Sunday, April 8, 2018

Law of Sedition in India, IPC & CrPC in Hindi


Law of Sedition in India, IPC & CrPC in Hindi


देशद्रोह कानून
भारतीय कानून संहिता के अनुच्छेद 124 A के मुताबिक अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे तरीकों से सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे 3 साल तक की कैद हो सकती है। कुछ मामलों में ये सजा उम्रकैद तक हो सकती है।
अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए गत वर्ष मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66 ए के लगातार हो रहे बेजा इस्तेमाल पर उसे तो निरस्त कर दिया था लेकिन यह साफ कर दिया था कि इसका मतलब यह नहीं है कि किसी को कुछ भी कहने या लिखने की आजादी है। संविधान भले ही हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी देता है लेकिन उसकी सीमाएं भी संविधान ने तय कर रखी हैं। उन सीमाओं से परे जाकर कही या लिखी गईं बातों के लिए कानून की उचित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है।
 कोर्ट के इस फैसले से सोशल मीडिया पर लिखने-बोलने वालों ने राहत की सांस ली थी, लेकिन तब भी ये साफ था कि कुछ भी लिखने की छूट नहीं है, लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार कोर्ट के दिशा-निर्देश के जरिए बोलने वालों की आजादी पर लगाम लगाना चाहती है।
 ये हुए गिरफ्तार : कुछ साल पहले कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी पर देशद्रोह का मुकदमा तत्कालीन महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने लगाया था, लेकिन भारी विरोध के बाद सरकार ने देशद्रोह का केस हटा दिया था। असीम ने दिसंबर 2011 में मुंबई में अन्ना आंदोलन के वक्त आपत्तिजनक कार्टून बनाए थे। अब महाराष्ट्र सरकार ने इसी केस में हाई कोर्ट के निर्देश का हवाला सर्कुलर जारी किया है जिसके मुताबिक अगर कोई व्यक्ति लिखकर, बोलकर, संकेतों के जरिए या चित्रों के माध्यम से या किसी भी और तरीके से सरकार के प्रतिनिधि या जनप्रतिनिधि के खिलाफ नफरत, अपमान, अलगाव, दुश्मनी, असंतोष, विद्रोह या हिंसा का भाव पैदा करता है या ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कार्रवाई हो सकती है। गुजरात में पाटीदार आंदोलन चलाने वाले हार्दिक पटेल पर भी धारा 124 ए के तहत देशद्रोह का मामला आरोपित किया गया था।
 कुछेक वर्ष पहले माओवादियों की मदद करने पर डॉ. विनायक सेन पर राजद्रोह बनाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत करानी पड़ी थी। कानूनी जानकार कहते हैं कि देशद्रोह गंभीर अपराध है और इसमें सजा के प्रावधान भी किए गए हैं। भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक तरीके से सरकार की गतिविधियों या क्रियाकलापों का विरोध करने का अधिकार प्राप्त है लेकिन देश की सत्ता को गैरकानूनी तरीके से चुनौती नहीं दी जा सकती है।
 क्या है धारा 124 : इस धारा में राष्ट्रपति और राज्यपाल पर अटैक करने वालों को अलग से सजा दिए जाने का प्रावधान है, साथ ही धारा-124 ए में देशदोह के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें दोषी को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसके तहत देश के खिलाफ लिखना, बोलना या फिर ऐसी कोई हरकत जिससे देश के प्रति नफरत का भाव दिखता हो, देशद्रोह की श्रेणी में आता है।
 देश विरोधी गतिविधियां : देश विरोधी गतिविधियों में अगर कोई संगठन या पार्टी प्रत्यक्ष रूप से या परोक्ष रूप से लिप्त है तो सरकार नोटिफिकेशन जारी कर उन्हें बैन करती है। माओवादी संगठन से लेकर अन्य कई अलगाववादी संगठन पर बैन है और ऐसे संगठन से संबंध रखने वालों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियों के तहत मामला दर्ज होता है या फिर अपराध के हिसाब से देशद्रोह या इससे संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाता है।
 भारतीय दंड संहिता की धारा-121 में देश के खिलाफ युद्ध करने वालों को सजा दी जाती है। इसमें यह प्रावधान है कि अगर कोई भी शख्स देश के खिलाफ युद्ध करता है या प्रयास करता है या फिर ऐसे लोगों को उत्प्रेरित करता है और अदालत में अपराध साबित हो जाए तो सजा के तौर पर उम्रकैद या फिर फांसी की सजा तक दी जा सकती है।
आईपीसी की धारा-121 ए के तहत ऐसे किसी अपराध के लिए साजिश रचने के लिए 10 साल कैद या फिर उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है। हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक देश के खिलाफ युद्ध की साजिश रचने वालों के खिलाफ या फिर ऐसे लोगों से साठगांठ रखने वालों के खिलाफ मामला बनता है। इस धारा में प्रावधान है कि अगर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की मंशा से कोई हथियार या गोला-बारूद जमा करता है या फिर ऐसी कोशिश करता है और दोष साबित हो जाए तो 10 साल कैद या उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।


