Thursday, February 7, 2019

एनआरसी के मुद्दे पर उलझी केन्द्रीय सरकार...

  असम में एनआरसी के मुद्दे को लेकर केन्द्रीय सरकार अपने ही बनाये जाल में उलझ गई है। इससे उबरने के लिए उसने सुप्रीम कोर्ट से राहत की मांग की तो वहां भी उसे निराशा हाथ लगी।
सच्चाई तो यह है कि एनआरसी प्रक्रिया में साढ़े सैतीस लाख लोग घर से बेघर हो जाएंगे। इतनी बड़ी संख्या में लोग कहां जाएंगे। इसे लेकर कानून व्यवस्था पहले ही खराब हो रखी है। इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी निश्चित रूप से पडऩे वाला है। इससे सरकार अब अदालत की आड़ लेकर पीछे हटना चाह रही थी, लेकिन यहां मामला उल्टा पड़ गया है।
असम में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण यानी एनआरसी के काम को रोकने संबंधी केंद्र सरकार की अपील को सर्वोच्च न्यायालय ने ठुकरा दिया है। उसने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी हाल में एनआरसी की तिथि जुलाई से आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। आम चुनावों के मद्देनजर केंद्रीय गृहमंत्रालय ने मांग की थी कि चूंकि चुनाव के दौरान केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल व्यस्त रहेगा, इसलिए एनआरसी का काम दो हफ्ते के लिए टाल दिया जाए।
दरअसल, एनआरसी को लेकर असम में शुरू से ही विवाद चल रहा है। सरकार का मानना है कि असम में बड़ी तादाद में विदेशी घुसपैठिए आकर बस चुके हैं। उनकी पहचान करना जरूरी है। घुसपैठ कर आए लोगों के जरिए आतंकवादी संगठन देश की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देते हैं। इसलिए पिछली जुलाई में असम में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसके तहत जो पहली सूची आई, उसमें करीब चालीस लाख लोगों के नाम नहीं थे। उनमें से साढ़े सैंतीस लाख लोगों के नाम पूरी तरह खारिज किए जा चुके हैं, जबकि ढाई लाख लोगों के नाम विचाराधीन सूची में हैं। इसे लेकर वहां लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
बहुत सारे लोगों का कहना है कि वे अपनी नागरिकता संबंधी प्रमाण-पत्र बनवाने को लेकर सजग नहीं थे, जबकि वे पीढिय़ों से वहां रह रहे हैं। फिर सरकार के पास खुद ऐसा कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है, जिससे बाहर से आकर बसे लोगों की वास्तविक संख्या का पता चलता हो। अलग-अलग बयानों में वहां की सरकार विरोधाभासी आंकड़े बता चुकी है। यह इसलिए हुआ कि सरकार ने पहले बाहर से आए लोगों के बारे में जानकारी नहीं जुटाई, उसने सीधा पंजीकरण का काम शुरू कर दिया। ऐसे में बहुत सारे ऐसे लोगों के नाम सूची से बाहर हो गए, जिनके पास किसी वजह से कोई प्रमाण-पत्र नहीं था। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग आमतौर पर जन्म और मृत्यु प्रमाण-पत्र जैसे कागजात रखने, अपनी पहचान संबंधी दस्तावेज संजोने के मामले में लापरवाह देखे जाते हैं। कुछ गड़बडिय़ां ग्रामीण प्रशासन के स्तर पर भी होती हैं, जिसके चलते बहुत सारे लोगों के पास उनकी नागरिकता प्रमाणित करने वाले कागजात नहीं होते। इसलिए राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण में ऐसे लोगों की पहचान संदिग्ध हो गई है।
ऐसे में जहां इतनी बड़ी संख्या में लोगों के अपनी जगह-जमीन से उजडऩे और किसी पराए देश में जाकर शरण पाने की यातना झेलने का संकट हो, उस काम में देरी करना उचित नहीं जान पड़ता। इस काम को जितनी जल्दी और जितनी पारदर्शिता से हो सके, निपटाने की कोशिश होनी चाहिए। चुनाव के नाम पर नागरिकता की पहचान को टालना ठीक नहीं है। चुनाव प्रक्रिया को संपन्न कराने के लिए दूसरे सुरक्षा बलों की भी मदद ली जा सकती है, बाहर से सेना की टुकडिय़ां बुलाई जा सकती हैं। ऐसा अनेक बार होता भी है। इसलिए एनआरसी के काम को रोकने पर सर्वोच्च न्यायालय की आपत्ति उचित कही जा सकती है।

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