायरिंग करेंगे, परन्तु अब उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया है।
यदि नीतियां भावनात्मक तौर पर बनायी जाएंगी तो उनका यही हश्र होगा। इन स्थितियों को देखते हुए स्पष्टï कहा जा सकता है कि अमेरिकी राष्टï्रपति ट्रम्प को अन्तर्राष्टï्रीय कानून के अन्दर रहकर अन्तर्राष्टï्रीय मानवाधिकारों को देखते हुए निर्णय लेने चाहिये।
No comments:
Post a Comment
Please share your views