Wednesday, May 9, 2018

New Media in hindi 2

डिजिटल मिडिया और संचार (Digital media & Communication)

डिजिटल मिडिया (Digital media) उन सभी माध्यमों को कहते हैं जो मशीन द्वारा पढ़े जाने योग्य कोडिंग में बनाए गये हैं। डिजिटल माध्यम, डिजिटल इलेक्ट्रानिक युक्तियों (जैसे कम्प्यूटर) द्वारा निर्मित किये जा सकते हैं, देखे जा सकते हैं, वितरित किये जा सकते हैं, परिवर्तित किये जा सकते हैं तथा संरक्षित किये जा सकते हैं।

डिजिटल मिडिया का इतिहास

मशीनों द्वारा कोड और जानकारी पहली बार 1800 के दशक में चार्ल्स बैबेज द्वारा संकल्पनाबद्ध थी। बैबेज ने कल्पना की कि ये कोड उन्हें मोटर ऑफ फर्क एंड एनालिटिकल इंजन, मशीनों के लिए निर्देश देंगे जो बैबेज ने गणना में त्रुटि की समस्या को हल करने के लिए डिज़ाइन किया था। 1822 और 1823 के बीच, गणित के एडा लवलेस ने बैबेज इंजन पर संख्याओं की गणना के लिए पहले निर्देश लिखे थे। लवलेस के निर्देश अब पहले कंप्यूटर कार्यक्रम के रूप में माना जाता है। हालांकि मशीनों को विश्लेषण कार्यों को करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, लोवेलेस ने कंप्यूटर और प्रोग्रामिंग, लेखन के संभावित सामाजिक प्रभाव की उम्मीद की थी। "सच्चाई और विश्लेषण के सूत्रों के वितरण और संयोजन में, जो इंजन के यांत्रिक संयोजनों, रिश्ते और कई विषयों की प्रकृति के अधीन हो सकता है, जिसमें विज्ञान नए विषयों में आवश्यक रूप से संबंधित है, और अधिक गहराई से शोध किया गया ... मानव ज्ञान के सभी विस्तार या मानव ज्ञान के लिए अतिरिक्त, प्राथमिक और प्राथमिक वस्तु के अलावा विभिन्न संपार्श्विक प्रभावों में शामिल हैं। "अन्य पुरानी मशीन पठनीय मीडिया में पियानोला और बुनाई मशीनों के लिए निर्देश शामिल हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 1986 में दुनिया की मीडिया स्टोरेज क्षमता का 1% से भी कम डिजिटल था और 2007 में यह पहले से ही 94% था। वर्ष 2002 को वह वर्ष माना जाता है जब मानव प्रकार डिजिटल में अधिक जानकारी संग्रहीत करने में सक्षम था।
डिजिटल क्रांति
पहले डिजिटल कंप्यूटरों के आविष्कार के बाद के वर्षों में, कंप्यूटिंग पावर और स्टोरेज क्षमता तेजी से बढ़ी है। पर्सनल कंप्यूटर और स्मार्टफोन ने अरबों लोगों के हाथों डिजिटल मीडिया को एक्सेस, संशोधित, स्टोर और साझा करने की क्षमता डाली। डिजिटल कैमरे से ड्रोन तक कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में डिजिटल मीडिया बनाने, संचारित करने और देखने की क्षमता होती है। वर्ल्ड वाइड वेब और इंटरनेट के साथ, डिजिटल मीडिया ने 21 वीं सदी के समाज को इस तरह से बदल दिया है कि अक्सर प्रिंटिंग प्रेस के सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव से तुलना की जाती है। परिवर्तन इतना तेज़ और व्यापक रहा है कि उसने औद्योगिक अर्थव्यवस्था से सूचना-आधारित अर्थव्यवस्था में आर्थिक परिवर्तन शुरू किया है, जो मानव इतिहास में एक नई अवधि बना रहा है जिसे सूचना आयु या डिजिटल क्रांति के नाम से जाना जाता है।
संक्रमण ने परिभाषाओं के बारे में कुछ अनिश्चितता पैदा की है। डिजिटल मीडिया, नए मीडिया, मल्टीमीडिया, और इसी तरह के सभी शब्दों में इंजीनियरिंग नवाचारों और डिजिटल मीडिया के सांस्कृतिक प्रभाव दोनों के साथ संबंध है। अन्य मीडिया के साथ डिजिटल मीडिया का मिश्रण, और सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों के साथ, कभी-कभी नए मीडिया या "नए मीडिया" के रूप में जाना जाता है। इसी प्रकार, डिजिटल मीडिया संचार कौशल के एक नए सेट की मांग करता है, जिसे लिप्यंतरता, मीडिया कहा जाता है साक्षरता, या डिजिटल साक्षरता। इन कौशलों में न केवल पारंपरिक साक्षरता को पढ़ने और लिखने की क्षमता शामिल है- लेकिन इंटरनेट पर नेविगेट करने, स्रोतों का मूल्यांकन करने और डिजिटल सामग्री बनाने की क्षमता शामिल है। यह विचार कि हम पूरी तरह से डिजिटल, पेपरलेस सोसाइटी की ओर बढ़ रहे हैं, इस डर के साथ है कि हम जल्द ही या वर्तमान में डिजिटल अंधेरे युग का सामना कर रहे हैं, जिसमें पुराने मीडिया आधुनिक उपकरणों पर या छात्रवृत्ति के आधुनिक तरीकों का उपयोग नहीं कर रहे हैं। डिजिटल मीडिया के समाज और संस्कृति पर एक महत्वपूर्ण, व्यापक और जटिल प्रभाव है।
डिजिटल क्रांति के प्रभाव का आकलन दुनिया भर में मोबाइल स्मार्ट डिवाइस उपयोगकर्ताओं की मात्रा की खोज करके भी किया जा सकता है। इसे 2 श्रेणियों में स्मार्ट फोन उपयोगकर्ता और स्मार्ट टैबलेट उपयोगकर्ताओं में विभाजित किया जा सकता है। दुनिया भर में दुनिया भर में 2.32 बिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्ता हैं। यह आंकड़ा 2020 तक 2.87 बिलियन से अधिक हो गया है। स्मार्ट टैबलेट उपयोगकर्ता 2015 में कुल 1 अरब तक पहुंच गए, दुनिया की आबादी का 15%। पहला मोबाइल फोन 1973 में मोटोरोला में एक वरिष्ठ इंजीनियर द्वारा जारी किया गया था और अविश्वसनीय रूप से अमीर द्वारा केवल सस्ती था। तथ्य यह है कि दुनिया की आबादी का इतना बड़ा हिस्सा अपने स्मार्ट उपकरणों में डिजिटल क्रांति के दौरान हासिल किए गए विकास के तीव्र स्तर को दर्शाता है।
सांख्यिकी आज डिजिटल मीडिया संचार के प्रभाव का सबूत है। प्रासंगिकता का भी क्या तथ्य यह है कि स्मार्ट डिवाइस उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है, फिर भी कार्यात्मक उपयोग की मात्रा प्रतिदिन बढ़ जाती है। सैकड़ों दैनिक जरूरतों के लिए एक स्मार्टफोन या टैबलेट का उपयोग किया जा सकता है। ऐप्पल ऐपस्टोर पर वर्तमान में 1 मिलियन से अधिक ऐप्स हैं। ये डिजिटल विपणन प्रयासों के सभी अवसर हैं। एक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता डिजिटल विज्ञापन के साथ हर बार अपने ऐप्पल या एंड्रॉइड डिवाइस को खोलता है। यह डिजिटल क्रांति और क्रांति के प्रभाव का और सबूत है।

 आईसीटी (सूचना तथा संचार तकनीकी) (Information and communication technology (ICT))

सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी (Information and communication technology (ICT)), सूचना प्रौद्योगिकी का ही विस्तारित नाम है जो एकिकृत संचार के महत्व को भी रेखांकित करता है।
सूचना प्रौद्योगिकी और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के लिए एक और विस्तारित शब्द है जो एकीकृत संचार और दूरसंचार (टेलीफोन लाइनों और वायरलेस सिग्नल), कंप्यूटर के साथ-साथ आवश्यक उद्यम सॉफ्टवेयर, मिडलवेयर का एकीकरण पर जोर देता है। , स्टोरेज, और ऑडियो-विज़ुअल सिस्टम, जो उपयोगकर्ताओं को जानकारी तक पहुंचने, स्टोर करने, प्रसारित करने और छेड़छाड़ करने में सक्षम बनाता है।
आईसीटी शब्द का उपयोग एक ही केबलिंग या लिंक सिस्टम के माध्यम से कंप्यूटर नेटवर्क के साथ ऑडियो-विजुअल और टेलीफोन नेटवर्क के अभिसरण को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। केबलिंग नेटवर्क, सिग्नल वितरण और प्रबंधन की एक एकीकृत प्रणाली का उपयोग कर कंप्यूटर नेटवर्क सिस्टम के साथ टेलीफोन नेटवर्क को मर्ज करने के लिए बड़े आर्थिक प्रोत्साहन (टेलीफोन नेटवर्क को खत्म करने के कारण भारी लागत बचत) हैं।
हालांकि, परिभाषा, "आईसीटी में शामिल अवधारणाओं, विधियों और अनुप्रयोगों को लगातार दैनिक आधार पर विकसित किया जा रहा है।" आईसीटी की व्यापकता किसी भी उत्पाद को कवर करती है जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से जानकारी को स्टोर, पुनर्प्राप्त, कुशलतापूर्वक प्रसारित या प्राप्त करेगी डिजिटल रूप, उदाहरण के लिए व्यक्तिगत कंप्यूटर, डिजिटल टेलीविजन, ईमेल, रोबोट। स्पष्टता के लिए, ज़ुप्पो ने एक आईसीटी पदानुक्रम प्रदान किया जहां पदानुक्रम के सभी स्तरों में "कुछ समानताएं शामिल हैं जिनमें वे प्रौद्योगिकियों से संबंधित हैं जो सूचना के हस्तांतरण और इलेक्ट्रॉनिक रूप से मध्यस्थ संचार के विभिन्न प्रकारों की सुविधा प्रदान करते हैं।" सूचना आयु के लिए कौशल ढांचा 21 वीं शताब्दी के लिए आईसीटी पेशेवरों के लिए दक्षताओं का वर्णन और प्रबंधन के लिए कई मॉडल में से एक है।

