सवालों के घेरे में चुनाव आयोग
कुछ महीनों से चुनाव आयोग विवादों में घिर रहा है। कल अनावश्यक रूप से कर्नाटक चुनाव की तिथियों की सूचना भाजपा के आईटी सेल के अध्यक्ष मालवीय ने ट्वीट करके बतायीं। तब तक आयोग ने इस बारे में कोई घोषणा नहीं की थी। स्पष्ट है कि भाजपा के कुछ नेताओं को यह तिथियां पहले मालुम हो गई, जो संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन है। ऐसा लगता है कि आयोग के किसी कर्मचारी ने यह सूचना लीक की हो। इससे कांग्रेस को चुनाव आयोग पर हमला करने का मौका मिला। इससे पहले भी जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तिथियां घोषित होनी थी, तब चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश की तिथियां तो घोषित की, परन्तु गुजरात चुनाव की नहीं। इसका कारण शायद यह था कि गुजरात में भाजपा को कुछ अहम रैलियां करनी थी। इससे भी चुनाव आयोग की तटस्थता सवालों के घेरे में आयी।
चुनाव आयोग एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था है, जिस पर प्रजातांत्रिक मूल्यों की निगरानी का बड़ा बोझ है। उसे न केवल विभिन्न दलों के बीच तटस्थ रहना है, बल्कि तटस्थ दिखना भी है। कुछ लोगों को ऐसी घटनाओं से चुनाव आयोग पर आरोप लगाने का मौका मिलता है।
अगले साल लोकसभा के चुनाव में चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा है। जिस तरह सभी गैर भाजपायी दल भाजपा के विरूद्घ लामबन्द हो रहे हैं, उससे चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ सकता हैर्। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के बारे में लोगों का संशय बरकरार है। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों ने बार बार इन मशीनों पर शक जाहिर किया है और उनकी मांग है कि चुनाव आयोग पुराने ढंग से मतपत्रों द्वारा चुनाव कराये। उच्चतम न्यायालय ने भी बहुत पहले यह निर्णय दे रखा है कि जहां ईवीएम का इस्तेमाल हो, वहां भी वीवीपैट द्वारा मत के बारे में रिकार्ड रखा जाये ताकि शक होने पर उसे वेरीफाई किया जा सके। चुनाव आयोग ने इसे अब तक ठीक से लागू नहीं किया है। 2019 के चुनाव में ईवीएम के वर्तमान इस्तेमाल पर हंगामा हो सकता है। चुनाव आयोग ने अधिक खर्च होने के कारण उच्चतम न्यायालय का यह फैसला अब तक लागू नहीं किया है। थोड़े से पैसे बचाने के लिए पूरी चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को दांव पर लगाना कोई अच्छी बात नहीं होगी। चुनाव आयोग अभी से कमर कस ले तो देश के सभी हिस्सों में उच्चतम न्यायालय का फैसला लागू हो सकता है। यह भी देखा गया है कि कई ईवीएम खराब होती हैं और उन्हें बार-बार बदला जाता है। कई बार चुनाव के पहले ट्रायल में यह पाया गया है कि ईवीएम किसी पार्टी विशेष की तरफ दिये गये मत मोड़ देती है। इससे विरोधियों में मशीनों के प्रति गहरा अविश्वास है और चुनाव आयोग से नाराजगी पैदा होती है। 2019 के चुनाव में अभी समय है और चुनाव आयोग को उच्चतम न्यायालय का फैसला जरूर लागू करना चाहिये।
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