Sunday, September 2, 2018

PR through Traditional Media in hindi

भारत में जनसम्पर्क के परंपरागत साधन


भारत में जनसम्पर्क निम्नलिखित परम्परागत माध्यमो से किया जाता है-
लोककलाएं- चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, हस्तकला। 
लोकनृत्य - कठपुतली नृत्य, समूह नृत्य, विवाह,जन्मादि अवसर पर किये गये नृत्य। 
लोकगीत - विभिन्न क्षेत्रों के परम्परागत गीत विवाह, जन्म, मुण्डन, जन्मदिन और त्यौहारों के अवसर पर गाये जाने वाले गीत। 
लोकनाट्य - नौटंकी, तमाशा, भवर्इ, रास, जात्रा, अंकिया नाटक आदि। 
लिखित स्वरूप - ताम्रपत्र शिलालेख, कला पत्रक। 
लोक गाथाएं- प्रषस्ति परक काव्य तथाशौर्य गाथाएं।
अन्य साधन- डुगडुगी पीटना, मुनादी करना, हरकारों द्वारा सन्देष, कारिन्दों द्वारा घोशणाएं, सभाएं, यज्ञ, स्वयंवर आदि। 
सामाजिक तथा धर्मिक पर्व- उत्सव, त्यौहार, मेले,प्रदर्शनियां, कीर्तन आदि। शिकार किये गये पशुओं के कारण किया गया सामूहिक भोजन। 
धार्मिक आयोजन- मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और आश्रमों में होने वाले धार्मिक उत्सवों के अवसर पर लोग भारी संख्या में एकत्रित होते हैं तथा संवाद करते हैं। 
 उपर्युक्त सभी संवाद व सम्पर्क के परम्परागत साधन हैं। कहने को ये साधन परम्परागत हैं किन्तु आज के इलेक्ट्रानिक मीडिया के युग में भी इनका आकर्षण तथा प्रभाव कम नहीं हुआ है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आज भी दृश्य, श्रव्य एवं सभी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में प्रचार-प्रसार तथा विज्ञापन के लिए परम्परागत साधन अधिक मुखर व प्रभावशाली हैं लोक शैलियों का प्रयोग सूचना को रोचक बनाकर प्रस्तुत करता है अत: यह आकर्षक भी है और प्रभावशाली भी है।

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