सीरिया पर अमेरिकी आक्रमण... आज प्रात: अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने सीरिया पर हमला कर दिया। सीरिया के तीन ठिकानों पर मिसाइलों से हमला हुआ, जिसमें होम्स शहर वाले हमले में तीन आम नागरिक घायल हो गये।
अभी तक यह साबित नहीं हो सका है कि तथाकथित रासायनिक हमला किसने किया था। रूस ने कहा है कि इस हमले का ड्रामा अमेरिका ने इसलिए किया कि वह सीरिया पर हमला करने का औचित्य साबित कर सके। जहां तक ब्रिटेन की बात है, वह और अमेरिका हर मामले में साथ-साथ हैं। जब पूर्व जासूस पर ब्रिटेन में रूस द्वारा हमले के आरोप की बात थी, तो अमेरिका ने तुरन्त कार्रवाई की और पत्रकारों से राष्टï्रपति ट्रम्प ने कहा कि चूंकि ब्रिटेन ने यह आरोप लगाया है, इसलिए वह इसे सही मानते हैं। सीरिया एक छोटा देश है, जिसकी कुल आबादी अमेरिका के मध्यवर्गीया शहरों से भी कम है। जाहिर है वह संसार के तीन महाशक्तिशाली देशों के हमले का सामना नहीं कर सकता, परन्तु उसने दावा किया है कि उसकी फौज ने कुछ मिसाइलों को गिरा दिया है।
सवाल उठता है कि अमेरिका को कैसे मालुम हुआ कि इन जगहों पर रासायनिक हमला हुआ था? क्या अमेरिका ने वहां से कोई सैम्पल जमा किया था? अगर मामला रासायनिक हथियारों का था तो ओपीसीडब्लू के जांचकर्ता कल ही सीरिया आये थे और उनके आंकलन का इंतजार करना जरूरी था। जहां तक इंटेलीजेंस रिपोर्ट की बात है, इन्हीं सुरक्षा एजेंसियों ने ईराक में जनसंहार के हथियारों के जखीरे का दावा किया था, जिनकी बुनियाद पर ईराक की ईंट से ईंट बजा दी गई और यह खुशहाल देश अत्यंत गरीब देशों की श्रेणी में आ गया। वर्षों की सघन तलाश के बाद भी ईराक में जनसंहार के हथियारों का कोई सबूत नहीं मिला। बाद में अमेरिका और ब्रिटेन ने केवल यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि सूचना गलत थी। अब यही खेल सीरिया में खेला जा रहाह है। किसी गलत सूचना पर किसी देश को तबाह, बर्बाद कर देना, यह कितना मुनासिब है, सोचने का विषय है।
मामला दरअसल आतंकी संगठनों के बचाव का है, जो अमेरिका और उसके मित्रों ने बनाकर सीरिया भेजे थे और जो सीरियाई सेना हमलों से खदेड़े जा चुके हैं। यदि अमेरिका, ब्रिटेन और सऊदी अरब यह सोचते हैं कि इन हमलों से तथाकथित इस्लामिक राज्य के आतंकियों को बचाया जा सकेगा तो यह बड़ी गलतफहमी है। इन हमलों से मध्य-पूर्व में अस्थिरता के नये दौर की शुरूआत हो गई है। अमेरिका का लक्ष्य ईरान को धमकाना है, जैसा इस्राइल के नेताओं ने भी कहा है, परन्तु इस कदम से खाड़ी की राजशाहियां खतरे में पड़ गई हैं। रूस और चीन ने इस हमले की तीव्र निन्दा किया है। रूस सीरिया के साथ डटा हुआ है। पश्चिमी देशों की इंटेलीजेंस एजेंसियां खबरें बनाती हैं, ताकि किसी फौजी कार्रवाई का औचित्य साबित हो सके।
युद्घ के लिए अमेरिकी कांग्रेस और ब्रिटिश पार्लियामेंट की मंजूरी जरूरी है, परन्तु डोनाल्ड ट्रम्प या प्रधानमंत्री में ने संसद को सूचना भी नहीं दिया। यह हमले अन्तर्राष्टï्रीय कानून का उल्लंघन हैं और इनके बुरे नतीजे बाद में सामने आयेंगे।
