Friday, January 11, 2019

जीएसटी को और व्यवहारिक बनाने की जरूरत

 जीएसटी पर आ रहे नित नये सुधारों से इससे व्यापारी वर्ग में पनपे असंतोष को धीरे-धीरे दूर करने की प्रक्रिया कहा जा सकता है। वस्तु एवं सेवाकर यानी जीएसटी लागू होने के बाद से अब तक लगातार इसकी दरों की समीक्षा होती आ रही है। इसी क्रम में सरकार ने उद्यमों की न्यूनतम आय सीमा बढ़ा कर दोगुना करने का फैसला किया है। अभी तक उद्योगों की न्यूनतम आय सीमा बीस लाख रुपए थी, पर नए संशोधन में यह सीमा चालीस लाख रुपए कर दी गई है। यह निस्संदेह उद्यमियों के लिए बड़ी राहत होगी। इसी तरह जीएसटी परिषद को मध्यवर्ग के लिए बनने वाले भवनों पर लगने वाले कर की दर वर्तमान बारह प्रतिशत से घटा कर पांच प्रतिशत करने का सुझाव दिया जाना भी स्वाग तयोग्य है। उम्मीद की जा रही है कि इस पर भी जल्दी ही कोई फैसला आएगा। उद्यमों की न्यूनतम आय सीमा पर विचार करने के लिए वित्त राज्यमंत्री की अगुआई में मंत्रियों का एक समूह पहले से विचार कर रहा था। पिछले महीने जब सरकार ने छोटे उद्यमियों के लिए एक करोड़ रुपए तक का कर्ज बिना शर्त देने का एलान किया था, तभी जाहिर हो गया था कि वह इस वर्ग की परेशानियां दूर करने को लेकर गंभीर है। दरअसल, छोटे और मझोले उद्योग लंबे समय से आर्थिक और बाजार संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इनकी तरफ समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा था, जबकि हकीकत यह है कि इन्ही क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सबसे अधिक हैं। इस तरह छोटे उद्योगों को राहत मिलने से उनकी दशा सुधरने की उम्मीद बनती है।
जीएसटी लगने के बाद सबसे अधिक असंतोष छोटे और मझोले उद्यमियों में दिखाई दे रहा था। उनकी शिकायत थी कि जीएसटी के चलते उनका कारोबार लगभग ठप्प हो गया है। ऐसे में उन्हें बिना शर्त कर्ज मिलने और उनकी न्यूनतम आय चालीस लाख रुपए करने से काफी राहत मिलेगी। इसके अलावा जीएसटी लागू होने के बाद से कई वस्तुओं की कर दरों में कमी की गई है। छोटे और मझोले उद्योगों से जुड़ी ज्यादातर वस्तुएं भी अब तार्किक कर दरों पर पहुंच गई हैं। जीएसटी लगाने के शुरुआती प्रस्ताव में घोषणा की गई थी कि कर की दर अठारह फीसद से ऊपर नहीं रखी जाएगी। पर जीएसटी लगाने की जल्दबाजी में कई वस्तुओं पर जीएसटी की दर काफी ऊंची रख दी गई थी। बाद में समीक्षा के बाद उन्हें नीचे लाया गया। अब सामान्य उपभोक्ता से जुड़ी ज्यादातर वस्तुओं पर जीएसटी की दर अठारह फीसद के नीचे आ गई है। इसके अलावा कर भुगतान संबंधी प्रावधान भी धीरे-धीरे काफी लचीले हुए हैं। इससे उद्यमियों की अनेक कठिनाइयां समाप्त हुई हैं। यह उद्यमियों के लिए राहत का नया कदम ही कहा जाएगा।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए बेनामी मकानों पर कड़ी नजर रखने और भवन निर्माण संबंधी वस्तुओं पर जीएसटी की दर अधिक होने की वजह से निर्माण उद्योग की रफ्तार काफी धीमी हो गई थी। अगर मध्यवर्ग के लिए बनने वाले मकानों पर जीएसटी की दर बारह फीसद से घटा कर पांच फीसद तक हो जाएगी, तो निस्संदेह इससे भवन निर्माता कंपनियों और खरीदार दोनों को बड़ी राहत मिलेगी। निर्माण उद्योग में कुछ तेजी आएगी। जीएसटी लागू करते समय जिस तरह की जल्दबाजी हुई थी, अब वह स्थिति नहीं है। जीएसटी परिषद अगर व्यावहारिक तरीके से विचार कर करों की दरें स्थिर करने का प्रयास करे, तो बार-बार समीक्षा से मुक्ति मिलेगी और जीएसटी के सही नतीजे आने शुरू हो जाएंगे। यही नहीं इससे बाजार में सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिलेंगे तथा बाजार के साथ-साथ व्यवसाय भी बुलंदियां छूती नजर आयेंगी।

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