Sunday, April 22, 2018

Opinion on rape cases

बलात्कार : जुर्म और सजा... 


देश में विशेषकर उत्तरी भारत में बलात्कार की झड़ी सी चल रही है। प्रात: समाचार पत्र पढऩे से लगता है कि देश में हर तरफ स्त्रियां असुरक्षित हैं। यह केवल आम स्त्रियों की बात नहीं है, बल्कि गोद की बच्चियां और ८० साल से ऊपर की वृद्घा भी सुरक्षित नहीं है।
कहा जाता था कि यह संस्कारों का देश है, परन्तु अब संस्कार रहित काम लोलुप लोगों का देश लगता है। सभी रिस्ते टूट गये हैं। अभी परसों की खबर है कि एक पिता ने अपनी सगी बेटी को अपने मित्रों को परोस दिया और बाद में स्वयं भी गैंगरेप में शामिल हुआ। यह स्थिति बड़ी भयावह है और स्त्री चाहे बेटी हो या बहन, मां हो या कोई अन्य रिस्तेदार, अपने घर में ही सुरक्षित नहीं है, घर से बाहर की बात तो छोड़ दीजियेंं। कुछ साल पहले एक सर्वेक्षण से मालुम हुआ था कि स्त्रियों के साथ यौन शोषण अधिकतर घर की चाहरदीवारी में ही होता है, जो उनके लिए बहुत सुरक्षित स्थान होना चाहिये। दुनिया के किसी अन्य देश में ऐसी भयावह स्थिति नहीं है और इसका कारण ढूंढने का प्रयास होना चाहिये।
  हमारा समाज कभी भी जीवन के काम के पहलू से अलग नहीं था। कामशास्त्र काम का वैज्ञानिक अध्ययन तो था ही, परन्तु खजुराहो के मंदिरों में जिस तरह के चित्र पत्थरोंं पर उकेरे गये थे, उनसे ऐसा लगता है कि कम से कम १२-१३ सौ साल पहले समाज कामातुर हो रहा था। खजुराहों के मंदिरों में काम के सभी पहलुओं और उसके अत्यंत विकृत तरीकों को भी दिखाया गया है। यह कहना कि यह काम पर विजय के प्रयास का भाग है, सही नहीं है। रही-सही कसर आजकल कपड़ों आदि के विज्ञापनों ने पूरी कर दी है। लड़कियां बिकनी और नाममात्र की चड्ढी पहनकर अपनी नुमाईश करती नजर आती है, जिससे युवा वर्ग में यौन विकृति पैदा होना संभव है। हर तरह की वस्तु के विज्ञापन के लिए सुन्दर स्त्री का माध्यम जरूरी समझा जाता है। एक बार रवीन्द्र नाथ टैगोर को जब एक सेविंग ब्लेड बनाने वाली कम्पनी ने विज्ञापन के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास किया तो टैगोर ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा कि यह संभव नहीं है। अब तो अच्छी शेविंग ब्लेड के लिए स्त्रियों का विज्ञापन काम में लाया जा रहा है। हमे इस विकृति को दूर करना होगा। कम उम्र के बच्चों के हाथ में स्मार्ट फोन ने असीमित यौन व्याभिचार को देखने का मौका दे दिया है। किसी समय भी यह युवा (और युवती) इंटरनेट पर परोसे जाने वाले कामुक चित्रों को देख सकते हैं। कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए एक कारण यह भी हो सकता है।
  कुछ लोगों का विचार है कि सजाएं सख्त कर देने से इस पर रोक लग सकती है। सजाएं सख्त होना आवश्यक है, परन्तु यह कहना कि इससे ही लगाम लगाई जा सकती है, सही नहीं है। महारानी एलिजाबेथ प्रथम के दौर में जेब काटने की सजा तय की गई थी और यह सजा चौराहों पर दी जाती थी, जहां बड़ी संख्या में लोग उसे देखने के लिए इक_ïा होते थे, उस भीड़ में बहुतों की जेब कटती थी। इस तरह के विकृत यौन शोषण एक दिमागी बीमारी भी है और कभी-कभी सजाएं 'किकÓ का कार्य करती हैं। मुश्किल यह है कि हमारा तथाकथित प्रबुद्घ वर्ग यह समझता है कि सजाएं सख्त कर देने से यह बीमारी खत्म हो जाएंगी। यह बड़ी गलतफहमी है। इस दानव से हमें हर मोर्चे पर लडऩा होगा।

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