17 दिन से लगातार इनकार के बाद कल सऊदी अरब ने पत्रकार खशोगी की हत्या का जुर्म कबूल किया। इस बीच में सऊदी अरब के बादशाह सलमान और उनके काबिल पुत्र युवराज मुहम्मद बिन सलमान ने बार-बार इस घटना से इनकार किया। इतने उच्च सतह पर बार-बार गलत बयान देना अजीब लगता है।
यह हत्या सऊदी अधिकारियों ने इस्ताम्बुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के अन्दर की और अब तक लाश का पता नहीं चल पाया है। इस संबंध में सबसे अधिक आश्चर्य अमेरिका के बर्ताव पर है। डोनाल्ड ट्रम्प युवराज मुहम्मद बिन सलमान को अपना निकटतम सहयोगी मानते हैं और युवराज की दोस्ती उनके पुत्र तथा पुत्रवधु से भी है, जो उनके निमत्रंण पर सऊदी अरब गये थे। हत्या करने के लिए १५ आदमियों का जो जत्था तुर्की भेजा गया था, उसमें युवराज के निकटतम सहयोगी शामिल थे। हत्या के बाद यह लोग फौरन ही स्वदेश लौट गये थे। यह कहना कि खशोगी की हत्या के बात सऊदी शाह सलमान या युवराज मुहम्मद बिन सलमान को नहीं मालुम थी, इतना बड़ा झूठ है, जिसे कोई नहीं पचा पायेगा
सऊदी अरब ने कहा है कि दूतावास में खशोगी का सऊदी अधिकारियों से झगड़ा हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई, यह बात बिल्कुल गलत लगती है। तमाम परिस्थितियां स्पष्टï करती है कि यह पूर्व नियोजित हत्या थी। राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का यह कहना कि सऊदी अरब का स्पष्टïीकरण विश्वसनीय है, एक मजाक लगता है।
डोनाल्ड ट्रम्प कई कारणों से सच्चाई छिपा रहे हैं। उन्होंने स्वयं कहा है कि सऊदी अरब से व्यापारिक सम्बन्ध अमेरिका के लिए बहुत अहम हैं। कल उन्होंने यह भी कहा है कि यदि सऊदी अरब अपने हथियारों की खरीद बन्द कर दे तो अमेरिका में १० लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो जाएंगे। यह सच है कि सऊदी शासन बेकार अमेरिकी हथियारों को खरीद कर अपनी जनता का पैसा बर्बाद कर रहा है और इससे फायदा केवल अमेरिका के उद्योगों को हैं। देश में सऊदी शासन इतना अलोकप्रिय है, इसका अन्दाजा डोनाल्ड ट्रम्प की इस बात से ही होता है कि बिना अमेरिकी सुरक्षा के यह बादशाह एक सप्ताह से अधिक नहीं रह पायेंगे। दूसरा कारण मध्य-पूर्व में अमेरिकी नीतियों में सऊदी अरब की अहम भूमिका है। सऊदी अरब और इसरायल मिलकर मध्य-पूर्व में अमेरिकी नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। यह भी सत्य है कि अमेरिका की यहूदी लॉबी और इसरायल किसी भी कीमत पर सऊदी अरब के विरूद्घ कोई कार्रवाई नहीं होने देंगे। मध्य-पूर्व में चाहे सीरिया हो या यमन, हर जगह ईरान का नाम लेकर लोगों के मारने का औचित्य बताया जाता है। यमन में लाखों लोग भूख से मर रहे हैं, परन्तु ईरान का हौवा दिखाकर उस देश को बर्बाद किया जा रहा है। इन सभी कारणों से स्पष्टï है कि अमेरिका कभी भी सऊदी अरब को जिम्मेदार नहीं बतायेगा और कुछ निचले दर्जें के लोगों को हल्की सजा दिलवाकर सऊदी अरब छूट जायेगा।
मध्य-पूर्व के अमेरिका समर्थक राज्यों में मीडिया पर पूरी पाबन्दी है। जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर की घेराबंदी की थी तो उसका एक कारण अलजझीरा चैनल को बताया गया था। एक पत्रकार जिसने पहले मिस्र में नागरिकों के जुलूस पर दमनकारी कार्यों की रिपोर्टिंग की थी, काफी बाद में उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह काहिरा में अपनी ससुराल गया था और अब तक जेल में है। यह सभी देश अमेरिका और उन पश्चिमी देशों की छत्रछाया में यह कार्य कर है, जो अभिव्यक्ति की आजादी का दम भरते हैं। यदि यहां अभिव्यक्ति की आजादी मिले तो आम आदमी पश्चिमी देशों द्वारा किये जा रहे लूट-खसोट के बारे में जान जायेगा। मुझे मशहूर अरब दार्शनिक डॉ0 उसमान फतेही का वह कथन याद आ रहा है जो उन्होंने जामिया मिलिया में मेरे घर पर दिया था कि अरबों की मिजात प्रजातंत्र में ही है।
