वॉशिंगटन भारत और चीन पेड़ लगाने के मामले में विश्व में सबसे आगे हैं, जी हां चौंकिए मत, क्योंकि यह सच है. नासा के एक ताजा अध्ययन में आम अवधारणा के विपरीत यह पाया गया है कि भारत और चीन पेड़ लगाने के मामले में विश्व में सबसे आगे हैं. इस अध्ययन में सोमवार को कहा गया कि दुनिया 20 वर्ष पहले की तुलना में अधिक हरी भरी हो गई है. नासा के उपग्रह से मिले आंकड़ों एवं विश्लेषण पर आधारित अध्ययन में कहा गया कि भारत और चीन पेड़ लगाने के मामले में आगे हैं.अध्ययन के लेखक ची चेन ने कहा, '' एक तिहाई पेड़-पौधे चीन और भारत में हैं लेकिन ग्रह की वन आच्छादित भूमि का नौ प्रतिशत क्षेत्र ही उनका है.
बोस्टन विश्वविद्यालय के चेन ने कहा, ''अधिक आबादी वाले इन देशों में अत्यधिक दोहन के कारण भू क्षरण की आम अवधारणा के मद्देनजर यह तथ्य हैरान करने वाला है. 'नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में सोमवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि हालिया उपग्रह आंकड़ों (2000-2017) में पेड़-पौधे लगाने की इस प्रक्रिया का पता चला है जो मुख्य रूप से चीन और भारत में हुई है. पेड़ पौधों से ढंके क्षेत्र में वैश्विक बढ़ोत्तरी में 25 प्रतिशत योगदान केवल चीन का है जो वैश्विक वनीकरण क्षेत्र का मात्र 6.6 प्रतिशत है.
नासा के अध्ययन में कहा गया है कि चीन वनों (42 प्रतिशत) और कृषिभूमि (32 प्रतिशत) के कारण हरा भरा बना है जबकि भारत में ऐसा मुख्यतरू कृषिभूमि (82 प्रतिशत) के कारण हुआ है.इसमें वनों (4.4 प्रतिशत) का हिस्सा बहुत कम है.चीन भूक्षरण, वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन को कम करने के लक्ष्य से वनों को बढ़ाने और उन्हें संरक्षित रखने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चला रहा है.भारत और चीन में 2000 के बाद से खाद्य उत्पादन में 35 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई है.नासा के अमेस अनुसंधान केंद्र में एक अनुसंधान वैज्ञानिक एवं अध्ययन की सह लेखक रमा नेमानी ने कहा, ''जब पृथ्वी पर वनीकरण पहली बार देखा गया , तो हमें लगा कि ऐसा गर्म एवं नमी युक्त जलवायु और वायुमंडल में अतिरिक्त कार्बन डाईऑक्साइड की वजह से उर्वरकता के कारण है. उन्होंने कहा कि नासा के टेरा एवं एक्वा उपग्रहों पर माडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (एमओडीआईएस) से दो दशक के डेटा रिकॉर्ड के कारण यह अध्ययन हो सका.''अब इस रिकॉर्ड की मदद से हम देख सकते हैं कि मानव भी योगदान दे रहा है.श् नेमानी ने कहा कि किसी समस्या का एहसास हो जाने पर लोग उसे दूर करने की कोशिश करते हैं.भारत और चीन में 1970 और 1980 के दशक में पेड़-पौधों के संबंध में स्थिति सही नहीं थी.उन्होंने कहा, ''1990 के दशक में लोगों को इसका एहसास हुआ और आज चीजों में सुधार हुआ है.
बोस्टन विश्वविद्यालय के चेन ने कहा, ''अधिक आबादी वाले इन देशों में अत्यधिक दोहन के कारण भू क्षरण की आम अवधारणा के मद्देनजर यह तथ्य हैरान करने वाला है. 'नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में सोमवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि हालिया उपग्रह आंकड़ों (2000-2017) में पेड़-पौधे लगाने की इस प्रक्रिया का पता चला है जो मुख्य रूप से चीन और भारत में हुई है. पेड़ पौधों से ढंके क्षेत्र में वैश्विक बढ़ोत्तरी में 25 प्रतिशत योगदान केवल चीन का है जो वैश्विक वनीकरण क्षेत्र का मात्र 6.6 प्रतिशत है.
नासा के अध्ययन में कहा गया है कि चीन वनों (42 प्रतिशत) और कृषिभूमि (32 प्रतिशत) के कारण हरा भरा बना है जबकि भारत में ऐसा मुख्यतरू कृषिभूमि (82 प्रतिशत) के कारण हुआ है.इसमें वनों (4.4 प्रतिशत) का हिस्सा बहुत कम है.चीन भूक्षरण, वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन को कम करने के लक्ष्य से वनों को बढ़ाने और उन्हें संरक्षित रखने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चला रहा है.भारत और चीन में 2000 के बाद से खाद्य उत्पादन में 35 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई है.नासा के अमेस अनुसंधान केंद्र में एक अनुसंधान वैज्ञानिक एवं अध्ययन की सह लेखक रमा नेमानी ने कहा, ''जब पृथ्वी पर वनीकरण पहली बार देखा गया , तो हमें लगा कि ऐसा गर्म एवं नमी युक्त जलवायु और वायुमंडल में अतिरिक्त कार्बन डाईऑक्साइड की वजह से उर्वरकता के कारण है. उन्होंने कहा कि नासा के टेरा एवं एक्वा उपग्रहों पर माडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (एमओडीआईएस) से दो दशक के डेटा रिकॉर्ड के कारण यह अध्ययन हो सका.''अब इस रिकॉर्ड की मदद से हम देख सकते हैं कि मानव भी योगदान दे रहा है.श् नेमानी ने कहा कि किसी समस्या का एहसास हो जाने पर लोग उसे दूर करने की कोशिश करते हैं.भारत और चीन में 1970 और 1980 के दशक में पेड़-पौधों के संबंध में स्थिति सही नहीं थी.उन्होंने कहा, ''1990 के दशक में लोगों को इसका एहसास हुआ और आज चीजों में सुधार हुआ है.
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