घातक प्लास्टिक कचरे को रोकना कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनता
...पर्यावरण प्रदूषण का मुद्दा राजनीति में कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं बनता। कई बार सरकारें पर्यावरण के लिए तमाम कानून बना तो देती हैं, लेकिन उनका पालन न के बराबर होता है। अभी हाल ही में महाराष्ट्र सरकार अपने राज्य में प्लास्टिक और थर्मोकोल के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है। इस फैसले के तहत अब प्लास्टिक की थैलियां, बैग, पाउच, कप-प्लेट, चम्मच जैसी चीजों के उत्पादन पर पूरी तरह से मनाही होगी। इससे पहले भी प्लास्टिक की थैलियों पर जम्मू.कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्य भी अपने यहां प्रतिबंध लगा चुके हैं। परंतु अब तक का इतिहास यह बताता है कि ऐसे कानून केवल एक-दो दिन के रस्मी तौर पर ही लागू हो पाते हैं। व्यवहार में इनका प्रभाव कहीं भी नहीं देखा जा सका है। जन राज्यों ने पाबंदी लगाई है, वहां आज भी धड़ल्ले से प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल हो रहा है। सरकार की ओर से ऐसा कोई पुख्ता बंदोबस्त नजर नहीं आता जो प्रतिबंध पर अमल को सुनिश्चित कराए। सरकारों को प्लास्टिक के इस्तेमाल पर सख्ती बरतने की जरूरत तब लगती है, जब इस मसले पर एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित पंचाट और कुछ अदालतें साफ दिशानिर्देशों जारी करती हैं और उससे दबाव बनता है। खासतौर पर हिमालय क्षेत्र और गंगा-यमुना जैसी नदियों में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी ने सख्ती दिखाई और कचरा और अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर सरकारों को फटकार लगाई। फिर भी सरकारों की ओर से व्यवहार में ऐसी पहलकदमी नहीं देखी गई, जो इस मसले पर उनकी गंभीरता को दर्शाती हो। बरसात के दिनों में पोलिथीन थैलियों से बारिश के दिनों में सारे नाले जाम हो जाते हैं, पूरा शहर अव्यवस्था का शिकार हो जाता है।
इसमें कोई शक नहीं कि प्लास्टिक से बने सामान हमारे रोजमर्रा के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। रोजाना हम जितनी भी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें काफी सामान प्लास्टिक के बने होते हैं या उनके निर्माण में प्लास्टिक की भूमिका होती है। इसलिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को पूरी तरह खत्म कर पाना मुश्किल है। लेकिन इसका असर यह पड़ता है कि प्लास्टिक की वजह से हमारे आसपास के पर्यावरण को व्यापक नुकसान पहुंचता है। जरूरत इस बात की है कि कानूनी पाबंदी से इतर भी लोगों को प्लास्टिक थैलियों का बेहतर, टिकाऊं और सस्ता विकल्प उपलब्ध कराने की है। जब तक हमें प्लास्टिक थैलियों का कोई बेहतर विकल्प नहीं मिलेगा, हमारे व्यवहार में इसके उपयोग को रोका नहीं जा सकता। अगर पर्यावरण से पोलीथिन बैग को दूर करना है तो कानून के बजाये सरकार को उसके विकल्प तलाशने के लिए शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके अलावा कानून से भी बड़ी जरूरत लोगों को इस बारे में जागरूक बनाने की है। लोगों को इस बारे में बताना होगा कि प्लास्टिक का प्रयोग इंसान के लिए किस तरह जानलेवा होता जा रहा है। आज प्लास्टिक से पैदा होने वाला कचरा इस धरती के लिए एक बड़ा संकट बन चुका है। इसके इस्तेमाल को घटाने के लिए ऐसे विकल्पों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो पर्यावरण के अनुकूल हों। ऐसा भी हो सकता है कि इस निस्तारित न हो पाने वाले प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिलिंग होने लग जाये तथा उसका कोई और उपयोग होने लगे। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाने की कोशिश की है। जिसमें प्लास्टिक के कचरे के लिए अलग से आटोमैटिक मशीन लगाई गई है। इसमें कचरा डालने पर मोबाइल वालेट में कैशबैक के रूप में कुछ पैसे प्राप्त होते रहेंगे। कायदे से इस तरह की स्कीम पूरे प्रदेश भर में लगाने की जरूरत है।
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