Monday, April 9, 2018

Opinion on indian farmar

कौन ले किसानो की सुधि 

पिछले तीन दिनों के अंदर दो बार आसमान से बरसी आफत से किसानों को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा है। मेहनत की कमाई का पाई-पाई लगाकर तैयार फसल पर कुदरत के कहर से वह भौचक्का है। कोई आने वाली बरसात से बचने के लिए अपना आशियाना बनाने की सोचा था तो कोई अपनी बेटी के हाथ पीले करने का सपना संजोये था। अच्छी फसल के चलते कईयों ने न जाने कितने सपने देख लिये थे, परन्तु अब यह सपना उनका शायद ही पूरा हो पाये। दो बार के आंधी-पानी ने न सिर्फ गेहूं की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया, बल्कि आम की फसल को भी भारी नुकसान हुआ है। जिन किसानों ने किसान के्रडिट कार्ड से कर्ज ले रखा था, उनके लिए भी डिफाल्टर बनने जैसे दिन आ गये है।
  गौरतलब है कि इस समय गेहूं की फसल पूरी तरह से तैयार हो चुकी है। कुछ जगहों पर किसानों ने इसे खेत में काटना भी शुरू कर दिया था, परन्तु पुरवाई के चलते गेहंू की मड़ाई नहीं कर रहे थे। किसानों का क्या मालुम था कि उनका पछुआ हवा का इंतजार बड़ा भारी पड़ेगा। इधर तीन दिनों से मौसम ने जिस तरह से करवट बदली है, उससे किसान हैरान और खुद को ठगे महसूस कर रहे हैं। हालांकि यह अजीब बिडम्बना है कि कृषि प्रधान देश में विषम परिस्थिति आने के बाद भी इस समय मीडिया और राजनीतिक क्षितिज दलित उत्पीडऩ का मुद्दा हावी है और सभी दल चाहे वह सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के, इस जातीय वोट बैंक की राजनीति में शामिल हैं।
  दरअसल किसान हमेशा राजनीति चुनावों के वक्त ही याद आते हैं, तब उनके कर्जदार होने पर राजनीतिक दलों द्वारा आंसू बहाये जाते हैं और वोट के बदले तमाम वादे भी किये जाते हैं। फिर वादे है वादों का क्या कहकर इसे भूला दिया जाता है। ऐसा ही परिदृश्य पिछले दिनों महाराष्टï्र में देखने को मिला। जब वहां के किसानों ने प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा किये गये वादे को पूरा करने के लिए 180 किलोमीटर की मैराथन पदयात्रा कर मुंबई पहुंचे थे। उन्हें फिर आश्वासन ही मिला है। मध्यप्रदेश में किसानों को अपनी फसल सड़कों पर फेंकनी पड़ी थी। उत्तर प्रदेश में आलू किसानों को वाजिब मूल्य न मिल पाने से संघर्ष करना पड़ा था। यही हाल देश के सभी हिस्सों में किसानों के साथ है। अब उत्तर प्रदेश में बरसी आसमानी आफत ने किसानों को फिर से बैकफुट पर ला खड़ा किया है। अब प्रदेश की चुनी हुई लोकप्रिय सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस बरसात से हुए नुकसान का आकलन कर फसल बीमा योजना के तहत किसानों को उसका लाभ दिलाने का कार्य करे। हालांकि इसमें नौकरशाही के कुचक्र से भी सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि किसानों को उनका वाजिब हक मिल सके। अन्यथा कर्जमाफी की तरह १० रूपये, २० रूपये जैसे मिलने के मजाक से बचा जा सके। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेन्द्र मोदी जी ने किसानों को उनकी लागत मूल्य का डेढ़ गुना दिलाये जाने का वादा किया था। सत्ता में भी आये, चार साल शासन करते बीत गये। फिर भी किसानों के लिए दिखाये गये उनके सुनहरे सपने अभी तक सपने ही हैं। अब वक्त आ गया है उन्हें अपना वादा निभाने का और किसानों को आंधी और पानी से हुए नुकसान की भरपायी के लिए ठोस कार्ययोजना को जमीन पर उतारने के लिए इमानदार प्रयास करने का, क्योंकि भारत की समृद्घि और खुशी ग्राम देवता किसानों की खुशहाली से आनी है।

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