मोबाइल फोन आज के समय का सच है। इसके बिना आधुनिक जीवन में जीना एक मृग मरीचिका के समान है। बच्चे हो या बूढ़े सबकी यह जरूरत बन चुका है। युवा वर्ग तो इसके बिना शायद ही एक पल रह पाये। मोबाइल फोन ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बदलाव ला दिया। अब छात्रों में पढऩे की प्रवृति खत्म होती जा रही है। छात्र अब किसी पाठ को याद करने के बजाये उसे गूगल पर सर्च करना ज्यादा आसान समझते हैं। यही कारण है कि पहले की पीढिय़ों में जो ज्ञान लोगों के दिमाग में हुआ करता था आज वहां से बाहर आकर गूगल की गलियों में खो चुका है।
लोग इसका उपयोग करें तो सही, लेकिन इसका दुरूपयोग अधिक हो रहा है। यही कारण एक रिपोर्ट को आधार बनाते हुए एक हाईकोर्ट ने मोबाइल नेटवर्क से पोर्न साइटों को हटाने का निर्देश दिया। जियो जैसे नेटवर्क ने अपने प्लेटफार्म से पोर्न साइटों को हटा भी चुके हैं। फिर भी यह सोचनीय स्थिति है कि भारत का स्मार्टफोन यूजर्स खासकर युवा अन्य बातों से अधिक मोबाइल फोन पर पोर्न साइटों को देखने को कार्य कर रहा था।
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोशों में से एक कैंब्रिज डिक्शनरी सिर्फ शब्दों और उनके अर्थ को लेकर ही मेहनत नहीं करती, वह हर साल एक और आयोजन करती है, जो काफी चर्चित रहता है। हर साल के अंत में वह यह बताती है कि गुजर रहे साल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला नया शब्द कौन सा रहा। इसके लिए जरूरी नहीं कि उस शब्द की उत्पत्ति भी उसी साल की हो, बल्कि यह देखा जाता है कि एक नया शब्द जो उस जमाने में सबसे ज्यादा प्रचलित हो गया। इस बार 2018 के लिए उसने अंग्रेजी का जो शब्द चुना, वह था- नोमोफोबिया। वैसे इस शब्द की उत्पत्ति आठ साल पहले की है। साल 2010 में ब्रिटेन के डाक विभाग ने मोबाइल फोन को लेकर एक अध्ययन करवाया, तो पता लगा कि कुछ लोग उस वक्त बेवजह र्की ंचता, बल्कि यह कहा जाए कि एक तरह के डर से घिर जाते हैं, जब उनके पास उनका मोबाइल फोन नहीं होता। इसे नो-मोबाइल-फोन-फोबिया कहा गया, जो संक्षेप में नोमोफोबिया हो गया। फोबिया उस डर को कहा जाता है, जिसका कोई स्पष्ट तार्किक कारण नहीं होता, लेकिन वह हमारे मानस पर बुरी तरह से छा जाता है। हालांकि शुरू में काफी समय तक इसे लेकर बहस चलती रही कि ऐसा कोई वास्तविक फोबिया है भी या नहीं, लेकिन धीरे-धीरे अब इसे स्वीकार किया जाने लगा है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि वहां 66 फीसदी लोग नोमोफोबिया के शिकार हैं। अगर हम इसे एक रोग मान लें, तो शायद यह इस समय अमेरिका की सबसे बड़ी बीमारी है।
दुनिया की मन:स्थिति कितनी तेजी से बदलती है, इसे हम नोमोफोबिया से अच्छी तरह से समझ सकते हैं। अभी कुछ ही साल पहले तक कामकाजी लोग या पढऩे वाले बच्चे सुबह घर से निकलते थे और शाम को घर पहुंचते थे। इस बीच न उनके पास घर से संपर्क का कोई तरीका होता था और न घर वालों के पास उनसे संपर्क का। फिर भी दुनिया आसानी से और बिना किसी परेशानी के चल जाती थी। मोबाइल फोन और उसके बाद आए स्मार्टफोन ने इस संपर्कहीनता को अब पूरी तरह खत्म कर दिया है। आप भले दिन भर घर पर फोन न करें, लेकिन पास में मोबाइल फोन है, तो यह आत्मविश्वास रहता है कि जब चाहेंगे, संपर्क कर ही लेंगे। लेकिन अगर मोबाइल फोन किसी वजह से हमारे पास नहीं है, तो यह आश्वस्ति खत्म हो जाती है। आप कह सकते हैं कि इसे किसी दहशत का कारण नहीं बनना चाहिए, लेकिन यह आपका तर्क है और मन की गति ऐसे तर्कों से नहीं चलती।
