डॉ. भरत झुनझुनवाला
सरकार ने हाल में ई-कॉमर्स पालिसी में संशोधन किये हैं। इन्हें समझने के लिए ई-कॉमर्स के परिदृश्य पर एक नजर डालनी होगी। भारत में ई-कॉमर्स के दो प्रमुख खिलाड़ी हैंकृअमेजान और फ्लिपकार्ट। अमेजान ई-कॉमर्स के माध्यम से अमरीकी बाजार में छाई हुई है। अमेरिका में अमेजान दूसरी बड़ी कंपनी वालमार्ट से प्रतिस्पर्धा में है। वालमार्ट ऑफलाइन या दुकान के माध्यम से उन्हीं अमरीकी खरीदारों पर छाई हुई है। अमेरिका में अमेजान ऑनलाइन एवं वालमार्ट ऑफलाइन प्लेटफार्म से प्रतिस्पर्धा में हैं। वालमार्ट भारत में प्रवेश करना चाहती थी। लेकिन भारत सरकार ने वालमार्ट को अपनी ऑफलाइन दुकान खोलने की स्वीकृति नहीं दी है। तब वालमार्ट ने रास्ता यह निकाला है कि भारतीय कम्पनी फ्लिपकार्ट को खरीद लिया है। अब जैसा ऊपर बताया गया है, अमेरिका में ऑनलाइन अमेजान तथा ऑफलाइन वालमार्ट का सामना हैय और भारत में ऑनलाइन अमेजान तथा फ्लिपकार्ट के माध्यम से ऑनलाइन वालमार्ट का सामना है। दोनों ही महारथी भारत के ई-कॉमर्स पर अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं। हमारे लिए वालमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट को खरीदे जाने का महत्व यह है कि वर्तमान में वालमार्ट चीन से भारी मात्रा में फुटबॉल, कपड़े इत्यादि माल खरीद कर अमरीकी बाजार में अपनी दुकानों के माध्यम से बेच रहा है। वालमार्ट अभी तक चीन के माल को भारत में नहीं बेच पा रहा था। अब वालमार्ट इस माल को फ्लिपकार्ट के माध्यम से बेच सकेगा। इसलिए यह विषय भारत में चीन के माल के प्रवेश से जुड़ा हुआ है। इसी क्रम में अमेजान और फ्लिपकार्ट ने अपने ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर विशेष कंपनियों के माल को उपलब्ध करने की रणनीति अपनाई हुई है। उदाहरणतरू अमेजान ने हिंदुस्तान लीवर से समझौता किया है कि ब्रिलक्रीम नाम के उसके उत्पाद को केवल अमेजान के ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराया जायेगा।
ब्रिलक्रीम को हिंदुस्तान लीवर अन्य किसी दुकान अथवा किसी अन्य दूसरे ई-प्लेटफार्म से नहीं बेचेगी। इस प्रकार हिंदुस्तान लीवर और अमेजान मिलकर एक विशेष उत्पाद को बढ़ाना चाहते हैं। इसी प्रकार फ्लिपकार्ट और मोबाइल फोन कम्पनी जाओमी के साथ समझौता हुआ है। जाओमी के कुछ मोबाइल फोन अब केवल फ्लिपकार्ट के ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर ही उपलब्ध हैं। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि ई-कॉमर्स को विशेष उत्पादों को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जा रहा है जैसे वालमार्ट चीन में बनाये गए माल को भारत में फ्लिपकार्ट के माध्यम से बेच सकता है। इस पृष्टभूमि में भारत सरकार ने ई-कामर्स पालिसी में कुछ स्पष्टीकरण किये हैं। पहला स्पष्टीकरण यह है कि यदि कोई सप्लायर अपने कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत या उससे अधिक माल किसी ई-प्लेटफॉर्म के माध्यम से नहीं बेच सकता है। यह भी कहा है कि कैशबैक जैसे इंसेंटिव अथवा विशेष डिस्काउंट भी किसी विशेष माल पर नहीं दिए जा सकेंगे। ऐसे में उपरोक्त बताये गये ब्रिलक्रीम और जिओमी फोन जैसे विशेष उत्पादों को बढ़ाना ई-कॉमर्स कम्पनियों के लिए गैरकानूनी हो जाएगा। इसी क्रम में अमेजान द्वारा चीन में बनाये गये माल को फ्लिप कार्ट के माध्यम से भारत में बेचना भी गैरकानूनी होगा चूंकि ये उत्पाद अमेजान से सम्बंधित सप्लायर द्वारा ही चीन में बनाये गए हैं। इन स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है किई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा किसी विशेष माल को बढ़ाने के लिए इस प्लेटफोर्म का