आज विजयदशमी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या के राजा राम ने लंका में आततायी रावण पर विजय प्राप्त की थी। श्री राम और रावण का युद्घ असल में सत्य और असत्य के बीच में था। बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हम इस विजय को हर वर्ष याद करते हैं। जगह-जगह रामलीलाएं आयोजित की जाती हैं। यह हमें याद दिलाती हैं कि असत्य पर सत्य की ही विजय होती है, परिस्तिथियां भले ही थोड़े समय के लिए विपरीत हो जायें। इसी याद में हर वर्ष हम बुराई के प्रतीक रावण का दहन करते हैं।
हर वर्ष रावण जलता है, लेकिन हमारे बीच का रावण क्या सचमुच में जलता है। इस पर सवाल अभी कायम हैं। 'मीटूÓ अभियान से हुए तमाम सनसनीखेज खुलासे यह बताने के लिए काफी है कि हमारे बीच अभी न जाने कितने रावण मौजूद हैं, जो बुराई के प्रतीक हैं।
असल में बुराई के लिए गरीबी, मुफलिसी, दकियानूसी विचारधारा भी किसी भी स्तर पर कम नहीं है। हम मजबूरियों में गलत कदम उठा जाते हैं। बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता। अन्नदाता किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अत: अब हमें इन बुराईयों से लडऩे की जरूरत है। राम ने अपने चरित्र में सबको जोडऩे का काम किया। उनके लिए भील शबरी उतनी ही प्रिय थी, जितने कि हनुमान। उन्होंने केवट को भी वही सम्मान दिया जो कि वह अपने अन्य मित्रों को दिया करते थे। बुराई पर विजय प्राप्त करने के लिए बन्दर, भालू, जटायु तक को अपनी मुहिम में जोड़ा। यह बताता है कि उनके लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं था, बल्कि हर किसी का अपना महत्व था और हर किसी के साथ मिलकर काम किया जा सकता है। मनुष्य तो मनुष्य, पशु-पक्षी भी मानवता के रक्षक बन सकते हैं। उन्हें अच्छे कार्यो के लिए जोड़ा जा सकता है। उन्होंने बुराई के प्रतीक रावण की प्रकाण्ड विद्युता का भी सम्मान किया और अनुज लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा। अर्थात बुराई में भी अच्छाई ढूंढने और उसका सदुपयोग करना राम का चरित्र हमें सिखाता है। उन्होंने धोबी की बातों का सम्मान किया। वह सबकी सुनते थे और सभी की इच्छाओं का सम्मान करते थे, इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से आदर और सम्मान से याद किया जाता है।
आज हममें राम के कितने गुण हैं? यह बड़ा सवाल है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं संप्रदाय के नाम पर नफरत के बीज बोये जा रहे हैं। छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, भाषावाद, प्रांतवाद के नाम पर एक मनुष्य दूसरे को देखना पसंद नहीं कर रहा है। नफरत का बीज इतना विकसित हो चुका है कि मानवता को तार-तार करते हुए जहां देखों को वहीं कुछ भीड़ इक_ïा हो जाती है और किसी की जान ले लेती है। इसमें रावण कौन है? यह एक यक्ष प्रश्न है। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी भी रावण के प्रतीक हैं, बगैर इनका नाश किये रामराज्य की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती है। हमें भेदभाव रहित इंसानियत को तवज्जो देने वाले समाज को बनाना होगा, तभी रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है।
