क्षेत्रीय सिनेमा
भारतीय सिनेमा के अन्तर्गत भारत के विभिन्न भागों और
भाषाओं में बनने वाली फिल्में आती हैं जिनमें आंध्र
प्रदेश और तेलंगाना, असम,
बिहार,
उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा,
जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड,
कर्नाटक, केरल,
महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बॉलीवुड शामिल हैं। भारतीय
सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव
छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी
एशिया, ग्रेटर मध्य
पूर्व, दक्षिण
पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत
संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त
राज्य अमरीका और यूनाइटेड
किंगडमभी
भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम (परिवर्तन)
के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की
लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर
प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं।
असमिया सिनेमा
असमिया फिल्म उद्योग की उत्पत्ति क्रांतिकारी
कल्पनाकर रुपकोंवर ज्योतिप्रसाद अग्रवाल के कार्यों में है, जो एक कवि,
नाटक
लेखक, संगीतकार और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उनका चित्रकला मूवीटोन के बैनर
में 1935 में बनी पहली असमिया फिल्म जोयमती के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान था। प्रशिक्षित
तकनीशियनों के कमी के कारण ज्योतिप्रसाद को अपनी फिल्म बनाते हुए निर्माता और
निर्देशक के अलावा पटकथा लेखक, नृत्य निर्देशक, संगीतकार,
गीतकार,
संपादक
आदि कई अतिरिक्त जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ी. 60,000 रुपए के बजट में बनी यह फिल्म
10 मार्च 1935 को रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर असफल रही . कई अन्य शुरुआती भारतीय
फिल्मो की तरह जोयमती के भी नेगेटिव और पूरे प्रिंट गायब है। अल्ताफ मज़ीद ने निजी
तौर बचे हुए प्रिंट का नवीनीकरण और उपशीर्षक किया है। जोयमती में हुए नुकसान के
बावजूद दूसरी असमिया फिल्म इन्द्रमालती को 1937 से 1938 फिल्माया गया और 1939 में
रिलीज़ किया गया. 21वी शताब्दी की शुरुआत में बॉलीवुड- शैली में असमिया फिल्मो का
निर्माण होने लगा।
बंगाली सिनेमा
टालीगंज पश्चिम बंगाल में स्थित बंगाली सिनेमाई
परंपरा प्रसिद्ध फ़िल्मकार जैसे सत्यजित रे, ऋत्विक घटक और
मृणाल सेन को अपने सबसे प्रशंसित सदस्यों के रूप में गिनती है। हाल की फिल्मे
जिन्होंने राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है वो हैं ऋतुपर्णो घोष' की
चोखेर बाली अभिनीत ऐश्वर्या राय, कौशिक गांगुली की शब्दो आदि. बंगाली
सिनेमा में विज्ञानं कल्प और सामाजिक विषयों पर भी फिल्मे बनी है. 2010 के दशक में
बंगाली 50 - 70 फिल्मे सालाना बना रहा है। बंगाल में सिनेमा का इतिहास 1890 में
शुरू होता है जब पहले "बॉयोस्कोप" कोलकाता के थिएटर में दिखाए गए। दस
वर्षों के भीतर ही हीरालाल सेन विक्टोरियन युग सिनेमा के अगुआ ने रॉयल बॉयोस्कोप
कंपनी की स्थापना कर बंगाली फिल्म उद्योग के बीज बोए. रॉयल बॉयोस्कोप स्टार थिएटर
