विदित हो कि 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। सही मायने में उसी दिन हमें आजादी का एहसास हुआ था, क्योंकि उससे पहले हमें अंग्रेजों से तो आजादी मिल गई थी, लेकिन उसे महसूस करने का अवसर संविधान लागू होने के बाद ही मिला। संविधान हमारी आजादी के जज्बे को बरकरार रखने तथा बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक था। सबको समानता और सामाजिक न्याय मिले, लोग आजादी मिलने के साथ उसे महसूस भी करें, इसलिए आजादी मिलने के करीब 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ था। 26 नवम्बर 1949 जिसे संविधान दिवस के रूप में भी जाना जाता है, देश का संविधान बनकर तैयार हुआ। इसका उल्लेख संविधान की प्रस्तावना में वर्णित है: 'हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0, (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं। हमारे संविधान में हमें आजादी के हर वह अवसर दिये जाने के उल्लेख है, जिससे हम आजादी की मूल भावना को महसूस कर सके। यह अधिकार हर व्यक्ति को मिले और देश उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो, संविधान के अनुरूप देश को सुचारू रूप से चल सके, इसकी लिए कुछ व्यवस्थागत व कुछ नियामक संस्थाएं बनायी गई। कमोवेश पिछले कुछ समय से देश में व्यवस्थागत खामियां देखने को मिल रही हैं। धर्म और राजनीति को एक ही तराजू में राजनीतिक दलों द्वारा तौला जा रहा है। राजनीति को धर्म और धर्म को राजनीति के नजरिये से देखा जा रहा है। इससे न सिर्फ लोगों के बीच मतभेद और मनभेद पैदा हो रहा है, बल्कि कटुता का माहौल भी बन रहा है। लोगों में आर्थिक और सामाजिक विषमता की खाई बढ़ती जा रही है। संविधान की प्रस्तावना में समाहित समता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुता की भावना के पाठ का हस्र हम सबके सामने है। आक्सफैम की ताजा रिपोर्ट हमारे देश में समता मूलक समाज की स्थापना में आर्थिक आधार पर एक करारा तमाचा है जो यह बताता है कि इस देश की आधी से ज्यादा दौलत महज नौ अमीरों की झोली में है। देश में बढ़ती यह असमानता संविधान की भावना के अनुरूप कहीं नहीं है। अमीरी—गरीबी की खाई को केवल इस तर्क से तो नहीं स्वीकार किया जा सकता कि यह खाई तो हमेशा से ही रही है, नीति—नियंताओं को यह देखना होगा कि यह खाई लगातार बढ़ती जा रही है।
देश एक और बड़ी समस्या से दो-चार हो रहा है। यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाये गये कुछ स्वायत्त और स्वतंत्र संगठनों का सरकार की कठपुतली बनते जाना। पिछले कई वर्षों से सीबीआई, ईडी पर सरकार के इशारों पर कार्य करने के आरोप लगते रहे हैं। अब तो चुनाव आयोग पर लोगों का संदेह बढ़ रहा है। यह स्थिति दुखद है, स्वायत्त निकायों का सरकार का जेबी संगठन बन जाना कतई संविधान के अनुरूप नहीं है।
हमारा संविधान लोगों के खुशहाली के लिए बना है। यदि यहां की ज्यादातर आबादी गरीबी और बेचारगी में जीने को मजबूर है तो ऐसे में हमेशा संविधान मूल्यों की संजीदगी के साथ समीक्षा करनी चाहिये। लोकतंत्र सही मायने में तभी अपने आपको साबित कर पायेगा, जब देश के अंतिम व्यक्ति तक संविधान के अनुरूप लोग खुशहाल जीवन जीने के लिए माहौल पा सकें। इस गणतंत्र दिवस पर हम सभी को इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिये।
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