Friday, August 17, 2018

राजनीति में अटल

अटल जी भाजपा नेतृत्व के  लिए अनुकरणीय मॉडल...

 गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हम सबको अलविदा कह गये, लेकिन उन्होनें अपने पीछे कुछ ऐसे पद चिन्ह छोड़ गये जो आने वाली पीढिय़ों के लिए अनुकरणीय रहेंगे।
निर्विवाद रूप से उनकी पहचान एक राजनेता की थी। राष्टï्रीय स्वयंसवेक संघ के स्वयंसेवक रहे। उसकी राजनीति विंग पूर्ववर्ती जनसंघ और अब भाजपा में वह राजनेता के तौर अपनी किस्मत आजमायी और करीब ६ दशक तक सांसद के रूप में वह लोकतंत्र को जीवंत रखा। उनके कार्य और व्यवहार ने सत्ता पक्ष और विपक्ष के भेद को सीमित कर दिया था। जहां राष्टï्र की बात आती थी, वहां वह कतई विपक्ष के नेता नहीं होते थे। यही कारण था कि जब वह पहली बार सांसद बनकर सदन में गये तो प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटिश डेलीगेट्स के समक्ष उनका परिचय भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में किया।
ज्यादातर समय वह विपक्ष में रहे, लेकिन वह सत्ता पक्ष की खूबियों का बखान करने से नहीं चूकते थे। यही कारण था कि उन्होंने इंदिरा गांधी के कार्यों का बखान करते हुए उन्हें दुर्गा की उपाधि से नवाजा था। यह उनका व्यवहार ही था कि प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्टï्र में भारत का पक्ष रखने के लिए नेता विरोधी दल रहे अटल जी को चुना, क्योंकि उनको पता था कि अटल जी जहां राष्टï्र की बात आयेगी, वह भारत के हित की ही बात करेंगे। यह भरोसा किसी और सियासतदां के प्रति शायद ही हो पाये।
ऐसा भी नहीं कि वह केवल नर्म व्यवहार के लिए ही जाने जाते थे। जब जरूरत पड़ी तो आक्रामक रवैया भी देखने को मिला। विश्व भर में भारत की उपस्थिति को जताने के लिए पोखरण परमाणु परीक्षण करने जैसा जोखिम उठाने की हिम्मत उन्हीं में थी। बताया जाता है कि उनसे पूर्व ही भारतीय वैज्ञानिकों ने परीक्षण की पूरी तैयारी कर ली थी, परन्तु परीक्षण के बाद उत्पन्न स्थितियों के मद्देनजर बात आगे बढ़ नहीं पायी थी। अंतत: यह परीक्षण अटल जी के कार्यकाल में ही हो सका। उन्होंने अपने कार्यकाल में संसद पर हमले के साथ कारगिल युद्घ को भी सफलता पूर्वक झेला, लेकिन इसके जिम्मेदार पाकिस्तान को वह आक्रामकता नहीं बल्कि प्यार से जीत लिया। खुद लाहौर बस से गये। वह देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने बस से पाकिस्तान की यात्रा की। भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता एक्सप्रेस चलाकर दोनों देशों के बीच की दूरियां घटाने का कार्य किया। परवेज मुसर्रफ को भारत में बुलाकर जो सम्मान दिया, उसे शायद ही कोई पाकिस्तानी भुलाये। कश्मीर में भी कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की बात कहकर कश्मीरियों का भी दिल जीता। यही कारण है कि उनके अंतिम संस्कार में पाकिस्तान से वहां की सरकार की तरफ से एक प्रतिनिधिमण्डल शामिल होने आया। कश्मीरी अलगाववादियों ने तो यहां तक कह दिया कि वे भारत में कश्मीर और कश्मीरियत का रहनुमा खो दिये।
विपरीत राजनीतिक विचारधारा के बावजूद सहीष्णुता के मिसाल थे। एक बार जब लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने अटल जी के हस्ताक्षर के कारण पद से त्यागपत्र देना चाहते थे तो अटल जी ही थे जो उन्हें ले जाकर अध्यक्ष की कुर्सी पर दुबारा आसीन कराये। यह घटना बताती है कि उनके व्यवहार ने दक्षिणपंथ और वामपंथ की विचारधारा को कभी आड़े नहीं आने दिया। उनके विरोधी भी कहा करते थे कि अटल जी सही हैं, परन्तु उनकी पार्टी गलत है। फिर भी उन्होंने सबका दिल जीता। उन्होंने अपनी क्षमता के ही कारण मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर होने वाले आंदोलनों को सफलतापूर्वक शांत कराया था और हिन्दू-मुसलमान के बीच अमन-चैन कायम कराया था। वह लखनऊ से सांसद थे और उनकी लोकप्रियता जितना हिन्दुओं में थी, उससे कहीं अधिक वह मुस्लिम समुदाय के चहेते थे।
उन्होंने अपने जीवन में ऐसे उदाहरण पेश किये, जो आने वाली पीढिय़ों के लिए अनुकरणीय है। राजनीति में गैरों को अपना बनाना, विरोधियों को भी अपना मुरीद बनाना, विपरीत विचारधारा का सम्मान करना, जाति,धर्म और मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत का पाठ पढ़ाना कोई अटल जी से सीखे। वर्तमान में राजनीति दागदार हो रही है, इसे बेदाग बनाने के लिए अटल जी का व्यक्तित्व एक मार्गदर्शक की भूमिका हमेशा प्रेरक की भूमिका में रहेगा।
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