अभी तक यह साबित नहीं हो सका है कि तथाकथित रासायनिक हमला किसने किया था। रूस ने कहा है कि इस हमले का ड्रामा अमेरिका ने इसलिए किया कि वह सीरिया पर हमला करने का औचित्य साबित कर सके। जहां तक ब्रिटेन की बात है, वह और अमेरिका हर मामले में साथ-साथ हैं। जब पूर्व जासूस पर ब्रिटेन में रूस द्वारा हमले के आरोप की बात थी, तो अमेरिका ने तुरन्त कार्रवाई की और पत्रकारों से राष्टï्रपति ट्रम्प ने कहा कि चूंकि ब्रिटेन ने यह आरोप लगाया है, इसलिए वह इसे सही मानते हैं। सीरिया एक छोटा देश है, जिसकी कुल आबादी अमेरिका के मध्यवर्गीया शहरों से भी कम है। जाहिर है वह संसार के तीन महाशक्तिशाली देशों के हमले का सामना नहीं कर सकता, परन्तु उसने दावा किया है कि उसकी फौज ने कुछ मिसाइलों को गिरा दिया है।
सवाल उठता है कि अमेरिका को कैसे मालुम हुआ कि इन जगहों पर रासायनिक हमला हुआ था? क्या अमेरिका ने वहां से कोई सैम्पल जमा किया था? अगर मामला रासायनिक हथियारों का था तो ओपीसीडब्लू के जांचकर्ता कल ही सीरिया आये थे और उनके आंकलन का इंतजार करना जरूरी था। जहां तक इंटेलीजेंस रिपोर्ट की बात है, इन्हीं सुरक्षा एजेंसियों ने ईराक में जनसंहार के हथियारों के जखीरे का दावा किया था, जिनकी बुनियाद पर ईराक की ईंट से ईंट बजा दी गई और यह खुशहाल देश अत्यंत गरीब देशों की श्रेणी में आ गया। वर्षों की सघन तलाश के बाद भी ईराक में जनसंहार के हथियारों का कोई सबूत नहीं मिला। बाद में अमेरिका और ब्रिटेन ने केवल यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि सूचना गलत थी। अब यही खेल सीरिया में खेला जा रहाह है। किसी गलत सूचना पर किसी देश को तबाह, बर्बाद कर देना, यह कितना मुनासिब है, सोचने का विषय है।
मामला दरअसल आतंकी संगठनों के बचाव का है, जो अमेरिका और उसके मित्रों ने बनाकर सीरिया भेजे थे और जो सीरियाई सेना हमलों से खदेड़े जा चुके हैं। यदि अमेरिका, ब्रिटेन और सऊदी अरब यह सोचते हैं कि इन हमलों से तथाकथित इस्लामिक राज्य के आतंकियों को बचाया जा सकेगा तो यह बड़ी गलतफहमी है। इन हमलों से मध्य-पूर्व में अस्थिरता के नये दौर की शुरूआत हो गई है। अमेरिका का लक्ष्य ईरान को धमकाना है, जैसा इस्राइल के नेताओं ने भी कहा है, परन्तु इस कदम से खाड़ी की राजशाहियां खतरे में पड़ गई हैं। रूस और चीन ने इस हमले की तीव्र निन्दा किया है। रूस सीरिया के साथ डटा हुआ है। पश्चिमी देशों की इंटेलीजेंस एजेंसियां खबरें बनाती हैं, ताकि किसी फौजी कार्रवाई का औचित्य साबित हो सके।
युद्घ के लिए अमेरिकी कांग्रेस और ब्रिटिश पार्लियामेंट की मंजूरी जरूरी है, परन्तु डोनाल्ड ट्रम्प या प्रधानमंत्री में ने संसद को सूचना भी नहीं दिया। यह हमले अन्तर्राष्टï्रीय कानून का उल्लंघन हैं और इनके बुरे नतीजे बाद में सामने आयेंगे।
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