Monday, March 26, 2018

Helth System in India

जन स्वास्थ्य सेवाओं का वादा केवल दिखावा... 


स्वस्थ व्यक्ति से स्वस्थ समाज की कल्पना की जा सकती है और स्वस्थ समाज ही देश के विकास को आगे बढ़ा सकता है।  परन्तु आजादी के ७० वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी हर व्यक्ति को मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाया नहीं जा सका है। अलबत्ता स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी शिक्षा की तरह दो क्लास विकसित हो गये हैं। एक तरफ तो हर साजो-सामान से सुसज्जित प्राइवेट हास्पिटल हैं तो दूसरी तरफ सुविधाओं को तरसते सरकारी अस्पताल। हालत यह है कि शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों में डॉक्टर तो मिल भी जाते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश प्राथमिक और सामुदायिक चिकित्सालय चिकित्सक विहीन ही होते हैं। ग्रामीण अस्पताल अक्सर फार्मासिस्टों के भरोसे पर चल रहे होते हैं। अभी हाल ही सरकार ने नई नियुक्तियों के सम्बन्ध में यह नियम लागू किया है कि डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम दो वर्ष की सेवा देनी ही होगी। यह स्वागत योग्य है, लेकिन केवल नियमावली बना देने से चीजें सुधर नहीं जाती, बल्कि उन्हें पूरी ईमानदारी से लागू भी करने की जरूरत होती है। अक्सर यह भी देखा गया है कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की ज्यादातर दिलचस्पी प्राइवेट क्लीनिक में होती है। जब उनकी क्लीनिक चल निकलती है तो वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लेते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहालत में यह भी एक बड़ा कारण हैं।
   यह भी चिंताजनक बात है डॉक्टरों द्वारा मेडिकल स्टोर और पैथालोजी में कमीशन का सेट होना। कई बार ऐसा देखा गया है कि एक डॉक्टर की दवा एक निश्चित मेडिकल स्टोर पर ही होती है। यह भी देखा गया है कि पीजीआई जैसे संस्थान बाहर की जांचों को मानते ही नहीं, जिससे खर्च बढ़ता है। यह भी एक विचारणीय तथ्य है, क्योंकि यदि बाहर की जांचे विश्वसनीय नहीं हैं तो उन्हें जांच करने के लिए लाइसेंस ही क्यों दिया जाता है। यह विरोधाभाष भी समझ से परे है।
२०१४ के चुनावों में भाजपा ने हर व्यक्ति तक सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने का वादा किया था। स्वास्थ्य सेवाओं से कमीशनबाजी को दूर करके सस्ती और जेनरिक दवाओं के प्रचलन को विकसित करने की बात भी कही गयी थी। पिछले दिनों जब इस संदर्भ में प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की शुरूआत हुई तो यह लगने लगा था कि सरकार सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं को देने के लिए गंभीर है, लेकिन ऐसा कुछ धरातल पर देखने को नहीं मिल रहा है। एक तो प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के तहत दवाओं के विक्रय का लाइसेंस प्राइवेट हाथों में दिया जा रहा है और अभी तक इसकी संख्या शहरों में इक्का दुक्का ही है। दूसरी बात यह कि डॉक्टरों द्वारा प्रधानमंत्री जन औषधि की दवाओं को लिखा भी नहीं जाता। यदि कोई भूले-भटके इन स्टोरों पर दवा लेने पहुंच भी जाता है तो उसे दूसरे नाम से दवा मिलती है, जो इस सेवा से विश्वास को कम करने का काम करती है। कायदे से यह होनी चाहिये कि यह जन औषधि स्टोर को अस्पतालों में ही स्थापित किया जाये, ताकि सभी को सस्ती और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल पाये और डॉक्टर भी इन्हीं दवाओं को लिखें, जिससे इस योजना का लाभ आम आदमी को मिल सके और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं का सपना भी साकार हो सके।

5 comments:

Please share your views

सिर्फ 7,154 रुपये में घर लाएं ये शानदार कार

  36Kmpl का बेहतरीन माइलेज, मिलेगे ग़जब के फीचर्स! | Best Budget Car in India 2024 In Hindi b est Budget Car in India: कई बार हम सभी बजट के क...