आज विजयदशमी के दिन यदि हम बुराई से दूरी बनाने तथा उससे लडऩे का संकल्प लें, तभी इस दिन को मनाने का सही मायने में उपयोग हो सकता है। हर किसी को राम के चरित्र का अनुसरण करना चाहिये, ताकि एक भेदभाव रहित सुखी समाज की परिकल्पना को धरातल पर लाया जा सके। समाज में प्रेम और भाईचारे का माहौल बने, लोग एक-दूसरे का सम्मान करें, उनकी भावनओं को समझे और आदर दे, यही दशहरा यानि विजयदशमी के मनाने की असली वजह होनी चाहिये। आज विजयदशमी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या के राजा राम ने लंका में आततायी रावण पर विजय प्राप्त की थी। श्री राम और रावण का युद्घ असल में सत्य और असत्य के बीच में था। बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हम इस विजय को हर वर्ष याद करते हैं। जगह-जगह रामलीलाएं आयोजित की जाती हैं। यह हमें याद दिलाती हैं कि असत्य पर सत्य की ही विजय होती है, परिस्तिथियां भले ही थोड़े समय के लिए विपरीत हो जायें। इसी याद में हर वर्ष हम बुराई के प्रतीक रावण का दहन करते हैं।
हर वर्ष रावण जलता है, लेकिन हमारे बीच का रावण क्या सचमुच में जलता है। इस पर सवाल अभी कायम हैं। 'मीटूÓ अभियान से हुए तमाम सनसनीखेज खुलासे यह बताने के लिए काफी है कि हमारे बीच अभी न जाने कितने रावण मौजूद हैं, जो बुराई के प्रतीक हैं।
असल में बुराई के लिए गरीबी, मुफलिसी, दकियानूसी विचारधारा भी किसी भी स्तर पर कम नहीं है। हम मजबूरियों में गलत कदम उठा जाते हैं। बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता। अन्नदाता किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अत: अब हमें इन बुराईयों से लडऩे की जरूरत है। राम ने अपने चरित्र में सबको जोडऩे का काम किया। उनके लिए भील शबरी उतनी ही प्रिय थी, जितने कि हनुमान। उन्होंने केवट को भी वही सम्मान दिया जो कि वह अपने अन्य मित्रों को दिया करते थे। बुराई पर विजय प्राप्त करने के लिए बन्दर, भालू, जटायु तक को अपनी मुहिम में जोड़ा। यह बताता है कि उनके लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं था, बल्कि हर किसी का अपना महत्व था और हर किसी के साथ मिलकर काम किया जा सकता है। मनुष्य तो मनुष्य, पशु-पक्षी भी मानवता के रक्षक बन सकते हैं। उन्हें अच्छे कार्यो के लिए जोड़ा जा सकता है। उन्होंने बुराई के प्रतीक रावण की प्रकाण्ड विद्युता का भी सम्मान किया और अनुज लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा। अर्थात बुराई में भी अच्छाई ढूंढने और उसका सदुपयोग करना राम का चरित्र हमें सिखाता है। उन्होंने धोबी की बातों का सम्मान किया। वह सबकी सुनते थे और सभी की इच्छाओं का सम्मान करते थे, इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से आदर और सम्मान से याद किया जाता है।
आज हममें राम के कितने गुण हैं? यह बड़ा सवाल है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं संप्रदाय के नाम पर नफरत के बीज बोये जा रहे हैं। छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, भाषावाद, प्रांतवाद के नाम पर एक मनुष्य दूसरे को देखना पसंद नहीं कर रहा है। नफरत का बीज इतना विकसित हो चुका है कि मानवता को तार-तार करते हुए जहां देखों को वहीं कुछ भीड़ इक_ïा हो जाती है और किसी की जान ले लेती है। इसमें रावण कौन है? यह एक यक्ष प्रश्न है। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी भी रावण के प्रतीक हैं, बगैर इनका नाश किये रामराज्य की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती है। हमें भेदभाव रहित इंसानियत को तवज्जो देने वाले समाज को बनाना होगा, तभी रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है।
