Monday, March 11, 2019

भ्रष्टाचार की सीलन से बर्बाद हो रहे सेमरी के आवास

  • जर्जर आवासों की अपेक्षा उन्हें अपनो की है फिक्र

बिपिन मिश्र 
लखीमपुर-खीरी। देश के सर्वागीण विकास के लिएप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दिया। लेकिन दुर्भाग्य इस देश का कि आजादी के बाद आजाद हुए सरकारी तंत्र को पहले भ्रष्टाचार एवं लाटसाहिबी की आदत पड़ी, जो धीरे-धीरे आजादी के 71 साल बीत जाने के बाद भ्रष्टाचार एवं चापलूसी के स्वभाव में बदल गई। जिससे देश का विकास अवरुद्ध हो गया और जनता से वसूले गए कर एवं राजस्व से देश अधिकारी मालामाल हो गए और जनता 1947 से पहले अंग्रेजों के शासनकाल में बदतर अवस्था में अपने ही द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों का शिकार हो गई।
  भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी लगभग 70 प्रतिशत आबादी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रह कर गुलामी की जिन्दगी आज भी बिताने को मजूर है। आजादी के 67 वर्ष बाद देश में हुए सत्ता परिवर्तन से प्रधानमंत्री ग्रामीणों द्वारा चुने गये नरेन्द्र मोदी ग्रामीण अंचलों के विकास के लिए सरकारी राजकोष खोल दिया और ग्रामीण अंचलों के रहने वाले अशिक्षित एवं गरीब ग्रामीणो की स्थिति मे ंसुधार लाने के लिए उन्होंने तमाम योजनाएं लागू की। जिनमें प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, स्वच्छता मिशन तथा गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर ग्रामीणों को उनके ग्रामों में ही रोजगार दिला कर उनका जीवन स्तर सुधारने का प्रयास किया। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण जनपद खीरी के विकास खण्ड रमियाबेहड़ के ग्रामपंचायत सेमरी में देखने को मिला। जहां प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में आवंटित किए गए आवासों में भारी धांधली की गई। धांधली करने वाले प्रधान पति छंगालाल व ग्रामपंचायत अधिकारी नवीन राठौर ने निर्माण कार्य में घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग किया। जिसके चलते बनवाये गए आवासों में की छतें दो महीने में ही दरक गई। कुछ आवास तो खण्डहर में तब्दील हो गए हैं तथा कुछ आवास आधे-अधूरे ही पड़े हैं। जिसका प्रमुख कारण कमीशनखोरी। लाभार्थियों ने बताया कि आवास के नाम पर आयी कुल धनराशि 1,20,000 में से 20,000 रुपए तो पंचायत सेक्रेटरी और प्रधान पति ने पहले ही ले लिए तथा बाकी बचे 1,00,000 रुपए में आधे-अधूरे तथा जर्जर आवास बनवा कर अपना पल्ला झाड़ लिया। जिसके पास पहले से ही पक्के आवास थे ने पंचायत सेक्रेटरी से मिली धनराशि को अपने पहले से बने आवासों का विस्तार कर लिया और निर्धन आवास लाभार्थी अपने जर्जर आवासों में न रहकर पहले की तरह आज भी झोपड़ियों में अपनी जिन्दगी बिताने को मजबूर हैं।

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