दुरूपयोग न किया जाये। मूल रूप से सरकार की यह पहल सही दिशा में है और सार्थक है। लेकिन आल इंडिया आल लाइन वेंडर्स एसोसिएशन ने इस पालिसी को लिपा-पोती बताया है। उनका कहना है कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों द्वारा पूर्व में जो तमाम नीति के उल्लंघन किये गए हैं उन पर सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। वर्तमान पॉलिसी में जो परिवर्तन किये गए हैं इनको लागू करने और इनके उल्लंघन के उपर कार्रवाई करने आगे खिसका दिया गया है। उनके अनुसार सरकार की पॉलिसी यह है कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा जो देश के कानून का उल्लंघन अब तक किया गया है उसके ऊपर खामोशी बनाए रखो और जनता का ध्यान यह कह कर हटा दो कि अब हमने ई-कॉमर्स पॉलिसी को और सख्त बना दिया है। वेंडर्स एसोसिएशन के इस वक्तव्य में दम दीखता है। इस परिप्रेक्ष्य में ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के दुरूपयोग को रोकने के लिए सरकार को निम्न कदमों पर विचार करना चाहिए। सर्वप्रथम ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा अब तक नियमों के जो उल्लंघन किये गये हैं उनको सार्वजनिक करके उन पर सख्त कार्रवाई करनी चहिए जिससे कि ई-कॉमर्स पॉलिसी केवल दिखावा मात्र न हो बल्कि इसमें वास्तविक दम हो। दूसरा यह कि सरकार बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों पर प्रतिबंध लगा सकती है कि उन्हें कम से कम 30 या 50 प्रतिशत माल भारतीय छोटे उद्योगों से खरीदना होगा। जिस प्रकार बैंकों पर प्रतिबंध है कि उन्हें निर्धारित मात्रा में ऋण छोटे उद्योगों को देना होता है उसी प्रकार ई-कॉमर्स कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। तब ई-कॉमर्स कंपनियों को मजबूरन घरेलू कंपनियों के साथ हाथ मिलाने होंगे और भारतीय छोटे उद्योगों को भी ई-प्लेटफार्म के माध्यम से अपना माल बेचने में सहूलियत होगी।
ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा वर्तमान में भारतीय छोटे उद्योगों का जो सफाया हो रहा है उसमें कुछ रोक आयेगी। सरकार तीसरा कदम यह उठा सकती है कि जिस प्रकार अमाजेन और फ्लिपकार्ट ई-कॉमर्स के एग्रीग्रेटर हैं उसी प्रकार भारत सरकार एक एग्रीग्रेटर कंपनी बना सकती है। एग्रीग्रेटर का अर्थ यह हुआ कि अमेजान और फ्लिपकार्ट की तरह ये कम्पनियां स्वयं माल का उत्पादन नहीं करती हैं।
वे मंडी के आढ़तिया की तरह काम करते हैं। हजारों सप्लायर और हजारों क्रेताओं को आपस में जोडऩे मात्र की उनकी भूमिका होती है। लेकिन वे अपनी इस भूमिका का दुरूपयोग कर विशेष अथवा अपने ही माल को बढ़ाने का काम कार रहे हैं। इसे रोकने का एक उपाय यह है कि जिस प्रकार सरकार ने रकम को ई-प्लेटफार्म से एक खाते से दूसरे खाते में भेजने के लिए भीम एप्प बनाया है उसी प्रकार सरकार स्वयं स्वतंत्र एग्रीग्रेटर स्थापित कर सकती है जो अमाजेन और फ्लिपकार्ट को चुनौती दे। इस भारतीय कम्पनी को सरकार का समर्थन होगा तो यह इन बड़ी कंपनियों द्वारा ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के दुरूपयोग को रोकने में सफल हो सकती है। जिस प्रकार भारत में सरकारी बैंकों ने निजी बैंकों द्वारा खाता धारकों से अधिक रकम वसूल करने पर रोक लगा दी है उसी प्रकार सरकार द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र कम्पनी अमेजान और फ्लिपकार्ट पर भी रोक लगा सकती है। मुख्य बात यह है कि सरकार को केवल नई-नई पॉलिसियां बनाकर जनता को भ्रमित नहीं करना चाहिए। पहले जो पॉलिसी के उल्लंघन हुए हैं उनके ऊपर कार्रवाई करनी चाहिए उसके बाद ही पॉलिसी प्रिवेर्तन की कोई सार्थकता होगी।
