Wednesday, September 12, 2018

अमेरिका हमारा मित्र या मालिक?

  अभी हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच 2+2 वार्ता सम्पन्न हुई और उसके बाद अमेरिका ने हमें अवैध ड्रग्स तस्कर देशों की सूची में डाल दिया। इस सूची में एशिया के चार देश है, जिनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार हमारे अलावा हैं। इन देशों के साथ हमारा नाम आना हमारे लिए शर्म की बात है, क्योंकि अन्य देश तो ड्रग तस्कर के रूप में मशहूर हैं, परन्तु हम लोग हमेशा ड्रग तस्करी के विरूद्घ सख्त कदम उठाते रहें हैं। हजरत इशा को जब सलीब पर चढ़ाया गया तो उन्हें और जलील करने के लिए उनके साथ हाकिमों ने दो चोरों को भी सलीब पर चढ़ाया। हमारे साथ इस बार अमेरिका ने इन देशों की सूची में डालकर कुछ ऐसा ही किया है।
  अमेरिका के इस कदम से अब पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि आपसी रिश्तों में हमारी जगह कहां है? एक नजर में लगता है कि भारत-अमेरिका और करीब आए हैं, पर दूसरे सिरे से देखने पर लगता है कि अमेरिकी दबाव हमारे ऊपर बढ़ता जा रहा है और यह रिश्ता एकतरफा रूप ले चुका है। ऐसा लगता है कि इन रिश्तों की बुनियाद का संचालन केवल अमेरिका की तरफ से ही हो रहा है।
२+२ वार्ता में भारत के लिए दो सबसे अहम मुद्दे थे- ईरान से हमारा तेल आयात और रूस के साथ हमारा रक्षा सहयोग। इनमें से किसी भी मुद्दे पर कोई संतोषजनक नतीजा नहीं निकला। इस दौरान भारत और अमेरिका के बीच कॉमकासा समझौते (कम्युनिकेशंस, कॉम्पैटिबिलिटी ऐंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) पर दस्तखत जरूर हुए। इसके तहत भारत अमेरिका से अति-आधुनिक रक्षा तकनीक प्राप्त कर सकेगा। हालांकि यह समझौता किस मुकाम पर पहुंचेगा, अभी स्पष्टï रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि अमेरिका में रूख में आश्चर्यजनक रूप से बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
 हालांकि अमेरिका के साथ इस दिखाऊं जुगलबंदी से हमारे मित्र राष्टï्र रूस और पड़ोसी चीन आपस में एकजुट हो चुके है। अभी हाल ही रूस के पूर्वी छोर पर स्थित व्लादिवास्तक शहर में दोनों देशों के राष्टï्रपतियों के बीच वार्ता के बाद अर्थव्यवस्था और रक्षा मुद्दे पर एक-दूसरे के साथ साझा रूप से खड़े रहने के समझौते हुए हैं। यह भारत और चीन के बीच भविष्य में कभी विपरीत परिस्थिति आने पर भारत के लिए ही नुकसानदेह साबित होगी।
 अमेरिकी संसद ने एक ऐसा कानून बनाया है, जिसके मुताबिक किसी भी देश को उसके प्रतिद्वंद्वी से हथियार खरीदने पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। भारत को रूस के साथ रक्षा सौदों में रियायत दी गई है, लेकिन यह सशर्त है और एक तय अवधि तक सीमित है। अमेरिका से हथियार खरीदने की मुश्किल यह है कि उसमें कई शर्तें शामिल होती हैं। जैसे यह कि उसके मित्र देशों के खिलाफ इन हथियारों का प्रयोग उससे पूछे बगैर न किया जाए। यानी हम पाकिस्तान पर ये हथियार नहीं चला सकते, क्योंकि वह आज भी अमेरिका का मित्र देश है। यही नहीं, अमेरिका भारत को ज्यादा से ज्यादा कच्चा तेल और गैस भी बेचना चाहता है। उसका कहना है कि ईरान के बजाय हम सऊदी अरब और उसके खेमे के देशों से और ज्यादा कच्चे तेल खरीदारी करें। जबकि यह भी हमारे लिए घाटे का सौदा है। ईरान हमें भारतीय रूपये के बदले सस्ते कच्चे तेल उपलब्ध कराता है, जबकि अन्य देश हमें डालर के बदले महंगे कच्चे तेल उपलब्ध कराते हैं।
अमेरिका ने 2+2 वार्ता में दो टूक कहा कि भारत 4 नवंबर तक ईरान से तेल की खरीदारी घटाकर शून्य पर ला दे। अमेरिका यह आश्वासन भी देता है कि वह हमारी अर्थव्यवस्था को कमजोर होते नहीं देखना चाहता, लेकिन यह कैसी मित्रता है कि वह हमें चारों तरफ से घेरकर खुद पर या अपने खेमे पर ही निर्भर बना देना चाहता है? वह जिससे कहे, हम उसी से दोस्ती रखें, यह तो दोस्ताना नहीं हुआ। भारत ने शुरू से कहा है कि वह अमेरिका या किसी भी देश के साथ बराबरी का संबंध रखेगा, जैसा दो संप्रभुतर सम्पन्न देशों के बीच होता है। अमेरिका से रिश्ते बिगाडऩा कोई नहीं चाहेगा, लेकिन उसकी रोज-रोज बदलती नीतियों से तालमेल बिठाने में हम अपना कितना नुकसान बर्दाश्त कर सकते हैं, ऐसी कोई लकीर तो हमें देर-सबेर खींचनी ही होगी।

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