सूचना एवं संचार तकनीकमें भारत

सन 2000   के बाद सुचना एवं  संचार तकनीकके क्षेत्र में  जो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ हैं उसने  दुनिया  के अनेक देशो की अर्थ व्यवस्था को एक नई ऊचाई तक पहुचाया है। सुचना एवं संचार तकनीक ने ना  सिर्फ  आज जहा एक और बहुत दूर रह रहे अपनों को करीब ला दिया है ,बल्कि  हमारे जीवन शैली को ही बदल कर रख दिया है।  जिसका उपयोग और परिवर्तन हम अपने चारो और देख ही रहे हैं। 
सुचना एवं संचार  के इस परिवर्तन की इस क्रान्ति में  लगभग सभी देशो ने तरक्की की। वर्तमान समय में हर कोई इसका उपयोग कर रहा है।  हाल ही में एक  ग्लोबल इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी रिपोर्ट जारी की गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार सामाजिक  एवं आर्थिक प्रभावों को ध्यान  में रखते हुए सुचना एवं संचार तकनीक के क्षेत्र का उपयोग कर  तरक्की कर  रहे अनेक देशो की एक रैंक तैयार की गयी है।  इस रिपोर्ट अनुसार  सिंगापुर इस क्षेत्र में   प्रथम स्थान पर है।  यह रिपोर्ट में जारी की गयी रैंक 53  कारको को ध्यान  में रखते हुए तैयार की गयी  है, जिनमे उस देश का वातावरण , सुचना एवं संचार  को अपनानी की उत्सुकता , उसका उपयोग एवं उसके प्रभाव ये चार करक प्रमुख हैं।
इस रिपोर्ट में 143  देशो की  रैंकिंग की गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार सबसे बेहतर और सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाले देशो के बीच एक बहुत बड़ा अंतर  नजर आता है।  सबसे बेहतर रैंक  वाले देशो ने 2012  के बाद से  ख़राब रैंक वाले देशो की तुलना में  इस क्षेत्र में काफी सुधार किया है। इस रिपोर्ट में  अमेरिका और  जापान भी टॉप टेन में शामिल हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार BRICS देशो की परफॉरमेंस थोड़ी निराशाजनक रही है।  इस रिपोर्ट के अनुसार  सुचना एवं संचार के क्षेत्र में तरक्की  की नज़र से रूस  की रैंक 41 है , चीन की रैंक 62 ,साउथ अफ़्रीका की 75 , ब्राज़ील की 84  और भारत की  रैंक 89  है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है  कि BRICS  देशो में शामिल भारत की रैंक सबसे BRICS देशो में सबसे कम है। 
इस रिपोर्ट में सुचना एवं संचार तकनीक के क्षेत्र में तरक्की  करने वाले टॉप टेन देशो  में क्रमश: सिंगापुर , फ़िनलैंड ,स्वीडन,नीदरलैंड, नॉर्वे ,स्विट्जरलैंड, अमेरिका ,इंग्लैंड ,लक्सेम्बर्ग एवं जापान को शामिल किया गया है।   हम आशा करते हैं की अगली ग्लोबल इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी  रिपोर्ट में भारत की रैंक अच्छी हो।

डि‍जि‍टल डि‍वाइड (Digital Divide)

दूरसंचार नि‍यामक आयोग (ट्राई) की फरवरी 2014 की रि‍पोर्ट के अनुसार देश में कुल 90 करोड़ टेलीफोन उपभोक्‍ताओं में से 54 करोड़ शहरी और 35 करोड़ ग्रामीण हैं। वहीं इंटरनेट की बात करें तो 22 करोड़ इंटरनेट उपभोक्‍ताओं में 15 करोड़ से ज्‍यादा ब्रॉडबैंड का इस्‍तेमाल करने वाले हैं। खुद ट्राई का आंकड़ा यह कहता है कि‍ शहरों में जहां दूरसंचार घनत्‍व 144 प्रति‍शत है, जबकि‍ देश के ग्रामीण इलाकों में यह 41 प्रति‍शत से अधि‍क नहीं बढ़ पाई है। सरकार के ये आंकड़े इस तथ्‍य को साफ उजागर करते हैं कि‍ देश में दूरसंचार साधनों की उपलब्‍धता एक समान नहीं है। शहरों में यह बहुत ज्‍यादा है तो गांवों में बहुत कम।
इसका सबसे अधि‍क प्रभाव कनेक्‍टि‍‍वि‍टी पर पड़ता है। शहरों में जहां प्रति‍ दो कि‍लोमीटर पर एक मोबाइल टॉवर, मांगे जाने पर तुरंत टेलीफोन और इंटरनेट कनेक्‍टि‍वि‍टी मि‍ल जाती है, वहीं गांवों खासकर आदि‍वासी बहुल इलाकों में मीलों दूर तक मोबाइल के टॉवर दि‍खाई नहीं देते। वायरलाइन टेलीफोन और ब्रॉडबैंड कनेक्‍टि‍वि‍टी की बात करें तो वि‍कासखंड (ब्‍लॉक) से आगे टेलीफोन के केबल नहीं बि‍छाए जा सके हैं। भारत में अभी 4जी सेवाओं को शुरू करने की बात हो रही है, लेकि‍न गांवों में 2जी सेवाओं का भी वि‍स्‍तार नहीं हो पाया है। यानी हमारे गांव दूरसंचार सेवाओं के मामले में शहरों से 15 साल पीछे हैं। यह जमीनी हकीकत कई सवाल खड़े करती है। जैसे, अगर शहरों और गांवों के लोगों के लि‍ए मोबाइल और टेलीफोन की कॉल दरें एक समान ही है तो ग्रामीणों को एक कॉल करने के लि‍ए घर से नि‍कलकर नेटवर्क की तलाश में दूर क्‍यों चलना पड़ता है ? देश में स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन की नीति‍ में नि‍जी टेलीकॉम ऑपरेटरों के लि‍ए इस बात की बाध्‍यता क्‍यों नहीं है कि‍ वे शहरों और गांवों में एक समान गुणवत्‍ता की सेवाएं उपलब्‍ध कराएं ? मोबाइल नेटवर्क को सक्रि‍य रखने वाली वायु तरंगों (एयर वेव्‍स) को सुप्रीम कोर्ट ने प्राकृति‍क संसाधन मानते हुए सरकार से इनके समान वि‍तरण की व्‍यवस्‍था करने को कहा हुआ है। इसके बावजूद सरकार नि‍जी टेलीकॉम ऑपरेटरों को ग्रामीण इलाकों में भी शहरों की तरह दूरसंचार घनत्‍व बढ़ाने के लि‍ए बाध्‍य क्‍यों नहीं कर पाती ? ऐसा क्‍यों है कि‍ नि‍जी टेलीकॉम ऑपरेटरों की कुल कमाई पर लगाए गए सरकारी उपकर से प्राप्‍त आय को गांव तक इंटरनेट पहुंचाने में खर्च नहीं कि‍या जा रहा है ? शहरों में भी गरीब बस्‍ति‍यों के रहवासि‍यों की कनेक्‍टि‍वि‍टी बाकी संभ्रांत क्षेत्रों के मुकाबले बहुत कम है। शहरों के लगातार हो रहे वि‍स्‍तार और ढांचागत परि‍योजनाओं के कारण वि‍स्‍थापि‍त हो रहे लोगों की मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच और कनेक्‍टि‍वि‍टी प्रभावि‍त हो रही है। प्रशासन यह सुनि‍श्‍चि‍त कर पाने में काफी हद तक नाकाम रहा है कि‍ शहरों से दूर बसाई गई वि‍स्‍थापि‍तों की बस्‍ति‍यों तक बाकी मूलभूत सुवि‍धाओं की तरह दूरसंचार सेवाओं का भी वि‍स्‍तार हो सके।
सि‍र्फ संचार साधन ही क्‍यों, प्रसारण सेवाओं के डि‍जि‍टलीकरण की प्रक्रि‍या ने भी शहरों में एक बड़े वर्ग को सूचना और मनोरंजन के साधनों से वंचि‍त कि‍या है। मध्‍यप्रदेश के भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्‍वालि‍यर जैसे शहरों में गरीब बस्‍ति‍यों के वे परि‍वार जो डि‍जि‍टल केबल टीवी का महंगा खर्च नहीं उठा सकते, वे अभी कि‍सी तरह दूरदर्शन देख पा रहे हैं। हालांकि‍, इस साल के आखि‍र तक दूरदर्शन को भी डि‍जि‍टल करने की योजना है, जि‍ससे ऐसे परि‍वारों से सूचनाओं और मनोरंजन का एकमात्र स्रोत भी छि‍न जाएगा।
दूरसंचार मंत्रालय ने डि‍जि‍टल केबल और डीटीएच सेवाएं देने वाले ऑपरेटरों के लि‍ए नि‍यम तो बनाए हैं, लेकि‍न जमीन पर इनका अमल नहीं हो रहा है। केबल की महंगी दरें, एकमुश्‍त 1500 रुपए का खर्च और सेवाओं की गुणवत्‍ता में कमी ने भी वंचि‍तपन को बढ़ाया है। अगर शहरों में केबल और डीटीएच के रूप में डि‍जि‍टल टेलीवि‍जन के दो वि‍कल्‍प उपलब्‍ध हैं तो गांवों में केवल डीटीएच ही लोगों का एकमात्र वि‍कल्‍प है। गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परि‍वारों के लि‍ए नि‍जी डीटीएच सेवाओं के लि‍ए प्रति‍माह 160-200 रुपए चुकाना एक महंगा वि‍कल्‍प है। यहां सरकार डीडी डायरेक्‍ट प्‍लस जैसी मासि‍क शुल्‍क से मुक्‍त सेवाओं को बढ़ावा दे सकती थी, लेकि‍न ऐसा न कर लोगों को बाजार के हवाले कि‍या गया है।
इंटरनेट, दूरसंचार और प्रसारण सेवाओं के मामले में पहुंच, कनेक्‍टि‍वि‍टी और गुणवत्‍तामूलक सेवाओं के लि‍ए शहरों और गांवों के बीच यह फासला असल में सूचना और अभि‍व्‍यक्‍ति‍ के उस मौलि‍क अधि‍कार का हनन है, जो संवि‍धान के अनुच्‍छेद 19(1ए) के तहत देश के प्रत्‍येक नागरि‍क को समान रूप से मि‍ला है। न तो सरकार और न ही नि‍जी ऑपरेटर संसाधनों की कमी का बहाना बनाकर इस हक को अनदेखा नहीं कर सकते। अगर शहर में बेहतर सेवाओं के लि‍ए संसाधन हैं तो गांव इससे अछूते नहीं रह सकते। सवाल संसाधनों के समान वि‍तरण का है। डि‍जि‍टल संचार में शहरों और गांवों के बीच के फासले की यही मूल वजह है।

सूचना समाज (Information Society)