आज विजयदशमी के दिन यदि हम बुराई से दूरी बनाने तथा उससे लडऩे का संकल्प लें, तभी इस दिन को मनाने का सही मायने में उपयोग हो सकता है। हर किसी को राम के चरित्र का अनुसरण करना चाहिये, ताकि एक भेदभाव रहित सुखी समाज की परिकल्पना को धरातल पर लाया जा सके। समाज में प्रेम और भाईचारे का माहौल बने, लोग एक-दूसरे का सम्मान करें, उनकी भावनओं को समझे और आदर दे, यही दशहरा यानि विजयदशमी के मनाने की असली वजह होनी चाहिये।
हर वर्ष रावण जलता है, लेकिन हमारे बीच का रावण क्या सचमुच में जलता है। इस पर सवाल अभी कायम हैं। 'मीटूÓ अभियान से हुए तमाम सनसनीखेज खुलासे यह बताने के लिए काफी है कि हमारे बीच अभी न जाने कितने रावण मौजूद हैं, जो बुराई के प्रतीक हैं।
असल में बुराई के लिए गरीबी, मुफलिसी, दकियानूसी विचारधारा भी किसी भी स्तर पर कम नहीं है। हम मजबूरियों में गलत कदम उठा जाते हैं। बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता। अन्नदाता किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अत: अब हमें इन बुराईयों से लडऩे की जरूरत है। राम ने अपने चरित्र में सबको जोडऩे का काम किया। उनके लिए भील शबरी उतनी ही प्रिय थी, जितने कि हनुमान। उन्होंने केवट को भी वही सम्मान दिया जो कि वह अपने अन्य मित्रों को दिया करते थे। बुराई पर विजय प्राप्त करने के लिए बन्दर, भालू, जटायु तक को अपनी मुहिम में जोड़ा। यह बताता है कि उनके लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं था, बल्कि हर किसी का अपना महत्व था और हर किसी के साथ मिलकर काम किया जा सकता है। मनुष्य तो मनुष्य, पशु-पक्षी भी मानवता के रक्षक बन सकते हैं। उन्हें अच्छे कार्यो के लिए जोड़ा जा सकता है। उन्होंने बुराई के प्रतीक रावण की प्रकाण्ड विद्युता का भी सम्मान किया और अनुज लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा। अर्थात बुराई में भी अच्छाई ढूंढने और उसका सदुपयोग करना राम का चरित्र हमें सिखाता है। उन्होंने धोबी की बातों का सम्मान किया। वह सबकी सुनते थे और सभी की इच्छाओं का सम्मान करते थे, इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से आदर और सम्मान से याद किया जाता है।
आज हममें राम के कितने गुण हैं? यह बड़ा सवाल है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं संप्रदाय के नाम पर नफरत के बीज बोये जा रहे हैं। छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, भाषावाद, प्रांतवाद के नाम पर एक मनुष्य दूसरे को देखना पसंद नहीं कर रहा है। नफरत का बीज इतना विकसित हो चुका है कि मानवता को तार-तार करते हुए जहां देखों को वहीं कुछ भीड़ इक_ïा हो जाती है और किसी की जान ले लेती है। इसमें रावण कौन है? यह एक यक्ष प्रश्न है। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी भी रावण के प्रतीक हैं, बगैर इनका नाश किये रामराज्य की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती है। हमें भेदभाव रहित इंसानियत को तवज्जो देने वाले समाज को बनाना होगा, तभी रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है।
आज विजयदशमी के दिन यदि हम बुराई से दूरी बनाने तथा उससे लडऩे का संकल्प लें, तभी इस दिन को मनाने का सही मायने में उपयोग हो सकता है। हर किसी को राम के चरित्र का अनुसरण करना चाहिये, ताकि एक भेदभाव रहित सुखी समाज की परिकल्पना को धरातल पर लाया जा सके। समाज में प्रेम और भाईचारे का माहौल बने, लोग एक-दूसरे का सम्मान करें, उनकी भावनओं को समझे और आदर दे, यही दशहरा यानि विजयदशमी के मनाने की असली वजह होनी चाहिये। आज विजयदशमी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या के राजा राम ने लंका में आततायी रावण पर विजय प्राप्त की थी। श्री राम और रावण का युद्घ असल में सत्य और असत्य के बीच में था। बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में हम इस विजय को हर वर्ष याद करते हैं। जगह-जगह रामलीलाएं आयोजित की जाती हैं। यह हमें याद दिलाती हैं कि असत्य पर सत्य की ही विजय होती है, परिस्तिथियां भले ही थोड़े समय के लिए विपरीत हो जायें। इसी याद में हर वर्ष हम बुराई के प्रतीक रावण का दहन करते हैं।
