Saturday, March 23, 2019

...हम जाके होली काश्मीर में मनाएंगे

  • लखीमपुर में होली मिलन व काव्य संध्या कार्यक्रम का हुआ आयोजन

बिपिन मिश्र 
लखीमपुर-खीरी। मोहम्मदी में साहित्यिक संस्था ‘प्रज्ञालोक’ के तत्वावधान में होली मिलन काव्य-समारोह का आयोजन निश्छल-निकुंज मोहल्ला इस्लामाबाद में किया गया। सभाध्यक्षता रामअवतार शुक्ल ने तथा संचालन सुखदेव मिश्र ने किया। राघव शुक्ल की वाणी वन्दना के पश्चात सभी ने एक-दूसरे को होली की बधाई व शुभकामनाएं दीं। अपनी कविताओं के माध्यम से कार्यक्रम को रंगारंग बनाने वाले कवि राजबहादुर पांडेय निर्भीक ने कहा-देख भरी पिचकारी गाल मत पिचकारी, लेकर रंग-अबीर आंख मत मिचका री। प्रमोद त्रिवेदी ने सचेत किया कि बड़ी रंगीन दुनियां है सम्हल कर चल मेरे भाई, यहां हर दो कदम पर है बड़ी गहरी खुदी खाई। हजारों लोग इसमें डूब कर जीवन गवां बैठे, बढ़ा जो खोल कर आंखें उसी ने पार कर पाई। सुखदेव मिश्रा ने पूरे वर्ष प्रेम का व्यवहार करने का संदेश दिया कि प्रेम रंग भर चित्त में करिए मृदु व्यवहार, प्रतिदिन ऐसा ही मने होली का त्योहार। राकेश मिश्र ने कहा कि होली आयी होली आयी, होली आयी है, पूजा की थाली में कुमकुम रोली आयी है। राजकिशोर मिश्र ने नव कुंडलिनी के माध्यम से होली का दृश्य कुछ यूं प्रस्तुत किया कि होली के त्यौहार पर, है मर्यादित छूट। मस्ती गुझियों में भरी, लूट सके तो लूट। राघव शुक्ल ने बताया कि कान्हा का सांवला रँग कैसे बना कि थोड़ी सी छाया कदम्ब की शीतल कुंज समीर, पीला चन्दन धूप गुलाबी यमुना जी का नीर, केसर कस्तूरी राधा ने मिला दिए सब रंग, कान्हा कान्हा बोल उठा है बना सांवरा रंग। रवींद्र रस्तोगी ने सामाजिक समरसता की बात कुछ इस ढँग से की कि हम जब भी बात करते हैं चमन की बात करते हैं, न हिन्दू की न मुस्लिम की अमन की बात करते हैं। मेरे अशफाक बिस्मिल हैं मेरा प्यारा तिरंगा है, लहू देते हैं सरहद पर वतन की बात करते हैं।’ यंग्य रचनाकार आराध्य त्रिपाठी ने छन्द के माध्यम से नेताओं को कुछ यूं रंगा कि होली की खुशी में एक दूसरे से गले मिल, सारे दल आज गिले-शिकवे भुलाएंगे। आप सब यहां एक दूसरे से खेलो रंग, हम जाके होली काश्मीर में मनाएंगे। शान्तनु त्रिवेदी ने कहा कि इसके हाथ में क्या है छीनो, गरीब का बच्चा किताब रखता है। कमलेश शुक्ल कमल ने इन पंक्तियों से सन्देश दिया कि देश की बात आये तो कुछ मत कहो देशभक्ति में तन-मन को रंग लीजिए। आनन्द त्रिपाठी ने छन्द पढ़ कर श्रोताओं को खूब हँसाया कि होली का त्यौहार खास इनके लिए ही बना, ऊपर से नीचे तक पूरे ये नवाबी हैं। सिर पे लगा के हैट चले सीना तान के तो, देखने में सब को ये लगते रुआबी हैं। चार पैग पी के खुल जाता ब्रह्म ज्ञान कोष, दूसरों की बीवियां भी लगती गुलाबी हैं। शिकवे भुला के बड़े प्यार से लगाते गले, सच्चे प्यार से मनाते होली ये शराबी हैं। रामप्रकाश भारद्वाज सरस ने कहा कि अन्तरप्रेरणा मिलती सभी को जुर्म करने पर, बढाते ही कदम आगे सदा वो डगमगाएंगे। आकाश त्रिपाठी ने मंहगाई और गरीबी का चित्रण अपने छन्द के माध्यम से इस प्रकार किया कि होरी का देखि के देह जरइ, सखि का से कहौं अब हाल जिया को। श्रीकान्त निश्छल ने देश की राजनीतिक स्थिति के सम्बन्ध में अपने मुक्तकों के माध्यम से कहा कि सोच बदलने लगी देश में, हुआ बड़ा परिवर्तन, आज विधर्मी भी मन्दिर में, करते पूजा-अर्चन। चौकीदार सतर्क खड़ा है, लिए न्याय का डण्डाय सारे भ्रष्टाचारी मिल अब, मचा रहे हैं क्रन्दन। अन्त मे सभाध्यक्ष रामावतार शुक्ल सगुण ने अपनी इन पंक्तियों से होली के रंग बिखेर कर सबको सराबोर कर दिया कि केउ हाथ गुलाल लिए फिरते, केउ मारत हैं तकि के पिचकारी। केउ भंग की गोली जमाये फिरैं, केउ नाचत ढोल बजाइ के तारी। कहुँ मारग रोकि रहीं जुबती, अरु माँगें खड़ी फगुआ कहुँ नारी। कहुँ घूमें पियक्कड़ बोतल लै, एक सांस में देत हजारन गारी। आकाश आनन्द आराध्य शक्तिम और मधुरिम ने सभी आगन्तुकों का स्वागत सत्कार किया, और लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ने सभी को धन्यवाद दिया।

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