     सूचना समाज से तात्पर्य जनसांर माध्यमों के अधुनातन विकास से है। संचार और सूचना के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व प्रगति हुई है, उसी का परिणाम है कि अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और जापान जैसे विकसित औद्योगिक देशों के समाजों को औद्योगिक समाज की बजाए अब सूचना समाज कहा जाने लगा है। इन देशों में सूचना अपने में एक विशालका उद्योग बन चुका है। सूचना और संचार के क्षेत्र में प्रगति भी अन्य क्षेत्रों की तरह असमान रही है। कुछ देश सूचना और संचार के क्षेत्र में अभी काफी पिछड़े हुए हैं। वे सूचनाओं के लिए काफी हद तक इन विकासशील देशों पर निर्भर हैं। सूचना युग में सूचना ही शक्ति है। इस पर जितका नियंत्रण है वहीं शक्तिशाली है। सूना समृद्धों और सूचना विकासशीलों के बीच का संघर्ष भी एकतरफा हो गया है।
     उत्तर औद्योगिक समाज या सूचना समाज को परिभाषित करते हुए अमेरिकी विद्वान एवेरेट्ट एम. रोजर्स ने लिखा है कि- सूचना समाज वह राष्ट्र है जहां अधिकांश श्रम शक्ति सूचना श्रमिक के रूप् में संगठित होती है और जहां सूचना सबसे प्रमुख त्व होता है। इस प्रकार सूचना समाज औद्योगिक समाज से एक स्पष्ट परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है जहां श्रम शक्ति निर्माण व्यवसाय से जुड़ी होती ळै, जैसे ऑटो एसेम्बली और स्टील उत्पादन का काम और जहां का मुख्य तत्व ऊर्जा होती है। इसके विपरीत सूचना श्रमिक वे व्यक्ति होते हैं जिनकी मुख्य गतिविधि सूचना के उत्पादन, प्रोसेसिंग और वितरण तथा सूचना प्रोद्योगिकी के उत्पादन की होती है। सूचना के विशिष्ट कामगोरों में शिक्षकों, वैज्ञानिकों, समाजरपत्रों के संवाददाता और अन्य पत्रकार, कम्प्यूटर प्रोग्रामर, परामर्शदाता, सेक्रेटरी और प्रबंधकों की गणना की जाती है। ये व्यक्ति लिखते हैं, पढ़ाते हें, परामर्श बेचते हैं, आदेश लेते और देते हैं और सूनाओं का संचालन करते हैं। उनकी मुख्य गतिविध भोजन पैदा करना नहीं है और न ही नट और बोल्ट कसना है और न ही भौतिक वस्तुओं का संचालन करना। सूचना समाज की विशेषताओं पर विचार करते हुए विद्वानों ने निम्नलिखित विशेषताओं को रेखांकित किया है :-
1.                   जहां सूचनाओं का आर्थिक रूप् से इस्तेमाल किया जाता है; उत्पादित वस्तु के रूप् में वह बाजार  स्पर्धा में शामिल है।
2.     प्रत्येक व्यवसाय में आज काम करने वालों का अच्छा-खासा हिस्सा सूचनाओं का उत्पादन करने, उनका पुनरावर्तित करने और उनको बनाए रखने के काम में लगा हुआ है।
3.     सूचना प्रौद्योगिकी और संस्थाओं के बीच अंतःसम्बद्धता में बढ़ोत्तरी हो रही है।
4.     सूचना ने वैज्ञानिक ज्ञान को भी व्यवसायिक संसाधन में बदल दिया है।
5.     संचार के साधनों और संदेशों के प्रचुर वृद्धि की वजह से यर्था की व्याख्या और उनका खास रूप् देने का काम जनसंचार माध्यम करने लगे हैं।
6.          सूचना प्रौद्योगिकी की आसान उपलब्धता की वजह से व्क्ति भी सूचना का निर्माण कर सकता हे, उसको भंडारित कर सकता है, सम्प्रेषित कर सकता है और उसे प्रभावित कर सकता है, लेकिन इसके लिए उसके पास सूचना प्रौद्योगिकी को हासिल करने के लिए जरूरी आर्थिक क्षमता हो।
     भारत जैसे तीसरी दुनिया के देश में जहां औद्योगिक विकास भी र्प्याप्त नहीं हुआ है, सूचना को एक जिस बनने की प्रवृत्ति को राष्ट्रीय परिघटना नहीं कहा जा सकता है, जैसाकि अमेरिका और पश्चिम यूरोप के देशों के बारे में कहा जाने लगा है। सूचना ही शक्ति है, यह सूचना क्रांति के दौर का मुख्य संदेश है, लेकिन इससे यह समझना कि सूचना के प्रवाह में किसी तरह की बाधा नहीं पहुंचाई जाती है। आमतौर पर अभिजात वर्ग उन सूचनओं को जो उनके हित में नहीं होती, लोगों तक पहुंचने से रोकता है। सूचना समाज ने कई तरह के मिथक खड़े किए हैं। कहा जा रहा है कि सूचना समाज पूंजीवाद की समाप्ति का गवाह होगा। औद्योगिक उत्पादन जिसके साथ केंद्रीकरण, विस्तार, मानकीकरण, संक्रमण और शोषण जेसी बुराईयां विद्यमान हैं, उससे छुटकारा मिल जाएगा। औद्योगिक उत्पादन के स्थान पर एकाधिकारवाद से रहित और विविधताओं वाले बाजार में सेवाओं का प्राधान्य होगा। क्या वास्तव में ऐसा होता दिखाई दे रहा है? याह नहीं। एक तो इसकी वजह यह है कि इलेक्ट्रानिक आधारित ये पद्धतियां उत्पादन के बहुत सीमित क्षेत्र में उपयोगी हैं और बहुत हद तक उत्पादन की सम्पूर्ण प्रक्रिया के कुछ चरणों में उपयोगी हैं। दूसरे इसने उत्पादन से अधिक सहायक सेवाओं के क्षेत्र को प्रभावित किया है। इसकी वजह से सेवा क्षेत्र का विस्तार भी हुआ है और महत्व भी बढ़ा है। लेकिन अधिकांश सेवा क्षेत्र अपने अस्तित्व के लिए औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र पर निर्भर हैं। मसलन प्रबंधन, मार्केटिंग की परिकल्पना बिना औद्योगिक उत्पादन कैसे की जा सकती है।
    कहा जा रहा है कि सूचना समाज में राजनीति सहीागिता वाली होगी। सहभागिता से यदि तात्पर्य यह है कि समाज के सभी तबकों की भागीदारी शासन पर नियंत्रण और उसके संचालन में होगी, तो यह जरूरी है कि सबसे पहले समाज में व्याप्त हर तरह की असमानता को समाप्त किया जाए। क्या सूचना समाज में ऐसा हो जाएगा? कम-से-कम अभी तो ऐसा नहीं प्रतीत हो रहा है। इसके विपरीत राजसत्ताएं पहले की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली और दमनकारी प्रवृत्ति की होती जा रही है। यानि लोकतंत्र कमजोर पड़ता जा रहा है। अगर यह कहा जा रहा है कि सूचना पर सबका अधिकार होगा, सभी अपने पास सूचना को भंडद्वारित कर सकेंगे, तो यह भी एक ीुलावा है। तथ्य यह है कि सूचनाओं के अबाधित और तीव्र प्रवाह ने स्वयं सूचनाओं को जटिल और विशेषीकृत बना दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि आज चारों ओर सूचनाओं का अम्बार तो है, लेकिन लोगों का ज्ञान घट रहा है; सूचना सिर्फ उन्हीं के लिए ताकत बनती है जिनके हाथ में सूचना को उत्पादित करने, प्रोसेसिंग करने, भंडारित करने, सुधारने और सम्प्रेषित करने के साधन हैं। जाहिर है कि व्यक्तियों और समुदायों की बात तो दूर रही, स्वयं विभिन्न देशों में ीी इनका वितरण एक सा नहीं है। तीसरी दुनिया के देश इस लिहाज से काफी पीछे हैं और विकसित देशों पर काफी हद तक निर्मर है।
  

विश्व सूचना व्यवस्था एवं ई-गवर्नेंस (New World Information Order and E-governance)

ई-गवर्नेंस से अभिप्राय सरकार द्वारा सेवाओं एवं सूचनाओं को जनता द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले वैद्युत साधनों (electronic means) का प्रयोग कर जन-साधारण को उपलब्ध कराए जाने से है। इस प्रकार के सूचना प्रदाता साधन सूचना-प्रौद्योगिकी (information technology-IT) के रूप में जाने जाते हैं। सूचना-प्रौद्योगिकी के प्रयोग से सरकार को जनता एवं अन्य अभिकरणों को सूचनाओं के प्रसार हेतु प्रक्रिया को दक्ष, त्वरित एवं पारदर्शी बनाने तथा प्रशासनिक गतिविधियों के निष्पादन में सुविधा रहती है।
प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग करना ई-गवर्नेंस का पर्याय है। लोक प्रशासन में इस प्रकार का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा कुछ कम्प्यूटरों को लोकल एरिया नेटवर्क से जोड़कर किया गया था। एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेशन नेटवर्क नामक यह परियोजना ही विस्तारित होकर वल्र्ड वाइड वेब (w.w.w.) का रूप ले चुकी है। अमेरिका में दिसम्बर, 2002 में पारित ई-शासन अधिनियम-2002 के माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी एवं जनता से लोक सेवाओं का एकीकरण हो चुका है। देश-विदेश के अधिसंख्य सरकारी विभागों, अभिकरणों तथा संगठनों की अपनी इंटरनेट वेबसाइटें खुल गई हैं। इन वेबसाइटों के माध्यम से सूचना सरकारी संगठन तुलनात्मक रूप से अधिक पारदर्शी, संवेदनशील और जनोन्मुख सिद्ध हो सकते हैं। जैसाकि वर्तमान युग में सूचना आर्थिक विकास की कुंजी है इसलिए पूरी व्यवस्था सूचना के चारों ओर घूम रही है। वास्तव में ई-शासन एक विस्तृत संकल्पना है जो मात्र शासकीय व्यवस्था से संबंध नहीं रखती अपितु इसमें राजनितिक, सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक, तकनीकी, प्रशासनिक तथा अन्य आयाम भी शामिल हैं। यदि संकीर्ण अर्थ में देखा जाए तो इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर एवं सूचना विज्ञान के क्षेत्र में विकसित हुई युक्तियों का प्रशासन में प्रयोग करना ही ई-गवर्नेस है जबकि इसके विपरीत विस्तृत दृष्टिकोण में इसका अर्थ किसी भी संगठन, समाज या तंत्र के विविध पक्षों को नियंत्रित, विकसित, पोषित एवं समन्वित रखने के क्रम में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना ई-गवर्नेंस है। यह ई-नागरिक व्यवस्था का व्यापक प्रसार है।
बीसवीं सदी के प्रमुख चिन्तक एल्विन टाफलर ने कहा कि- मानव सभ्यता को दो प्रमुख क्रांतियों ने प्रभावित किया है। पहली क्रांति के तहत् 10,000 वर्ष पूर्व हुई कृषि क्रांति ने मानव के खानाबदोश जीवन को सुस्थिर आधार देते हुए सामाजिक-आर्थिक विकास को गति दिखाई तो दूसरी क्रांति 17वीं सदी की औद्योगिक क्रांति थी, जिसने मानव को भौतिकवादी तथा आधुनिक जीवन दिया। उन्होंने तीसरी क्रांति के रूप में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति की कल्पना की थी जो आज हमारे सामने प्रवर्तित है। 
भारत सरकार ने निकट भविष्य में सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महाशक्ति बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है। देश में अधिकांश विदेशी कम्पिनियों के लिए सस्ती प्रोग्रामिंग (cheap programming) किए जाने हेतु कार्यशालाओं के अस्तित्व से परिवर्तन आरम्भ हो चुके हैं। यहां प्रश्न यह उठता है कि, इस नए स्तर, जिसका भारत की जनता का एक बड़ा भाग आदी है, का क्या प्रभाव पड़ेगा, विशेषत: उन पर जो कि घरेलू अर्थव्यवस्था में प्रवासित हैं। शहरों में, साइबर कैफे (cyber cafes) का फैलता तंत्र बड़ी संख्या में मध्यवर्गीय लोगों को सुविधा उपलब्ध कराता है, जो कम्प्यूटर को वहन नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालयों के मध्य सामंजस्य एवं दूर शिक्षा के रूप में सीखने के नवीन अवसर भी सूचना-प्रौद्योगिकी के कारण ही उपलब्ध हैं।
तथापि, सूचना क्रांति का भारत के ग्रामीण निर्धनों पर काफी अल्प प्रभाव पड़ा है। जन-साधारण के लिए सूचना-प्रौद्योगिकी पर कार्य समूह (Working Group on Information Technology for Masses) नामक रिपोर्ट में यह व्यक्त किया गया की, सूचना-प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित करने वाले प्रयास भारतीय समाज में सूचना-प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं की सुविधा प्राप्तवर्ग एवं इस सुविधा से वंचित वर्ग के मध्य नए विभाजन को जन्म दे सकते हैं। यह एक आंगुलिक (digital) विभाजन होगा, जो पहले से ही विद्यमान विषमताओं को प्रतिवलित एवं तीव्र करेगा। इसी कारण से, सरकार ने नवीन सूचना-प्रौद्योगिकी के लाभों को निर्धनता रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाली 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक प्रसारित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
सूचना-प्रौद्योगिकी को जनसाधारण तक पहुँचाने हेतु सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्य काफी कम हैं, किंतु ये कार्य राज्य एवं स्थानीय का विस्तार करने हेतु, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में, भूमिका को प्रोत्साहित करने को उत्प्रेरणा एवं स्वीकृति प्रदान करते हैं। अनेक सृजनात्मक परियोजनाएं शुरू किए जाने के पश्चात् भी यह स्पष्ट नहीं है कि वे स्थानीय जनता की अत्यंत अनिवार्य आवश्यकताओं को प्रत्यक्षतः कहां तक पूर्ण कर सकी हैं। इन प्रयोगात्मक एवं विकीर्ण (scattered) परियोजनाओं का सावधानीपूर्वक अंतर-अनुशासनात्मक विश्लेषण करके उनके प्रभावों का निर्धारण कर पाने में समय लगेगा।

