- निकाह और तलाक के बारे में फैली विभिन्न भ्रांतियों तथा उन्हें दूर करने के लिए की गयी चर्चा
- ‘‘निकाह पति-पत्नी के बीच संबंधों की स्थायी और टिकाऊं बुनियाद है’’
- ‘‘तलाक पति-पत्नी को अलग करने से पहले कई मौके देता हैं सबंधों को जोड़ने के लिए’’
जमाल अहमदलखनऊ। आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड की तफीम-ए-शरीयत कमेटी द्वारा लखनऊ के दारूल उलूम फिरंगी महल में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय ‘‘निकाह और तलाक के बारे में फैली भ्रांतियां" थी।
सेमिनार में निकाह और तलाक के बारे में धीरे-धीरे प्रचलित होती जा रही गलत धारणाओं एवं भ्रांतियों पर चर्चा की गई तथा इस बदली हुई परिस्थतियों में इन विषयों के प्रति लोगों की गलत धारणाओं को बदलने की रणनीतियों पर वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। सेमिनार को खिताब करने वालों में मुख्य रूप से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेंटी के संयोजक एवं प्रसिद्ध एडवोकेट जफरयाब जिलानी, इस्लामिक स्कालर एवं ईमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, जापान के मुस्लिम नदवा के चेयरमैन सालिमुर रहमान आदि थे।
बैठक में एकमत से भारतीय मुसलमानों से उम्मीद की गई कि वे तलाक के लिए शरीयत ए इस्लामी पर अमल करने को यकीनी बनाएंगे। विद्वानों ने कहा कि इस्लामी शरीयत की नजर में निकाह एक स्थायी और टिकाऊं संबंध होता है, ऐसा कभी-कभी ही होता है जब पति और पत्नी के बीच तनाव इस कदर बढ़ जाते हैं कि आपस में मिलकर साथ रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसी दशा में एक-दूसरे से अलग होना ही वाजिब और लाभप्रद होता है। इसके लिए इस्लामी शरीयत ने तलाक का तरीका दिया है, परन्तु यह तरीका पति-पत्नी को अलग करने से पूर्व उन्हें जोड़ने के लिए हर संभव प्रयत्न भी करता है। तलाक एकतरफा भी नहीं होता है। यदि पत्नी अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो वह भी ‘‘खुला’’ के द्वारा रिश्तों को तोड़ सकती है।
सेमिनार में तलाक के तरीकों पर विस्तृत चर्चा की गई तथा इस मामलें में फैली विभिन्न भ्रांतियों को दूर करने के लिए सुझाव भी प्रस्तुत किये गये।
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