सरकार ने हाल में ई-कॉमर्स पालिसी में संशोधन किये हैं। इन्हें समझने के लिए ई-कॉमर्स के परिदृश्य पर एक नजर डालनी होगी। भारत में ई-कॉमर्स के दो प्रमुख खिलाड़ी हैंकृअमेजान और फ्लिपकार्ट। अमेजान ई-कॉमर्स के माध्यम से अमरीकी बाजार में छाई हुई है। अमेरिका में अमेजान दूसरी बड़ी कंपनी वालमार्ट से प्रतिस्पर्धा में है। वालमार्ट ऑफलाइन या दुकान के माध्यम से उन्हीं अमरीकी खरीदारों पर छाई हुई है। अमेरिका में अमेजान ऑनलाइन एवं वालमार्ट ऑफलाइन प्लेटफार्म से प्रतिस्पर्धा में हैं। वालमार्ट भारत में प्रवेश करना चाहती थी। लेकिन भारत सरकार ने वालमार्ट को अपनी ऑफलाइन दुकान खोलने की स्वीकृति नहीं दी है। तब वालमार्ट ने रास्ता यह निकाला है कि भारतीय कम्पनी फ्लिपकार्ट को खरीद लिया है। अब जैसा ऊपर बताया गया है, अमेरिका में ऑनलाइन अमेजान तथा ऑफलाइन वालमार्ट का सामना हैय और भारत में ऑनलाइन अमेजान तथा फ्लिपकार्ट के माध्यम से ऑनलाइन वालमार्ट का सामना है। दोनों ही महारथी भारत के ई-कॉमर्स पर अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं। हमारे लिए वालमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट को खरीदे जाने का महत्व यह है कि वर्तमान में वालमार्ट चीन से भारी मात्रा में फुटबॉल, कपड़े इत्यादि माल खरीद कर अमरीकी बाजार में अपनी दुकानों के माध्यम से बेच रहा है। वालमार्ट अभी तक चीन के माल को भारत में नहीं बेच पा रहा था। अब वालमार्ट इस माल को फ्लिपकार्ट के माध्यम से बेच सकेगा। इसलिए यह विषय भारत में चीन के माल के प्रवेश से जुड़ा हुआ है। इसी क्रम में अमेजान और फ्लिपकार्ट ने अपने ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर विशेष कंपनियों के माल को उपलब्ध करने की रणनीति अपनाई हुई है। उदाहरणतरू अमेजान ने हिंदुस्तान लीवर से समझौता किया है कि ब्रिलक्रीम नाम के उसके उत्पाद को केवल अमेजान के ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर उपलब्ध कराया जायेगा।
ब्रिलक्रीम को हिंदुस्तान लीवर अन्य किसी दुकान अथवा किसी अन्य दूसरे ई-प्लेटफार्म से नहीं बेचेगी। इस प्रकार हिंदुस्तान लीवर और अमेजान मिलकर एक विशेष उत्पाद को बढ़ाना चाहते हैं। इसी प्रकार फ्लिपकार्ट और मोबाइल फोन कम्पनी जाओमी के साथ समझौता हुआ है। जाओमी के कुछ मोबाइल फोन अब केवल फ्लिपकार्ट के ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर ही उपलब्ध हैं। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि ई-कॉमर्स को विशेष उत्पादों को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जा रहा है जैसे वालमार्ट चीन में बनाये गए माल को भारत में फ्लिपकार्ट के माध्यम से बेच सकता है। इस पृष्टभूमि में भारत सरकार ने ई-कामर्स पालिसी में कुछ स्पष्टीकरण किये हैं। पहला स्पष्टीकरण यह है कि यदि कोई सप्लायर अपने कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत या उससे अधिक माल किसी ई-प्लेटफॉर्म के माध्यम से नहीं बेच सकता है। यह भी कहा है कि कैशबैक जैसे इंसेंटिव अथवा विशेष डिस्काउंट भी किसी विशेष माल पर नहीं दिए जा सकेंगे। ऐसे में उपरोक्त बताये गये ब्रिलक्रीम और जिओमी फोन जैसे विशेष उत्पादों को बढ़ाना ई-कॉमर्स कम्पनियों के लिए गैरकानूनी हो जाएगा। इसी क्रम में अमेजान द्वारा चीन में बनाये गये माल को फ्लिप कार्ट के माध्यम से भारत में बेचना भी गैरकानूनी होगा चूंकि ये उत्पाद अमेजान से सम्बंधित सप्लायर द्वारा ही चीन में बनाये गए हैं। इन स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है किई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा किसी विशेष माल को बढ़ाने के लिए इस प्लेटफोर्म का दुरूपयोग न किया जाये। मूल रूप से सरकार की यह