ई-गवर्नेस की श्रेणियां

भारत एवं विश्व के कई देशों में ई-गवर्नेस कई रूपों में प्रवर्तित हैं। स्थूल रूप से ई-गवर्नेस संबंधी परियोजनाओं को सेवा प्रदान करने की दृष्टि से पांच श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
  1. जी.टू.जी. (सरकार से सरकार तक): जब सरकार के किसी विभाग का दूसरे किसी विभाग से ई-गवर्नेंस के माध्यम से संपर्क होता है तो यह श्रेणी गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट कहलाती है। जैसे खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय, खाद्यान्नों सम्बन्धी आवश्यकताओं की सूचना कृषि मंत्रालय को भेजे या वित्त मंत्रालय अन्य मंत्रालयों को वित्तीय सूचना उपलब्ध कराए इत्यादि।
  2. जी.टू.सी. (सरकार से जनता तक): सरकार एवं नागरिकों के बीच पास्परिक व्यवहार गवर्नमेंट टू सिटीजन श्रेणी में आता है जैसे आयकर विवरणी जमा कराना, विद्युत् एवं जल सम्बन्धी शिकायतें करना इत्यादि।
  3. जी.टू.बी. (सरकार से व्यवसाय तक): गवर्नमेंट टू बिजनेस श्रेणी के अंतर्गत सरकार व्यापार जगत से संपर्क कर लेन-देन करती है, जैसे ऑनलाइन ट्रेडिंग तथा सीमा एवं उत्पाद शुल्क संबंधी प्रकरण इत्यादि।
  4. जी.टू.ई. (सरकार से कर्मचारी तक): इसमें सरकार अपने कर्मचारियों (गवर्नमेंट टू इम्पलॉयी) से संप्रेषण करती है।
  5. सी.टू.सी. (नागरिक से नागरिक तक): सिटीजन टू सिटीजन श्रेणी में नागरिकों का पारस्परिक सम्पक होता है।
इन उपरोक्त श्रेणियों का विकास कर प्रशासन का उपसर्ग ''- दक्षता (एफिशिएंसी), सशक्तिकरण (एम्पावरमेंट), प्रभावशीलता (इफेक्टिवनेस), आर्थिक एवं सामाजिक विकास (इकॉनोमिक एण्ड सोशल डेवलपमेंट), संवर्द्धित सेवा (एनहांस्ड सर्विस) जैसे तत्वों को हासिल करने का प्रयास करता है।

ई-गवर्नेस की विशेषताएं

इसमें प्रशासनिक नेतृत्व एवं प्रौद्योगिकी का एकीकरण हो जाता है।
  1. सरकारी विभागों या अभिकरणों से संबंधित सूचनाएं एवं सेवाएं इण्टरानेट एवं इंटरनेट पर उपलब्ध होना एवं स्वयं सरकार द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी की आधुनिक तकनीकों का प्रशासनिक कृत्यों में प्रयोग करना, ई-गवर्नेस का व्यावहारिक स्वरूप है।
  2. ई-शासन की अवधारणा मूल रूप से बेहतर सरकार की मान्यता को पल्लवित करती है जिसके तहत म्नौकर्शाही का छोटा आकार, प्रशासन में सच्चरित्रता, लोक सेवाओं के प्रति जवाबदेही, जनता में प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता जगाना तथा प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लाना इत्यादि शामिल हैं।
  3. यह प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का संपूर्ण आत्मसात् कारण है और इसमें ई-गवर्नेस शामिल है।
  4. यह अभिशासन की स्थापना की एक पद्धति है।
  5. इस व्यवस्था से कागजी कार्यवाही में कमी आती है तथा विलंब और बाबू राज पर रोक लगती है।
  6. ई-गवर्नेस द्वारा टेलीकांफ्रेंस संभव हुआ है जिससे प्रशासन में दक्षता आई है।
  7. इसमें एक ही कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होती और निर्धारित इलेक्ट्रॉनिक कार्यक्रमों के रूप में प्रोग्राम विकसित कर दिया जाता है।
  8. ई-गवर्नेस, लोक प्रशासन में स्वचालन की अवधारणा तथा प्रयासों का परिष्कृत एवं विस्तार स्वरूप है।
ई-गवर्नेंस के लाभ
ई-गवर्नेंस नागरिकों एवं व्यवसाय के लिए सुगम एवं लागत हितैषी है। इसके माध्यम से बिना समय, ऊर्जा एवं पैसा गवांए बेहद अद्यनूतन सूचना प्राप्त हो जाती है। ई-शासन के लाभों में शामिल हैं- दक्षता, बेहतर सेवाएं, लोक सेवाओं तक बेहतर पहुंच और अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही।
  1. सरकारी विभागों की संगठनात्मक, कार्यात्मक एवं प्रक्रियात्मक सूचनाएं
  2. विकासपरक एवं सामाजिक कल्याण से संबंधित योजनाओं का विवरण
  3. आदेश पत्रों की उपलब्धता एवं भरे हुए पत्रों की स्वीकार्यता
  4. पंजीकरण सुविधा
  5. दस्तावेजों की प्रतिलिपियां
  6. ऑनलाइन मण्डी, नीलामी तथा बिल जमा सुविधा
  7. अपराधियों, भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों तथा करदाताओं से सम्बंधित विवरण
  8. शिकायत पंजीकरण तथा निस्तारण
  9. प्रबोधन, नियंत्रण तथा मूल्यांकन की नियमित एवं निर्धारित प्रक्रियाएं
  10. कागजी कार्रवाई में कमी आती है और बाबू राज पर अंकुश लगता है।
  11. अधिकारियों के व्यक्तिगत दौरों, निरीक्षण, पर्यवेक्षण तथा प्रत्यक्ष नियंत्रण का स्थान दूर बैठ वार्तालाप ने ले लिया है।
  12. नियंत्रण का क्षेत्र व्यापक हो गया है।
  13. एक ही प्रकृति के कार्य को बार-बार करने की बजाय निर्धारित इलेक्ट्रॉनिक कार्यक्रमों के रूप में विकसित कर दिया जाता है।

ई-गवर्नेस के जोखिम एवं आलोचना

ई-गवर्नेंस के क्रियान्वयन एवं निर्माण में कई चिंताएं एवं सबल कारक अंतर्निहित हैं।
  1. अत्यधिक निगरानी: सरकार एवं इसके नागरिकों के बीच बढ़ता संपर्क दोनों तरीके से कार्य कर सकता है। एक बार ई-गवर्नमेंट विकसित होना शुरू हो जाती है और बेहद परिष्कृत बन जाती है, तो नागरिकों को व्यापक पैमाने पर सरकार के साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप से संपर्क करने के लिए बाध्य किया जाएगा। सम्भावना है की इससे नागरिकों की निजता भंग होगी। सरकार एवं नागरिकों के बीच इलेक्ट्रॉनिक रूप से अत्यधिक सूचनाओं का आदान-प्रदान निरंकुश व्यवस्था को पल्लवित कर सकता है। सरकार अपने नागरिकों की असीमित सूचना को प्राप्त कर सकती है और इस प्रकार नागरिक की निजता पूरी तरह से समाप्त हो सकती है।
  2. लागत: ई-गवर्नेस में इससे सम्बद्ध प्रौद्योगिकी के विकास एवं क्रियान्वयन में अत्यधिक धन व्यय होता है।
  3. सभी की पहुंच में न होना: ई-गवर्नेस से तात्पर्य लगाया जाता है कि सरकार की सूचना एवं सेवाओं तक सभी नागरिकों की पहुंच हो सकती है और जो एक लोकतंत्र के लिए अच्छा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है की सभी नागरिक स्वतः सूचना एवं सेवाओं को प्राप्त करने की स्थिति में हैं।
  4. तकनीकी उपकरणों की मुश्किल प्राप्ति: ई-गवर्नेस में कंप्यूटर, बेतार, संजाल, सीसीटीवी, ट्रेकिंग तंत्र, टीवी और रेडियो जैसे उपकरणों का प्रयोग शामिल होता है। विकासशील देशों में इस प्रकार तकनीकियों को अपनाना एक समस्या हो सकती है।
  5. पारदर्शिता एवं जवाबदेही का असत्य बोध: ऑनलाइन सरकारी पारदर्शिता द्विअर्थी प्रतीत होती है क्योंकि इसे स्वयं सरकार नियंत्रित करती है। सूचनाओं को इंटरनेट साइट से लोगों के लिए रखना या हटाना सरकार द्वारा किया जाता है। उदाहरणार्थ, न्यूयार्क शहर में 11 सितम्बर, 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अपनी सरकारी वेबसाइट से राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अधिकतर सूचनाएं हटा दी।
ई-गवर्नेस, नीति-निर्माण एवं सार्वजनिक तंत्र: सरकार द्वारा नीति-निर्माण, नागरिक सहभागिता एवं लोक कार्य काफी समय से जटिल प्रक्रिया रही है। सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली परम्परागत नीति-निर्माण प्रक्रिया है:

  1. नागरिकों द्वारा निर्वाचनों एवं करों के भुगतान के मध्य प्रासंगिक आगत (occasional input) उपलब्ध कराया जाता है।
  2. शासकीय अवसंरचना में शक्ति का केंद्रण राजनीतिक नेताओं के हाथो में निहित रहता जो कि विस्तृत नीतिगत प्राथमिकताएं निर्धारित करते हैं तथा इन प्राथमिकताओं और विद्यमान कार्यक्रमों एवं वैधानिक आवश्यकताओं के आधार पर संसाधनों का आवंटन करते हैं।
  3. प्रत्यक्षत: सरकार तथा अन्य सार्वजनिक निधिबद्ध (publicly funded) संगठनों के द्वारा लोक कार्य नीतिगत कार्य सूची एवं कानून के क्रियान्वयन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अधिकाल से ही, नागरिक आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं में परिवर्तन को पहचानने में नेताओं के समक्ष नौकरशाही एक बड़ी बाधा है। निर्वाचनों के अतिरिक्त नागरिक आगत (citizen input) के विषय में जान पाना थोड़ा कठिन होता है। बेहतर संवाद व्यवस्था की अक्षमता से बहुधा नागरिकों, नेताओं एवं लोक कार्यों का क्रियान्वयन करने वालों के मध्य वियोजन (disconnects) उत्पन्न होता है।
 अपने एक-मार्गीय (one-way) प्रसारण को द्धि-मार्गीय (two way) बनाने से शासन प्रक्रिया अधिक दक्षता से जनता की समस्याएं सुनने एवं उन पर प्रतिक्रिया कर पाने में और अधिक दक्ष हो सकेगी।

सार्वजनिक तंत्र

सार्वजनिक तंत्र (public network) एक नवीन संकल्पना है। यह संकल्पना प्रत्यक्ष एवं विभाजित ऑनलाइन स्टेकहोल्डर के माध्यम से स्थापित सार्वजानिक नीतियों के लक्ष्यों एवं कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन हेतु आईसीटी के प्रयोग हेतु प्रयुक्त की जाने वाली रणनीतियों को इंगित करती है।
ई-लोकतंत्र यदि सरकार में शासन के भीतर निवेश (input) का प्रतिनिधित्व करता है तो सार्वजनिक तंत्र उसी अथवा उसी प्रकार के ऑनलाइन उपकरणों के अनुप्रयोग द्वारा सहभागी निर्गत (participative output) का प्रतिनिधित्व करता है। सार्वजनिक तंत्र एक चयनात्मक अवधारणा है, जो कि पूर्व निर्धारित, सरकारी नीतियों को सम्भालने हेतु द्वि-मार्गीय ऑनलाइन सूचनाओं के आदान-प्रदान का प्रयोग करती है।

ई-लोकतंत्र

एक व्यावहारिक परिभाषा के अनुसार, ई-लोकतंत्र (e-democracy) वर्तमान सूचना युग में प्रतिदिन के लोकतांत्रिक शासकीय प्रतिनिधित्व को बनाए रखने एवं उसके रूपांतरण में सहायता हेतु आवश्यक है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा रणनीतियों का स्थानीय संचार, राज्य/क्षेत्रों, राष्ट्रों एवं वैश्विक स्तर की राजनीतिक प्रक्रिया के भीतर लोकतांत्रिक क्षेत्रों (democratic sectors) द्वारा प्रयोग किया जाना ही ई-लोकतंत्र है।
साथ ही सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण से शक्तिशाली बनाना और उत्पादकता व् रचनात्मकता के लिए पुरस्कृत करना, नागरिकों को क्लाइंट के रूप में देखना तथा सरकार में और अधिक पारदर्शिता तथा दायित्वशीलता बढ़ाने के लिए पहल करना भी इसके दायरे में आते हैं। इसके अतिरिक्त, सूचना युग ने मताधिकार संपन्न एवं गैर-मताधिकार वाले गरीब तबकों के बीच अवसरों तक पहुँच कायम करने को लेकर बनी खाई की और गहरा बना दिया है। सु-शासन केवल सूचना और संचार तकनीकी द्वारा प्रस्तुत प्रभावी तरीकों को आत्मार्पित किए जाने तक ही सिमित नहीं है, अपितु सभी नागरिकों को इस तकनीकी तक पहुँच प्राप्त हो, अवसर तक पहुँच कयन होना विकास का एक महत्वपूर्ण वाहक माना गया है।
ई-गवर्नमेंट की व्यापक अवधारणा भी ई-लोकतंत्र के समान है। ई-गवर्नमेंट का अर्थ सरकारी अभिकरणों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग है, जिनमे नागरिकों, व्यवसायों और सरकार के अन्य अंगों के साथ संबंधों को परिवर्तित करने की क्षमता है। ये प्रौद्योगिकियां विविध प्रकार के लक्ष्यों को पूरा कर सकती हैं। नागरिकों को सरकारी सेवाओं की की बेहतर डिलीवरी, व्यवसाय और उद्योग के साथ बेहतर आपसी संपर्क, सूचना तक अभिगम प्रदान कर नागरिक का सशक्तीकरण अथवा अधिक कुशल सरकारी प्रबंधन। उभरती सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के कारण सेवा केन्द्रों को ग्राहकों के निकट रखना संभव है। ऐसे केन्द्रों में सरकारी एजेंसी में बिना प्रभारी के किओस्क, ग्राहक के निकट अवस्थित सेवा किओस्क या घर अथवा कार्यालय में पर्सनल कम्प्यूटर का उपयोग शामिल हो सकते हैं। ई-गवर्नमेंट का उद्देश्य सरकार और नागरिकों, सरकार और व्यवसायिक उद्यमों के बीच आपसी संपर्क और अंतर-अभिकरण संबंधों को अधिक मैत्रीपूर्ण, सुविधाजनक, पारदर्शी और कम खर्चीला बनाना है।
इस प्रकार, ई-लोकतंत्र समाज के सभी वर्गों के द्वारा राज्य के अभिशासन में भाग ले सकने की क्षमता के माध्यम से लोकतंत्र की विकास की दिशा में भी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समग्र रूप में, ई-लोकतंत्र पारदर्शिता, उत्तरदायित्व की भावना एवं सहभागिता बढ़ाने की प्रक्रिया है।
निम्नलिखित लोकतांत्रिक कर्ताओं (democratic actors) लोकतांत्रिक क्षेत्रों के अंतर्गत सम्मिलित किया जा सकता है-
  1. सरकारें (governments)
  2. निर्वाचित अधिकारी (elected officials)
  3. मीडिया (एवं सभी बड़े ऑनलाइन पोर्टल) [media (and major online portals)]
  4. राजनितिक दल एवं हित समूह (political parties and interest groups)
  5. लोक समाज संगठन (civil society organisations)
  6. अंतर्राष्ट्रीय सरकारी संगठन (international governmental organisations)
  7. नागरिक/मतदाता (citizens/voters)
शासन में ई-लोकतंत्र के लक्ष्य: लोकतंत्र एवं प्रभावी शासन को प्रोत्साहित करने हेतु शासन में ई-लोकतंत्र के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं:
  1. सरकार द्वारा निर्णयन (decisions) में सुधार।
  2. सरकार में नागरिकों के विश्वास को बढ़ाना।
  3. सरकार की उत्तरदायित्वता एवं पारदर्शिता में वृद्धि करना।
  4. जन-इच्छा को सूचना युग में समायोजित करने की क्षमता।
  5. गैर-सरकारी संगठनों, व्यापार, एवं सार्वजानिक चुनौतियों से लड़ने हेतु नए मार्गों की खोज में रुचि रखने वाले नागरिकों सहित पणधारिता (stakeholders) में प्रभावी समामेलन।

ई-पंचायत

भारत में पंचायती राज के माध्यम से लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण किया गया है। यह शासन का प्रमुख कार्यान्वयन निकाय होता है, जिस पर पूरी विकासात्मक योजना की सफलता निर्भर करती है। इसलिए शासन की इस निम्न इकाई में उच्च स्तरीय सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में ई-पंचायत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके लिए पंचायत से संबंधित सभी मामलों, नियमों, सरकारी योजनाओं से संबंधित सभी सूचनाओं आदि का कम्प्यूटर द्वारा संग्रहण कर उनका सहज लाभ आम आदमी तक पहुंचाया जा सकता है।
दरअसल ई-पंचायत से अर्थ इलेक्ट्रॉनिक पंचायत से है। इसके अंतर्गत सुचना और संचार की आधुनिक तकनीक का उपयोग कर पंचायत, को कम्प्यूटरीकृत किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य पंचायत-स्तर शासन प्रबंधन में गुणात्मक और मात्रात्मक सुधार करना है। ई-पंचायत के माध्यम से बेहद तेजी से और कम समय में सूचना का प्रसार होता है जिसका लाभ ग्रामीण जीवन में हो रही प्रगति में मिल सकेगा। जहां ई-पंचायत का प्रारंभ हो गया है वहां ग्रामीण क्षेत्रों के शासन प्रबंधन में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है, जो पंचायत के सुधार और अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है इससे पंचायत स्तर पर पारदर्शिता, शांति, सुरक्षा एवं समानता लाने में मदद मिल रही है। उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार महिलाओं के प्रवेश ने पंचायत स्तर पर पुरुष वर्ग के आधिपत्य को कमजोर किया है, ठीक उसी प्रकार इस स्तर पर कम्प्यूटर एवं इंटरनेट का प्रवेश सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव लाने का कार्य करेगा।
वर्तमान में पंचायत की राज्य संचित निधि से व्यय राशि आवंटित की जाती है, लेकिन इसकी सही जानकारी आम लोगों तक नहीं पहुंच पाती। ई-पंचायत के माध्यम से वित्तीय अपारदर्शिता को समाप्त किया जा सकता है। इसका सकारात्मक परिणाम लोगों के प्रति व्यक्ति आय में देखने को मिलेगा। ई-पंचायत तकनीक द्वारा लोगों में राजनीतिक अधिकार के प्रयोग की शिक्षा से सामाजिक जागरूकता आएगी, जिससे लोगों में नागरिक गुणों का विकास होगा,जनता और शासक में एक-दूसरे की परेशानियों को समझने की भावना उत्पन्न होगी, जिससे परस्पर सहयोग का विचार उत्पन्न होगा। यह सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए बहुत बड़ी क्रांति होगी। ई-पंचायत के माध्यम से भूमि संबंधी दस्तावेजों, नक्शों एवं सरकारी कानूनों और आदेशों की किसानों को सहज प्राप्ति कराई जा सकती है, जिससे लोगों को समान रूप से आर्थिक लाभ एवं न्याय मिल सके।

ई-पंचायत की सफल बनाने के लिए जरूरी कदम

  1. पंचायत स्तर पर बुनियादी सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित करना।
  2. प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एक ग्राम सेवक तथा सह-सूचना अधिकारी की नियुक्ति करना।
  3. कम्प्यूटर एवं इंटरनेट से संबंधित ज्ञान द्वारा जन चेतना व्यापक करना।
  4. ग्राम पंचायत से संबंधित सभी सूचनाओं का संग्रहण एवं निर्देशन करना।
  5. कम्प्यूटर; इंटरनेट के प्रयोग और उपयोग से संबंधित जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
लोगों में सूचना प्रौद्योगिकी एवं सूचना के अधिकार के प्रति भरोसा बढ़ा है। पंचायत की किसानों एवं जनता को कम्प्यूटर की स्क्रीन पर ही अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त कराई जा सकती है। एटीएम से रुपया निकालना, बसों एवं रेलों में आरक्षण की स्थिति जानना एवं टिकट प्राप्त करना इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ई-पंचायत के द्वारा कोई भी व्यक्ति कृषि सम्बन्धी जानकारी एवं मौसम सम्बन्धी जानकारी हासिल कर सकता है और उस सूचना के अनुसार कार्यवाही की जा सकती है। ई-मेल के द्वारा जनता अपनी शिकायत सरकार से कर सकती है और समाधान तथा जानकारियां प्राप्त कर सकती हैं। ई-पंचायत सरकार द्वारा पंचायत को पिछड़े युग से सूचना युग तक पहुंचाने के लिए किया जाने वाला प्रयास है। आज सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान बढ़ता जा रहा है और ऐसे परिदृश्य में पंचायत को इससे जोड़ना अत्यावश्यक है। इस प्रकार ई-पंचायत के माध्यम से प्रभावी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बहाल कर सुशासन भी स्थापित किया जा सकता है।

