Friday, May 4, 2018

Problem of Unemployment

बेरोजगारी भूख और अपराध की तरफ ले जायेगी... 


अभी चार वर्ष ही बीते हैं। 2014 का वह दौर था, हर गली-मोहल्ले में चर्चा हो रही थी कि 'अच्छे दिन आने वाले हैं। देश में प्रतिवर्ष २ करोड़ नौकरियां लोगों को मिलेंगी। देश से बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी जैसी बातें कालातीत हो जाएंगी। सपनों की यह दुनिया देशवासियों की यूं ही नहीं थी, यह सब्जबाग उन्हें दिखाया जा रहा था। तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और अबके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपनी हर सभाओं में देश की माली हालत का रोना रोकर देशवासियों से यह वादा करते नहीं थकते थे कि उनके दुख के दिन खत्म होने वाले हैं। जनता ने भी उन पर विश्वास किया और हाथोहाथ लेते हुए अर्से बाद किसी दल को पूर्ण बहुमत देकर उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया।
  इस बात का जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि श्री मोदी जी के प्रधानमंत्री बने अब चार साल पूरे हो चुके हैं और रोजगार, गरीबी, भुखमरी के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आ सका। उल्टे हालत पहले से बदतर हो चुके हैं। सबसे बुरा हाल ग्रामीण मेहनतकशों का है। गांवों में बेरोजगारी चरम पर है, वहां रोजगार के कोई भी अवसर नहीं पैदा किये गये। पिछली संप्रग-एक द्वारा शुरू किये गये रोजगार गारण्टी अधिनियम मनरेगा का हाल और भी बदतर है। नई सरकार आने के बाद उसके बजट में बड़ी तेजी से कटौती की गई है और वर्तमान सरकार का रूख भी मनरेगा के प्रति उदासीन है। गांवों में जो परंपरागत कार्य होते थे, जैसे गेहूं की कटाई, मड़ाई, धान की मड़ाई, गन्ने की बुआई आदि अब ज्यादातर मशीनों से हो रहा है। इस तरह से गांवों में रोजगार के अवसर बिल्कुल खत्म हो गये हैं। नतीजतन हमारे शहरों पर दबाव बढ़ रहा है। शहरों में रोजगार के हालत और गंभीर हैं। शहरों की चकाचौंध और जीविका के तलाश में शहर की तरफ खिचें चले आने वाले ग्रामीण बेरोजगारों के साथ शहरी बेरोजगारों की अच्छी-खासी तादातï् बढ़ गई है। मौजूदा समय में मेहनतकशों को दो तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। एक तरफ तो वे अपने घर से बेदखल हो विस्थापन की जिन्दगी जीने को मजबूर हैं तो दूसरी तरफ आधुनिकीकरण और मशीनीकरण के नाम पर उनसे रोजगार के साधन भी छीने जा रहे हैं। उद्योग जगत का मूल फण्डा कम से कम कर्मचारी के साथ ज्यादा से ज्यादा उत्पादन का हो गया है। सरकारी स्तर पर अर्से से भर्तियों पर रोक लगी हुई है। जहां कहीं कुछ एक भर्तियां निकलती हैं तो वहां 100 के मुकाबले 01 लाख अभ्यार्थियों की फौज खड़ी हो जाती है। रोजगार नीति और उसकी बदहाल स्थिति का अंदाजा इस बात से लिया जा सकता है कि एक चपरासी के पद के लिए पीएचडी और इंजीनियरिंग तक की डिग्री हासिल कर चुके बेरोजगारों के आवेदन सामान्य बात है।
  यूं तो शहरी क्षेत्रों में पांच सितारा होटल, बड़े-बड़े शापिंग मॉल, फ्लाईओवर, मैट्रो रेल, सस्ती एयरलाइंस की विकसित होती व्यवस्था की चकाचौंध में विकास तो दिख रहा है, लेकिन इसका एक बड़ा स्याह पक्ष भी उसके समानांतर तैयार हो गया है। इस विकास के नाम पर उजड़ती बस्तियां, छूटते रोजगार और बेरोजगारों की बढ़ती फौज से बहुत तेजी से आपराधिक बारदातों में तेजी से इजाफा हुआ है। यह सही भी है कि जब लोगों के पास काम नहीं होंगे और सामने आजीविका का संकट होगा तो जाहिर सी बात है कि अपराध बढ़ेंगे ही। यह हालत आने वाले समय के साथ और भी भयावह ही होगी। इस अव्यवस्था से बचने के लिए यदि सरकार की तरफ से कोई कारगर प्रयास नहीं किये गये तो देश को अराजकता के भंवर से कोई नहीं बचा पायेगा। यह बात सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिये। 
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