लोग इसका उपयोग करें तो सही, लेकिन इसका दुरूपयोग अधिक हो रहा है। यही कारण एक रिपोर्ट को आधार बनाते हुए एक हाईकोर्ट ने मोबाइल नेटवर्क से पोर्न साइटों को हटाने का निर्देश दिया। जियो जैसे नेटवर्क ने अपने प्लेटफार्म से पोर्न साइटों को हटा भी चुके हैं। फिर भी यह सोचनीय स्थिति है कि भारत का स्मार्टफोन यूजर्स खासकर युवा अन्य बातों से अधिक मोबाइल फोन पर पोर्न साइटों को देखने को कार्य कर रहा था।
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शब्दकोशों में से एक कैंब्रिज डिक्शनरी सिर्फ शब्दों और उनके अर्थ को लेकर ही मेहनत नहीं करती, वह हर साल एक और आयोजन करती है, जो काफी चर्चित रहता है। हर साल के अंत में वह यह बताती है कि गुजर रहे साल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला नया शब्द कौन सा रहा। इसके लिए जरूरी नहीं कि उस शब्द की उत्पत्ति भी उसी साल की हो, बल्कि यह देखा जाता है कि एक नया शब्द जो उस जमाने में सबसे ज्यादा प्रचलित हो गया। इस बार 2018 के लिए उसने अंग्रेजी का जो शब्द चुना, वह था- नोमोफोबिया। वैसे इस शब्द की उत्पत्ति आठ साल पहले की है। साल 2010 में ब्रिटेन के डाक विभाग ने मोबाइल फोन को लेकर एक अध्ययन करवाया, तो पता लगा कि कुछ लोग उस वक्त बेवजह र्की ंचता, बल्कि यह कहा जाए कि एक तरह के डर से घिर जाते हैं, जब उनके पास उनका मोबाइल फोन नहीं होता। इसे नो-मोबाइल-फोन-फोबिया कहा गया, जो संक्षेप में नोमोफोबिया हो गया। फोबिया उस डर को कहा जाता है, जिसका कोई स्पष्ट तार्किक कारण नहीं होता, लेकिन वह हमारे मानस पर बुरी तरह से छा जाता है। हालांकि शुरू में काफी समय तक इसे लेकर बहस चलती रही कि ऐसा कोई वास्तविक फोबिया है भी या नहीं, लेकिन धीरे-धीरे अब इसे स्वीकार किया जाने लगा है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि वहां 66 फीसदी लोग नोमोफोबिया के शिकार हैं। अगर हम इसे एक रोग मान लें, तो शायद यह इस समय अमेरिका की सबसे बड़ी बीमारी है।
दुनिया की मन:स्थिति कितनी तेजी से बदलती है, इसे हम नोमोफोबिया से अच्छी तरह से समझ सकते हैं। अभी कुछ ही साल पहले तक कामकाजी लोग या पढऩे वाले बच्चे सुबह घर से निकलते थे और शाम को घर पहुंचते थे। इस बीच न उनके पास घर से संपर्क का कोई तरीका होता था और न घर वालों के पास उनसे संपर्क का। फिर भी दुनिया आसानी से और बिना किसी परेशानी के चल जाती थी। मोबाइल फोन और उसके बाद आए स्मार्टफोन ने इस संपर्कहीनता को अब पूरी तरह खत्म कर दिया है। आप भले दिन भर घर पर फोन न करें, लेकिन पास में मोबाइल फोन है, तो यह आत्मविश्वास रहता है कि जब चाहेंगे, संपर्क कर ही लेंगे। लेकिन अगर मोबाइल फोन किसी वजह से हमारे पास नहीं है, तो यह आश्वस्ति खत्म हो जाती है। आप कह सकते हैं कि इसे किसी दहशत का कारण नहीं बनना चाहिए, लेकिन यह आपका तर्क है और मन की गति ऐसे तर्कों से नहीं चलती।
कैंब्रिज डिक्शनरी ने जिसे पिछले साल का शब्द घोषित किया है, वह दरअसल नए जमाने का नया रोग है, जिसे शायद पुरानी सोच से समझा भी नहीं जा सकता। ऐसा नहीं है कि मोबाइल फोन की वजह से होने वाले सभी रोग नोमोफोबिया की तरह मानसिक और मनोवैज्ञानिक ही हैं। कई शोध यह भी बताते हैं कि यह रक्तचाप और तनाव के बढऩे का भी एक कारण है। हालांकि ये समस्याएं भी मोबाइल फोन के मानसिक दबावों से ही शुरू होती हैं। वैसे हर नया दौर अपनी सुविधाएं और अपनी समस्याएं लेकर आता है। पहले सुविधाएं हमें लुभाती हैं और फिर समस्याएं हमें परेशान करती हैं। ऐसे में, कुछ लोग सुविधाओं को ही अभिशाप बताने लगते हैं। लेकिन जल्द ही हम सुविधा और समस्या में संतुलन भी बना लेते हैं या शायद दोनों की हमें आदत पड़ जाती है।
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