(कलकत्ता), मिनर्वा थिएटर (कलकत्ता ), क्लासिक
थिएटर इत्यादि के लोकप्रिय नाटको के स्टेज निर्माण के सीन दिखाता था। सेन के
कार्यों के काफी साल बाद 1918 में धीरेन्द्र नाथ गांगुली ने इंडो ब्रिटिश फिल्म
कंपनी पहली बंगाली स्वामित्व वाली निर्माण कंपनी की स्थापना की। लेकिन पहली बंगाली
फीचर फिल्म बिल्वमंगल मदन थिएटर के बैनर तले 1919 में निर्मित हुई. बिलत फेरत 1921
में इंडो ब्रिटिश का पहला निर्माण था। मदन थिएटर की जमाई षष्ठी पहली बंगाली बोलती
फिल्म थी। टॉलीवुड नाम बंगाली फिल्म उद्योग के लिए इस्तेमाल हुआ चूँकि टॉलीगँज
फिल्म उद्योग का केंद्र था और ये हॉलीवुड के साथ मेल खाता था। बाद में ये बॉलीवुड
और ऐसे ही और हॉलीवुड प्रेरित नाम की भी प्रेरणा बना जब बम्बई (अब मुंबई) टॉलीगँज
को पीछे छोड़कर भारतीय फिल्म उद्योग का केंद्र बन गया। 1950s में
सामानांतर फिल्म आंदोलन बंगाली फिल्म उद्योग में शुरू हुआ। तब से कई युगों का
इतिहास लिखा जा चुका है जिसमे रे, घटक आदि फ़िल्मकार और उत्तम कुमार और
सौमित्र चटर्जी आदि अभिनेताओं ने अपनी जगह बनायीं।
भोजपुरी सिनेमा
भोजपुरी भाषा के फिल्में मुख्यतः पश्चिमी बिहार
और पूर्वी उत्तर प्रदेश के निवासियों का मंजोरंजन करती हैं। भोजपुरी बोलने
क्षेत्रो से प्रवास के कारण इन फिल्मो का एक बड़ा दर्शक वर्ग दिल्ली और मुंबई जैसे
महानगरों में भी पाया जाता है। भारत के अलावा अन्य देश जहाँ भोजपुरी भाषा बोलने
वाले दर्शक है जैसे दक्षिण अफ्रीका, वेस्ट इंडीज, ओशानिया और
दक्षिण अमरीका में भी इन फिल्मों का बाजार पाया जाता है। भोजपुरी फिल्मों का
इतिहास 1962 में कुंदन कुमार द्वारा निर्देशित सफल फिल्म गंगा मैय्या तोहे पियरी
चढ़इबो ("गंगा माँ, मैं तुम्हें पीली साड़ी
चढ़ाऊंगा"), से शुरू माना जाता है। इसके बाद कई दशकों तक
भोजपुरी फिल्मों का निर्माण यदा कदा ही हुआ। हालाँकि एस एन त्रिपाठी निर्देशित
बिदेसिया ("विदेशी") (1963) और कुंदन कुमार द्वारा निर्देशित
गंगा(भोजपुरी फिल्म) (1965) जैसी फिल्मे लोकप्रिय भी हुई और उन्होंने मुनाफा भी
कमाया लेकिन 1960 से 1990 के दशक तक भोजपुरी फिल्मों का निर्माण सामान्यतः नहीं
होता था। मोहन प्रसाद निर्देशित सुपर हिट फिल्म सैय्याँ हमार (2001) ने भोजपुरी
फिल्म उद्योग को पुनर्जीवित किया और इस फिल्म के हीरो रवि किशन को भोजपुरी फिल्मो
का पहला सुपर स्टार बनाया। इस फिल्म की सफलता के बाद कई और सफल भोजपुरी फिल्मों का
निर्माण हुआ जैसे मोहन प्रसाद निर्देशित पंडितजी बताई न बियाह कब होइ (2005) और
ससुरा बड़ा पइसा वाला (2005) . भोजपुरी फिल्म उद्योग की सफलता के प्रमाण के रूप
में इन फिल्मों ने उत्तर प्रदेश और बिहार में इन फिल्मों ने अपने प्रदर्शन के समय
बॉलीवुड की मुख्यधारा फिल्मो से बेहतर व्यवसाय किया और कम बजट में बनी दोनों ही
फिल्मों ने अपनी लागत से दस गुना ज़्यादा मुनाफा कमाया। हालाँकि भोजपुरी सिनेमा
अन्य भारतीय सिनेमा उद्योग के मुकाबले छोटा आकार का है, भोजपुरी फिल्मो
की शीघ्र सफलता से भोजपुरी सिनेमा को बहुत प्रसार मिला है। अब भोजपुरी फिल्म
उद्योग का एक फिल्म पुरुस्कार समारोह है और एक फिल्म व्यापार पत्रिका भोजपुरी सिटी
भी है.
