Saturday, August 29, 2020

बहुत याद आता है, वो गांवों का रहना , वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना " सजल "

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मित्रो, 

हमारे देश की आत्मा गावों में बसती है, 

हम चाहे जितना पढ़ लिख कर, ढेर सारा 

पैसा कमा कर, ऊँचे ऊँचे भवन बना कर 

शहर में सारे एसो आराम के साथ भले ही 

जीवन ब्यतीत कर रहें हों मगर वो गावों में 

में गुजरे हुए बचपन के दिन कहीं न कहीं 

हमारे दिल में मन में याद आते रहते हैँ l

उन्ही यादों पर एक कविता लिखने का 

प्रयास कर रहा हूँ :


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बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


ये वारिस की बूंदों का, रिमझिम बरसना, 

वो कोयल के गीतों की धुन पर थिरकना I

वो पपीहे की बोली पे,  दिल का धड़कना,    

वो सूरज का वारिद में छिपना निकलना I


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो सूरज  की गर्मी से तन का यूँ तपना,

वो ओंठो पे पानी की  बूंदों का पड़ना I

वो पशुओं का तालो के जल में मचलना, 

खेतों की फसलों को पशुओं  का चरना I  


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो गांवों की गलियों में किचकिच का होना,

वो मेढक की टर-टर का पग पग पे होना I     

वो हवाओं के झोंके से तन मन  सिहरना, 

वो बखरी के छत पर से छप्पर सरकना  I  


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो रातों में खटिया के खटमल का कटना, 

वो पाती के छपरों से  बूंदों का टपकना I  

वो रातों में बिस्तर पर करवट  बदलना, 

वो  रातों में जग जग के ही  रात कटना I


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो खेतों के मेड़ों पे बच बच के चलना,

वो गड्ढो में पैरों का हर पल फिसलना I

वो हांथो में लाठी को संग ले निकलना 

वो पानी से बच कर किनारे निकलना I   


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो बाग़ों में पेड़ों  पर  चढ़ना फिसलना,

वो डालों के बीचों  में जाकर लटकना I    

वो पंक्षी के झुंडो को छुप कर पकड़ना,   

वो जामुन के बीजों का पूरा निगलना I 


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो छतरी को, बाजार लेकर निकलना,

वो चप्पलों हवाई पहन कर निकलना I   

वो बदरी लपकती, हवाओं का बहना,

वो खंती या नाले से बच कर निकलना I   


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो  मैय्या का आँगन मेंi सजना सवरना,

वो उलझे से बालों  में कंघी  झटकना I 

वो टूटे से  दर्पण में खुद को निहारना,

वो पीछे से बहना का उनसे चिपकना I  


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना बिछड़ना I  


वो रातों में मैय्या के आँचल में  छिपना,  

वो परियों की मीठी कहानी का सुनना l

तितली का आँगन के कोने   में उड़ना, 

वो चिड़ियों का आकर सुबेरे  चहकना 


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना झगड़ना I  


वो धानों में बाली का छिपकर निकलना,   

वो खेतों में खुसबू का चहुदिश महकना,

वो मक्के के  भुट्टों का खेतों में  पकना,

वो गन्नों के  खेतों में हिरणों का चरना I  


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना झगड़ना I  


वो कागज की कस्ती का नलियों में बहना,

वो माटी की गाड़ी का गलियों में चलना I  

वो खड़िया की माटी से पाटी पे लिखना,    

वो गिनती पहाड़े का  दिन रात  रटना I

 

बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना झगड़ना I


वो गुड़ियों का गुड्डो के संग ब्याह रचना, 

वो राज का रानी से  मिलना  बिछड़ना l

वो परियों का सपनो मे हर रोज  आना, 

वो तारों की दुनिया मे हर  रोज  जाना l


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना झगड़ना I


वो सावन में  बागों में  झूलों  का पड़ना, 

वो कजरी के गीतों का हर रोज सुनना l

वो आल्हा की गीतों पे ढोलक का बजना, 

वो सावन के मेलों में मिलना बिछड़ना l


बहुत याद आता है,  वो  गांवों का रहना ,

वो गांवो की गलियों में मिलना झगड़ना I

.................... रामसनेही " सजल "

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