Tuesday, April 3, 2018

Article on karnataka election

कर्नाटक चुनाव: भाजपा के लिए करो या मरो की लड़ाई

    कर्नाटक विधानसभा के आमचुनाव की तारीखों की घोषणा हो गई है। वैसे पहले से ही वहां कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी चुनावी मोड में है। दोनों पार्टियों के लिए यह चुनाव काफी मायने रखता है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लिए वह कुछ ज्यादा ही मायने रखता है। इसका एक कारण तो यह है कि वहां इस समय कांग्रेस की सरकार है और भारतीय जनता पार्टी के पास सत्ता-विरोधी जनभावना का लाभ उठाने का अच्छा मौका है। अब तक भारतीय जनता पार्टी इस तरह के मौके का लाभ उठाती रही है। पिछले दिनों ही उसने त्रिपुरा में भी जीत हासिल की थी और उसकी जीत का मुख्य कारण यही था कि वहां की जनता बदलाव चाहती थी। कर्नाटक की जीत भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि दक्षिण भारत का यह एक मात्र राज्य है, जहां भाजपा पहली बार सत्ता में आई थी। एक बार तो वह गठबंधन करके सत्ता में आई थी, लेकिन दूसरी बार तो वह पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई थी। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे प्रदेश की कुल 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत हासिल हुई थी। 9 पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे और शेष दो पर जनता दल(एस) की जीत हुई थी। पांच साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण येदियुरप्पा का अलग पार्टी बनाकर चुनाव लडऩा था। इसका लाभ कांग्रेस को मिला और पूर्ण बहुमत के साथ वह सत्ता में आ गई। पर पिछले लोकसभा चुनाव के पहले येदियुरप्पा फिर भाजपा में शामिल हो गए। येदियुरप्पा की वापसी के बाद पार्टी की संयुक्त शक्ति और मोदी के जादू के कारण भाजपा 28 में से 17 सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी। हो रहे चुुनाव में येदियुरप्पा न सिर्फ भाजपा के साथ हैं, बल्कि वे पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा भी हैं। इसलिए इसका फायदा तो पार्टी को होगा ही, लेकिन पार्टी सरकार बना पाएगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि नरेन्द्र मोदी का जादू अभी भी जनता पर चलता है या नहीं। इसलिए यह चुनाव मोदी के जादू के बने रहने या न बने रहने का भी संदेश देगा। वैसे कुछ राज्यों में हो रहे उपचुनावों के नतीजे यह बताते हैं कि मोदी का जादू अब लोगों के सिर पर चढ़कर नहीं बोल रहा है। राजस्थान के उपचुनावों में सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हार गए थे। मध्यप्रदेश के उपचुनावों में भी भाजपा हारी और उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री द्वारा खाली की गई सीटें भी भाजपा हार गई। यह सच है कि पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में कांग्रेस सत्ता में पहुंच गई है, लेकिन यह भी सच है कि त्रिपुरा के अलावा अन्य दो राज्यों मे वह केन्द्र में सत्ता में होने के कारण ही सरकार में शामिल हो सकी है। मेघालय में उसे मात्र दो सीटें ही मिली थीं और नगालैंड में भी उसकी जीत बहुत मामूली थी। एक क्षेत्रीय पार्टी के कंधे पर चढ़कर ही उसे वह मामूली जीत मिली थी और उसी के कंधे पर चढ़कर वह वहां सरकार में है। कर्नाटक इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह एक बड़ा प्रदेश है। पूरे पूर्वोत्तर भारत के 8 राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीटें हैं, जबकि अकेले कर्नाटक में 28 लोकसभा सीटें हैं। जाहिर है, आगामी लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा सत्ता में रह पाएगी या नहीं, इसका अंदाजा पूर्वोत्तर में हुई उसकी जीत से नहीं लगाया जा सकता, बल्कि कर्नाटक में वह जीतती है या नहीं, इससे इस बात का निर्धारण होगा कि भाजपा 2019 के चुनाव में जीत हासिल करने की कितनी क्षमता रखती है।
कहने को तो कर्नाटक में तीन तरफा मुकाबला है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के अलावा वहां जनता दल(एस) भी मजबूती के साथ चुनावी मैदान में है, लेकिन वास्तव मे मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में ही है। पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की उम्र बढऩे के साथ-साथ ही पार्टी कमजोर होती जा रही है। इसका कारण यह है कि उनके बेटे में वह बात नहीं है, जो खुद देवेगौड़ा में है। इसलिए पिछले विधानसभा चुनाव वाला प्रदर्शन दुहरा पाने की स्थिति में भी जनता दल(एस) नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी उसे मात्र 2 सीटें ही मिल पाई थीं। जनता दल (एस) को अब विधानसभा के त्रिशंकु होने का ही आसरा है। यदि भाजपा और कांग्रेस मे किसी को बहुमत नहीं आता है, तो देवेगौड़ा की पार्टी कम सीटें लाने के बावजूद किंग मेकर की भूमिका में आ सकती है और क्या पता किंग भी उसका नेता बन सकता है। पर भारतीय जनता पार्टी के लिए कर्नाटक का चुनाव जीतना श्करो या मरोश् का सवाल बन गया है। इसका कारण यह है कि उत्तरप्रदेश में सपा- बसपा के एक साथ आने के कारण आगामी लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के लिए कर्नाटक जैसे प्रदेशों पर उसकी निर्भरता बढ़ गई है। यदि कर्नाटक में उसकी जीत नहीं होती है, तो यह मान लिया जाएगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसका बहुमत आ ही नहीं सकता। इस तरह का संदेश वातावरण में रहने से भाजपा के लिए पूरे देश का राजनैतिक माहौल खराब हो जाएगा। इस समय उसने टीवी चौनलों को अपने वश में कर लिया है। टीवी चौनल भाजपा के राजनैतिक हितों का ख्याल रखते हुए खबरें चलाते हैं। इसके कारण पूरा मीडिया भाजपा को फील गुड का अहसास करा रहा है, लेकिन कर्नाटक की हार के बाद मीडिया का रुख बदल जाएगा और वह भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत भी अशुभ होगा। कर्नाटक की हार के बाद आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के असंतुष्ट भी आक्रामक हो सकते हैं और उनकी आक्रामकता से पार्टी का नुकसान हो सकता है। सबसे बड़ी बात है कि नरेन्द्र मोदी की भाजपा को जीत दिलाने की क्षमता पर इसके कारण सवाल उठने लगेंगे। वैसे मोदी को चुनौती देने की स्थिति में भाजपा का कोई नेता नहीं है, लेकिन भाजपा के बयानवीर अपने बयानों से उनके लिए स्थितियां खराब करते रह सकते हैं।

उपेन्द्र प्रसाद (साभार : यूएनएस)

No comments:

Post a Comment

Please share your views

सिर्फ 7,154 रुपये में घर लाएं ये शानदार कार

  36Kmpl का बेहतरीन माइलेज, मिलेगे ग़जब के फीचर्स! | Best Budget Car in India 2024 In Hindi b est Budget Car in India: कई बार हम सभी बजट के क...