छत्तीसगढ़ी सिनेमा
छॉलीवुड का जन्म 1965 में मनु नायक निर्मित और
निर्देशित पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म " कही देबे सन्देश " के प्रदर्शन के
साथ हुआ. इस फिल्म की कहानी अंतरजाति प्रेम पर आधारित थी। कहा जाता है की भूतपूर्व
भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस फिल्म को देखा था।[कृपया उद्धरण जोड़ें. इस
फिल्म के दो गाने लोकप्रिय गायक मोहम्मद रफ़ी ने गाये थे. इसके बाद 1971 में
निरंजन तिवारी निर्देशित और विजय कुमार पाण्डेय द्वारा निर्मित घर द्वार का
निर्माण हुआ। लेकिन दोनों फिल्मो ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया और
अपने निर्माताओं को निराश किया। जिसकी वजह से अगले 30 तक किसी छत्तीसगढ़ी फिल्म का
निर्माण नहीं हुआ।
गुजराती सिनेमा
गुजरात के फिल्म उद्योग की शुरुआत 1932 में हुई
. उस समय से गुजराती सिनेमा ने भारतीय सिनेमा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
अन्य क्षेत्रीय भाषा के सिनेमा के मुकाबले गुजराती सिनेमा ने काफी लोकप्रियता
हासिल करी है। गुजराती सिनेमा की कहानियाँ पुराणो, इतिहास, समाज
और राजनीती पर आधारित होती हैं। अपने उद्भव से ही गुजरती फिल्मकारों ने भारतीय
समाज के मुद्दों और कहानियों के साथ प्रयोग किये हैं। गुजरात ने अपने अभिनेताओं के
रूप में बॉलीवुड को भी योगदान दिया है। गुजराती फिल्म उद्योग में निम्न कलाकारों
का काम भी शामिल है संजीव कुमार, राजेंद्र कुमार, बिंदु, आशा
पारेख, किरण कुमार, अरविन्द त्रिवेदी, अरुणा
ईरानी, मल्लिका साराभाई, नरेश कनोड़िआ, महेश कनोड़िआ और
असरानी. गुजराती फिल्मो की स्क्रिप्ट और कहानियाँ
आतंरिक रूप से मानवीय होती है। ये रिश्तों और पारवारिक विषयों के साथ मानवीय
आकाँक्षाओं को भारतीय परिवारों के सन्दर्भ में देखती है। पहली गुजराती फिल्म,
नानुभाई
वकील द्वारा निर्देशित नरसिंह मेहता, 1932 में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म के
अभिनेता मोहन लाला, मारुती राव, मास्टर मनहर और
मिस मेहताब थे। संत नरसिंह मेहता, के जीवन पर आधारित ये फिल्म "संत
फिल्मो" की श्रेणी में गिनी जाती है। लेकिन संत फिल्मो के विपरीत इस फिल्म
में कोई भी चमत्कार नहीं दर्शाये गए थे। 1935 में एक और सामाजिक फिल्म, होमी
मास्टर द्वारा निर्देशित, घर जमाई रिलीज़ हुई। इस फिल्म में हीरा
, जमना, बेबी नूरजहां, अमू, अलिमिया,
जमशेदजी
और गुलाम रसूल ने अभिनय किया था। इस फिल्म में अपने ससुराल में रह रहे दामाद (घर
जमाई) और उसकी हरकतों और उसके महिलाओं की स्वतंत्रता के बारे में समस्यात्मक रुख
को दर्शाया गया था। यह एक कॉमेडी फिल्म थी जिसे काफी सफलता मिली। गुजराती सिनेमा
में आगे भी ईसी प्रकार कई और महत्त्वपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक और
धार्मिक विषयो पर फिल्मों का निर्माण हुआ। 1948, 1950, 1968
और 1971 में गुजराती सिनेमा के कुछ नए आयाम स्थापित हुए। चतुर्भुज दोशी निर्देशित
करियावर, रामचन्द्र ठाकुर की वडिलोना वांक, रतिभाई पूणतर की
गडानो बेल और वल्लभ चोकसी की लीलुडी धरती ने गुजराती सिनेमा में काफी सफल रही.
वर्त्तमान में गुजराती फिल्मे आधुनिकता की समस्याओं के प्रसंग पर चर्चा करती है। गडानो
बेल जैसी फिल्मो में यथार्थवाद और बदलाव की झलक देखी जा सकती है।
हिंदी सिनेमा
मुंबई में केंद्रित हिंदी भाषा फिल्म उद्योग
जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय सिनेमा को नियंत्रित करती है और
उसकी सबसे बड़ी और शक्तिशाली शाखा है।हिंदी सिनेमा ने अपने शुरुआती दौर में अछूत
कन्या (1936) and सुजाता (1959) आदि फिल्मों के माध्यम से जाति
और संस्कृति की समस्याओं का विशेलषण किया हिंदी सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति
चेतन आनंद की नीचा नगर, राज कपूर ' की
आवारा(फिल्म)। आवारा और शक्ति सामंत की आराधना आदि फिल्मों से मिली. 1990 के दशक
में भारतीय अर्थव्यवस्था उदारीकरण के बाद जब सतत रूप से विकसित हुई तो हिंदी
सिनेमा उद्योग भी एक व्यवसाय के रूप में 15% की वर्षिक दर से बढ़ा फिल्मो के बजट
बड़े हुए और स्टार अभिनेताओं की आमदनी भी काफी बढ़ी। कई अभिनेता साथ साथ 3–4
फिल्मों में काम करने लगे. वाणिज्यिक संस्थान जैसे भारतीय औद्योगिक विकास बैंक आई
डी बी आई हिन्दी फिल्मों में पूँजी लगाने लगे। 21वी सदी के पहले दशक में फिल्म
उद्योग ने और अधिक कॉर्पोरेट स्वरूप लिया जहाँ फिल्म स्टूडियो कंपनियों की तरह
कार्य कर रहे हैं, फिल्मों की मार्केटिंग हो रही है, आय
और उसके स्रोत बढ़ने की कोशिश हो रही है और जॉइंट वेंचर भी हो रहे है। हिंदी
फिल्मों के दर्शक फिल्मों के साथ सिनेमा हाल में ताली, सीटी बजाने,
गाना
गाने डायलॉग बोलने आदि द्वारा अपनी भागीदारी के लिए जाने जाते हैं.
