Wednesday, January 9, 2019

जेलों में मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी जायज

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का हाल हमेशा सवालों के घेरे में रहती है। हर बार चुनावों में अपराधों पर लगाम लगाने के वादे किये जाते हैं। वर्तमान भाजपा सरकार ने भी इसी तरह के वादे किये थे। उसने सत्ता में आते ही एन्टी रोमियो स्क्वायड, एन्टी भूमाफिया सेल, यूपीकोका जैसे कानून बना डाले, फिर भी नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही है। इस समय वहां अपराध पनप रहा है, जहां वर्दी की निगहबानी 24 घंटे बनी रहती है। यूपी के जेलें असुरक्षित होती जा रही है। जेल जहां लोग अपने गुनाहों की सजा पाकर अपनी नई जिन्दगी शुरू करने के दिन गिनते हैं, उनके लिए अब बुरे दिन आते जा रहे हैं। जेलों में अपराधियों की मनमानी चरम पर है। अभी पिछले कुछ महीने पहले मेरठ की जेल में एक अपराधी की हत्या कर दी गई। चूंकि जेल में एक ईनामी अपराधी की हत्या, दूसरे अपराधी ने की थी। इस कारण बात आयी गई हो गई थी, लेकिन अब नया मामला बाहुबली अतीक अहमद से जुड़ा है। उसके द्वारा इससे पहले देवरिया की जेल में अन्य कैदियों को प्रताडऩा गृह बन गया था। यूपी की जेलों में बढ़ रही कैदियों की मनमानियों के चलते जेल प्रशासन तो सवालों के घेरे में रहा ही है, लेकिन इस बार तो सुप्रीम कोर्ट में जेल अधिकारियों ने सरकार की किरकिरी करा दी है। अतीक अहमद की बढ़ती गुंडई को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ख़ासा नाराज है। इस मामले में सरकार से दो हफ्ते में रिपोर्ट तलब की गयी है। जेल में भी अतीक अहमद के गुर्गों का आतंक के मामले में जेल विभाग के आलाधिकारियों की वजह से सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार की भद्द पिट गयी है। दरअसल बाहुबली अतीक अहमद के गुर्गों द्वारा व्यापारी का अपहरण और जेल में यातनाएं देने के मामले में सुप्रीम बेहद नाराज़ है। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते में रिपोर्ट तलब की है। अब सवाल उठता है कि जेलों में बढ़ती जा रही कैदियों की मनमानी का जिम्मेदार कौन है? अगर जेल प्रशासन को यह जिम्मेदारी दी गयी है कि उन्हें जेल की सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रखना है और भी इसमें चूक सामने आ रही है तो आखिर क्यों इन अफसरों पर कार्रवाई नहीं हो रही? आखिर क्यों प्रशासन जेल के अधिकारियों को बचाने की जुगत में लगा हुआ है। क्या वजह है कि मुन्ना बजरंगी हत्याकांड, रायबरेली जेल का वीडियो वायरल होने और अतीक अहमद के गुर्गों द्वारा की गयी व्यवसायी की पिटाई के बाद भी अफसरों का बाल भी बांका नहीं हुआ। अगर हाल ही की बात करें तो कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिनकी वजह से जेलों की सुरक्षा पर सवाल उठे हैं। जब भी कुछ गलत होता है तो जेलर, डिप्टी जेलर पर तो कार्रवाई हो जाती है, लेकिन बड़े स्तर के अफसर, जिनकी ढिलाई की वजह से होती है वो बच जाते हैं। शायद यही वजह है कि अब सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में बोलना पड़ रहा है।
 वैसे जेलों में अपराधियों का साम्राज्य रहना कोई नई बात नहीं है। अब से पहले भी जितनी बार भी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा छापे मारे गये, बड़ी मात्रा में मोबाईल समेंत अवैध सामग्रियां बरामद होती है। शायद कोई ऐसी जेल हो, जहां औचक निरीक्षण में कोई न कोई अवैध सामग्री नहीं मिले। हर बार चेतावनी देकर जिम्मेदारों को छोड़ दिया जाता है। कभी कभार छोटे अधिकारियों पर कार्रवाई भी करके दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है। जब तक जेल में पनप रहे अपराधों की जड़ में कार्रवाई नहीं की जाती है, तब तक इस तरह के अपराध होते रहेंगे। उनके इस कार्य में जेल के अधिकारियो और कर्मचारियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। जेलों के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि जब अपराधियों को बाहर भय लगने लगता है तो वे किसी न किसी मामले में आरोपी बनकर जेलों में अपनी पनाहगाह बना लेते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए बेहतर ऐक्शन प्लान बनाने की जरूरत है। 

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