यह हत्या सऊदी अधिकारियों ने इस्ताम्बुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास के अन्दर की और अब तक लाश का पता नहीं चल पाया है। इस संबंध में सबसे अधिक आश्चर्य अमेरिका के बर्ताव पर है। डोनाल्ड ट्रम्प युवराज मुहम्मद बिन सलमान को अपना निकटतम सहयोगी मानते हैं और युवराज की दोस्ती उनके पुत्र तथा पुत्रवधु से भी है, जो उनके निमत्रंण पर सऊदी अरब गये थे। हत्या करने के लिए १५ आदमियों का जो जत्था तुर्की भेजा गया था, उसमें युवराज के निकटतम सहयोगी शामिल थे। हत्या के बाद यह लोग फौरन ही स्वदेश लौट गये थे। यह कहना कि खशोगी की हत्या के बात सऊदी शाह सलमान या युवराज मुहम्मद बिन सलमान को नहीं मालुम थी, इतना बड़ा झूठ है, जिसे कोई नहीं पचा पायेगा
सऊदी अरब ने कहा है कि दूतावास में खशोगी का सऊदी अधिकारियों से झगड़ा हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई, यह बात बिल्कुल गलत लगती है। तमाम परिस्थितियां स्पष्टï करती है कि यह पूर्व नियोजित हत्या थी। राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का यह कहना कि सऊदी अरब का स्पष्टïीकरण विश्वसनीय है, एक मजाक लगता है।
डोनाल्ड ट्रम्प कई कारणों से सच्चाई छिपा रहे हैं। उन्होंने स्वयं कहा है कि सऊदी अरब से व्यापारिक सम्बन्ध अमेरिका के लिए बहुत अहम हैं। कल उन्होंने यह भी कहा है कि यदि सऊदी अरब अपने हथियारों की खरीद बन्द कर दे तो अमेरिका में १० लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो जाएंगे। यह सच है कि सऊदी शासन बेकार अमेरिकी हथियारों को खरीद कर अपनी जनता का पैसा बर्बाद कर रहा है और इससे फायदा केवल अमेरिका के उद्योगों को हैं। देश में सऊदी शासन इतना अलोकप्रिय है, इसका अन्दाजा डोनाल्ड ट्रम्प की इस बात से ही होता है कि बिना अमेरिकी सुरक्षा के यह बादशाह एक सप्ताह से अधिक नहीं रह पायेंगे। दूसरा कारण मध्य-पूर्व में अमेरिकी नीतियों में सऊदी अरब की अहम भूमिका है। सऊदी अरब और इसरायल मिलकर मध्य-पूर्व में अमेरिकी नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। यह भी सत्य है कि अमेरिका की यहूदी लॉबी और इसरायल किसी भी कीमत पर सऊदी अरब के विरूद्घ कोई कार्रवाई नहीं होने देंगे। मध्य-पूर्व में चाहे सीरिया हो या यमन, हर जगह ईरान का नाम लेकर लोगों के मारने का औचित्य बताया जाता है। यमन में लाखों लोग भूख से मर रहे हैं, परन्तु ईरान का हौवा दिखाकर उस देश को बर्बाद किया जा रहा है। इन सभी कारणों से स्पष्टï है कि अमेरिका कभी भी सऊदी अरब को जिम्मेदार नहीं बतायेगा और कुछ निचले दर्जें के लोगों को हल्की सजा दिलवाकर सऊदी अरब छूट जायेगा।
मध्य-पूर्व के अमेरिका समर्थक राज्यों में मीडिया पर पूरी पाबन्दी है। जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर की घेराबंदी की थी तो उसका एक कारण अलजझीरा चैनल को बताया गया था। एक पत्रकार जिसने पहले मिस्र में नागरिकों के जुलूस पर दमनकारी कार्यों की रिपोर्टिंग की थी, काफी बाद में उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह काहिरा में अपनी ससुराल गया था और अब तक जेल में है। यह सभी देश अमेरिका और उन पश्चिमी देशों की छत्रछाया में यह कार्य कर है, जो अभिव्यक्ति की आजादी का दम भरते हैं। यदि यहां अभिव्यक्ति की आजादी मिले तो आम आदमी पश्चिमी देशों द्वारा किये जा रहे लूट-खसोट के बारे में जान जायेगा। मुझे मशहूर अरब दार्शनिक डॉ0 उसमान फतेही का वह कथन याद आ रहा है जो उन्होंने जामिया मिलिया में मेरे घर पर दिया था कि अरबों की मिजात प्रजातंत्र में ही है।
No comments:
Post a Comment
Please share your views