बाबासाहब का जीवन वंचित समाज के लिए एक अनुकरणीय मिसाल...
आज बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती है। देश भर में वे करोड़ों लोगों के नायक हैं। उन्हें पूरा देश श्रद्घा और आदर के साथ याद कर रहा है।
डॉ. अम्बेडकर हमारे बीच बाबासाहब के नाम से लोकप्रिय भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। १९४७ में जब देश को अंग्रेजों से आजादी मिली तो हमें सिर्फ जमीन का टुकड़ा ही मिला था, परन्तु सामाजिक न्याय और आजादी बाबासाहब की वजह से हासिल हो पायी। उन्होंने देश में जाति के नाम पर फैली अराजकता के विरूद्घ सवाल खड़े किये थे। सच्चाई यह है कि उनके सवाल खुद उनके द्वारा जिये गये थे, जिसे वह आने वाली पीढ़ी के लिए अभिशाप के रूप में नहीं छोडऩा चाहते थे। यही कारण था कि वह हमेशा कहा करते थे 'हिन्दू परिवार में जन्म लेना उनक अधिकार में नहीं था, लेकिन वह हिन्दू मरेंगे नहींÓ। इसी कारण उन्होंने जीवन के अंतिम पड़ाव पर १९५६ में नागपुर में अपने दस लाख समर्थकों के साथ धर्म परिवर्तन किया था।
स्कूली पढ़ाई के दौरान ही उन्हें काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा था। वे ऊंची जातियों के छात्रों के साथ बैठ नहीं सकते थे, उन्हें विद्यालय में पानी के लिए दलित समुदाय के ही व्यक्ति पर निर्भर रहना पड़ता था। जिस दिन वह नहीं आता था, बाबासाहेब को पानी तक नहीं मिलता था। यह केवल उन्हीं के साथ नहीं था, बल्कि पूरे देश में दलितों के साथ इससे भी बदतर भेदभाव किया जाता था। उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता था, जैसे वे मानव हो हीं न। पूजा-पाठ तो दूर दलित समुदाय के लोगों को सुबह उठने तक की आजादी नहीं थी, ताकि उनकी परछायी सवर्ण जातियों पर न पड़ सके। दलितों का जीवन रिमोट से संचालित होने जैसा था। बाबासाहेब ने इसी जातीय व सामाजिक अव्यवस्था के विरूद्घ अपनी लड़ाई लडऩी शुरू की। उनकी राह बहुत कठिन थी, लेकिन मजबूत आत्मविश्वास और दलित समाज के प्रति संघर्ष की लगन ने आज उन्हें हमारे बीच आदरणीय बना दिया। इतने भेदभाव के बावजूद उन्होंने अपना व्यक्तित्व इतना ऊंचा उठाया।
सन 1927 में डॉ. अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। उन्होंने अस्पृश्य समुदाय को भी शहर की पानी की मुख्य टंकी से पानी लेने का अधिकार दिलाने के लिये सत्याग्रह चलाया।
वह जानते थे कि राजनीति रूप से यदि दलितों को भागीदारी नहीं दी गई तो दलितों की हालत में सुधार की गुंजाईश नही हो पायेगी। इसी कारण उन्होंने दलितों का राजनीति में आरक्षण के लिए सत्याग्रह चलाया और इसमें उन्हें गांधी जी के साथ पूना समझौता के रूप में सफलता भी हासिल हुई। आज दलितों की स्थिति पहले की अपेक्षा काफी सम्मानजनक है, इसके लिए बाबासाहेब के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे हमारे दिलों में हमेशा राज करते रहेंगे।
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