कन्नड़ सिनेमा
कन्नड़ फिल्म उद्योग (सन्दलवुड) बंगळुरु में
केंद्रित है और कर्नाटक राज्य की मनोरंजन आवश्यकताएं पूरी करता है। राजकुमार
कन्नड़ सिनेमा के प्रख्यात महानायक है। अपने फ़िल्मी करियर में उन्होंने बहुमुखी
किरदार निभाए और सैकड़ों गाने गाये। अन्य मशहूर कन्नड़ और तुलु अभिनेता है
विष्णुवर्धन, अम्बरीष, रविचंद्रन,
गिरीश
कर्नाड, प्रकाश राज, शंकर नाग, अनंथ नाग,
उपेन्द्र,
दर्शन,
सुदीप,
गणेश,
शिवराज
कुमार(अभिनेता), पुनीत राजकुमार, कल्पना, भारथी,
जयंथी,
पंडरी
बाई, तारा, उमाश्री और रम्या. कन्नड़ सिनेमा के फिल्म
निर्देशक जैसे गिरीश कसरावल्ली, पी. शेषाद्रि राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
की है। पुट्टण्णा कनगल, जी. वी. अय्यर , गिरीश कर्नाड,
टी.
एस. नागभारना, केसरी हरवू, उपेन्द्र,
योगराज
भट्ट, और सूरी अन्य मशहूर कन्नड़ निर्देशक है। जी.के. वेंकटेश, विजय
भास्कर, राजन नागेन्द्र, हंसलेखा, गुरुकिरण,
अनूप
सेलिन और वी. हरिकृष्ण मशहूर कन्नड़ संगीत निर्देशक है. कन्नड़ सिनेमा ने भी
बंगाली और मलयालम फिल्मों के साथ भारतीय सामानांतर सिनेमा के युग में योगदान किया
है। इस श्रेणी की कुछ प्रभावशाली फ़िल्में है संस्कारा (यू. आर. अनंतमूर्ति के
उपन्यास पर आधारित), बी. वी. करंथ की चोमाना डूडी , ताबरना
कथे, वंसावृक्षा, कडु कुडुरे, हंसगीथे,
भूतय्यना
मगा अय्यु, एक्सीडेंट, मानसा सरोवर,
घटाश्रद्धा,
मने,
क्रौर्य,
थाई
साहेबा, द्वीपा, मुन्नुदी, अतिथि, बेरु,
थुत्तुरी,
विमुक्थि,
बेत्तडा
जीवा और भारत स्टोर्स.
कोंकणी सिनेमा
कोंकणी भाषा की फिल्मो का निर्माण मुख्यता गोवा
में होता है। 2009 में 4 फिल्मों के निर्माण के साथ ये भारत के सबसे छोटे फिल्म
उद्योगों में से एक है। कोंकणी भाषा मुख्यत गोवा, महाराष्ट्र,
कर्नाटक
और सीमित मात्रा में केरल में बोली जाती है। पहली पूर्ण अवधि की कोंकणी फीचर फिल्म
मोगचो अंवद्ड़ो निर्माता निर्देशक जेरी ब्रगांजा के एटिका पिक्चर्स बैनर तले 24
अप्रैल 1950 को रिलीज़ हुई थी, इसी लिए 24 अप्रैल को कोंकणी फिल्म दिवस के रूप में
मनाया जाता है। कज़र् (हिंदी: शादी ) 2009 में बनी रिचर्ड कास्टेलिनो द्वारा
निर्देशित और फ्रैंक फर्नॅंडेज़ द्वारा निर्मित कोंकणी फिल्म है। कासरगोड चिन्ना
की 'उजवाडु ' पुराने विषयों पर नया प्रकाश डालती है। मोग आणि
मैपस एक मंगलोरी कोंकणी फिल्म है।
मलयालम सिनेमा
मलयालम फिल्म उद्योग जिसे मौलीवुड, के
नाम से भी जाना जाता है केरल में स्थित है। यह भारत का चौथा सबसे बड़ा फिल्म
उद्योग है। मलयालम फिल्म उद्योग को सामानांतर सिनेमा और मुख्यधारा सिनेमा के बीच
की दूरी को पाटने वाली सामाजिक विषयों पर विचारो को प्रेरित करने वाली तकनिकी रूप
से उत्तम काम बजट की फिल्मों के लिए जाना जाता है। अडूर गोपालकृष्णन, जी
अरविंदन, शाजी एन करुण, के. जी. जॉर्ज, पद्मराजन,
सथ्यन
अन्थिकड़, टी. वी. चंद्रन और भारतन मलयालम सिनेमा के नामचीन फिल्मकार है। जे.
