भीड़तंत्र की सरकार से बचना होगा
.....................................................................................
भाजपा की त्रिपुरा में जीत के उन्माद से उठा मूर्ति भंजक सियासत अब देश के कोने-कोने तक बढ़ता जा रहा है। सरकारी दावे धरे के धरे है और मूर्ति तोड़ने की यह आग कोलकाता से होते हुए तमिलनाडु, मेरठ और अब केरल तक पहुंच गया है। उन्माद इतना कि महात्मा गांधी और बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर जैसे हमारे आदर्श भी इस भीड़तंत्र के कानून से अछूते नहीं रह गये हैं। सरकार बेबस नजर आ रही है या उसकी इसके पीछे उसकी सह है, लेकिन इन सबसे लोकतंत्र कलंकित जरूर हो रहा है। त्रिपुरा से उठा पागलपन कई राज्यों में फैल चुका है। अब पता नहीं कितनी मूर्तियां तोड़ी जाएंगी, किस-किस की मूर्तियां तोड़ी जाएंगी, कितनी मूर्तियों पर कालिख मले जाएंगे? ये चिंताजनक बात है, जिस देश में भीड़ के हाथों में इतनी ताकत आ गई हो कि वो अपनी मर्जी से चाहे जो करे, उस देश की सरकार का बेचैन होना वाजिब है। फिर भी पिछले दो दिनों से बिगड़ रहे माहौल पर सरकारी रवैया निराश करता है। अपनी विचारधारा को थोपने के लिए लोग लट्ठ लेकर निकल पड़े हैं। विचारधारा से प्रेरित अराजक रवैये के नए चलन ने कई चिंताएं पैदा कर दी हैं। पहले त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ी जाती है, फिर उसी कड़ी में तमिलनाडु के वेल्लोर में पेरियार की मूर्ति पर भी हमला होता है और इन दो घटनाओं के बदले के तौर पर कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर स्याही पोत दी जाती है। मेरठ में बाबासाहेब की मूर्ति छतिग्रस्त की जाती है तो केरल में महात्मा गांधी जी की। ये सारा कुछ भीड़ के हाथों करवाया जा रहा है। जहां जिस भीड़ की ताकत ज्यादा है, वहां वो अपने हिसाब से अराजकता फैला रही है।लेनिन के मूर्ति तोड़े जाने के बाद तमिलनाडु के एक बीजेपी नेता द्वारा अपने फेसबुक पोस्ट में यह लिखना कि ‘कौन है लेनिन? उसकी भारत में क्या अहमियत? भारत का कम्युनिज्म से क्या नाता? कल त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति को तोड़ा गया है। कल जातिवादी नेता पेरियार की मूर्तियों को तोड़ा जाएगा। उसके बाद कुछ लोगों ने उनके पोस्ट को हकीकत में बदल दिया और पेरियार की मूर्ति छतिग्रस्त कर दी जाती है। जब लोकतंत्र में भीड़तंत्र की ताकत बढ़ने लगती है तो यह लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है। चिंता की बात यह है कि ऐसे भड़काऊ बयानों का ठौर सोशल मीडिया बन रहा है, जिस पर सरकार का बहुत अंकुश नहीं है और लोगों की रीच इस मीडिया से काफी अधिक है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। केन्द्र में भाजपा नीत सरकार बनने के बाद से इस तरह की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। कभी बीफ के नाम पर तो कभी लव जेहाद के नाम पर भीड़ का उत्पात समय समय पर देखा गया है। उत्तर प्रदेश के दादरी में अखलाक की हत्या समेत भीड़ का कहर काफी पहले से ही है। राजस्थान, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों में भी भीड़ का अपना कानून देखा गया है। इन घटनाओं पर सरकार की मौन स्वीकृति हताश करने वाली है। लेनिन की मूर्ति तोड़ने के बाद त्रिपुरा के राज्यपाल और भाजपा नेता राममाधव का उसके समर्थन में दिया गया बयान भी चिंतित करता है। अखलाक की हत्या के बाद भी भाजपा के कुछ मंत्रियों और नेताओं का भीड़ के समर्थन में बयान दिया गया था। नेताओं का यह रवैया लोकतंत्र की प्रकृति के बिल्कुल विपरीत है। अगर कानून का राज कायम करना है तो इस भीड़तंत्र को खत्म करने के लिए केन्द्रीय व राज्य सरकारों को पहल करनी होगी। दोषियों पर यदि बिना भेदभाव कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती है तो इस देश को विनाश के रास्ते पर जाने से रोका नहीं जा सकता है। केन्द्रीय सरकार का ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारे केवल जुमला ही साबित होंगे। आने वाली समय में यह नजीर भी बनेगी और नई सरकार अपनी विचारधारा के अनुरूप अन्य महापुरूषों का अपमान करने से नहीं चूकेंगी। रही बात विकास की तो इस भय के माहौल में विकास की कल्पना बेमानी होगी।
भीड़तंत्र लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.
ReplyDeleteThanks uchit
ReplyDelete