Saturday, March 31, 2018

Confused American Foriegn Policy

 एशिया में ट्रम्प द्वारा विदेश नीति की घोषणाएं भ्रम की स्थिति पैदा करती हैं...   


राष्ट्रों की विदेश नीति बहुत सोच समझकर बनायी जाती है और उसको बनाते समय बहुत सी संस्थाओं से बात की जाती है। ऐसी नीतियां किसी भावनात्मक प्रतिक्रिया पर नहीं बनती। दुर्भाग्यवश आजकल सबसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका की विदेश नीतियां एक झटके में बनती और बिगड़ती हैं।
  दो दिन पहले राष्ट्रपति ट्रम्प ने घोषणा की कि वह सीरिया से अमेरिकी फौज के लोगों को तुरन्त निकाल रहे हैं। उनकी यह घोषणा न केवल देश के लिए बल्कि उनके कैबिनेट के साथियों के लिए एक आश्चर्यचकित करने वाली बात थी। एक महीने पहले ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिकी फौजियों को पुन: सीरिया में उतारा था। इस कार्य के पहले भी राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने साथियों और संबंधित संस्थाओं से कोई राय मश्विरा नहीं किया था। इससे पहले भी राष्ट्रपति ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलते हुए सीरियाई शासन को खरी-खोटी सुनाई थी और वहां पर अमेरिकी सैनिकों और शस्त्रों को सीरिया भेजने को उचित ठहराया था।
  कुछ ऐसा ही उत्तर कोरिया के मामले में भी हुआ था। राष्ट्रपति ट्रम्प ने संयुक्त राष्ट्र संघ में साफ तौर पर उत्तर कोरिया को पूरी तरह बर्बाद करने की योजना की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रपति ट्रम्प के इस घोषणा से स्तब्ध रह गये और बाद में राष्ट्रपति ट्रम्प ने उत्तर कोरिया के साथ बात करने का मन बनाया और इसकी घोषणा कर दी। उत्तर कोरिया के मामले में उनकी दोनों घोषणाएं समझ से परे हैं। एक तरफ तो उन्होंने उत्तर कोरिया से बात करने की घोषणा की और दूसरी तरफ बोल्टन जैसे व्यक्ति को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया, जो हमेशा उत्तर कोरिया (और ईरान) के विरूद्घ बमबारी की वकालत करते हैं। बोल्टन ने यह भी कहा कि उत्तर कोरिया से बात तभी होगी, जब वह आश्वासन देगा कि परमाणु हथियार खत्म कर दिया जायेगा। सभी जानते हैं कि किसी बातचीत शुरू करने में ऐसी कोई शर्त लगाना बुद्घिमता की बात नहीं है। उत्तर कोरिया के नेता फौरन बीजिंग पहुंचे और उन्हें समर्थन का आश्वासन जरूर मिला होगा।
  ऐसा ही रूस के मामले में भी हुआ। राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक जमाने में रूसी राष्ट्रपति पुतिन की बड़ी तारीफ की और अब कुछ महीनों में ही रूस-अमेरिका के संबंध वहां पहुंच गये, जहां कोल्ड वार के सबसे खराब दिनों में थे। राष्ट्रपति ट्रम्प रूस के बारे में कोई अच्छी बात कहने से इसलिए भी हिचकिचाते हैं कि चुनावी अभियान में उनपर रूसी मदद लेने का आरोप है।
  हम हिन्दुस्तानियों को भी बहुत सोच समझकर अमेरिका से संबंधों के बारे में निर्णय लेना चाहिये।

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