भारत में ई-गवर्नेस

भारत में सुशासन के प्रयास में सूचना क्रांति ने एक शक्तिशाली उपकरण का कार्य किया है। ज्ञातव्य है कि भारत सूचना प्रौद्योगिकी क्षमता में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ई-प्रशासन, ई-शिक्षा, ई-व्यापार, ई-वाणिज्य, ई-मेडिसिन आदि ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ सुचना प्रौद्योगिकी की प्रभावशाली भूमिका में महत्वपूर्ण प्रगति देखी जा सकती है।
ई-गवर्नेंस के अंतर्गत सरकारी सेवाएं एवं सूचनाएं पहुँचाने में विभिन्न इलैक्ट्रॉनिक विधियों एवं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। ई-प्रशासन के माध्यम से शासन को सरल, नागरिकोन्मुख, पारदर्शी, जवाबदेह एवं त्वरित बनाया जा सकता है।
वर्ष 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से राष्ट्रीय एवं राज्य सरकारें उत्साहपूर्वक सुचना और संचार प्रौद्योगिकी प्रणाली को अपनाती चली आ रही हैं, जिसमे खास तौर पर इन्टरनेट सहित वेब आधारित तकनीकी भी है। भारत सरकार के प्रमुख विकास स्तंभों में सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, जिसके द्वारा इलेक्ट्रॉनिक संवाद की वैधता प्रदान की गई और इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए कार्य प्रथाओं का नियमन किया गया और सुचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (इसके द्वारा जनसंस्थानों की सूचना की मांग करने वाले नागरिकों की जानकारी देने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया) शामिल हैं।

ई-गवर्नेस के उद्देश्य

  1. सरकार के निर्णयों में सुधार
  2. सरकार में लोगों के विश्वास में वृद्धि करना
  3. सरकार की जवाबदेही एवं पारदर्शिता बढ़ाना
  4. सूचना युग में नागरिकों की इच्छाओं की सुव्यवस्था की योग्यता प्राप्त करना
  5. नाइ चुनौतियों का सामना करने में गैर-सरकारी संगठनों, व्यवसायियों एवं इच्छुक नागरिकों को प्रभावी रूप से शामिल करना।

ई-गवर्नेस की उपयोगिता

  1. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग भी देश-विदेश के घटनाक्रम से भली-भांति परिचित हो सकेंगे।
  2. इसके माध्यम से योजनाओं एवं दस्तावेजों का सुव्यवस्थित रख-रखाव संभव हो सकेगा।
  3. सूचना का अधिकार एवं ई-प्रशासन मिलकर देश के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकेंगे।
  4. विभिन्न योजनाओं/परियोजनाओं की जानकारी एक आम आदमी तक इंटरनेट के माध्यम से पहुंचायी जा सकती है ताकि वे उसके बारे में जान सकें एवं लाभान्वित हो सकें।
  5. ज्ञान-आधारित भारत के निर्माण में ई-गवर्नेस एक महत्वपूर्ण कारक है।
  6. सूचनाएं सीधे सम्बद्ध व्यक्ति तक पहुंच सकेंगी और बिचौलियों की भूमिका खत्म हो सकेगी जो शोषण का एक कारक है।
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के समावेशन में शामिल प्रयासों और देश में ई-गवर्नेस संबंधी कार्यक्रम देश के प्रशासनिक परिवर्तन प्रयासों के व्यापक ढांचे के भीतर तैयार किए जाने चाहिए। इस संबंध में भारत में द्वितीय प्रशासनिक आयोग (2005) की नियुक्ति की गई। आयोग नियुक्त करने में, भारत सरकार ने लोक प्रशासन व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए एक विस्तृत रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता बतायी। आयोग की सरकार के सभी स्तरों पर देश के लिए पहलकारी, अनुक्रियाशील, जवाबदेह, सतत् और कुशल प्रशासन उपलब्ध कराने के लिएउपायों का सुझाव देने की जिम्मेदारी सौंपी गई। भारत के सन्दर्भ में एक बात बेहद महत्वपूर्ण है कि द्वितीय प्रशासनिक आयोग अन्य बातों के साथ-साथ-
  1. नागरिक केंद्रित प्रशासन और,
  2. ई-गवर्नेस को बढ़ावा देने के उपायों की भी जिम्मेदारी दी गई है।
इस प्रकार ई-गवर्नेस को सूचना एवं प्रौद्योगिकी के समावेशन के माध्यम से एक प्रकार के एक-कालिक परिवर्तन के रूप में अनुदार नहीं माना गया है। यह बेहद तर्कसंगत एवं औचित्यपूर्ण है की सुचना एवं संचार प्रद्योगिकी के समावेशन को व्यापक और सर्वंगी सरकारी सुधार का एक अभिन्न अंग बना दिया गया है।

 नई विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था (NWICO) : 

अंतर्राष्ट्रीय संचार के इतिहास की पड़ताल से पता चलता है कि नई विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था की मांग का प्रमुख कारण विकसित देशों द्वारा असंतुलित सूचना प्रवाह था। इसके अलावा भी कई अन्य थे, जिसके चलते तीसरी दुनिया के विकासशील देश पहली दुनिया के विकसित देशों के खिलाफ लामबन्द होने लगे। यथा-
1.         द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद छोटे-छोटे साम्राज्यों के टूटने से नये देशों का अभ्युदय।
2.         पश्चिमी के औद्योगिक व विकसित देशों का नये देशों के साथ सम्बन्ध, जिससे पश्चिमी देशों का आर्थिक और राजनैतिक प्रभाव का लगातार बढ़ना।
3.         यू.एस. और यू.एस.एस.आर. के आक्रामक प्रभाव से परेशान होकर नये देशों का गुटनिरपेक्ष देशों के साथ जुड़ना।
4.         अंतर्राष्ट्रीय संगठनों- यू.एन.ओ. और यूनेस्को में विकसित देशों का वर्चस्व।
इस मुद्दे को विकासशील देशों ने गुट निरपेक्ष आंदोलन (G-77), संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) तथा संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रमुखता से उठाया। अल्जीरिया में आयोजित (5-9 सितम्बर, 1975) गुट निरपेक्ष देशों के चतुर्थ सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय संचार को बढ़ावा देने के लिए नई विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था (NWICO) की मांग की गई। इस सम्मेलन में 75 सदस्य देश तथा 24 पर्यवेक्षक देश और तीन अतिथि देश सम्मलित हुए थे। इस मुद्दे पर सन् 1976 में ट्यनिस एवं कोलम्बो सम्मेलन में भी विचार-विमर्श किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय संचार व्यवस्था पर आधारित विचार-विमर्श का प्रमुख केन्द्र होने के कारण यूनेस्को नई विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था (न्यूको) की स्थापना के लिए प्रयास किया। इसके लिए मैकब्राइड आयोग का गठन और सम्मेलन का आयोजन किया। सन् 1980 में यूनेस्को के सामान्य अधिवेशन में नई विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था (NWICO) के लिए निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का निर्धारित किया:- 
1.     वर्तमान संचार व्यवस्था में व्याप्त असंतुलन को समाप्त करना।
2.   एकाधिकारी, सार्वजनिक, निजी और अति केन्द्रीकृत व्यवस्था के नकारात्मक प्रभाव को समाप्त करना।
3.   विचारों एवं सूचनाओं के स्वतंत्र प्रवाह एवं विस्तारीकरण के मार्ग में आने वाली आन्तरिक एवं वाह्य बाधाओं को दूर करना।
4.   सूचना के साधनों एवं माध्यमों की संख्या में बढ़ोत्तरी करना।
5.   सूचना एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
6.   पत्रकारों एवं जनमाध्यमों से जुड़े लोगों की उत्तरदायित्वपूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
7.   विकासशील देशों को उनकी क्षमता के अनुरूप उपकरण व प्रशिक्षण में वृद्धि करना और आधारभूत सुविधाओं, आवश्यकताओं एवं उद्देश्यों के अनुरूप् संचार व्यवस्था का विकास करना।
8.     विकसित देशों में इन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग करने की भावना जागृत करना।
9.     एक दूसरे की सांस्कृतिक पहचान और प्रत्येक देश को अपने व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक हित के बारे में विश्व को सूचित करने के अधिकार का सम्मान करना।
10.   सूचना के अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान के संदर्भ में वैयक्तिक अधिकारों का सम्मान करना।
11.   प्रत्येक व्यक्ति की सूचना एवं संचार व्यवस्था में सहभागिता के अधिकार का सम्मान करना।
नई विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था ही तीसरी दुनिया के देशों के विकास का प्रमुख साधन है। इसके लिए विकासशील देश लगातार प्रयत्नशील हैं।

मैकब्राइड आयोग : 

यूनेस्को ने सन् 1977 में एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग का गठन किया, जिसके अध्यक्ष आयरलैण्ड के पूर्व विदेशमंत्री सीयेन मैकब्राइड थे। इस आयोग में कनाडा के विश्व विख्यात संचारविद् मार्शल मैकलुहान के अलावा मिचियो नगाई, मुस्तफा मसमूदी, मोक्तर लूविस, एल्बे मा एकेंजो समेत कुल 15 संचार विशेषज्ञ, शिक्षाविद्, पत्रकारिता एवं प्रसारण विशेषज्ञों को सदस्य बनाया गया था। मैकब्राइड आयोग ने नई अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में विकासशील देशों की आवश्यकता को केन्द्र में रखकर सूचना के मुक्त एवं संतुलित प्रवाह की समस्या का अध्ययन किया तथा 82 महत्वपूर्ण सुझाव दिये। अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद मैकब्राइड आयोग स्वतः समाप्त हो गया।
सन् 1980 में मैकब्राइड आयोग ने 'दुनिया एक - विचार अनेक' (Many Voices One world) शीर्षक से अपनी अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत किया, जिसमें पश्चिमी देशों के संचार माध्यमों के साम्राज्यवादी एवं एकाधिकारवादी प्रभुत्व पर चिन्ता व्यक्त की गई थी। इस रिपोर्ट में यूनेस्को ने बेलग्रेड सम्मेलन में प्रस्तुत किया। इस दौरान पश्चिम के विकसित देशों ने मैकब्राइड आयोग के सुझावों को मानने से इंकार कर दिया। मैकब्राइड आयोग का सुझाव था कि- 'संचार माध्यमों का सामाजिक या आर्थिक नीति के औजार के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।' जबकि पश्चिमी देशों का तर्क था कि- 'संचार माध्यमों को अपने उद्देश्य का निर्धारण और क्रियान्वयन के मापदण्डों का स्वयं निर्धारित करना चाहिए, न कि सरकारों या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को।'
बेलग्रेड बैठक में जिन प्रस्तावों को स्वीकृति मिली, उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सभी सदस्य देशों से आह्वान किया गया कि वे अपनी राष्ट्रीय संचार क्षमताओं का विकास करें और विचार, अभिव्यक्ति एवं सूचना की स्वतंत्रता की रक्षा की मूल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संचार के विकास की रणनीति का हिस्सा बनाये। साथ ही यूनेस्कों से अपेक्षा की गई कि वह सूचना और संचार के नए क्षेत्र में समस्याओं की पहचान करने तथा उनके समाधान में निर्णायक भूमिका का निर्वाह करें। इसके बावजूद किसी प्रकार का अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाने का निर्णय नहीं लिया। अंतर्राष्ट्रीय संचार एवं सूचना प्रवाह के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय कानून बनाने का सबसे पहले अमेरिका ने विरोध किया और वह यूनेस्को से अलग हो गया। बाद में ब्रिटेन ने भी अमेरिका की राह पर चलना प्रारंभ कर दिया और वह भी अलग हो गया।

