लोकसभा चुनाव 2019 के लिए राजनीतिक पार्टियां पूरी तैयारी कर रही हैं। आम चुनाव का बिगुल बजने से पहले महागठबंधन ने हुंकार भर दी है। क्रिकेट की भाषा में कहें तो महागठबंधन की टीम में शामिल हर एक खिलाड़ी ने अपनी विपक्षी टीम भाजपा को हारने के लिए वॉर्मअप शुरू कर दिया है। महागठबंधन के मंच पर 22 पार्टियों के नेताओं का साथ आना अपने आप में ऐतिहासिक है। इनमें 90 फीसदी क्षेत्रीय दल है, जो अपने- अपने राज्य में खासा प्रभाव रखते हैं। विपक्षी दलों द्वारा कोलाकाता में हुई इस रैली के बहुत मायने नजर आ रहे हैं। यह भविष्य बतायेगा कि गठबंधन कितना टिकाऊं होगा, लेकिन एक बात तो तय है कि लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए सभी दलों की एकता चुनाव तक तो बरकरार ही रहेगी। इससे पहले कर्नाटक से भी यह संदेश मिल चुका है। अभी हाल ही में सपा और बसपा के बीच उत्तर प्रदेश में हुए गठबंधन से वैसे ही भाजपा के पेशानी पर बल देखने को मिल रहे हैं। अब जबकि सपा-बसपा समेंत तृणमूल प्रमुख ममता के बुलावे पर १३ विपक्षी पार्टियों द्वारा एक साथ मंच साझा किया गया तो आने वाले समय के चुनाव की तस्वीर भी कुछ कुछ स्पष्टï होने लगी है।
ममता के मंच पर 11 राज्यों के 13 क्षेत्रीय पार्टियां ऐसी थी, जिनके राज्यों से 343 लोकसभा सीटें आती हैं। तेरह में से 11 क्षेत्रीय दल 10 राज्यों में सरकार तक बना चुके हैं। ब्रिगेड परेड मैदान में संयुक्त भारत नाम की इस रैली में आठ पूर्व और चार वर्तमान मुख्यमंत्री मौजूद रहे। ऐसे में इन सभी पार्टियों का साथ आना भाजपा के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकता है।
अब चुनाव में कुछ हफ्ते ही बाकी हैं। पांच साल पहले के माहौल से अगर तुलना की जाए तो मामला बहुत ठंडा लगेगा। जब 2014 की मोदी लहर का चुनाव अभियान शुरू हुआ था तो ज्यादातर इलाकों में मोदी-मोदी के नारे लगना शुरू हो गए थे। अन्ना हजारे के आन्दोलन के बाद कांग्रेस पार्टी को भ्रष्टाचार के पर्यायवाची के रूप में स्थापित करने में पूरी सफलता मिल चुकी थी। नरेंद्र मोदी को मीडिया के सहयोग से एकमात्र विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया था। भ्रष्टाचार मुक्त शासन, प्रति वर्ष दो करोड़ नौकरियां और गुजरात मॉडल का विकास चुनाव का संचारी भाव बन चुका था और नरेंद्र मोदी एक हीरो के रूप में उभर रहे थे। उनकी बात पर विश्वास किया जा रहा था। जब उन्होंने कहा कि किसानों की आमदनी को दुगुना कर दिया जाएगा तो लोगों ने उनका विश्वास किया था। दो करोड़ नौकरियां प्रतिवर्ष का वादा ऐसा था जिसने ग्रामीण भारत के नौजवानों में एकदम करेंट जैसा लगा दिया था। सभी बेरोजगार लड़के नरेंद्र मोदी के ब्रैंड एम्बेसडर बन चुके थे। मोदी लहर चारों तरफ देखी जा रही थी। जब चुनाव हुआ तो केंद्र की सत्ता पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी सुनिश्चित की जा चुकी थी। दिल्ली की सत्ता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत के कारणों में हिंदी क्षेत्रों में उनकी जीत सबसे महत्वपूर्ण थी। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में उनकी जीत ने प्रधानमंत्री पद के लिए उनका रास्ता साफ कर दिया था। 2014 में आई मोदी लहर का फायदा बीजेपी को बाद में हुए विधानसभा चुनावों में भी मिला और पार्टी का कांग्रेसमुक्त भारत का सपना एक सच्चाई का रूप लेने लगा। लेकिन बाद में मोदी के वायदों पर सवाल उठने लगे। भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामले सामने आने लगे। राहुल गांधी जो 2014 के चुनाव के पहले एक शर्मीले नौजवान के रूप में देखे जाते थे, इस बार वे राफेल मुद्दे को उठाकर बोफोर्स जैसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आज का माहौल देखने से साफ लगने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम बैकफुट पर है। हर साल दो करोड़ नौकरियां, किसानों की दुगुनी आमदनी और अच्छे दिन की बातें अब बीजेपी के नेताओं को अच्छी नहीं लग रही हैं, परन्तु चुनाव मैदान वे इन बातों से मुंह नहीं छिपा पाएंगे।
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