सी. डैनियल द्वारा निर्मित व निर्देशित विगतकुमारन, 1928 में रिलीज़
हुई मूक फिल्म से मलयालम फिल्म उद्योग की शुरुआत हुई। 1938 में रिलीज़ हुई बालन,
पहली
मलयालम "टॉकीज " या बोलती फिल्म थी। 1947 तक जब पहले मलयालम फिल्म
स्टूडियो, उदय स्टूडियो की केरल में शुरुआत हुई, मलयालम फिल्में
का निर्माण तमिल निर्माताओं द्वारा होता था। 1954 में नीलककुयिल फिल्म बे
राष्ट्रपति का रजत मेडल जीत कर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। मशहूर मलयालम
उपन्यासकार उरूब द्वारा लिखित और पी. भास्करन एवं रामू करिअत द्वारा निर्देशित इस
फिल्म को पहली प्रामाणिक मलयालम माना जाता है। 1955 में छात्रों के समूह द्वारा
निर्मित न्यूज़पेपर बॉय (अख़बार वाला लड़का)पहली नव यथार्थवादी मलयालम फिल्म थी। थक़ाज़ी
सिवसंकरा पिल्लै की कहानी पर आधारित रामू करिअत द्वारा निर्देशित चेम्मीन (1965),
बहुत
लोकप्रिय हुई और सर्वोत्तम फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरुस्कार पाने वालीं दक्षिण
भारत की पहली फिल्म थी। मोहनलाल, ममूटी, सुरेश गोपी,
जयराम,
मुरली,
थिलकन,
श्रीनिवासन
और नेदुमुदी वेणु जैसे अभिनेताओं और आई. वी. ससी, भारतन, पद्मराजन,
के.
जी. जॉर्ज, सथ्यन अन्थिकड़, प्रियदर्शन,
ऐ.
के. लोहितादास, सिद्दीकी-लाल , और टी . के .
राजीव कुमार जैसे फिल्मकारों के उदय के साथ 1980s से 1990s
तक
का समय 'मलयालम सिनेमा का स्वर्ण युग ' माना जाता है।
मराठी सिनेमा
मराठी फिल्म उद्योग मराठी भाषा में फिल्मो का
निर्माण करता है जिनका प्रमुख बाजार महाराष्ट्र राज्य है। मराठी सिनेमा भारतीय
फिल्म जगत के सबसे पुराने फिल्म उद्योगों में से एक है। वास्तव में भारतीय सिनेमा
के अग्र-दूत दादा साहेब फाल्के, जिन्होंने 1913 में भारत में चल चित्र
क्रांति की शुरुआत की अपनी स्वदेशी निर्मित मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र से की ,
उसे
भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (आई ऍफ़ ऍफ़ आई) और अन्य संस्थाओं द्वारा
मराठी सिनेमा का अंग माना जाता है क्यों की उसका निर्माण एक मराठी कर्मीदल द्वारा
हुआ था। पहली मराठी बोलती (टॉकीज) फिल्म अयोध्येचा राजा (प्रभात फिल्म्स द्वारा
निर्मित) 1932 में रिलीज़ हुई, "आलम आरा" पहली हिंदी बोलती
(टॉकीज) फिल्म के सिर्फ एक साल बाद। हाल के वर्षों में "श्वास" (2004)
और "हरिशचंद्राची फैक्ट्री" (2009), जैसी फिल्मो के
निर्माण से मराठी सिनेमा का विकास हुआ है। ये दोनों फिल्मे ऑस्कर पुरुस्कार के लिए
भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजी गयी. आज मराठी सिनेमा मुंबई में स्थित
है पर अतीत में इसका विकास कोल्हापुर और पुणे में हुआ। मराठी भाषा की कुछ
उल्लेखनीय फिल्म है 'सांगते एका ','एक गाओं बड़ा
भंगड़ी, वी. शांताराम की 'पिंजरा' ,'सिंहासन',
'पथलॉग'
'जैत
रे जैत' 'सामना', 'संत वहते कृष्णमि ','संत तुकाराम',
और
प्रह्लाद केशव अत्रे के साने गुरूजी के उपन्यास पर आधारित 'श्यामची आई'
. मराठी
सिनेमा के कई कलाकारों ने हिंदी सिनेमा ' बॉलीवुड' में भी कॅाफ़ी
योगदान किया है। इनमे से कुछ प्रसिद्ध कलाकार है नूतन, तनूजा, वी.