कन्वर्जेंस : आवश्यकता, प्रकृति और भविष्य (Convergence: Need, nature and future of convergence)

    आधुनिक तकनीकों का संगम ही कन्वर्जन्स है। प्रसारण, केबल, कम्प्यूटरिंग, मल्टीमीडिया, नेटवर्क, उपग्रह, दूरसंचार का सम्मिश्रण कन्वर्जन्स अत्याधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी का वरदान है जिसने विश्वग्राम का स्वप्न चरितार्थ किया है। सन् 1939 में न्यूयार्क के एक मेले में एक टेलीविजन का सेट प्रदर्शित किया गया जो टीवी, रेडियो, रिकॉर्डर, प्लेबैक, फैक्स तथा प्रोजेक्टर का मिश्रण था। ऑडियो, वीडियो तथा डेटा को एक ही सूत्र में पिरोकर एक ही माध्यम द्वारा एक ही स्रोत से उपलब्ध करा पाने में सक्षम प्रक्रिया को ही कन्वर्जेन्स कहा जाये तो उचित है।
      कन्वर्जेन्स टेलीकम्यूनिकेशन, ब्रॉडकास्टिंग तथा कम्प्यूटर नेटवर्किंग को सम्मिलित कर एक ऐसे एकल डिजिटल नेटवर्क का निर्माण करता है जिसके द्वारा उपभोक्ता की आवश्यकताएं- टेलीफोन, फैक्स, टेलीविजन, इंटरनेट, वीडियोफोन, मूवी, संगीत, मनोरंजन आदि एक ही स्रोत से पूरी की जाती है।
      कन्वर्जन का प्रमुख उद्देश्य उपलब्ध विभिन्न जनोपयोगी तकनीकों को समेकित कर एक ऐसे एकल मध्यम द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुंचाना है जिस पर कन्वर्जेंन्स की सहायता से विभिन्न सेवाएं एक साथ प्रदान की जा सकें। इसके अतिरिक्त डिजिटल मनोरंजन भी इसका एक प्रमुख हिस्सा है। अब जो कन्वर्जेन्स तकनीक प्रचलन में है उसमें इंटरनेट द्वारा वीडियो, मूवी, संगीत आदि का लुत्फ अपने होम थियेटर यानी कम्प्यूटर पर लिया जा रहा है।
      1980 से 1990 तक के दशक को संचार का दशक कहा जाये तो 1991 से 2000 तक के दशक को सूचना क्रान्ति का दशक कहा जा सकता है। इसी तरह 2001 से 2010 तक के दशक को इलेक्ट्रानिक कन्वर्जेन्स (ई-कन्वर्जेन्स) कहा जायेगा, क्योंकि इसमें कई प्रकार की सेवाओं का पूरे तालमेल के साथ समन्वय हो जाएगा। कन्वर्जेन्स का अर्थ है  सभी स्तरों पर परिवर्तन यानी टेक्नोलॉजी, अंतर्वस्तु, प्रसार-क्षेत्र और विपणन जैसे विीन्न क्षेत्रों में बदलाव। कन्वर्जेन्स को सूचना समाज के निर्माण में सहायक माना जाता है, इसमें समाज पर दूरगामी प्रभाव डालने की क्षमता है।
      विभिन्न टेक्नोलॉजी को समन्वित रूप् से एक ही लक्ष्य की दिशा में अभिमुख कर सूचना टेक्नोलॉजी और प्रसारण सेवाओं को एक ही चैनल यानी सरणि से ग्राहकों व उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाया जा सकता है। एक जमाना था जब एक टेक्नोलॉजी का केवल एक उपयोग संभव था, यह उपयोगी भी किसी खास कार्य के लिए किया जाता था, परम्परा से ही विभिन्न संचार माध्यमों का अपना अलग-अलग अस्तित्व रहा है। प्रसारण, टेलीपफोन और ऑनलाइन कम्प्यूटर सेवाओं का अपना-अपना अलग दायरा था, ये अलग-अलग नेटवर्क पर कार्य करते थे और इनमें विभिन्न प्लेटफार्म यानी मंचों का उपयोग होता था।
कन्वर्जेन्स तीन मुख्य धाराओं से मिला होता है-
      1.  कंटेन्ट- आडियो, वीडियो, डेटा इत्यादि ... सूचना व मनोरंजन;
     2. प्लेटफार्म- पीसी, टीवी, इंटरनेट उपकरण, मोबाइल, फोन इत्यादि, ...प्लेटफार्म या उपकरण जिस पर उपभोक्ता कंटेन्ट प्राप्त करता है।
    3. वितरण या डिस्ट्रीव्यूशन- कंटेन्ट को उपभोक्ता उपकरणों (प्लेटफार्मो) पर पहुंचाने के लिए वितरण माध्यम।
     कन्वर्जेन्स के विकास में मनोरंजन या इंटरटेरमेंट कंटेन्ट महत्वपूर्ण है। वर्ल्ड वाइड वेब ने इस बात की आवश्यकता पर बल दिया कि किस प्रकार इसे कम्प्यूटरों के दायरे से निकाल कर मोबाइल फोन या टेलीविजन सेट पर भी पहुंचाया जाए, साथ ही तकनीकी विकास की उत्तरोत्तर वृद्धि के कारण इसने नये-नये अप्लीकेशनों द्वारा नये-नये मार्ग खोले; इसने कन्टेन्ट (डेटा, वीडियो, आडियो आदि) के नियंत्रण से लेकर पैकेजिंग तक के कार्य के लिए अनेक आयाम उत्पन्न कर दिये; उपभोक्ता वांछित संगीत आसानी से डाउनलोड कर मुफ्त में सुन सकता है। परंतु अब कन्वर्जेन्स में कनटेन्ट की अपेक्षा प्लेटफार्म (कम्प्यूटर, टीवी सेट, मोबाइल पफोन तथा अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों) की उपलब्धता ने उपभोक्ताओं के समक्ष चयन की गुंजाइश प्रदान की है। जैसे-जैसे कन्वर्जेन्स विकसित हो रहा है वैसे-वैसे लोग अपनी-अपनी रणनीति निर्धारित कर रहे हैं।
     मीडिया तथा संचार तकनीकों के साथ-साथ इलेक्ट्रानिक उद्योग में आए तकनीकी परिवर्तनों ने कन्वर्जेन्स की अवधारणा को साकार रूप दिया है। सूचना, संगीत, मनोरंजन या ध्वनि आदि को प्रसारित करने क लिए एक ऐसे एकल माध्यम की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है, जिसके द्वारा गुणवत्तायुक्त सूचना, वीडियो, ऑडियो आदि को उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा सके। कन्वर्जेन्स ने टेलीकम्प्यूनिकेशन, आईटी और ब्रॉडकास्टिंग तकनीकां का समागम कर उद्योग जगत के साथ-साथ उपभोक्ताओं को नये अवसर प्रदान किये हैं। भारत में कन्वर्जेन्स की दिशा में सकारात्मक प्रयास जारी हैं, जिसमें कसरकार द्वारा जारी कन्वर्जेन्स बिल- 2000 अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कन्वर्जेन्स ने आम उपभोक्ता की जीवनचर्या में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने के साथ-साथ विभिन्न सेवाओं को एक ही माध्यम पर सस्ते दामों पर उपलब्ध कराने की आशा उत्पन्न की है।
 उभरते रुझान: मोबाइल प्रौद्योगिकी (Emerging Trends: Mobile Technology)
तेजी से भारतीय के बीच अपना स्थान बनाते, मोबाइल भारत में विभिन्न ई-शासन सेवाओं की एक वितरण चैनल के रूप में उभरा है। स्वीकृति में सरलता और साधारण इंटरफेस एप्पस को डाउनलोड करने में स्वतंत्रता और इसे आसान तरीके से उपयोग करने का उपयोगकर्ता को अवसर देता है। हालांकि अभी भी प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर एप्पस को लोगों तक पहुँचाने की  चुनौतियां है विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल अनुप्रयोगों की संभावितों तक पहुंच में सबसे बड़ी चुनौती है। इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए अनेक कदम उठाएं हैं और इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभान ने सभी विभागों और एजेंसियों को मोबाइल एप्लीकेशन का विकास करने और लोगों तक इसकी पहुँच बनाने के लिए अनेक योजनाओं की घोषणा की है। विभाग द्वारा  निर्धारित मुख्य उपाय इस प्रकार हैं:
 1. सभी सरकारी विभागों और एजेंसियों की वेब साइटों को निर्देशित किया गया है कि  "वन वेब" दृष्टिकोण के  अंतर्गत मोबाइल-कंप्लाइंट का विकास किया जाए।
 2. मोबाइल एप्लीकेशन के लिए ओपन मानकों को अपनाया जाए ताकि ई-शासन के अंतर्गत लागू की जा रही शासन की नीति के अनुसार एप्लीकेशन के अनुसार विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टम और उपकरणों में पारस्परिकता बनी रहे।
 3. यूनीफार्म/सिंगल पूर्व- नामित संख्या (लंबी और शॉर्ट कोड) का उपयोग मोबाइल आधारित सेवाओं के लिए करके दी जा रही सुविधा को सुनिश्चित किया जा सके।
 4. सभी सरकारी विभागों और एजेंसियों द्वारा दी जा रही सार्वजनिक सेवाएं को मोबाइल उपकरणों के माध्यम से प्रदान करने से लेकर विकसित एप्लीकेशन को मोबाइल प्लेटफार्म के अनुकूल बनाना होगा।
सरकार ने अपने प्रारुप के अनुरुप समयबद्ध तरीके से इन सेवाओं के विकास और सहायक ढांचे को विकास करते हुए उसका कार्यान्वयन सुनिश्चित करते हुए और मोबाइल उपकरणों के माध्यम से सार्वजनिक सेवाओं की उपलब्धता को मोबाइल के माध्यम से उपलब्ध कराने के लिए मोबाइल सर्विस डिलिवरी गेटवे (MSDG) का विकास का विकास किया है।
मोबाइल सेवा एक एकीकृत प्लेटफार्म प्रदान करती है जिसके सहायता से नागरिकों को सार्वजनिक सूचना और सरकारी सेवाओं का वितरण, मोबाइल उपकरणों पर एसएमएस, यूएसएसडी, आईवीआरएस, सीबीएस, एलबीएस या मोबाइल फोन पर स्थापित मोबाइल अनुप्रयोगों के द्वारा किया जा सकता है ।