हर वर्ष रावण जलता है, लेकिन हमारे बीच का रावण क्या सचमुच में जलता है। इस पर सवाल अभी कायम हैं। 'मीटूÓ अभियान से हुए तमाम सनसनीखेज खुलासे यह बताने के लिए काफी है कि हमारे बीच अभी न जाने कितने रावण मौजूद हैं, जो बुराई के प्रतीक हैं।
असल में बुराई के लिए गरीबी, मुफलिसी, दकियानूसी विचारधारा भी किसी भी स्तर पर कम नहीं है। हम मजबूरियों में गलत कदम उठा जाते हैं। बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता। अन्नदाता किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अत: अब हमें इन बुराईयों से लडऩे की जरूरत है। राम ने अपने चरित्र में सबको जोडऩे का काम किया। उनके लिए भील शबरी उतनी ही प्रिय थी, जितने कि हनुमान। उन्होंने केवट को भी वही सम्मान दिया जो कि वह अपने अन्य मित्रों को दिया करते थे। बुराई पर विजय प्राप्त करने के लिए बन्दर, भालू, जटायु तक को अपनी मुहिम में जोड़ा। यह बताता है कि उनके लिए कोई बड़ा या छोटा नहीं था, बल्कि हर किसी का अपना महत्व था और हर किसी के साथ मिलकर काम किया जा सकता है। मनुष्य तो मनुष्य, पशु-पक्षी भी मानवता के रक्षक बन सकते हैं। उन्हें अच्छे कार्यो के लिए जोड़ा जा सकता है। उन्होंने बुराई के प्रतीक रावण की प्रकाण्ड विद्युता का भी सम्मान किया और अनुज लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा। अर्थात बुराई में भी अच्छाई ढूंढने और उसका सदुपयोग करना राम का चरित्र हमें सिखाता है। उन्होंने धोबी की बातों का सम्मान किया। वह सबकी सुनते थे और सभी की इच्छाओं का सम्मान करते थे, इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से आदर और सम्मान से याद किया जाता है।
आज हममें राम के कितने गुण हैं? यह बड़ा सवाल है। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं संप्रदाय के नाम पर नफरत के बीज बोये जा रहे हैं। छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, भाषावाद, प्रांतवाद के नाम पर एक मनुष्य दूसरे को देखना पसंद नहीं कर रहा है। नफरत का बीज इतना विकसित हो चुका है कि मानवता को तार-तार करते हुए जहां देखों को वहीं कुछ भीड़ इक_ïा हो जाती है और किसी की जान ले लेती है। इसमें रावण कौन है? यह एक यक्ष प्रश्न है। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी भी रावण के प्रतीक हैं, बगैर इनका नाश किये रामराज्य की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती है। हमें भेदभाव रहित इंसानियत को तवज्जो देने वाले समाज को बनाना होगा, तभी रामराज्य की परिकल्पना साकार हो सकती है।
आज विजयदशमी के दिन यदि हम बुराई से दूरी बनाने तथा उससे लडऩे का संकल्प लें, तभी इस दिन को मनाने का सही मायने में उपयोग हो सकता है। हर किसी को राम के चरित्र का अनुसरण करना चाहिये, ताकि एक भेदभाव रहित सुखी समाज की परिकल्पना को धरातल पर लाया जा सके। समाज में प्रेम और भाईचारे का माहौल बने, लोग एक-दूसरे का सम्मान करें, उनकी भावनओं को समझे और आदर दे, यही दशहरा यानि विजयदशमी के मनाने की असली वजह होनी चाहिये।
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