Sunday, September 2, 2018

Public relations in an organization in Hindi

संगठन के स्तर पर जनसंपर्क

सार्वजनिक क्षेत्र या निजी, सहकारी या औद्योगिक प्रतिष्ठान सभी जगहों में जनसंपर्क दो उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
1. जनता के प्रमुख व विशिष्ट व्यक्तियों से संपर्क स्थापित करने तथा उनकी सहमति पाकर पारस्पिक सहयोग बढ़ाने के लिए किया जाता है।
2. उद्योग की सेवाओं एवं उत्पादन में वृद्धि करना, बिक्री में वृद्धि करके प्रतिष्ठा स्थापित करना तथा प्रतिष्पधाओं के बीच सफलता प्राप्त करना।
इन दोनों को प्राप्त करने के लिए अच्छे जनसंपर्क की व्यवस्था की जरूरत होती है। इसके अभाव में उद्योग अपनी प्रतिष्टा और साख नहीं बनाए रख पाते हैं, जिसके कारण उनका व्यवसाय प्रभावित होता है।
आज के समय में जनसंपर्क द्वारा जनसंचार माध्यमों को अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से प्रयुक्त किया जा सकता है। इसलिए आज सभी उद्योग तथा व्यावसायिक घरानों में जनसंपर्क विभाग का गठन किया जा रहा है। यह विभाग उस समूह के लिए -
1. प्रेस से संपर्क करता है।
2. कर्मचारियों से सौहार्द पूर्ण संपर्क स्थापना में सहायक होता है।
3. मजदूरों से अच्छे संबंध बनाने का काम करता है।
4. अपने उपभोक्ताओं से संपर्क स्थापित कर उनके मनमुताबिक उत्पादन करवाने में सहायक होता है।
इन सबके बगैर उद्योग समूहों को अपने उत्पादन की खपत के लिए समुचित बाजार का मिल पाना सम्भव नहीं होता। यही विभाग प्रचार-प्रसार की विभिन्न योजनाएं भी बनाता है। इसके लिए वह बाजार का सर्वे करता है डीलर्स से संपर्क स्थापित करता है। और अपनी योजना की पूर्ति के लिए सरकारी विभागों से संपर्क स्थापित करता है।
इन सबके बगैर उद्योग समूहों को अपने उत्पाद की खपत के लिए समूचित बाजार का मिल पाना सम्भव नहीं होता। यही विभाग प्रचार-प्रसार की विभिन्न योजनाएं भी बनाता है। इसके लिए वह बाजार का सर्वे करता है डीलर्स से संपर्क स्थापित करता है और अपनी योजना की पूर्ति के लिए सरकारी विभागों से संपर्क स्थापित करता है।

सार्वजनिक, निजी तथा सहकारी उद्योग में अंतर

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सामान्यतः राजकीय संरक्षण व नियंत्रण प्राप्त होता है।
निजी क्षेत्र के उद्योग अपने प्रबंधन मंडल की निजी सीमा से नियंत्रित होते है।
सहकारी क्षेत्र के उद्योगोें में उपभोक्ता से लेकर कर्मचारी तक उद्योग के अंशधारी होते हैं। यह सभी सदस्यों की मिली-जुली नियंत्रण व्यवस्था पर निर्भर होते हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र 

जैसे तेल की खोज पेट्रोल की सफाई, इस्पात, जहाज निर्माण, मशीनों का निर्माण इलेक्टॉनिक, सीमेंट, टेलीफोन तांबा आदि सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं -
सरकारी परिसम्पतियों के आधार पर पांच उपक्रम महत्वपूर्ण है -
1. स्टील ऑथारिटीऑफ इंडिया
2. भारतीय खाद्य निगम
3. तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग
4. कोल इंडिया
5. इंडियन आयल कार्पोरेशन

निजी क्षेत्र - 

स्वतंत्रता के बाद निजी उद्योगों के विकास पर बल दिया गया। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी आवश्यकता सिद्ध है।
इन निजी क्षेत्र के उद्योगों में भागीदार, अंशधारी, स्टाक होल्डर्स, एजेंट्स डीलर्स तथा दुकानदार आदि सभी शामिल है। इन उद्योगों का बनाए रखने के लिए अपने को बनाए रखने के लिए अनेक प्रतिस्पर्धाओं तथा प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता है। इसलिए इनके लिए अच्छे संपर्क की आवश्यकता होती है।

सहकारिता क्षेत्र -

सन् 1957 के बाद एक अन्य क्षेत्र की प्रतिस्थापना हुई, जिसे ‘सहकारिता क्षेत्र’ कहा गया। इसका उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र की अनुत्पादकता वितरण की अकार्य कुशलता तथा उत्पाद पर लागत से अधिक व्यवस्थापन व्यय से मुक्ति पाना था। 

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