भारतीय दण्ड संहिता
भारत भारतीय दण्ड संहिता (Indian Penal Code, IPC) भारत के अन्दर (जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर) भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा व दण्ड का प्रावधान करती है। किन्तु यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती। जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर रणबीर दण्ड संहिता (RPC) लागू होती है।
भारतीय दण्ड संहिता ब्रिटिश काल में सन् १८६२ में लागू हुई। इसके बाद इसमे समय-समय पर संशोधन होते रहे (विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद)। पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही लागू किया। लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों (बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि) में भी लागू की गयी थी।
संरचना
भारतीय दण्ड संहिता १८६० कुल २३ अध्यायों में विभाजित है। इसमें कुल ५११ धाराएँ (sections) हैं। इसकी रूपरेखा निम्नलिखित है-

अध्याय १   उद्देशिका    
धारा १ संहिता का नाम और उसके प्रर्वतन का विस्तार
धारा २ भारत के भीतर किए गये अपराधों का दण्ड
धारा ३ भारत से परे किए गये किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दण्ड
धारा ४ राज्य-क्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार
धारा ५ कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना
अध्याय २   साधारण स्पष्टीकरण
धारा ६ संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना
धारा ७ एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव
धारा ८ लिंग
धारा ९ वचन
धारा १० पुरूष, स्त्री
धारा ११ व्यक्ति
धारा १२ लोक
धारा १३ निरसित
धारा १४ सरकार का सेवक
धारा १५ निरसित
धारा १६ निरसित
धारा १७ सरकार
धारा १८ भारत
धारा १९ न्यायाधीश
धारा २० न्यायालय
धारा २१ लोक सेवक
धारा २२ जंगम सम्पत्ति
धारा २३ सदोष अभिलाभ
सदोष अभिलाभ
सदोष हानि
सदोष अभिलाभ प्राप्त करना/सदोष हानि उठाना
धारा २४ बेईमानी से
धारा २५ कपटपूर्वक
धारा २६ विश्वास करने का कारण
धारा २७ पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में सम्पत्ति
धारा २८ कूटकरण
धारा २९ दस्तावेज
धारा २९ क इलेक्ट्रानिक अभिलेख
धारा ३० मूल्यवान प्रतिभूति
धारा ३१ विल
धारा ३२ कार्यों का निर्देश करने वाले शब्दों के अन्तर्गत अवैध लोप आता है
धारा ३३ कार्य, लोप
धारा ३४ सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्य
धारा ३५ जब कि ऐसा कार्य इस कारण अपराधित है कि वह अपराध्कि ज्ञान या आशय से किया गया है
धारा ३६ अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणाम
धारा ३७ किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक को करके सहयोग करना
धारा ३८ अपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे
धारा ३९ स्वेच्छया
धारा ४० अपराध
धारा ४१ विशेष विधि
धारा ४२ स्थानीय विधि
धारा ४३ अवैध, करने के लिये वैध रूप से आबद्ध
धारा ४४ क्षति
धारा ४५ जीवन
धारा ४६ मृत्यु
धारा ४७ जीव जन्तु
धारा ४८ जलयान
धारा ४९ वर्ष, मास
धारा ५० धारा
धारा ५१ शपथ
धारा ५२ सद्भावनापूर्वक
धारा ५२ क संश्रय
अध्याय ३   दण्डों के विषय में  
धारा ५३ दण्ड
धारा ५३ क निर्वसन के प्रति निर्देश का अर्थ लगाना
धारा ५४ लघु दण्डादेश का लघुकरण
धारा ५५ आजीवन कारावास के दण्डादेश का लघुकरण
धारा ५५ क समुचित सरकार की परिभाषा
धारा ५६ निरसित
धारा ५७ दण्डावधियों की भिन्ने
धारा ५८ निरसित
धारा ५९ निरसित
धारा ६० दण्डादिष्ट कारावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा
धारा ६१ निरसित
धारा ६२ निरसित
धारा ६३ जुर्माने की रकम