पहल सही दिशा में है और सार्थक है। लेकिन आल इंडिया आल लाइन वेंडर्स एसोसिएशन ने इस पालिसी को लिपा-पोती बताया है। उनका कहना है कि ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों द्वारा पूर्व में जो तमाम नीति के उल्लंघन किये गए हैं उन पर सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है। वर्तमान पॉलिसी में जो परिवर्तन किये गए हैं इनको लागू करने और इनके उल्लंघन के उपर कार्रवाई करने आगे खिसका दिया गया है। उनके अनुसार सरकार की पॉलिसी यह है कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा जो देश के कानून का उल्लंघन अब तक किया गया है उसके ऊपर खामोशी बनाए रखो और जनता का ध्यान यह कह कर हटा दो कि अब हमने ई-कॉमर्स पॉलिसी को और सख्त बना दिया है। वेंडर्स एसोसिएशन के इस वक्तव्य में दम दीखता है। इस परिप्रेक्ष्य में ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के दुरूपयोग को रोकने के लिए सरकार को निम्न कदमों पर विचार करना चाहिए। सर्वप्रथम ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा अब तक नियमों के जो उल्लंघन किये गये हैं उनको सार्वजनिक करके उन पर सख्त कार्रवाई करनी चहिए जिससे कि ई-कॉमर्स पॉलिसी केवल दिखावा मात्र न हो बल्कि इसमें वास्तविक दम हो। दूसरा यह कि सरकार बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों पर प्रतिबंध लगा सकती है कि उन्हें कम से कम 30 या 50 प्रतिशत माल भारतीय छोटे उद्योगों से खरीदना होगा। जिस प्रकार बैंकों पर प्रतिबंध है कि उन्हें निर्धारित मात्रा में ऋण छोटे उद्योगों को देना होता है उसी प्रकार ई-कॉमर्स कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। तब ई-कॉमर्स कंपनियों को मजबूरन घरेलू कंपनियों के साथ हाथ मिलाने होंगे और भारतीय छोटे उद्योगों को भी ई-प्लेटफार्म के माध्यम से अपना माल बेचने में सहूलियत होगी।
ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा वर्तमान में भारतीय छोटे उद्योगों का जो सफाया हो रहा है उसमें कुछ रोक आयेगी। सरकार तीसरा कदम यह उठा सकती है कि जिस प्रकार अमाजेन और फ्लिपकार्ट ई-कॉमर्स के एग्रीग्रेटर हैं उसी प्रकार भारत सरकार एक एग्रीग्रेटर कंपनी बना सकती है। एग्रीग्रेटर का अर्थ यह हुआ कि अमेजान और फ्लिपकार्ट की तरह ये कम्पनियां स्वयं माल का उत्पादन नहीं करती हैं।
वे मंडी के आढ़तिया की तरह काम करते हैं। हजारों सप्लायर और हजारों क्रेताओं को आपस में जोडऩे मात्र की उनकी भूमिका होती है। लेकिन वे अपनी इस भूमिका का दुरूपयोग कर विशेष अथवा अपने ही माल को बढ़ाने का काम कार रहे हैं। इसे रोकने का एक उपाय यह है कि जिस प्रकार सरकार ने रकम को ई-प्लेटफार्म से एक खाते से दूसरे खाते में भेजने के लिए भीम एप्प बनाया है उसी प्रकार सरकार स्वयं स्वतंत्र एग्रीग्रेटर स्थापित कर सकती है जो अमाजेन और फ्लिपकार्ट को चुनौती दे। इस भारतीय कम्पनी को सरकार का समर्थन होगा तो यह इन बड़ी कंपनियों द्वारा ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के दुरूपयोग को रोकने में सफल हो सकती है। जिस प्रकार भारत में सरकारी बैंकों ने निजी बैंकों द्वारा खाता धारकों से अधिक रकम वसूल करने पर रोक लगा दी है उसी प्रकार सरकार द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र कम्पनी अमेजान और फ्लिपकार्ट पर भी रोक लगा सकती है। मुख्य बात यह है कि सरकार को केवल नई-नई पॉलिसियां बनाकर जनता को भ्रमित नहीं करना चाहिए। पहले जो पॉलिसी के उल्लंघन हुए हैं उनके ऊपर कार्रवाई करनी चाहिए उसके बाद ही पॉलिसी प्रिवेर्तन की कोई सार्थकता होगी।
ये लेखक के अपने विचार हैं.
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