Thursday, March 22, 2018

Opinion on Indian Farmers

अन्नदाता किसानों का वाजिब हक न मारा जाये

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180 किलोमीटर की मैराथन पदयात्रा के बाद महाराष्ट्र के किसानों को सिर्फ और सिर्फ आश्वासन ही मिला है। वह भी ऐसा आश्वासन जिसे महाराष्ट्र सरकार लिखित में किसानों से पिछले साल ही पूर्ण करने का वादा कर चुकी थी। किसानों की मांग थी कि वन अधिकार कानून, 2006 सही ढंग से लागू हो, जो कि 12 वर्ष बीतने के बाद भी लागू नहीं हो सका है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए और सरकार कर्ज माफी के वादे को पूरा करे। पिछले 6 माह के दरम्यान किसानों का यह दूसरा बड़ा प्रदर्शन था।
यह केवल महाराष्ट्र के किसानों का अकेला मामला नहीं है। देश भर में किसानों के साथ सरकारें वादा करके वादाखिलाफी करने से नहीं चूंकती। सियासत में किसान केवल चुनाव के समय ही राजनीतिक दलों को याद आता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेन्द्र मोदी जी ने किसानों को उनकी लागत मूल्य का डेढ़ गुना दिलाये जाने का वादा किया था। सत्ता में भी आये, चार साल शासन करते बीत गये। फिर भी किसानों के लिए दिखाये गये उनके सुनहरे सपने अभी तक सपने ही हैं। मौजूदा बजट में किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का वादा किया गया है। इसके बीच में 2019 भी है, यानी प्रधानमंत्री मोदी जी 2014 में किसानों से किये गये अपने वादे के लिए एक और मौका चाहते हैं। 2022 में क्या होगा, यह अभी भविष्य के गर्त में है।
महाराष्ट्र में किसानों का यह प्रदर्शन पहला नहीं था। भुखमरी, कर्ज और प्रकृति के प्रकोप से अब तक बहुत से किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी है। तमिलनाडु के किसानों ने पिछले वर्ष दिल्ली के जंतर-मंतर पर महीनों मानव खोपड़ियों के साथ प्रदर्शन किया, लेकिन सरकार को उनकी सुधि लेने की फुर्सत नहीं थी। अभी हाल ही मध्यप्रदेश में किसानों ने शिवराज सरकार पर वादाखिलाफी को लेकर बड़ा आंदोलन छेड़ा था। अपने उत्पादों के वाजिब मूल्य के लिए राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि में भी किसानों को सड़कों पर उतरना पड़ा। सरकारी दावे कुछ भी हों, लेकिन किसानों की स्थिति पिछले कुछ वर्षों में बद से बदतर होती जा रही है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) एक अहम सरकारी हस्तक्षेप है। जिसकी मदद से कृषि उपज का मूल्य बेहतर किया जाता है। सरकार एमएसपी को बढ़ाकर किसानों की आर्थिक रीढ़ को मजबूत कर सकती है। दुर्भाग्य से यह इच्छाशक्ति अब तक किसी सरकार ने दिखायी। सन 2004 में भारत में हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किसानों की बेहतरी के लिए एक आयोग का गठन किया गया था। 2006 में इस आयोग ने फसल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज्यादा दाम किसानों को मिलने, किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराए जाने, गांवों में किसानों की मदद के लिए ज्ञान चैपाल बनाये जाने जैसी तमाम अच्छी योजनाओं को शुरू करने की सिफारिश की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भी इस आयोग को लागू करने के लिए अपने घोषणा पत्र में रखा था। परन्तु सरकार में आने के बाद वह इसे भूल चुकी है।
किसान अन्नदाता है और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी। यदि उसे सहेजा नहीं गया तो रोज-ब-रोज आने वाली शेयर बाजार की खूबसूरती की चमक फीकी पड़ने में समय नहीं लगेगा। देश और समाज को बचाना है तो किसानों को समृद्धि के धरातल पर लाना ही होगा।

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