Tuesday, April 3, 2018

Opinion on bharat band

दलित समुदाय द्वारा भारत बन्द के निहितार्थ

 

दलित समुदाय द्वारा किये गये भारत बन्द दूर तक का संदेश दे गया।
ऐसा नहीं है कि एकाएक दलित समुदाय अपने विरूद्घ होने वाली ज्यादतियों के लिए खड़ा हो गया। यह लावा बहुत दिनों से पक रहा था और भाजपा का नेतृत्व उसे नजरंदाज कर रहा था। रोहित वेमुला की आत्महत्या, ऊना में दलितों की पिटाई, सहारनपुर में दलितों पर हमला, चंद्रशेखर पर रासुका लगाकर जेल भेजना, भीमा कोरेगांव की घटना, गांव में घोड़े पर चलकर शादी के लिए जाने के कारण दलित युवक की हत्या तथा किसी सवर्ण युवती से प्यार करने पर आमतौर से दलित युवकों की हत्या, यह सब ऐसे कार्य थे, जिससे दलित मन उद्वेलित था। बीफ के नाम पर जिस तरह दलितों (और मुसलमानों) का उत्पीडऩ हो रहा है, यह भी इतिहास की निर्दयी घटनाओं में शुमार होगा।
 उच्च जाति के लोग दलितों की पीड़ा समझने में नाकाम रहे हैं। जाति प्रथा स्वयं सबसे बड़ा अन्याय है। एक दलित चाहे जितना भी काबिल हो, वह सामाजिक तौर पर अपनी हस्ती नहीं मनवा पाता। डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ने १९३५ में कहा था कि जाति प्रथा हिन्दू धर्म का मूल है और जब तक हिन्दू धर्म खत्म नहीं होगा, तब तक दलितों को न्याय नहीं मिलेगा। यह वह सोच है जिसनें दलितों को सभी राजनीतिक दलों से विमुख कर रखा है, क्योंकि सभी राजनीतिक दलों में (बसपा को छोड़कर) शीर्ष नेतृत्व उच्च वर्ग के हाथ में है।
  यह सही है कि इस समय चुने हुए दलित सांसदों में भाजपा के लोगों की संख्या अधिक है, परन्तु इन सांसदों को चुनाव में दलितों का कितना समर्थन रहा है, यह पता लगाना मुश्किल है। ऐसे दृष्टïांत भी सामने आये हैं, जिनमें दलितों ने चुनाव में किसी प्रत्यासी का विरोध किया, परन्तु उच्च जातियों के समर्थन से वह व्यक्ति कामयाब हो गये। जब तक बहुसदस्यीय चुनाव क्षेत्र नहीं बनते, तब तक दलितों का सही प्रतिनिधित्व नहीं होगा।
  कल के बन्द में जिस तरह पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलायीं, वह किसी तरह भी उचित नहीं था। सबसे खराब हालत मध्यप्रदेश की थी, जहां 07 दलित मारे गये और सैकड़ों जख्मी हुए। बन्द के दौरान ही उच्च वर्ग के युवकों ने भाजपा के दलित विधायक के घर पर हमला किया और राजस्थान में दो दलित जनप्रतिनिधियों के घर जला दिये। यह आग पूरे उत्तर भारत में फैल गयी है। दलितों का मामला किसी चुनाव से संबंधित नहीं है, यह समाज में इंसाफ और समानता का मामला है, जिसे हर हाल में हल होना है। चूंकि जाति प्रथा हिन्दू धर्म का मूल है, अत: हिन्दुत्ववादी शक्तियां दलितों के साथ होने वाली ज्यादतियों पर बहुत खुल कर नहीं बोल पाती। इससे दलितों की कुंठा और बढ़ती है। जिन लोगों को भविष्य के समाज की फिक्र है, उन्हें आगे आकर इस कुंठा को समाप्त करना चाहिये। वाम दलों का इसमें विशेष भूमिका होनी चाहिये।

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