Sunday, April 1, 2018

Opinion on CBSE Paper leak

शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अत्याधुनिक तंत्र को विकसित करने की जरूरत...


  देश का भविष्य दोराहे पर खड़ा है। वह जाये तो जाये किधर, हर रास्ते पर खतरे बहुत हैं। कम से कम पिछले दो दशकों से विभिन्न परीक्षाओं में प्रश्नपत्र लीक के मामले में यही कहा जा सकता है। पहले तो प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्चा लीक होने की खबर आती थी। परन्तु अब हद यह हो गई कि 10वीं और 12वीं कक्षा तक के प्रश्नपत्र लीक हो रहे हैं। यह भी देखा गया है कि किसी खास विद्यालय वाले पहुंच के बूते अपने छात्रों को टॉप करा देते थे। इसी कारण यूपी बोर्ड को अपनी टॉपर्स की लिस्ट जारी करना बन्द कर दिया। इन सबके बीच उन नौनिहालों का क्या दोष है, जो उज्ज्वल भविष्य की कामना लिए जीतोड़ मेहनत कर जीवन में ऊंची छलांग लगाने की कोशिश में हैं। इससे तो उनकी इच्छाओं और कोशिशों का दमन ही हो रहा है। छात्रों में कुंठा की भावना घर कर रही है और कुंठित युवा से किसी सकारात्मक भविष्य की कल्पना करना बेमानी है।
  आखिरकार देश जा कहां रहा है, खासकर शिक्षा और रोजगार के मामले में। इस क्षेत्र में अघोषित ठेकेदारी चल रही है। अभी हाल ही में 10वीं और 12वीं कक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने से सीबीएसई की साख को गहरा धक्का लगा है। 12वीं की अर्थशास्त्र की परीक्षा 26 मार्च को हुई थी, जबकि 10वीं कक्षा की गणित की परीक्षा 28 मार्च को। परीक्षा से पहले ही हाथ से लिखे सवाल वॉट्सएप पर शेयर हो रहे थे। पेपर में भी वही सवाल आए, लेकिन सीबीएसई दावा करता रहा कि पेपर लीक नहीं हुए हैं। अब सीबीएसई ने पेपर लीक की बात स्वीकार करते हुए 12वीं के अर्थशास्त्र और 10वीं के गणित की परीक्षा दोबारा कराने का फैसला किया है।
  देशभर के छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में इसे लेकर भारी गुस्सा है। सवाल है कि कोई भी पेपर बोर्ड के अंदर के किसी व्यक्ति की मिलीभगत के बगैर बाहर कैसे आ सकता है? अगर ऐसा नहीं है तो किसी स्तर पर जरूर लापरवाही हुई है। क्या इस बात की जांच की जाएगी कि कहां गड़बड़ी हुई? क्या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी? ऐसे समय में जब राज्यों के बोर्ड अनियमितता के कारण कठघरे में खड़े किए जा रहे थे, सीबीएसई ने अपनी पारदर्शिता और पेशेवराना रवैये से अपनी प्रतिष्ठा कायम की थी। पिछले कुछ वर्षों में यह अच्छी शिक्षा और अच्छे करियर के पर्याय के रूप में उभरकर आया, लेकिन पेपर लीक ने इसकी विश्वसनीयता पर गहरी चोट पहुंचाई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि तकनीक के बढ़ते प्रसार और उनकी व्यापक उपलब्धता ने हमारी मौजूदा व्यवस्थाओं को बेजान बना दिया है? अब हमें पहले से कहीं बेहतर और अत्याधुनिक तंत्र की जरूरत है। क्या सरकार इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए एक सक्षम तंत्र बनाएगी? फिर इस पर भी विचार करना चाहिए कि कहीं हमारी शिक्षा प्रणाली अंकों का एक खेल बनकर तो नहीं रह गई है? शिक्षा के स्वरूप में व्यापक बदलाव की पहलकदमी भी सीबीएसई को तो करनी ही चाहिये, देशभर में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आ रही कमजोरियों को दूर करने के लिए सरकार को भी फुलप्रूफ अत्याधुनिक तंत्र बनाने की आवश्यकता हैं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में देश के प्रशासनिक ढांचे में इसी कुव्यवस्था से अवतरित जुगाड़ पीढ़ी का साम्राज्य होगा और काबिल व होनहार भविष्य दूर कहीं किनारे टुकुर-टुकुर देखने के शिवा कुछ नहीं कर पाने की स्थिति में खड़ा होगा।

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