वाराणसी हादसे के बाद शवों का सौदा?
मंगलवार को वाराणसी में एक दर्दनाक हादसे में १८ से अधिक लोगों की जानें चली गई। एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर का एक हिस्सा अचानक गिर जाने से यह हादसा हो गया। अब कार्रवाईयों का दौर चल रहा है, लेकिन जिन लोगों की इस घटना में जान चली गई, वे अब कभी नहीं लौटेंगे। यह कोई पहली घटना नहीं है। इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं हो चुकी हैं और कईयों ने अपनी जान गंवा दी, जो बिल्कुल निर्दोष थे और फिर कभी लौटकर न आ सकने वालों की लिस्ट में आ गये।दुखद बात यह है कि देश में मुनाफाखोरी ने इस कदर पैर जमा लिये हैं कि अब उसके आगे लोगों की जान की कीमत छोटी पड़ गई है। यह फ्लाईओवर बहुत पहले बन जाना चाहिये थे, लेकिन दुव्र्यवस्था और अफ्सरशाही की काहिलियत ने इसके निर्माण कार्य को पूर्ण करने के लिए पांच-पांच बार समय बढ़ाये। यह भी तथ्य सामने आया कि जिस कंपनी को इसके निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी उसे ऐसे कार्यों का कोई ज्यादा तजुर्बा नहीं था। संसाधन भी सीमित थे। हद इस बात की थी कि संस्था ने यातायात व्यवस्था के लिए निर्माणाधीन स्थल पर किसी कर्मचारी को भी नहीं लगा रखा था।
दुर्घटना के बाद जो हुआ वह और भी मानवता को शर्मसार करने वाला रहा। हादसे में मृतकों के पोस्टमार्टम के लिए वहां के कर्मचारियों से प्रति शव तीन-तीन सौ रूपये की मांग की जा रही थी। इससे दुखद बात और क्या हो सकती है कि जिन लोगों ने असमय अपने परिजनों को खो दिया, उन्हें उनके शव तक देने के लिए सुविधाशुल्क मांगा जा रहा था। हालांकि अब यह बात अजीब नहीं लगती। भारत में शवों का सौदा होते सामान्य सी बात होती जा रही है। उड़ीसा, झारखण्ड, मध्यप्रदेश आदि राज्यों से पहले भी इस तरह के समाचार सुनने को मिले हैं कि पैसों के अभाव में लोगों को अपने परिजनों के शवों को कंधे पर लादकर ले जाने मजबूर होना पड़ा। अस्पतालों में शवों को इलाज के खर्चे न चुका पाने तक शवों को जबरिया जिन्दा रखा जाता है तथा परिजनों को नहीं दिया जाता।
भारत जैसे देश में इस तरह की घटनाएं इसके सुनहरे अतीत का एक स्याह पक्ष दर्शाती हैं। इस समय लखनऊ में जेठ के बड़े मंगल का भण्डारा चल रहा है। लाखों लोगों को भोजन कराया जा रहा है और बहुत सारे लोग इसमें स्वेच्छा से जुड़े हुए हैं। वैसे भी भारत को परोपकारियों का देश माना जाता है। प्रत्येक राज्य में लंगर, भण्डारे, स्वास्थ्य शिविर, गरीब लड़कियों के लिए विवाह आयोजन, सर्दियों में कंबल, स्वेटर वितरण, गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा आदि का कार्यक्रम बदस्तूर चलता रहता है। ऐसे में वाराणसी के मर्चरी से आने वाली सूचना मानवता को कलंकित करने वाली है। अस्पतालों और ऐसी अन्य जगहों पर धनउगाही की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए छिट पुट कार्रवाई का कोई असर नहीं पड़ता। हकीकत तो यह है कि वहां जब तक हम-आप इसके प्रति संवेदनशील नहीं रहेंगे, मानवता का गला घोंटा जाता रहेगा।
Please Add your comment
No comments:
Post a Comment
Please share your views