मोबाइल सेवा-आज की आवश्यकता

मोबाइल उपभोक्ताओं बढ़ती संख्या और पहुंच को देखते हुए यह राष्ट्रीय ई-शासन योजना के लिए वास्तविकता बनता जा रहा है कि हर नागरिक को सरकार सेवाएं मोबाइल फोन के माध्यम से सुनिश्चित हो। यह शहरी संपन्न वर्ग और ग्रामीण वंचित वर्ग के बीच व्याप्त तकनीकी खाई को पाटने के क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली तकनीक के रूप में उभरा है।

एनएसडीजी

ई-शासन एक्सचेंज के अंतर्गत विकसित किया गया एनएसडीजी (राष्ट्रीय ई शासन सेवाएँ डिलिवरी गेटवे) सेवा प्रदाताओं के लिए सरकारी सेवाओं को मोबाइल के द्वारा लोगों तक पहुंचाने, एसएसडीजी ( स्टेट ई गवर्नेन्स सर्विसेज डिलिवरी गेटवे) और डोमेन डोमेन गेटवे (जैसे पासपोर्ट गेटवे , MCA21 गेटवे) के लिए बहुउपयोगी साबित हो सकता है।
एक अलग बुनियादी ढांचे के रुप में कुछ आवश्यकताएं इस प्रकार है -
  1. मौजूदा ई-शासन एक्सचेंज के एनएसडीजी / एसएसडीजी के माध्यम से बैकएंड विभाग के साथ सहज एकीकरण ।
  2. यह मोबाइल आधारित सेवाओं जैसे (एसएमएस- लघु संदेश सेवा ), यूएसएसडी (असंरचित पूरक सेवा डेटा), आईवीआरएस(इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्टम), सीबीएस(सेल ब्रॉडकास्टिंग सर्विस), एलबीएस ( स्थान आधारित सेवाएं), आदि के लिए जनरल इंटरफेस उपलब्ध कराएगा।

सोशल मीडिया (Social Media)

सोशल मीडिया (Social Media) एक ऐसा मीडिया है, जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है। सोशल मीडिया इंटरनेट के माध्यम से एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) आदि का उपयोग कर पहुंच बना सकता है।
 आज के दौर में सोशल मीडिया जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है जिसके बहुत सारे फीचर हैं, जैसे कि सूचनाएं प्रदान करना, मनोरंजन करना और शिक्षित करना मुख्य रूप से शामिल हैं।

सोशल मीडिया क्या है?

 सोशल मीडिया एक अपरंपरागत मीडिया (nontraditional media) है। यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे इंटरनेट के माध्यम से पहुंच बना सकते हैं। सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है, जो कि सारे संसार को जोड़े रखता है। यह संचार का एक बहुत अच्छा माध्यम है। यह द्रुत गति से सूचनाओं के आदान-प्रदान करने, जिसमें हर क्षेत्र की खबरें होती हैं, को समाहित किए होता है।
 सोशल मीडिया  (Social Media) सकारात्मक भूमिका अदा करता है जिससे किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं जिनसे कि लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम हुआ है जिससे किसी भी देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता, समाजवादी गुणों में अभिवृद्धि हुई है।
 हम ऐसे कई उदाहरण देखते हैं, जो कि उपरोक्त बातों को पुष्ट करते हैं जिनमें 'INDIA AGAINST CORRUPTION' को देख सकते हैं, जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ महाअभियान था जिसे सड़कों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी लड़ा गया जिसके कारण विशाल जनसमूह अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़ा और उसे प्रभावशाली बनाया।
 2014 के आम चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने जमकर सोशल मीडिया का उपयोग कर आमजन को चुनाव के जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इस आम चुनाव में सोशल मीडिया के उपयोग से वोटिंग प्रतिशत बढ़ा, साथ ही साथ युवाओं में चुनाव के प्रति जागरूकता बढ़ी। सोशल मीडिया के माध्यम से ही 'निर्भया' को न्याय दिलाने के लिए विशाल संख्या में युवा सड़कों पर आ गए जिससे सरकार दबाव में आकर एक नया एवं ज्यादा प्रभावशाली कानून बनाने पर मजबूर हो गई।
 लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, जहां व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा लोकप्रिय बना सकता है। आज फिल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है। वीडियो तथा ऑडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हो पाई है जिनमें फेसबुक, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं।
सोशल मीडिया जहां सकारात्मक भूमिका अदा करता है वहीं कुछ लोग इसका गलत उपयोग भी करते हैं। सोशल मीडिया का गलत तरीके से उपयोग कर ऐसे लोग दुर्भावनाएं फैलाकर लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा की जाती है जिससे कि जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।  कई बार तो बात इतनी बढ़ जाती है कि सरकार सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल करने पर सख्त हो जाती है और हमने देखा है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध तक लगाना पड़ता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन में भी सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि असामाजिक तत्व किसान आंदोलन की आड़ में किसी बड़ी घटना को अंजाम न दे पाएं।
 जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार सोशल मीडिया के भी दो पक्ष हैं, जो इस प्रकार हैं-

दैनिक जीवन में सोशल मीडिया का प्रभाव

यह बहुत तेज गति से होने वाला संचार का माध्यम है
यह जानकारी को एक ही जगह इकट्ठा करता है
सरलता से समाचार प्रदान करता है
सभी वर्गों के लिए है, जैसे कि शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग
यहां किसी प्रकार से कोई भी व्यक्ति किसी भी कंटेंट का मालिक नहीं होता है।
फोटो, वीडियो, सूचना, डॉक्यूमेंटस आदि को आसानी से शेयर किया जा सकता है

सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव

 यह बहुत सारी जानकारी प्रदान करता है जिनमें से बहुत सी जानकारी भ्रामक भी होती है।
जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है।
किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।
यहां कंटेंट का कोई मालिक न होने से मूल स्रोत का अभाव होना।
प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है।
फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं जिनके व्दारा कभी-कभी दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती है।
सायबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।

वेब 2.0 (Web 2.0)

एक टैग क्लाउड (अपने आप में एक विशिष्ट Web 2.0 घटना) द्वारा प्रदर्शित Web 2.0 विषय
"Web 2.0" शब्द सामान्यतः ऐसे वेब प्रोग्रामों/एप्लीकेशन्स के लिए प्रयुक्त होता है जो पारस्पारिक क्रियात्मक जानकारी बांटने, सूचनाओं के आदान प्रदान करने, उपयोगकर्ता को ध्यान में रख कर डिज़ाइन बनाने और वर्ल्ड वाइड वेब से जोड़ने की सुविधा प्रदान करते हैं। Web 2.0 के उदाहरणों में वेब आधारित कम्यूनिटी/समुदाय, होस्ट सर्विस, वेब प्रोग्राम, सोशल नेटवर्किंग साइट, वीडियो शेयरिंग साइट, wiki, ब्लॉग, तथा मैशप (दो या अधिक स्त्रोतों से जानकारी एकत्रित करके बनाया गया वेब पेज) व फोक्सोनोमी (टैगिंग) शामिल हैं। एक Web 2.0 साइट अपने उपयोगकर्ताओं को अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ वेबसाइट की सामग्री देखने या बदलने की अनुमति देती है जबकि नॉन-इंटरएक्टिव वेब साइटों के द्वारा उपयोगकर्ता किसी जानकारी को केवल उतना ही देख सकते हैं जितनी जानकारी उन्हें देखने के लिए उपलब्ध कराई जाती है।
2004 में ओ रेली मीडिया Web 2.0 सम्मेलन होने के कारण यह शब्द टिम ओ रेली से जुड़ा हुआ है। हालांकि शब्द से वर्ल्ड वाइड वेब के एक नए संस्करण का पता चलता है, यह किसी तकनीकी विशेषताओं को अपडेट करने का उल्लेख नहीं करता, अपितु एक एंड यूज़र/उपयोगकर्ता और सॉफ्टवेयर डेवलपर द्वारा वेब को प्रयोग करने के तरीकों में आये बदलावों को परिलक्षित करता है। क्या Web 2.0 पहली वेब प्रौद्योगिकियों से गुणात्मक रूप से अलग है - यह चुनौती वर्ल्ड वाइड वेब के आविष्कारक टिम बर्नर्स ली द्वारा दी गयी है जो कि इस शब्द को "शब्दजाल का एक हिस्सा" मानते हैं - क्योंकि उनके अनुसार वेब पहले से ही इन सब विशेषताओं को प्रदर्शित करता है।

विशेषताएं

Web 2.0 वेबसाइटें उपयोगकर्ताओं को जानकारी प्राप्त करने के अलावा और बहुत कुछ करने की अनुमति देती हैं। वे "वेब 1.0" की पारस्पारिक क्रियात्मक सुविधाओं द्वारा निर्माण के लिए "नेटवर्क एक मंच" कम्प्यूटिंग उपलब्ध कराने के अलावा, उपयोगकर्ताओं को पूर्ण रूप से एक ब्राउज़र के माध्यम से सॉफ्टवेयर चलाने की अनुमति दे सकती हैं। उपयोगकर्ता एक Web 2.0 साइट पर डाटा के मालिक हो सकते हैं तथा डाटा पर नियंत्रण कर सकते हैं। इन साइटों में "भागीदारी द्वारा निर्मित डिज़ाइन" व्यवस्था हो सकती है जो उपयोगकर्ता को स्वयं द्वारा प्रयुक्त किये जा रहे प्रोग्राम की उपयोगिता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
भागीदारी के लिए मंच के रूप में वेब की अवधारणा में ऐसी कई विशेषताएं हैं। बर्ट डेक्रेम, Flock के संस्थापक और पूर्व CEO, Web 2.0 को "वेब भागीदारी" कहते हैं और वेब 1.0 को - वेब जानकारी का स्त्रोत, के रूप में मानते हैं।

समूह के उन सदस्यों को, जो लाभ बांटने के लिए कोई योगदान नहीं देते, निकालने की सम्भावना का कोई प्रावधान नहीं होने से इस सम्भावना को बल मिलता है कि तर्कसंगत लोग भी अपने योगदान को रोकने को प्राथमिकता देंगे और दूसरों के योगदान का मुफ़्त में फ़ायदा उठाने का मज़ा लेंगे. इस रोकने के लिए वेबसाइट के प्रबंधन द्वारा रेडिकल ट्रस्ट की आवश्यकता है। बेस्ट के अनुसार, Web 2.0 की विशेषताएं हैं: उपयोगकर्ताओं का गहन अनुभव, उपयोगकर्ता की भागीदारी, गतिशील सामग्री, मेटाडाटा, वेब मानक और मापने की योग्यता. अतिरिक्त विशेषताओं जैसे कि खुलापन, स्वतंत्रता और उपयोगकर्ताओं की भागीदारी के माध्यम से सामूहिक बुद्धिमत्ता को भी Web 2.0 के आवश्यक गुणों के रूप में देखा जा सकता है।
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