- जरूरतमंदों के नहीं बन रहे जाॅबकार्ड, अधिकतर अपात्रों के नाम हैं शामिल
- बगैर काम के मस्टररोल तैयार कर करा लिया जाता है भुगतान
बिपिन मिश्र लखीमपुर-खीरी। विकास खंड रमियाबेहड़ में भ्रष्टाचार का वायरस इस कदर फैला है कि शासन की योजनाएं वेंटिलेटर पर आ गई हैं। प्रधानमंत्री आवास में हो रहे घपले-घोटालांे में जहां गरीबों के हक पर डाका पड़ा है। वहीं प्रधान, ग्राम पंचायत अधिकारी व बीडीओ की तिकड़ी मलाई काटने में लगे हैं। कमोवेश यही स्थिति मनरेगा योजना की भी है। यहां जाबकार्डधारक का काम केवल मस्टररोल तक सीमित है। जरूरतमंद आज भी गांव छोड़कर रोजी तलाशने जाने को मजबूर हैं।
रमियाबेहड़ ब्लाक की ग्राम पंचायत सेमरी। इस सेमरी में विकास कहीं भी टिकता नजर नहीं आता। प्रधानमंत्री आवास तो तिजोरी भरने का जरिया बने ही हैं। साथ ही मनरेगा योजना के जरिए भी मोटी रकम हाथ में आ रही है। ग्राम पंचायत के अधिकतर युवक बेरोजगार हैं। अधिकतर परिवार या तो भूमिहीन हैं या उनके पास इतनी भी जमीन नहीं कि वह दो जून की रोटी जुटा सकें। लिहाजा इन परिवारों के युवकों को दूसरों के खेतों में मजदूरी करने से लेकर घर-गांव छोड़कर बड़े शहरों में या आस-पास के राज्यों में काम तलाशने जाने को मजबूर होना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि प्रधान व सिक्रेट्री ने मनरेगा योजना में भी अधिकतर अपात्रों को ही जोड़ रखा है। इनके खाते भी सांठ-गांठ वाली बैंकों में खुलवाए गए हैं। ग्राम पंचायत सेवक के जरिए मनरेगा मजदूरों द्वारा फर्जी काम दिखाकर पैसा पास करा लिया जाता है। अपात्रों को थोड़ी रकम का लालच देकर उनके खाते में आया पूरा पैसा निकालकर प्रधान, सिक्रेट्री व बीडीओ आपस में बांट लेते हैं।
कई जरूरतमंद ग्रामीणों ने कहा कि उनके कागज ग्राम प्रधान के पास जमा है। पर अभी तक उनका जाब कार्ड नहीं बनाया गया है। यदि मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो इसमें पता चलेगा कि कितना गड़बड़ घोटाला है। आरोप है कि प्रधान व सिक्रेट्री की खाऊ-कमाऊ नीति के चलते गांव के बेरोजगारों को गांव में रोजगार के अवसर होने के बावजूद शहरों में जाकर काम ढूंढने को मजबूर होना पड़ रहा है।
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