धारा ६४ जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश
धारा ६५ जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किये जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
धारा ६६ जुर्माना न देने पर किस भंति का कारावास दिया जाय
धारा ६७ जुर्माना न देने पर कारावास, जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो
धारा ६८ जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना
धारा ६९ जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान
धारा ७० जुर्माने का छ: वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उदग्रहणीय होना
धारा ७१ कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधि
धारा ७२ कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिये दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है
धारा ७३ एकांत परिरोध
धारा ७४ एकांत परिरोध की अवधि
धारा ७५ पूर्व दोषसिदि्ध के पश्च्यात अध्याय १२ या अध्याय १७ के अधीन कतिपय अपराधें के लिये वर्धित दण्ड
अध्याय ४   साधारण अपवाद   
धारा ७६ विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप को विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
धारा ७७ न्यायिकत: कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्य
धारा ७८ न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य
धारा ७९ विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य
धारा ८० विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना
धारा ८१ कार्य जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिये किया गया है
धारा ८२ सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य
धारा ८३ सात वर्ष से ऊपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य
धारा ८४ विकृतिचित्त व्यक्ति का कार्य
धारा ८५ ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरूद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है
धारा ८६ किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है
धारा ८७ सम्मति से किया गया कार्य जिसमें मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय हो और न उसकी सम्भव्यता का ज्ञान हो
धारा ८८ किसी व्यक्ति के फायदे के लिये सम्मति से सदभवनापूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है धारा ८९ संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिये सदभवनापूर्वक किया गया कार्य
धारा ९० सम्मति
उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति
शिशु की सम्मति
धारा ९१ एसे कार्यों का अपवर्णन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध है
धारा ९२ सम्मति के बिना किसी ब्यक्ति के फायदे के लिये सदभावना पूर्वक किया गया कार्य
धारा ९३ सदभावनापूर्वक दी गयी संसूचना
धारा ९४ वह कार्य जिसको करने के लिये कोई ब्यक्ति धमकियों द्धारा विवश किया गया है
धारा ९५ तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्य
निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में 
धारा ९६ निजी प्रतिरक्षा में दी गयी बातें
धारा ९७ शरीर तथा सम्पत्ति पर निजी प्रतिरक्षा का अधिकार
धारा ९८ ऐसे ब्यक्ति का कार्य के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतख्त्ति आदि हो
धारा ९९ कार्य, जिनके विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार
धारा १०० शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है
धारा १०१ कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है
धारा १०२ शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना
धारा १०३ कब सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है
