Tuesday, August 7, 2018

द्रविड़ राजनीति के पितामह करुणानिधि का जाना

द्रविड़ राजनीति के पितामह करुणानिधि का जाना 

 तमिल राजनीति के पितामह कहे जाने वाले मुथुवेल करूणानिधि आज हमारे बीच नहीं रहे। शोकाकुल समर्थक बदहवास हैं। आजादी के बाद तमिलनाडु में पीढिय़ां बदल गई, लेकिन राजनीति में एम. करूणानिधि का चेहरा अबतक दैदीप्यमान रहा। उनके जाने का गम तमिलनाडु के साथ पूरे देश को है।
तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहने के साथ वह १३ बार विधानसभा के सदस्य भी रहे। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वह अपने जीवनकाल में ही किवदंती (लिजेण्ड) बन गये थे। तमिलनाडु को सामाजिक और आर्थिक रूप से तरक्की पसंद राज्य बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा। भारतीय राजनीति में करुणानिधि का योगदान अतुलनीय है।

करुणानिधि का जन्म तमिलनाडु के तिरक्कुवलई जिलें में एक निम्नवर्गीय परिवार में 3 जून 1924 को हुआ था। अभी हाल ही में उनके समर्थकों ने ९४वां जन्मदिन मनाया था। बचपन से ही करूणानिधि की प्रतिभा के सभी कायल थे। इसी कारण उन्हें दक्षिणमूर्ति और कलाईनार जैसे उपनामों से बुलाया जाने लगा था। कलाईनार का अर्थ है तमिल कला का विद्वान। मात्र १४ वर्ष की अवस्था में राजनीति में कदम रखने वाले करूणानिधि को लोग 'शब्दों का जादूगरÓ कहते थे। वे एक सफल राजनेता के साथ तमिल सिनेमा कर्मी और पटकथा लेखक रहे। सबसे ख़ास बात ये थी कि करुणानिधि के डायलॉग में सामाजिक न्याय और तरक्कीपसंद समाज की बातें थीं। 1952 में आई फि़ल्म 'पराशक्तिÓ में करुणानिधि के लिखे ज़बरदस्त डायलॉग ने इसे तमिल फि़ल्मों में मील का पत्थर बना दिया। फि़ल्म के शानदार डायलॉग के जरिए अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता और उस वक्त की सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाए।
करूणानिधि का द्रविण राजनीति में आना किसी धूमकेतु से कम नहीं था। ब्रिटिश रूल के दौरान ही उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में स्कूल के सिलेबस में हिंदी को शामिल किए जाने के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया। विरोध में कई लेख प्रकाशित किये। मुरासोली नामक एक समाचार पत्र भी प्रकाशित करने का काम किया। 17 साल की उम्र में उनकी राजनीतिक सक्रियता काफी बढ़ गई थी। करुणानिधि ने 'तमिल स्टूडेंट फ़ोरमÓ के नाम से छात्रों का एक संगठन बना लिया था और हाथ से लिखी हुई एक पत्रिका भी छापने लगे थे। १९४९ में जब अन्नादुरै ने 'पेरियारÓ ईवी रामास्वामी की पार्टी द्रविड कडगम (डीके) से अलग होकर द्रविड़ मुनेत्र कडगम यानी डीएमके की शुरुआत की, तब करुणानिधि उनके उनके साथ मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो गये थे। उस वक्त महज 25 वर्ष की उम्र में ही करुणानिधि राज्य के शीर्षस्थ नेताओं में शामिल हो गये थे।
1967 में उनकी पार्टी डीएमके ने राज्य की सत्ता हासिल की, करुणानिधि ने परिवहन मंत्री के तौर पर राज्य की निजी बसों का राष्ट्रीयकरण किया और राज्य के हर गांव को बस के नेटवर्क से जोडऩा शुरू किया। इसे करुणानिधि की बड़ी उपलब्धियों में गिना जाता है। जब  सीएन अन्नादुरै की 1969 में मौत हो गई, तो वे मुख्यमंत्री बने और तभी से राज्य की राजनीति में नए युग की शुरुआत हुई थी। करुणानिधि की पहली सरकार के कार्यकाल में ज़मीन की हदबंदी को 15 एकड़ तक सीमित कर दिया गया था। यानी कोई भी इससे ज़्यादा ज़मीन का मालिक नहीं रह सकता था। इसी दौरान करुणानिधि ने शिक्षा और नौकरी में पिछड़ी जातियों को मिलने वाले आरक्षण की सीमा 25 से बढ़ाकर 31 फ़ीसदी कर दी। उन्होंने कानून बनाकर सभी जातियों के लोगों के मंदिर के पुजारी बनने का रास्ता साफ़ किया था। राज्य में सभी सरकारी कार्यक्रमों और स्कूलों में कार्यक्रमों की शुरुआत में एक तमिल राजगीत (इससे पहले धार्मिक गीत गाए जाते थे) गाना अनिवार्य कर दिया गया। करुणानिधि ने एक क़ानून बनाकर लड़कियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हक़ दिया। उन्होंने राज्य की सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण भी दिया। दलितों को मुफ़्त में घर देने से लेकर हाथ रिक्शा पर पाबंदी लगाने तक के उनके कई काम सियासत में मील के पत्थर साबित हुए। ऐसे न जाने कितने काम करूणानिधि के जीवन की याद दिलाते हैं, जो सामाजिक न्याय के साथ आम आदमी के हित में एक नेकदिल इंसान के लिए हो सकता है।
आज की तारीख़ में ऐसे बहुत ही कम नेता बचे हैं जिन्होंने अपना सियासी करियर आज़ादी के पहले शुरू किया था। करुणानिधि उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे। उनके जाने से निश्चित रूप से एक युग का अंत हुआ है।
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