अमेरिका का ईरान पर फिर से प्रतिबन्ध के मायने
मध्य-पूर्व में अमेरिका के निशाने पर ईरान एक बार फिर से है। अमेरिका ने उस पर घातक परमाणु हथियारों और मिसाइलों के विकास का बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए फिर से कड़े प्रतिबन्ध लगा दिये हैं। अमेरिका के इस निर्णय से आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प ने मई में ही कहा था कि यदि ईरान ने उन की शर्तें नहीं मानी तो उसके विरूद्घ अत्यंत सख्त पाबंदियां लगाई जाएंगी। तब उन्होंने ईरान के साथ दुनिया के 06 बड़े राष्ट्रों द्वारा किये गये परमाणु समझौते से भी खुद को अलग कर लिया था। अमेरिका को तभी से यह मलाल था कि उसके इस निर्णय से समझौते में शामिल अन्य शक्तिशाली राष्ट्रों ने ईरान के विरूद्घ पाबंदी लगाने से मना कर दिया था। ऐसे में अमेरिका अलग-थलग पड़ गया था। उसी की खीझ निकालने के लिए उसने पहले व्यक्तिगत तौर पर अपने मित्र देशों से ईरान से व्यापार खत्म करने की अपील या दूसरे शब्दों में कहें तो धमकी दी थी, परन्तु उसके इस अपील का प्रभाव दुनिया के देशों खासकर उसके मित्र देशों पर भी न के बराबर रहा। ऐसे में खुद को अकेला पाकर अमेरिका ने ईरान पर दो दिन पहले व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिये हैं।ईरान के लिए यह कोई नयी बात नही है। वह लम्बे समय तक अमेरिकी प्रतिबंधों का शिकार रहा है, फिर भी उसने अपनी आंतरिक अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत कर रखी है कि वहां के नागरिकों को बहुत ज्यादा दिक्कत नहीं पेश आयी। वर्तमान में भी उसे कोई आर्थिक दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, ऐसा प्रतीत नहीं होता, क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों को इस्रायल और उसके कुछ समर्थक सऊदी अरब जैसे खाड़ी के देशों के अलावा कोई मानने को तैयार नहीं है। वर्तमान में सर्वाधिक व्यापारिक गतिविधियों में शुमार होने वाले चीन, रूस और यूरोपीय यूनियन के देश इन प्रतिबंधों को दरकिनार करते हैं।
ऐसा लगता है कि वर्तमान में राष्टï्रपति ट्रम्प का दांव अमेरिका पर ही उल्टा पडऩे वाला है। इस बात की गंभीरता शायद ट्रम्प को नहीं है, तभी उन्होंने यह कहा कि जो देश ईरान से व्यापारिक संबंध नहीं तोड़ेगा, उससे अमेरिका अपने व्यापारिक संबंध तोड़ लेगा। वर्तमान में जो परिदृश्य बन रहा है, उसमें ऐसा लगता है कि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ही गहरा आघात लगने वाला है, क्योंकि ज्यादातर देशों ने अमेरिकी धमकी को अनसुनी कर ईरान से संबंध बरकरार रखें हैं। ऐसे में यदि अमेरिका दुनिया के विभिन्न देशों से अपने व्यापारिक संबंध तोड़ता है तो अप्रत्यक्ष रूप से वहीं व्यापारिक प्रतिबंधों का शिकार हो जायेगा।
जहां तक ईरान की बात है तो वह 1979 की क्रांति, जिसमें उसके पि_ू बादशाह को अपदस्थ किया गया था, तभी से व्यापारिक पाबंदिया झेल रहा हैं। यह और बात है कि इस बीच ईरान विकास की नई ऊंचाईयों को भी छूता रहा है। इतिहास पर नजर डाले तो ईरानी लोग अपनी राजनीतिक आजादी की रक्षा करना जानते हैं और उन पर अमेरिकी धमकियों का कोई असर नहीं है। ईरान पर व्यापारिक प्रतिबंधों का ज्यादा असर नहीं पडऩे वाला है, क्योंकि उसके मुख्य उद्योग कार, कारपेट और खाद्य पदार्थ हैं, जिसे अमेरिका द्वारा आयात नहीं किये जाने की दशा में रूस, चीन और जर्मनी जैसे बड़े बाजार उपलब्ध हैं।
ईरान के सिलसिले में राष्ट्रपति ट्रम्प और जॉन बोल्टन ने 'लीबिया मॉडलÓ की बात की है। उनका तात्पर्य यह है कि ईरान में लीबिया की तरह गृहयुद्घ कराकर ईरानी सत्ता को बेदखल कर दिया जायेगा। वर्तमान में उसका यह भी सपना दूर की कौड़ी नजर आ रही है, क्योंकि अमेरिकी धमकी ने ईरान में कट्टरपंथियों और उदारवादियों का एक कर दिया है। ईरानी लोग भी समझते हैं कि इस तरह की धमकियां अमेरिकी विदेश नीति का हिस्सा हैं और इन्हें संजीदगी से नहीं लेना चाहिये।
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