लालकिला का निजी हाथों में सौंपा जाना निंदनीय...
इस मई दिवस की पूर्व संध्या पर आयी एक खबर ने पूरे देशवासियों को हतप्रभ कर दिया। खबर का शीर्षक था, शाहजहां का लालकिला अब डालमियां ग्रुप का हो गया। लालकिला जैसे देश के सैकड़ो वर्षों पुराने नायाब ऐतिहासिक धरोहर का इस तरह निजी हाथों को सौंपा जाना हर किसी के लिए चौकाने वाला था। लोगों की पहली सोच तो इस बात पर थी कि अब देश का स्वतंत्रता दिवस प्राइवेट प्रापर्टी की छत्रछाया में मनाया जायेगा। इतिहासकारों तथा एएसआई के लोगों के लिए भी यह अबूझ पहेली थी कि क्या अब हमारी नायाब धरोहरें प्राइवेट हाथों में चली जाएंगी, क्योंकि लालकिला के बाद विश्व में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर ताजमहल सहित अन्य स्मारकों को भी लीज पर देने के लिए सरकार की नजर बतायी जा रही है।दरअसल लालकिला को डालमिया ग्रुप को दिये जाने का निर्णय भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्व विभाग के साथ मिल कर 'अडॉप्ट अ हेरिटेज - अपनी धरोहर अपनी पहचानÓ योजना के तहत दिया गया है। इस करार में डालमिया ग्रुप को लालकिला का रख-रखाव करना है। ऊपरी तौर पर देखा जाये तो इसमें कोई बुराई नहीं दिखती, क्योंकि लालकिला जैसी ऐतिहासिक धरोहर न केवल हमारे देश के लिए गर्व की बात है, बल्कि उसका संरक्षण और रख-रखाव हमारी जिम्मेदारी भी है। सवाल भी इसी बात पर उठता है कि क्या हमारी सरकार ऐसी धरोहरों का संरक्षण करने में नाकाम हो गई है। यह दलील कि सरकार ऐसी धरोहरों को लीज पर देकर धन जुटाने का कार्य कर रही है, समझ से परे है, क्योंकि अब धरोहरें गिरवी रखकर धन जुटाने की बात किसी के गले से नीचे नहीं उतर रही है। कर उगाही में निपुण अरूण जेटली इतने भी नाकाम नहीं हैं कि लालकिला की देख-रेख का खर्च भी भारत सरकार न उठा सके।
वहीं इतिहासकारों, संरक्षणकर्ताओं और कलाकारों को सरकार के इस निर्णय से नाराजगी है। उनका विरोध सही लगता है क्योंकि सीमेंट कंपनी डालमिया भारत समूह को वास्तुकला संबंधी संरक्षण या धरोहर प्रबंधन के काम को लेकर कोई अनुभव एवं साख नहीं है। आखिर उसे किस खूबी के चलते लालकिला को २५ करोड़ की छोटी सी रकम के बदले पांच साल के लिए दे दिया गया। चिंता इस बात की है कि इस अवधि में लालकिला की हालत चाहे जैसे हो, कंपनी मालामाल हो जायेगी। बताते हैं कि इस योजना से अब डालमिया ग्रुप वहां अपने हिसाब से जनसुविधाओं के नाम पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करेगा। वह चाहे पर्यटकों के लिए शौचालय की बात हो या पीने का पानी, जनसुविधा केन्द्र हो या क्लाक रूम या अन्य सुविधाएं हर जगह डालमिया ग्रुप ही नजर आयेगा, क्योंकि इस योजना के तहत उसे अपना विज्ञापन करने की पूरी छूट होगी और उस पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा। अर्थात लालकिला अपनी जिस ऐतिहासिकता के मशहूर है, वह कहीं न कहीं छिप जायेगा और लालकिला के कदम-दर-कदम डालमिया भारत समूह के विज्ञापनों का उल्लेख ज्यादा दिखेगा।
वैसे भारत सरकार का पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग काफी समय से हमारी धरोहरों का संरक्षण करने का कार्य कर रहा है। कायदे से यह चाहिये था कि सरकार उसे ही मजबूत और आधुनिक बनाती, क्योंकि उसके पास ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने का काफी पुराना अनुभव होने के साथ विशेषज्ञों की पूरी टीम मौजूद है। यदि धरोहरों को प्राइवेट हाथों में देने का प्रयोग करना ही था तो सरकार को पहले कम महत्व के धरोहरों पर दांव लगाना चाहिये था। ऐतिहासिक लालकिले जो हमारी आजादी के प्रतीक के रूप में है, निजी हाथों में दिया जाना सर्वथा निन्दनीय है और इसकी निंदा होनी ही चाहिये।
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