शांताराम, श्रीराम लागू, रमेश देव, सीमा देव,
नाना
पाटेकर, स्मिता पाटिल, माधुरी दीक्षित, सोनाली बेंद्रे,
उर्मिला
मांतोडकर, रीमा लागू, ललिता पवार, नंदा, पद्मिनी
कोल्हापुरे, सदाशिव अमरापुरकर,विक्रम गोखले,
सचिन
खेडेकर, अमोल पालेकर, सचिन पिलगाओंकर, सोनाली कुलकर्णी,
मकरंद
देशपांडे, रितेश देशमुख, दुर्गा खोटे और अन्य।
उड़िया सिनेमा
भुबनेश्वर और कटक स्थित उड़िया फिल्म उद्योग,
ओलीवुड
उड़िया भाषा में फिल्मो का निर्माण करता है। पहली उड़िया बोलती (टॉकीज) फिल्म सीता
बिबाह का निर्माण 1936 में सुन्दर देब गोस्वामी ने किया था। गापा हेले बे साता (
कहानी है पर सच है) पहली रंगीन उड़िया फिल्म थी। इसका निर्माण नगेन रे ने किया था
और इसके चलचित्रकार पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में प्रशिक्षित सुरेन्द्र साहू थे।
1984 उड़िया सिनेमा का स्वर्णिम वर्षा था जब दो उड़िया फिल्मे ' माया
मृगा ' और ' धारे अलुआ' को भारतीय
चित्रमाला (पैनारोमा) में प्रदर्शित किया गया. नीरद मोहपात्रा की माया मृगा को
कांन्स फिल्म समारोह में क्रिटिक (आलोचक) सप्ताह के लिए निमंत्रण मिला और इसने
मैंनहेइम में सर्वश्रेष्ठ तीसरी दुनिया फिल्म का पुरुस्कार तथा हवाई में जूरी
पुरुस्कार मिला। इसे लंदन फिल्म समारोह में प्रदर्शित भी किया गया।
पंजाबी सिनेमा
के. डी. मेहरा ने पहली पंजाबी फिल्म शीला (पिंड
दी कुड़ी के नाम से भी जानी जाती है) का निर्माण किया। लोकप्रिय अभिनेत्री बेबी नूर
जहाँ को इसी फिल्म में अभिनेत्री और गायिका के रूप में पहली बार देखा गया। शीला का
निर्माण कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ और इसे पंजाब की तत्कालीन राजधानी लाहौर में
रिलीज़ किया गया। ये फिल्म पूरे राज्य में बहुत सफलतापूर्वक चली और हिट घोषित हुई।
पंजाबी भाषा की इस पहली फिल्म की सफलता की वजह से कई और फिल्मकार पंजाबी भाषा में
फिल्मे बनाने लगे। वर्ष 2009 तक पंजाबी सिनेमा में 900 से 1,000 फिल्मो का निर्माण
हो चुका था। हालाँकि 1970 के दशक में 9 फिल्मो की रिलीज़ से गिरते हुए 1997 में
सिर्फ 5 पंजाबी फिल्मे ही रिलीज़ हुई। लेकिन 2000s ने पंजाबी
सिनेमा में पुनर्जीवन का संचार हुआ। अब हर साल ज़्यादा फिल्मे रिलीज़ हो रही है
जिनके बजट भी बढे हैं और स्थानीय फिल्म अभिनेताओं के साथ बॉलीवूड के पंजाबी कलाकार
भी इन फिल्मो में अभिनय कर रहे है। 2013 में पहली पंजाबी 3D फिल्म पहचान 3D
रिलीज़
हुई।
सिंधी सिनेमा
सिंधी सिनेमा, भारत में किसी
राज्य या क्षेत्र का प्रतिनिधि न होने के कारण अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा
है। इसके बावजूद समय समय पर सिंधी फिल्मो का निर्माण होता रहता है। 1958 में
निर्मित अबाना पहली सिंधी फिल्म थी और इसे सफलता भी मिली। विगत कुछ समय में सिंधी
सिनेमा ने बॉलीवूड शैली में फिल्मो का निर्माण हुआ है जैसे हल ता भाजी हलूं,
परेवारी,
दिल
दीजे दिल वरन खे, हो जमालो, प्यार करे दिस:
फील द पावर ऑफ़ लव and द अवेकनिंग. पाकिस्तानी सिनेमा और बॉलीवुड में
सिंधी समुदाय के कई व्यक्तित्व है जैसे जी पी सिप्पी, रमेश सिप्पी,
रामसे
बंधू , गोविन्द निहलानी, संगीता बिजलानी, बबिता, साधना,
असरानी,
आफताब
शिवदासानी,वशु भगनानी, राजकुमार हिरानी, दिलीप
ताहिल, विशाल ददलानी, रणवीर सिंह, हंसिका मोटवानी,
निखिल
अडवाणी, रितेश सिधवानी, प्रीती झंगिआनी आदि।
शेरुडुकपेन सिनेमा
निर्देशक सोंगे दोरजी थोंडोक शेरुडुकपेन में
पहली भारतीय फिल्म क्रासिंग ब्रिज्स 2014 मे बनायीं। . शेरुडुकपेन भाषा भारत के
पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में बोली जाती है। दोरजी शेरुडुकपेन में और भी
फिल्मे बनें चाहते है ताकि भारतीय सिनेमा में एक और क्षेत्रीय भाषा की बढ़ोतरी हो।
तमिल सिनेमा (कॉलीवुड)
चेन्नई (पूर्व में मद्रास) एक समय में पूरे
दक्षिण भारतीय फिल्मे का मूल स्थान था और वर्तमान में भी दक्षिण भारत का सबसे बड़ा
फिल्म निर्माण केंद्र है। एच. एम. रेड्डी ने पहली दक्षिण भारतीय टॉकीज कालिदास को
निर्देशित किया जिसको तमिल और तेलुगु दोनों भाषाओँ में शूट किया गया था। शिवाजी
गणेशन अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार पाने वाले भारत के पहले कलाकार बने जब उन्हें 1960
के एफ्रो एशियाई फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता चुना गया। उन्हें फ़्रांस
सरकार द्वारा लीजन ऑफ़ ऑनर पुरुस्कार में शेवलिएर की उपाधि French
Government 1995 में प्रदान की गयी। तमिल सिनेमा द्रविड़ राजनीिति द्वारा
प्रभावित होता है. के. बी. सुन्दरम्बल राज्य विधानसभा के लिए चुनी गयी भारत की
पहली फिल्म व्यक्तित्व थी। भरतिया फिल्म उद्योग में एक लाख रुपए वेतन पाने वाली वह
पहली महिला थी। प्रसिद्ध फिल्म व्यक्तित्व जैसे सी एन अन्नादुराई , एम
जी रामचंद्रन, एम करूणानिधि और जयललिता तमिलनाडु के
मुख्यमंत्री बने। तमिल फिल्मे एशिया, दक्षिण अफ्रीका, उत्तर अमेरिका,
यूरोप
और ओशानिया में वितरित होती हैं। कॉलीवुड के प्रभाव से श्रीलंका, मलेशिया,
सिंगापुर
और कनाडा में तमिल फिल्मों का निर्माण हुआ है। प्रसिद्ध तमिल फिल्म अभिनेता
रजनीकांत को "सुपरस्टार" बोला जाता है और वो लम्बे समय से दक्षिण भारत
के लोकप्रिय अभिनेता बने हुए हैं उनका फ़िल्मी परदे पर रंग ढंग और संवाद बोलने की
शैली (डायलाग डिलीवरी) जनता में उनकी व्यापक लोकप्रियता और अपील का कारण माने जाते
हैं। शिवाजी (2007) में अपने रोल के लिए भारतीय रुपया26 करोड़ (US$3.8
मिलियन) कमाने की बाद वह एशिया में जैकी चान के बाद Jackie Chan]] सर्वाधिक
कमाने वाले अभिनेता बन गए हैं। प्रसिद्ध अभिनेता कमल हासन ने सर्वप्रथम कलाथुर
कन्नमा फिल्म में अभिनय किया। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ बाल अभिनेता का
राष्ट्रपति स्वर्ण पदक मिला। हासन ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म
पुरुस्कार ममूटी और अमिताभ बच्चन की तरह तीन बार प्राप्त किया है। 7 प्रविष्टियों
के साथ कमल हासन ने सर्वाधिक [[विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का अकादमी
पुरस्कार के लिए प्रविष्ठ भारतीय फिल्मो। विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का
अकादमी पुरस्कार के लिए भारतीय फिल्म प्रविष्टियों की सूची ]] में अभिनय किया है। तमिल
सिनेमा में संगीत और गाने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समीक्षक प्रशंसित तमिल
फिल्म संगीतकार इल्लियाराजा और ए. आर. रहमान के भारत के अलावा विदेशों में भी प्रशंसक
है।
तेलुगू सिनेमा
भारत के 10167 फिल्म थिएटर में से सर्वाधिक
2809 थिएटर आंध्र प्रदेश और तेलेंगाना राज्यों में है जहाँ तेलुगू भाषा में फिल्मो
का निर्माण होता है। 2005, 2006 और 2008 में तेलुगू सिनेमा ने 268,
245
and 286
फिल्मो के निर्माण के साथ बॉलीवुड को पीछे छोड़ते हुए भारत में सर्वाधिक फिल्मो का
निर्माण किया। गिनेस वर्ल्ड रिकॉर्ड के अनुसार विश्व का सबसे बड़ा फिल्म निर्माण
स्थल रामोजी फिल्मसिटी हैदराबाद, भारत। हैदराबाद में है। प्रसाद आईमैक्स,
