स्वस्थ जीवन का आधार है हमारा पोषण। भारत सरकार ने भी आजादी के बाद इस ओर अपना ध्यान देना शुरू किया और पीडीएस यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना कर लोगों को पोषण आहार तथा खान-पान की वस्तुओं को सर्वसुलभ कराने की कोशिश की। इसके अलावा महिला एवं बाल विकास एवं पुष्टहार विभाग बनाकर गांव-गांव तक पोषण सामग्री पहुंचाने का उपक्रम शुरू किया। फिर देखा जाये तो हमें जो उम्मीद थी, वह इन संस्थाओं से हासिल नहीं हो पा रहा है। अगर स्वस्थ रहना है और आनेवाली पीढिय़ों का भी ध्यान रखना है तो हमें अपना खानपान जल्दी बदलना होगा। दुनिया के कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों की साझा राय है कि सन 2050 तक दस अरब के आंकड़े को पार कर जानेवाली विश्व जनसंख्या का पेट भरने के लिए जरूरी है कि हम अभी से अपने खाने की थाली में तब्दीली करें। ईट-लांसेट कमिशन के तहत संसार के 37 बड़े आहार विज्ञानियों ने मिलकर 'द प्लैनेट्री हेल्थ डायट' तैयार किया है। उनका कहना है कि मानव जाति अगर अपने खाने में रेड मीट और शुगर की मात्रा आधी करके उसकी जगह फल और सब्जियां बढ़ा दे तो न सिर्फ कई बीमारियों से बचाव होगा बल्कि लोगों की आयु भी बढ़ेगी।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यूरोप और नॉर्थ अमेरिका के लोग रेड मीट बहुत ज्यादा खाते हैं। उन्हें इसमें कमी करने की जरूरत है। पूर्वी एशिया में मछली खाने का चलन बहुत ज्यादा है, जिसमें कटौती की आवश्यकता है। अफ्रीका के लोगों को स्टार्च वाली सब्जियां (आलू, शकरकंद) कम खानी चाहिए। इस तरह अगर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद लोग अपने भोजन में अलग-अलग तरह के बदलाव करें तो एक परफेक्ट डायट तैयार होगी जो हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर जैसी कई बीमारियों से बचाएगी। इससे हर साल करीब 1 करोड़ लोगों की समय से पहले होने वाली मौत को रोका जा सकेगा। वैज्ञानिकों द्वारा तैयार इस डायट प्लान से धरती और पर्यावरण की रक्षा भी हो सकेगी। इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटेगा, जो पर्यावरण पर छाई बीमारी की सबसे बड़ी वजह है। इससे धरती पर अभी मौजूद कई जीव जातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा।
कुछ लोगों को लग सकता है कि ये दूर की समस्याएं हैं। लेकिन भारत के अपने समुद्री इलाकों में भी बड़े मछलीमार जहाज कई जल जीवों और वनस्पतियों के साथ-साथ मछुआरों की भी बर्बादी का सबब बन रहे हैं। इसके विरोध में चले उनके आंदोलन आज भी बेनतीजा हैं। जाहिर है, भोजन में मछलियां कम होंगी तो हमारे समुद्र तट ज्यादा खुशहाल रहेंगे। लेकिन सिर्फ डायट बदलने से बहुत ज्यादा फायदा तब तक नहीं होगा जब तक खाने की बर्बादी न रुके।
हमारे खानपान का संबंध हमारे भूगोल के अलावा हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं से भी रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में बाजार ने इस पर गहरा असर डाला है। खाने का एक ग्लोबल बाजार तैयार हुआ है, जिसने इसे जरूरत के बजाय फैशन और स्टाइल जैसी चीज बना डाला है। भारत में जंक फूड इसीलिए इतनी तेजी से फैला है और महंगे मांसाहार के नाम पर ऐसे व्यंजन प्रचलित हो गए हैं, जो जीवन की अवमानना करते हैं और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। इसे सोच-विचार का हिस्सा बनाए बगैर स्वस्थ डायट को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। वैज्ञानिकों की इस सलाह को ध्यान में रखकर सरकारें भी फूड सेक्टर को रेगुलेट कर सकती हैं, लेकिन सामाजिक जागरूकता इसकी पहली शर्त है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यूरोप और नॉर्थ अमेरिका के लोग रेड मीट बहुत ज्यादा खाते हैं। उन्हें इसमें कमी करने की जरूरत है। पूर्वी एशिया में मछली खाने का चलन बहुत ज्यादा है, जिसमें कटौती की आवश्यकता है। अफ्रीका के लोगों को स्टार्च वाली सब्जियां (आलू, शकरकंद) कम खानी चाहिए। इस तरह अगर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद लोग अपने भोजन में अलग-अलग तरह के बदलाव करें तो एक परफेक्ट डायट तैयार होगी जो हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर जैसी कई बीमारियों से बचाएगी। इससे हर साल करीब 1 करोड़ लोगों की समय से पहले होने वाली मौत को रोका जा सकेगा। वैज्ञानिकों द्वारा तैयार इस डायट प्लान से धरती और पर्यावरण की रक्षा भी हो सकेगी। इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटेगा, जो पर्यावरण पर छाई बीमारी की सबसे बड़ी वजह है। इससे धरती पर अभी मौजूद कई जीव जातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकेगा।
कुछ लोगों को लग सकता है कि ये दूर की समस्याएं हैं। लेकिन भारत के अपने समुद्री इलाकों में भी बड़े मछलीमार जहाज कई जल जीवों और वनस्पतियों के साथ-साथ मछुआरों की भी बर्बादी का सबब बन रहे हैं। इसके विरोध में चले उनके आंदोलन आज भी बेनतीजा हैं। जाहिर है, भोजन में मछलियां कम होंगी तो हमारे समुद्र तट ज्यादा खुशहाल रहेंगे। लेकिन सिर्फ डायट बदलने से बहुत ज्यादा फायदा तब तक नहीं होगा जब तक खाने की बर्बादी न रुके।
हमारे खानपान का संबंध हमारे भूगोल के अलावा हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं से भी रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में बाजार ने इस पर गहरा असर डाला है। खाने का एक ग्लोबल बाजार तैयार हुआ है, जिसने इसे जरूरत के बजाय फैशन और स्टाइल जैसी चीज बना डाला है। भारत में जंक फूड इसीलिए इतनी तेजी से फैला है और महंगे मांसाहार के नाम पर ऐसे व्यंजन प्रचलित हो गए हैं, जो जीवन की अवमानना करते हैं और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। इसे सोच-विचार का हिस्सा बनाए बगैर स्वस्थ डायट को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। वैज्ञानिकों की इस सलाह को ध्यान में रखकर सरकारें भी फूड सेक्टर को रेगुलेट कर सकती हैं, लेकिन सामाजिक जागरूकता इसकी पहली शर्त है।
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