निजता के अधिकार पर हमला...
निजता का अधिकार स्मार्टफोन ने समाप्त कर दिया है। आप कहीं भी हों, आपका स्मार्टफोन आपके बारे में जानकारी लेता रहता है। आपका पीछा हर पल स्मार्टफोन के द्वारा किया जा रहा है। आपका मोबाइल आपकी तस्वीर बराबर भेजता रहता है और जब आप अपना फोन बन्द कर देते हैं, तब भी यह पीछा करना बन्द नहीं होता। आप चाहे किसी से बात कर रहे हों, आपकी पूरी बातचीत कहीं रिकार्ड हो रही है और अब निजता नाम की कोई चीज बची नहीं है। सूचना प्रोद्यौगिकी (आईटी) का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि आपकी हर बात सुनी जा रही है।
कई बहानों से आप से जानकारी ली जाती है और उसका गलत इस्तेमाल होता है। कैम्ब्रिज एनालिटिका इसकी एक मिसाल है, जब एकेडमिक रिसर्च के नाम पर ली गई जानकारी का इस्तेमाल चुनाव में किया गया। यही हाल सरकार द्वारा आपकी अन्य सूचनाओं का भी हो सकता है।
ये अधिकतर कम्पनियां अमेरिका केन्द्रित हैं और इस तरह अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों से कोई बात छिपी हुई नहीं है। इस मामले में चीन भी पीछे नहीं है और उसका एक स्मार्टफोन पिछले दरवाजे से हर बात कहीं भेजता रहता है। अमेरिकी अधिकारियों ने अब अपने देश में इस फोन का बेचना वर्जित कर रखा है।
अमेेरिकी सुरक्षा एजेंसियां पीछा करने में दोस्त-दुश्मन की परवाह नहीं करती। कुछ साल पहले जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के फोन की भी अमेरिकी एजेंसियां पीछा कर रही थीं। उनके द्वारा अपने मित्रों, पारिवारिक सदस्यों से बातचीत की भी निगरानी की जा रही थी। यह तब था जब एंजेला मर्केल अमेरिका के मजबूत मित्र राष्टï्र जर्मनी की राज्याध्यक्ष थीं। इस मामले में हमारे देश के नेताओं की बातचीत की निगरानी अवश्य हो रही होगी। कल ही राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि नरेन्द्र मोदी के मोबाइल एप 'नमोÓ के फालोवर्स का डेटा भी अमेरिकी कम्पनियों ने ले लिया है। इस तरह न केवल राजनीतिक मामले बल्कि नितांत व्यक्तिगत मामले भी सुरक्षा एजेंसियों की जानकारी में रहते हैं।
हमारे देश में आधार के द्वारा सरकार के पास नागरिकों के बारे में बहुत सी जानकारी ली जाती है, जो अन्यथा संभव नहीं था। आधार में बहुत सी अनावश्यक जानकारी मांगी जाती है, जिसको देने से नागरिक इनकार कर सकता है। सरकार को आवश्यक जानकारी मांगनी चाहिये। किसी ने मजाक में लिखा है कि जब फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग से किसी ने इस बात की शिकायत की तो जुकरबर्ग ने कहा कि आप स्मार्टफोन तो बन्द कर सकते हैं, परन्तु आधार के सिलसिले में आप क्या करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला कई बार आया है, परन्तु अदालत ने कोई स्पष्टï निर्देश नहीं दिया है। हर बार सरकार ने सुरक्षा के नाम पर निजता का अधिकार को नकारा है।
समय आ गया है कि निजता के अधिकार पर स्वतंत्र बहस हो और इसे मौलिक अधिकार का दर्जा बहाल रखा जाये।
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ReplyDeleteजानिए की क्यों चिनीज़ स्मार्टफोन सस्ते में बिकते है..
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