Friday, June 24, 2022

पच्चीस जून 1975 के दिन हर भारतीय को अवश्य याद रहता है,क्योंकि इस दिन देश में इमरजेंसी लगी थी

पच्चीस जून 1975 के दिन हर भारतीय को अवश्य याद रहता है,क्योंकि इस दिन देश में इमरजेंसी लगी थी।। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने भारत मे इमरजेंसी लगी रही। तत्कालीन राष्ट्रपति फख्रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 केअधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद, अलोकतांत्रिक काल था। चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त कर मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधीकैद कर लिये गए और प्रेस पर प्रतिबंधित लग गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चला। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे श्भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधिश् कहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करवाई।1967 और 1971 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ ही संसद में भारी बहुमत को अपने नियंत्रण में कर लिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल के बजाय प्रधानमंत्री सचिवालय के भीतर ही केंद्र सरकार की शक्ति को केंद्रित हो गई। निर्वाचित सदस्यों को खतरे के रूप में देखा। इसके लिए वह अपने प्रधान सचिव पीएन हक्सर जो इंदिरा के सलाहकारों की अंदरुनी घेरे में आते थे, पर भरोसा किया। हक्सर ने सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा प्रतिबद्धनौकरशाही के विचार को बढ़ावा दिया। आपातकाल के दौरान एक लोकप्रिय नारा था, आपातकाल के तीन दलाल  संजय, विद्या, बंसीलाल। इंदिरा गांधी ने चतुराई से प्रतिद्वंदियों को अलग कर दिया जिस कारण कांग्रेस विभाजित हो गयी और 1969 में  कांग्रेस (ओ) व कांग्रेस (आर) जो इंदिरा की ओर थी, दो भागों में बट गयी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस सांसदों के एक बड़े भाग ने प्रधानमंत्री का साथ दिया। इंदिरा गांधी की पार्टी पुरानी कांग्रेस से ज्यादा ताकतवर व आंतरिक लोकतंत्र की परंपराओं के साथ एक मजबूत संस्था थी। दूसरी और कांग्रेस (आर) के सदस्यों को जल्दी ही समझ में आ गया कि उनकी प्रगति इंदिरा गांधी और उनके परिवार के लिए अपनी वफादारी दिखने पर पूरी तरह निर्भर करती है और चाटुकारिता का दिखावटी प्रदर्शित करना उनकी दिनचर्या बन गया। इंदिरा का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह कांग्रेस विधायक दल द्वारा निर्वाचित सदस्यों की बजाय राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में स्वयं चुने गए वफादारों को स्थापित कर सकती थीं।इंदिरा की उस सरकार के पास जनता के बीच उनकी करिश्माई अपील का समर्थन प्राप्त था। इसकी एक और कारण सरकार द्वारा लिए गए फैसले भी थे। जुलाई 1969 में प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण व सितम्बर 1970 में राजभत्ते यानि प्रिवी पर्स  से उन्मूलन जैसे फैसले विरोधियों को सार्वभौमिक झटका देने के लिए अध्यादेश के माध्यम से अचानक किये गए थे। सिंडीकेट और अन्य विरोधियों के विपरीत, इंदिरा को गरीब समर्थक, धर्म के मामलों में, अर्थशास्त्र और धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद के साथ पूरे देश के विकास के लिए खड़ी एक छवि के रूप में देखा गया। प्रधानमंत्री को विशेष रूप से वंचित वर्गों-गरीब, दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों द्वारा बहुत समर्थन मिला। उनके लिए उनकी इंदिरा अम्मा थीं।1971 के आम चुनावों में गरीबी हटाओ का इंदिरा का लोकलुभावन नारा लोगों को इतना पसंद आया कि पुरस्कार स्वरुप उन्हें एक विशाल बहुमत 352 सीटें से जीता दिया।  जीत के इतने बड़े अंतर के सम्बन्ध में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने बाद में लिखा था कि कांग्रेस (आर) असली कांग्रेस के रूप में खड़ी है, इसे योग्यता प्रदर्शित करने के लिए किसी प्रत्यय की आवश्यकता नहीं है।दिसंबर 1971 में इनके सक्रिय युद्ध नेतृत्व में भारत ने पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश को अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलवाई। अगले महीने ही उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, वह उस समय अपने चरम पर थीं।उनकी जीवनी लेखक इंदर मल्होत्रा, के लिए भारत की साम्राज्ञी के रूप में उनका वर्णन उपयुक्त लग रहा था। नियमित रूप से एक तानाशाह होने का और एक व्यक्तित्व पंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाने वाले विपक्षी नेताओं ने भी उन्हें दुर्गा सामान माना।आपातकाल घोषित करके प्रमुख नेताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया गया था। 1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचौनी दिखी। यह सब हुआ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था,लेकिन इंदिरा गांधी ने  फैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, जबसे मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कघनून मीसा के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े नेता शामिल थे।

 

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