हैदराबाद
विश्व का सबसे बड़ा और सबसे ज़्यादा दर्शकों वाला 3D आईमैक्स स्क्रीन
है. तेलुगू सिनेमा में मूक फिल्मो का निर्माण 1921 में रघुपथी वेंकैया नायडू और
आर. एस. प्रकाश की "भीष्म प्रतिज्ञा" के साथ शुरू हुआ। 1932 में पहली
तेलुगु टॉकीज फिल्म भक्त प्रह्लाद का निर्माण एच. एम. रेड्डी ने किया जिन्होंने
पहली दक्षिण भारतीय टॉकीज फिल्म कालिदास (1931) निर्देशित की थी।पहला तेलुगु फिल्म
स्टूडियो दुर्गा सिनेटोन 1936 में निदामरथी सुरैय्या द्वारा राजाहमुन्द्री,
आंध्र
प्रदेश में स्थापित किया गया। वुप्पलादियाम नागेयाः पद्मश्री पुरुस्कार पाने वाले
दक्षिण भारत के पहले बहुभाषी फिल्म अभिनेता , गायक , संगीत
निर्देशक, निर्माता और अभिनेता थे. वो भारत के पॉल मुनि के रूप में जाने जाते
थे। एस. वी. रंगा राव भारत के अंतर राष्ट्रीय पुरुस्कार पाने वाले पहले अभिनेताओँ
में से एक थे। उन्हें इंडोनेशियाआई फिल्म समारोह, जकार्ता (1963)
में नर्थंनसाला के लिए पुरूस्कृत किया गया था। एन. टी. रामा राव जिन्हे (एन. टी.
आर) के नाम से जाना जाता है, राजनीति में आने से पहले तेलुगु सिनेमा
के व्यावसायिक रूप से सफल अभिनेताओं में से एक थे। बी. नरसिंग राव, के.
एन. टी. सास्त्री और पट्टाभिरामा रेड्डी ने समान्तर सिनेमा में अपने पथ प्रदर्शक
काम के लिए अंतर राष्ट्रीय पहचान पाई है। अदुरथी सुब्बा राव, ने
निर्देशक के रूप में अपने कार्य के लिए कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किये।
पुरुष पार्श्वगायक के रूप में सबसे अधिक गाना गाने के लिए गिनेस रिकॉर्ड धारक एस.
पी. बालसुब्रमण्यम ने सबसे अधिक गाने तेलुगु में गाये हैं। एस. वी. रंगा राव,
एन.
टी. रामा राव, कांता राव, भानुमथी
रामकृष्णा, सावित्री, गुम्मडी और सोभन
बाबू को अभिनय के लिए राष्ट्रपति मेडल। शारदा, अर्चना, विजया
शांति, रोहिणी, नागार्जुन अक्किकेनि और पी. एल. नारायणा को National
Film Award for best performance in acting from this industry. Chiranjeevi, was
listed among "The men who changed the face of the Indian Cinema" by
IBN-live India.
तुलु सिनेमा
तुलु फिल्म उद्योग वार्षिक 2 - 3 फिल्मों के
निर्माण के साथ भारतीय सिनेमा का एक लघु उद्योग है। आमतौर पर यह फिल्मे तुलु भाषी
क्षेत्रों। तुलु नाडु और डीवीडी पर रिलीज़ होती है। 1971 में रिलीज़ हुई इन्ना
ठंगडी तुलु भाषा की पहली फिल्म थी। समीक्षकों द्वारा प्रशंसित तुलु फिल्म सुधा ने
2006 के ओशियान सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म का पुरुस्कार जीता। 2011 में रिलीज़ हुई
एच. एस. राजशेखर की ओरियाडोरी असल तुलु भाषा की सबसे सफल फिल्म है। विष्णु कुमार
की कोटी चेन्नया (1973) पहली ऐतिहासिक तुलु फिल्म है अरूर भीमाराव की करियानी
कट्टण्डी कन्दनी (1978) तुलु भाषा में पहेली रंगीन फिल्म थी. बिसाटी बाबू (1972)
राज्य सरकार द्वारा पुरुस्कृत पहली तुलु फिल्म थी. रिचर्ड कास्टेलिनो की सितम्बर
8की पूरी शूटिंग सिर्फ 24 घंटो में मंगलौर हुई जो की एक रिकॉर्ड है.
संस्कृत सिनेमा
संस्कृत सिनेमा भारत के दो प्रमुख राष्ट्रीय
चलचित्र उद्योगों में से एक है। भारतीय सिनेमा में संस्कृत सिनेमा एवं हिन्दी
सिनेमा का नाम प्रमुखता से आता है। तथा कई बार इसे " संस्कृत सिनेमा "
भी कहा जाता है। संस्कृत में अब तक लगभग 9 चलचित्र बन चुके हैं। यह भारत का सबसे सभ्य सिनेमा माना जाता है।
बहुत अच्छी जानकारी,,,,,,
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