धारा १०४ ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है
धारा १०५ सम्पत्ति की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बने रहना
धारा १०६ घातक हमले के विरूद्ध निजी प्रतिरक्षा के अधिकार जबकि निर्दोश व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है
अध्याय ५   दुष्प्रेरण के विषय में
धारा १०७ किसी बात का दुष्प्रेरण
धारा १०८ दुष्प्रेरक
धारा १०८ क भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण
धारा १०९ दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरूप किया जाए और जहां तक कि उसके दण्ड के लिये कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है
धारा ११० दुष्प्रेरण का दण्ड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है
धारा १११ दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है
धारा ११२ दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिये और किये गये कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है
धारा ११३ दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक दवारा आशयित से भिन्न हो
धारा ११४ अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति
धारा ११५ मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण यदि अपराध नहीं किया जाता यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है
धारा ११६ कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण अदि अपराध न किया जाए यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो
धारा ११७ लोक साधारण दवारा या दस से अधिक व्यक्तियों दवारा अपराध किये जाने का दुष्प्रेरण
धारा ११८ मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए
धारा ११९ किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक सेवक दवारा छिपाया जाना, जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है
यदि अपराध कर दिया जाय
यदि अपराध मृत्यु, आदि से दण्डनीय है
यदि अपराध नहीं किया जाय
धारा १२० कारावास से दण्डनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना
यदि अपराध कर दिया जाए - यदि अपराध नहीं किया जाए
अध्याय ५ क आपराधिक षडयंत्र  
धारा १२० क आपराधिक षडयंत्र की परिभाषा
धारा १२० ख आपराधिक षडयंत्र का दण्ड
अध्याय ६   राज्य के विरूद्ध अपराधें के विषय में   
धारा १२१ भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना
धारा १२१ क धारा १२१ दवारा दण्डनीय अपराधों को करने का षडयंत्र
धारा १२२ भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना
धारा १२३ युद्ध करने की परिकल्पना को सुनकर बनाने के आशय से छुपाना
धारा १२४ किसी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग करने के लिए विवश करने या उसका प्रयोग अवरोपित करने के आशय से राट्रपति, राज्यपाल आदि पर हमला करना
धारा १२४ क राजद्रोह
धारा १२५ भारत सरकार से मैत्री सम्बंध रखने वाली किसी एशियाई शक्ति के विरूद्ध युद्ध करना
धारा १२६ भारत सरकार के साथ शान्ति का संबंध रखने वाली शक्ति के राज्य क्षेत्र में लूटपाट करना
धारा १२७ धारा १२५ व १२६ में वर्णित युद्ध या लूटपाट दवारा ली गयी सम्पत्ति प्राप्त करना
धारा १२८ लोक सेवक का स्व ईच्छा राजकैदी या युद्धकैदी को निकल भागने देना
धारा १२९ उपेक्षा से लोक सेवक का ऐसे कैदी का निकल भागना सहन करना
धारा १३० ऐसे कैदी के निकल भागने में सहायता देना, उसे छुडाना या संश्रय देना
अध्याय ७   सेना, नौसेना और वायुसेना से सम्बन्धित अपराधें के विषय में
धारा १३१ विद्रोह का दुष्प्रेरण का किसी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक को कर्तव्य से विचलित करने का प्रयत्न करना



दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (भारत)
दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है। यह सन् १९७३ में पारित हुआ तथा १ अप्रैल १९७४ से लागू हुआ। 'सीआरपीसी' दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम है। जब कोई अपराध किया जाता है तो सदैव दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है। एक प्रक्रिया पीड़ित के संबंध में और दूसरी आरोपी के संबंध में होती है। सीआरपीसी में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है। 'आइपीसी' भारतीय दंड संहिता का संक्षिप्त नाम है।
कुछ प्रकार के मानव व्यवहार ऐसे होते हैं जिसकी कानून इजाजत नहीं देता। ऐसे व्यवहार करने पर किसी व्यक्ति को उनके परिणामों का सामना करना पड़ता है। खराब व्यवहार को अपराध या गुनाह कहते हैं और इसके परिणाम को दंड कहा जाता है। जिन व्यवहारों को अपराध माना जाता है उनके बारे में और हर अपराध से संबंधित दंड के बारे में ब्योरा मुख्यतया आइपीसी में दिया गया है।
जब कोई अपराध किया जाता है, तो सदैव दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है। एक प्रक्रिया पीड़ित के संबंध में और दूसरी आरोपी के संबंध में होती है। सीआरपीसी में इन दोनों प्रकार की प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है।
कुछ प्रमुख धारायें
धारा 41 बी : गिरफ्तारी की प्रक्रिया तथा गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के कर्तव्य
धारा 41 डी : के अनुसार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है तथा पुलिस द्वारा उससे परिप्रश्न किये जाते है, तो परिप्रशनों के दौरान उसे अपने पंसद के अधिवक्ता से मिलने का हक होगा, पूरे परिप्रश्नों के दौरान नहीं।
धारा 46 : गिरफ्तारी कैसे की जायेगी
धारा 51 : गिरफ्तार व्यक्ति की तलाशी
धारा 52 : आक्रामक आयधु का अभिग्रहण - गिरफ्तार व्यक्ति के पास यदि कोई आक्रामक आयुध पाये जाते है तो उन्हें अभिग्रहित करने के प्रावधान है।
धारा 55 ए : इसके अनुसार अभियुकत की अभिरक्षा रखने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह अभियुक्त के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की युक्तियुक्त देख-रेख करे।
धारा 58 : इस धारा के अनुसार पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी जिला मजिस्टेट को या उसके ऐसे निर्देश देने पर उपखण्ड मजिस्टेट को, अपने अपने थाने की सीमाओं के भीतर वारण्ट के बिना गिरफ्तार किये अये सब व्यक्तियों कें मामले के रिपोर्ट करेंगे चाहे उन व्यक्तियों की जमानत ले ली गई हो या नहीं।
धारा १०६ से १२४ तक : ये धारायें दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 8 में 'परिशान्ति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति' शीर्षक से दी गयी हैं, जिसमें 107/116 धारा परिशान्ति के भंग होने की दशा में लागू होती है। धारा 107 के अनुसार, जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना मिले कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा संदोष कार्य करेगा, जिससे सम्भवत: परिशान्ति भंग हो जाएगी या लोकप्रशान्ति विक्षुब्ध हो जाएगी, तब वह मजिस्ट्रेट यदि उसकी राय में कार्यवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हो तो वह ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबन्धित रीति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करें कि एक वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए उसे (प्रतिभुओं सहित या रहित) बन्धपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाय।
धारा 108 : राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति
धारा 109 : संदिग्ध और आवारा-गर्द व्यक्तियों से अच्छे व्यवहार के लिए जमानत
धारा १४४ : यह धारा शांति व्यवस्था कायम करने के लिए लगाई जाती है। इस धारा को लागू करने के लिए जिलाधिकारी एक नोटिफिकेशन जारी करता है और जिस जगह भी यह धारा लगाई जाती है, वहां चार या उससे ज्यादा लोग इकट्ठे नहीं हो सकते हैं। इस धारा को लागू किए जाने के बाद उस स्थान पर हथियारों के लाने ले जाने पर भी रोक लगा दी जाती है। धारा-144 का उल्लंघन करने वाले या इस धारा का पालन नहीं करने वाले व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। उस व्यक्ति की गिरफ्तारी धारा-107 या फिर धारा-151 के अधीन की जा सकती है। इस धारा का उल्लंघन करने वाले या पालन नहीं करने के आरोपी को एक साल कैद की सजा भी हो सकती है। वैसे यह एक जमानती अपराध है, इसमें जमानत हो जाती है।
धारा १५१ : यह धारा अध्याय ११ में 'पुलिस की निवारक शक्ति' में है। यह धारा संज्ञेय अपराधों के किये जाने से रोकने हेतु गिरफ्तार कर अपराध की गम्‍भीरता को रोकती है और पक्षों को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है।
धारा १५४ : यह धारा संज्ञेय मामलों में इत्तिला से सम्बंधित है। इसके अनुसार-
संज्ञेय अपराध किये जाने से सम्बंधित प्रत्येक इत्तिला,यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक रूप से दी गयी हो तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तिला पर,चाहे वह लिखित रूप में दी गयी हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गयी हो, उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में,जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी जिसे राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे,प्रविष्ट किया जायेगा।
इस कानून मैं बच्चों और महिलायों के लिए विशेष प्रावधान हैं |

No comments:

Post a Comment

Please share your views

सिर्फ 7,154 रुपये में घर लाएं ये शानदार कार

  36Kmpl का बेहतरीन माइलेज, मिलेगे ग़जब के फीचर्स! | Best Budget Car in India 2024 In Hindi b est Budget Car in India: कई बार हम सभी बजट के क...